Thursday, December 16, 2010

यारों घिर आई शाम चलो मैकदे चलें

दर्द कैसा भी हो, आँख नम ना करो,
रात काली सही, कोई गम ना करो,
एक तारा बनो, जगमगाते रहो.....ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो...

यही सिखाया था ना तुमने मुझे...जब मैं रिश्तों कि सुनामी में डूब रहा था.....अब तुम्हीं  अगर कमजोर पड़ोगी.....तो इस रिश्तों कि नाव को कौन संभालेगा....बोलो तो...

हाँ .....मैं  बहुत अकेला हूँ....पल - पल तुम्हारी याद आती है. यादों का भी अजीब सा रिश्ता होता है...ना....कभी ये मन पर बोझ डाल कर मन को डुबो देती हैं.....और कभी डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं.....मैं उन्ही यादों कि कश्ती पर सवार हो कर....जीवन सागर मैं उठने वाली हर लहर से लड़ रहा हूँ......हर पल तुमको अपने पास पाता हूँ...... और किस तरह तुमने रिश्तों के शीशे को तमाम पत्थरों से बचाया है.....मैं जानता हूँ, प्रत्यक्षदर्शी हूँ, सब याद है....पगली....कहाँ जाऊँगा....तुमको छोड़ कर....

दिन को आंखे खोलकर, संध्या को आंखे मूंदकर , 
तेरे हर एक रूप कि पूजा नयन करते रहे.....
उँगलियाँ  जलती रहीं, और हम हवन करते रहे...

कभी कभी ये अकेलापन मुझको पागलपन कि हद तक ले जाता है....और मैं अकेला अपने आप से बाते करता हूँ....फिर ये सोच कर चुप हो जाता हूँ कि कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा....देखा..अपने आप से भी बात करने से डरने लगा हूँ मैं......शाम से अब डरने लगा हूँ....क्योंकि...शाम कुछ लोगों के मिलने का वक़्त हो सकती है.....लेकिन मेरे लिए....अकेले हो जाने का वक़्त होता है.....

तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता......

मैं इस अकेलेपन को जी रहा हूँ.....इसके अलावा मैं क्या कर सकता हूँ...बोलो तो. 

मैं ये भी तो नहीं कह सकता.....

यारों घिर आई शाम चलो मैकदे चलें.....कुछ दिन और सही...इस रात कि भी सुबह होगी.....होगी ना.....बोलो तो.....

1 comment:

vandana gupta said...

रात आयी क्या क्या ले आयी
फिर कैसे कहूँ सुबह होगी