"मौन"...............................कब तक मौन कि भाषा समझूँ......कभी-कभी तो मन करता है...कि मेरे कान में चुपके से आ के वो सब कह दो....जो दिल में ग़ुबार कि शक्ल में उठता है......आँखों से आंसुओ के रूप में बहता है.....दिल में धडकन कि तरह गूंजता है......कागज पर कविता के रूप में उतरता है....तुम्हारे ही नहीं मेरे भी.......मौन तो वहाँ समझा जा सकता है......जहाँ हम-तुम आमने - सामने हों...जहाँ पर हम चेहरे पर आते जाते हुए रंगों से दिल में उठते हुए.....अरमानों का अंदाज लगा सकते हों......लेकिन जब दूरी दिल कि नहीं.....किलोमीटर में हों....तो मन तड़पता है......कि अब बोल दो....या सुन लो.....एक बार मिलन हो...लेकिन ऐसा...हो कि तुम - तुम ना रहो, मैं- मैं ना रहूँ.....
मेरे पास, मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ,
तुझे धड्कनों में बसा लूँ में, कि बिछुड़ने का कभी डर ना हो....
कहाँ हो..........सुन रहे हो ना मुझे....................बोलो.................बोलो तो......
कब तक महसूस करते रहेंगे......मैं नदी हूँ...तुम सागर हो.....तो मुझको अपने में समा क्यों नहीं लेते....
तुम भी चुप, मैं भी चुप, रात भी चुप, चाँद भी चुप.
सभी कुछ गुम हुआ बस एक ही पैमाने में.......
आज चाँद को देखा.....तुम याद आये......बहुत खूबसूरत , मगर तनहा..... तुम चांदनी बनकर मुझपर छा क्यों नहीं जाती......एक बार....सिर्फ एक बार....
6 comments:
कभी कभी शब्द ही बोलते हैं और मौन उन्हें निहारता है शायद यही मौन की परिणति होती है .
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
beautiful composition//
कभी मेरे ब्लॉग पर भी आये /
आज मेरी भी एक रचना चर्चा मंच पर थी /
कब तक मौन की भाषा समझूँ ...
प्यारी सी शिकायत अब तो जरुर सुन लेंगे ...
खूबसूरत एहसास !
मौन की पराकाष्ठा पर मौन मुखरित हो जायेगा ....सुन्दर अभिव्यक्ति
मौन मुखर हो!
शुभकामनाएं!
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