Sunday, December 16, 2012

आप की कसम।

कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी जुबानी मेरी .....

बात करने से बात बढती भी है , बात साफ़ होती है भी है और बात से बात निकलती भी है .....इसीलिए तो कहा है ....बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी .....मानो या न मानो।

तुमने पूंछा  था की क्या मैं नाराज़ हूँ .....?

नहीं नाराजगी किस बात की ..... हाँ अफ़सोस जरूर हुआ और है भी .....क्योंकि मैं तुमको एक अलग पैमाने पर देखता था, कईयों से अलग, कईयों से जुदा। मेरी सोच। या तो मैं भी    की तरह सोचना शुरू कर दूं ...या जो मेरी मौलिक सोच है उसको बरकरार रखूं। दुनिया की भेड़ चाल में चलना ....मेरे बस का नहीं।

जब भी डूबे तेरी यादों के भंवर में डूबे, 
ये वो दरिया है जो हमें पार न करना आया।

लेकिन बशीर बद्र का वो जो शेर है :-

कुछ तो मजबूरियाँ रही होगीं,
यूँ ही कोई बेवफ़ा  नहीं होता .....

और जब तक मैं सच्चाई की तह तक न पहुँच जाऊं , कोई राय या कोई धारणा बना लेना गलत होगा। और मेरा ये firm belief है की सच एक न एक दिन सामने आ जाता है और झूठ के पाँव नहीं होते।  और जब तक सच सामने नही  आ जाता  तब तक बर्दाशत करना। यही समझदारी है। दुनिया ने ही सीखाई है ये समझदारी .......
एक न एक दिन जरूर आएगा जब जमाना हमको ढूँढेगा, न  जाने हम कहाँ होंगे।

हाँ ये जरूर सोचता हूँ कि  कहाँ गयी तुम्हारी अपनी शख्सियत , तुम्हारी अपनी एक individual personality. मनुष्य ईश्वर  की सर्वश्रेष्ठ कृति है है ......ऐसा सुना है  और मानता भी हूँ .....

दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइए ,
मेरी जबीं पे अपना मुकद्दर सजाइए।
लोगों ने मुझ पे किया हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
इक बार आप भी तो मुझे आजमाइए।

तुम मुझको जितना या कितना जानती हो ...ये तो पता नहीं , लेकिन इतना तो जानती  होगी की मैं उनमें से नहीं हूँ जो तुमको शर्मसार करे या रुसवा ....

बाकी तुम्हारी सोच और तुम्हारी मर्जी .........इसके आगे और क्या बोलूं ..... तुम्हारी आज भी वही इज्ज़त है और वही स्थान है मेरे दिल में जो था ....हम किरायेदार बदलते नहीं ....बस  इतना है की ..

गिरता है अपने आप पर , दीवार की तरह, 
अंदर से जब चटकता है, पत्थर सा आदमी।.

आप की कसम। 

Tuesday, December 11, 2012

इक आम आदमी..

मैं सच कह  रहा हूँ की मैं झूठ बोलता हूँ ...

हँसी आ गयी न ...... आनी  ही थी .....

कल एक शुभचिंतक से मुलाक़ात हो गयी ...... तो  उनका पहला स्वाभाविक सा सवाल ...कैसे हो ....

अब बताइए मैं क्या जवाब दूँ .......

तुरंत झूठ बोल दिया " ठीक हूँ, बढ़िया हूँ" आदि आदि   ....... अब अगर ये सवाल वो आदमी पूंछे  जिसे कुछ पता न हो .....तो मेरा जवाब उचित है लेकिन जब ये सवाल वहां से आया हो जिसको पूरा अंदाज है या अंदाज हो ....तो कोई हमे बतलाये की हम बतलाये क्या .....ये तो उसी तरह की बात हो गयी की किसी सोते हुए इंसान को जगा कर उससे पूंछे  " सो रहे थे क्या ?" अल्लाह ....अल्लाह .... ये अदा कैसी है इन हसीनो में .....

खैर छोडिये  इन बातों को अब आगे बढ़ते हैं .......

मेरी हालत तो ऐसी है की ....

मैं तो  ग़ज़ल  सुना के अकेला खडा रहा, 
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए .....

सब मगन हैं अपनी अपनी दुनिया में  ....

अच्छा एक सवाल  हूँ .......गुरु या ईश्वर जो सारे जग को प्रेम का पाठ पढ़ाता  है ....क्या वो ये कह सकता है की फलाने आदमी या फलाने इन्सान से दूरी रखो ......संभव है ? मेरे हिसाब से नहीं ......कदापि नहीं . गाने सुनने का शौक हो लेकिन घुंघरू की आवाज़ पसंद नहीं .....

इक पुराना गाना है ना ...

ऐ इश्क ये सब दुनिया  बेकार की बाते करतें हैं, 
पायल की धुनों का इल्म नहीं  झंकार  की बाते करतें हैं .....

मेरा ये आलेख किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं हैं। इसे  व्यक्तिगत तौर  पर ना लिया जाए ......इक आम आदमी का आम सा लेखन ...प्रेम .....जी हाँ प्रेम तो आज कल आम हो गया और मैं इक आम आदमी। 

Thursday, December 6, 2012

आगे तुम्हारी मर्जी ............

बहने दो ....... an outlet is must...

Means....

Yes.....I mean the same ...what you have understood. 

You want me to face the wrath...again and again and again ...

forget the world.....दुनिया .... दुनिया ....दुनिया। 

उस दुनिया को क्यों नहीं जीते जो तुम्हारे अंदर है .....जो कुदरत की देन है ........समझो मेरी बात को, महसूस करो इस सच को की हमारा स्वभाव, हमारा nature ... ये खुदा की देन है .....क्यों इस को बदलना चाहते हो .....वो भी दूसरों की वजह से .......कमाल करते हैं .....आप। जब तक अंदर से पस और मवाद नहीं निकलेगा ..... आराम कहाँ से आएगा ....... I am telling you. 

तो क्या करूँ .....बगावत कर दूँ ......??.....चुप क्यों हैं ....बोलिए न ......

किस कमबख्त ने तुमसे बगावत करने को कहा है ......लेकिन इतना जरूर याद रखना की Jonathan - Livingston Seagull --में ......परिवार से आगे बढ़ना पड़ा उसे .....क्योंकि वो अपनी जिन्दगी जीना चाहता था .........

परिवार से आगे बढ़ना पड़ा ....इस को समझायेंगे ........

मुझे लग रहा था .....की तुम इस पर जरूर भोंवे ऊँची करोगे .......मैं किसी परिवार से बगावत करने का पक्षधर नहीं हूँ ......लेकिन मैं इसका भी पक्षधर नहीं जहाँ जिन्दगी मेरी .....शर्तें तुम्हारी .....परिधान मेरा ...पसंद आप की .....साँसे मेरी ....अधिकार आप का .........ये जिन्दगी है .......जेल नहीं .......जहाँ हर कैदी आज़ाद है .....चारदीवारी के अंदर .......

जिन्दगी जीने को दी ..................जी मैंने, किस्मत में लिखा था पी ..............तो पी मैंने। 
मैं न पीता तो उसका लिखा गलत हो जाता , उसके लिखे को निभाया .............क्या खता की मैंने .....

You can not understand......what ordeal I am passing thru ....

May be....and truly so......only the wearer knows where shoe pinches.....

then ...what you say.....

Me.....मेरी तो सोच बड़ी सरल है .......अपने इस मकड़  जाल से निकलो ....और वो करो ....जिसमें तुम्हे ख़ुशी मिलती है। अगर दूसरों को ख़ुशी देनी है तो खुश रहना जरूरी है ........प्रसन्ता का उदय तो आत्मा में होता है ....चेहरे पर जो झलकता है ..वो तो उसका प्रतिबिम्ब है .....

आगे तुम्हारी मर्जी ...........

वक़्त जब लिखेगा अपना फैसला तब देखना 
सैकड़ों खुशफेह्मियों के मुंह खुले रह जायेंगे। 

Tuesday, December 4, 2012

अरे हाँ .....आशा

प्रिय आशा, 

 ...... काफी समय बाद तुमको लिख रहा हूँ। 

तुम्हारा पत्र पढ़ा और हिल गया अंदर तक। नहीं ....नहीं। संभव नहीं है . काफी समय बाद तुम्हारा पत्र आया और कारवाँ गुजर गया, गुब्बार देखते रहे।

बड़े मगरूर दोस्तों से नवाज़ा  है खुदा ने, 
अगर मैं न करूँ याद तो जहमत वो भी नहीं करते। ....

.खैर ये शिकवे-गिले का वक़्त नहीं है। .........

 प्रेम वो गुड नहीं है जिसे चीटें  खाएं। प्रेम जिस बिना पे खड़ा होता है या पनपता है ......वो है विश्वास, और विश्वास .... पर्वत को भी हिला सकता है ....कोई कड़वी  भावना नहीं है, कोई अलगाव  नहीं है और न ही इसका क्षय संभव है। कोई संकीर्ण सोच प्रेम को मार नहीं पाई ....

माना हमारे बीच रख दी वक़्त न कुछ दूरियां , 
कोशिश ये हो दिलों में रास्ता ज़िंदा रहे ......

प्रेम तो वो अगरबत्ती है जो धीमे धीमे जलता है और महकाता रहता है .....

वक़्त पे भरोसा रखो ....ये चलता है और चलता रहता है .....यही तो इसकी ख़ूबसूरती है ....यही तो इसका हुस्न है .....ये पलटता भी है .....ये युसूफ को मिस्र के बाज़ार में बिकवाता भी है और उसको शाहे मिस्र भी बनवा देता है। अरे प्रेम में अगर तपे नहीं तो सोना कैसे बनोगे ....बोलो तो। 

और ....

सोना बनो तो फिर इतना सोच लो, 
हर शख्स इक बार परखता जरूर है। ......

लो मेरी तरफ देखो .....

इतना टूटा हूँ की छूने  से बिखर जाऊँगा, 
अब अगर और दुआ दोगे तो मर  जाऊँगा ......

क्या और कुछ कहूँ अपने बारे में ....नहीं ना .....

बारिश में तो नहाया है न तुमने .....अब बताओ हल्की  हल्की  फुहारों में जो भीगने का आनंद है .....वो घनघोर बारिश में कहाँ ....

इस प्रेम की अगन में तपने का आनंद लो .......आशा, विश्वास के साथ.....

और आशा का दिया तो जिन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है ..... कम से मेरा तो .....

जो आके रुके दामन पे सबा, वो अश्क नहीं है पानी है, 
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की कीमत होती है .....

अब बोर मत हो ...... क्या करूँ शायरी मेरी फितरत है .....कभी खुल के बात नहीं करता हूँ ....इशारों इशारों में कह देता हूँ ......और उसको जहाँ पहुंचना होता है ...पहुँच जाता है। कितने पत्थर मेरे आँगन में आये हैं ......जानती हो ....किस किस के हैं ये पत्थर जानती हो ......मेरे अपने ही .....you know. अब मेरे अपने ही हैं तो मैं कर भी क्या सकता हूँ .....जानती हो न कौन सी ताकत है जिसने आज तक मुझको ज़िंदा रखा है ........प्रेम।

हाँ .....आशा प्रेम।

आमीन !!!!!!!




Wednesday, November 21, 2012

अकेले हम भी रहते हैं ....


वो जहर देता तो दुनिया की नज़र में आ जाता फ़राज़, 
सो उसने यूँ किया, वक़्त पे दवा न दी ....

आँखों में अश्क और होंठो पे हंसी .....

टूटा हुआ इक दिल और होंठो पे हंसी .....

पीठ पे ज़ख्म और होंठो पे हंसी .....

हालातों से लड़ना और होंठो पे हंसी .....

दर्द बर्दाशत भी करना है ...... और हँसना  भी .....

 .....बिलकुल फिल्मी कहानी का सीन है ......है न ......तो हम भी किस हीरो से कम हैं।

न राधा, न ज्योति, न अंजलि, न नैना ....  सब ख्याली किरदार थे ....चले गए।

 ...सब ऐसे छोड़ गए जैसे शमशान में अंतिम संस्कार करके लोग चले जाते हैं ......अच्छा लगता है

........ईद पे रूचि के घर पर  ज्योति को देखा था .......न नमस्ते, न दुआ , न सलाम .....जरा सी देर में क्या हो गया जमाने को ......

लेकिन अच्छे लोग तो फिर भी अच्छे ही लगते हैं ....फ़राज़।

तुमने तो देखा ही होगा की पानी को कोई रोक न पाया। .......वो अपने निकलने का रास्ता बना ही लेता है ....चाहे रिस रिस कर ही क्यों न निकले ..........

मत पूँछ की क्या रंग है मेरा तेरे  आगे,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे पीछे .....

एक दीवानापन छा  गया है मुझ पर .......  इतनी चोटों  , इतनी घावों के बावजूद भी ज़िंदा हूँ ......पता नहीं कौन सी शराब पिला दी है मेरे मौला ने .....नशा सा छाया रहता है।

और इस नशे में मुहब्बत का नशा मिला दो तो ......... अल्लाह ...अल्लाह ....जैसे  भांग खाने के बाद किसी को मिठाई खिला दो .....

अच्छा लगता है अपनों से मिलना ......जो अब पराये से हो चले हैं ...

मुझे चेहरे पढने का हूनर आता है ..........उफ़ .....अल्लाह कितनी तकलीफ देता ये . कभी ये वरदान समझता था मैं .....अब तो मरा ...श्राप सा लगता है .....हाँ।

कितना बहलाऊं अपने आप को ....कैसे बहलाऊं .......

अरे ..............ये क्या फिर टूटने की तरफ .......नहीं ...तुमको इसकी इजाज़त  नहीं है .....  नहीं है।

अभी तुम्हरे गले पे जहर के नीले  निशाँ नहीं दिखाई पड़  रहे हैं ....अभी और गरल बाकी है .....

तुमको यादें सताती नहीं .......या तुम भी फ़राज़ बन गयी हो ....

भूल जाना भी एक तरह की नेमत है फ़राज़,
वर्ना इंसान को पागल न बना दे यादें ......

लेकिन ये यादें ही तो हैं जो डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं .......और कभी ये मन को अपने अंदर डुबो लेना चाहती हैं ......इन्हीं के बीच कभी डूबते , कभी उतराते , कभी जख्मों के दर्द बर्दाश्त करते करते ...चल रहा हूँ .....लेकिन ...

हमसफर होता कोई तो बाँट लेते दूरियां,
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ .

मैंने खुद ही तो कहा था .....उससे ....

कभी जब अकेलेपन से घबराओ , हमे आवाज़ दे लेना,
अकेले हम भी रहते हैं ....

Thursday, November 15, 2012

तस्वीरें बोलती नहीं हैं .....

आज फिर कलम हाँथ में आई ......तो नाम तुम्हारा ही लिख गया . अब बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है .....बोलो न .....अब बोलो तो ....

अभी तो सर्दी ने पाँव पसारने शुरू ही किये हैं ......लेकिन धुप में गुलाबीपन तो आने लगा है। सुबह की ठंडी हवा इक सिहरन सी भर देती है ....... अब बोलो न, बोलो तो .......

कल शाम हवा का एक झोंका मुझे छूकर गुजरा ..... तो तुम याद आ गयीं।

वो देखो .... अरे यहाँ तो आओ ...... वो देखो .....कोहरे की हल्की - हल्की  चादर ...ऐसा नहीं लगता की जैसे सामने वाले पहाड़ से बदल नीचे उतर कर आ रहे हैं ......ये कहीं मेघदूत तो नहीं .....जो शकुन्तला का कोई संदेशा लाये हो ........बोलो न ......अब बोल भी पड़ों ...

वो देखो जोशी जी के बगीचे में  डेहलिया के फूल कैसे इतरा इतरा कर नाच रहे हैं .......वो नीला वाला डहेलिया  देखो .......कितना खूबसूरत लग रहा है ..............नहीं बोलोगी तुम ना .....बोलो

मुझे जानती हो इन पहाड़ों में सबसे खूबसूरत क्या लगता है ......................बताओ .....अरे हाँ ....तुम तो बोलोगी नहीं ......

पहाड़ों के घरों में ...हर घर में तुमको फूल जरूर मिलेंगें ......

मुझे फूल बहुत पसंद हैं ........

तुमको ......?????

अरे हाँ ......तुम तो बोलोगी नहीं ......क्योंकि तस्वीरें बोलती नहीं हैं .....



Saturday, September 29, 2012

देखो ये मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म हैं ...........

देखो ये  मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म  हैं ........... 

लो ....एक और काग़ज ...अधलिखा ......अनपढ़ा ..............

क्या आनंद  काग़ज  पर  जिन्दगी जीता था ...... अविनाश?

क्या बताऊँ .... राधा। .....सच में मैंने भी आनंद के चारों तरफ काग़ज , चुरुट और चाय ही देखी है। वो ग़ालिब की एक शेर हैं न ......

चंद हसीनो के बुताँ , चंद हसीनों  के खुतूत, 
बाद मरने के मेरे, घर से ये सामाँ  निकला। 

राधा हंस पड़ी अविनाश के जवाब पर। सही कह रहे हो अविनाश ...शायद उसकी जिन्दगी इस लिए आसान थी।

किसे पता राधा .....जिन्दगी आसान थी उसकी ..या नहीं। लेकिन जीता बड़ी आसानी से था। कुछ लोगों के लिए सांस लेना भी भारी होता है। ...............जिन्दगी ने जो दिया , वो उसने ले लिया ...मुस्करा दिया .... आगे बढ़ गया। उसका तो जिन्दगी जीने का फ़लसफ़ा साधारण था .... बहुत ही साधारण .....

हार में या जीत में , किंचित नहीं भयभीत मैं , 
संघर्ष पथ पर जो मिला , ये भी सही, वो भी सही। 

जब अपने करने से कुछ न हो तो उसके हांथो में अपने आप को सौंप दो .....क्योंकि जो कुछ हुआ या हो रहा है या होने वाला है ....सब उसकी मर्जी से ही चलता है .....ये निजाम . आनंद कागज पर जिन्दगी नहीं जीता था ...बल्कि जो वो जीता था उसे कागज पर उतार देता था। उसने कभी  प्रेम के बारे में खुले आम नहीं लिखा ..कुछ खुले आम नहीं कहा .....क्योंकि प्रेम को कौन कागज पर उतार पाया है आजतक , कौन शब्दों में बाँध पाया है आजतक .....प्रेम तो किया जा सकता है या जिया जा सकता है ......उसने दोनों किये।

अविनाश .......आनंद को लेकर इतनी भ्रांतियां क्यों हैं  .... इतनी कहानियाँ क्यों है .....?

राधा .... आनंद ने जो जिन्दगी जी , उसने जितने घाव खाए .......और उसके बाद भी दुआ देता रहा। तो लोग confuse होते रहे। और  कहानियाँ बनाते रहे। ...उस के संस्कार ऐसे थे .....

गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो , 
जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे। 

तुम आनंद से कितनी बार मिली हो ...राधा ..?

कई बार .....क्यों ..अविनाश?

कितनी बार उसने तुम्हारे  सामने दूसरों की बात की है या  बुराई की है ?

कभी नहीं ...... कभी मैंने खुद कोशिश भी की तो उसने discourage कर दिया .....उसका  एक ही जवाब होता था ...जाने भी दो यारों ...एक बार मैंने उससे कहा की आनंद तुमको पता है की लोगतुम्हारे  बारे में क्या क्या कहते हैं ....क्या क्या  सोचते हैं .....तो बड़ी  आसानी से उसने जवाब दिया " राधा .....लोग मेरे बारे क्या सोचते हैं ..ये problem है। मेरी नहीं।



Sunday, September 23, 2012

शीशे का खिलौना था ..5.. वो कौन थी--

अधलिखे पन्ने, अधलिखे ख़त , अधलिखे लेख ....ये सब क्या साबित करते हैं ....राधा। क्या दिखाते हैं ये सब ...?

अविनाश ......ऐसा नहीं लगता की आनंद कुछ कहना चाहता था और कोशिश भी करी ....लेकिन अधूरा अधूरा रह गया ......कोई ऐसा सच जो वो खुद से भी बताने में  डरता था ......देखो ....हर  ख़त में ...हर  अधलिखे पन्ने में  कोई  न कोई  बात कह रहा है वो ....

 हाँ  राधा ................ कितनी गहरी  चोट खाई उसने ......ये देखो ....

तू छोड़ रहा है तो इसमें खता तेरी क्या, 
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता।

वैसे तो इक आंसू भी बहा कर मुझे ले जाए 

ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता।

कितना सच कहा है न ....राधा। आँसू की धार में बह जाने वाला इंसान था .....वो।  और वैसे बड़े बड़े तूफान  भी उसको हिला नहीं पाए .......

और ये देखो अविनाश ......

इक नफ़रत  ही नहीं दुनिया में , दर्द का सबब फ़राज़, 
मुहब्बत भी सुकून वालों को बड़ी तकलीफ देती है ................... क्या बोलते हो ......अविनाश।

अविनाश ......चुपचाप राधा की तरफ देखता रहा ......  पता नहीं राधा .......विश्वास नहीं होता की आनंद अंदर ही अंदर इतना गंभीर ,इतना अकेला .......रहा अकेला ...और जाते जाते भी किसी को खोज खबर की तकलीफ न दी .....

अविनाश ....कल मैं ज्योति से मिली थी। 

अच्छा .........क्या हाल चाल हैं ......

मस्त है ..... बिंदास ........

अच्छा है .......जिदंगी कैसे जी जाती है या जी जानी चाहिए ......इन लोगों से सीखना चाहिए ....राधा। और मुझे कोई शिकवा -गिला नहीं है। बल्कि में  तो लोगों को इक किताब समझता हूँ ...हर  किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है ....और सीखा भी जाना चाहिए। दर्द देना भी और दर्द को बर्दाशत करना भी .....

तेरा न हो सका तो मर जाऊँगा फ़राज़, कितना खूबसूरत झूठ बोलता था वो। 

कौन ....... 

बस इसी "कौन" .....पर आके तो हर  बात रुक  है जाती है ......

 .... वो कौन थी--

पूंछा जो मैंने जिस्म से रूह निकलती है किस तरह ,
हाँथ उन्होने अपना मेरे हाँथ से छुड़ाकर दिखा दिया ....

Oh my God...........अविनाश। ....... आनंद तो अपने आप में एक प्रेम ग्रंथ था .... उंगलियाँ तो वो भी उठा सकता होगा .........लेकिन ......लेकिन   ......

मैं खुद भी एहतियातन उस गकी से कम गुजरता हूँ, 
कोई मासूम  क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए। 

Saturday, September 22, 2012

शीशे का खिलौना .....4 सदमा

किश्तों में  खुदकशी ....

क्यों ....... हो नहीं सकती ....क्या ???

पता नहीं ..... अविनाश।

 यादे .........किश्तों में  ही   मारती हैं ........ हर लम्हे मारती हैं, ये क्या खुदकशी से कम है ....... राधा।

लो ये पढो .......

भूल जाना भी एक तरह की नेमत है  फ़राज़ ,
वरना इंसान को पागल न बना दे यादें ........

अविनाश ........एक  पहेली है आनंद .....अपने आप में . ..... क्या था ..क्या दिखता था ...... क्या अपने आप को दिखाया उसने ......ऐसा क्यों .........अविनाश .

मैंने भी ये सवाल उससे कई बार पूंछा .......और हर बार उसने टाला  ....या बात को घुमाया ........लेकिन एक दिन तो में  पीछे पद ही गया और जवाब ले ही लिया ........

अच्छा ......क्या जवाब दिया आनंद ने ...बोलो न ..... बताओ न ......अविनाश।

क्या बताऊँ ....... कुछ देर तक वो मेरी तरफ देखता रहा ....कहा .....सुंदर लाल .....कैसे समझाऊं ......मैं  अपने आप में  , अपने अंदर  बहुत रेगिस्तान हूँ ......लोग होंठो की हंसी के अलावा अंदर तो उतरना ही नहीं चाहते ...और जरूरत भी किसको  है .......और वक़्त भी किस के पास है ......सुंदर। और जब रिश्ते जरूरत पर based होने लगे ......तो ..............

पता नहीं क्यों .......लोग रिश्ते की नजाकत को , गंभीरता को मुंह से निकले शब्दों से नापते हैं ......जबकि रिश्ते वो सच्चे होते हैं .....जो शब्दों से परे होते हैं .......जो अभिव्यक्ति से परे होते हैं। जो ये कहता है की I love you......मैं उसे झूठा मानता हूँ .......क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं .....

" हमारे हुस्न की इस बेरुखी से था तुम्हे शिकवा,
मगर सच ये की न था कोई मेरा चाहने वाला ..............

आनंद  इस शेर में  ....."तुम्हे " कौन है ........ ये प्रश्न मैंने उससे पूंछा  ......

और जवाब ......

जवाब ............बिलकुल ....आनंद style का .....

तोहमतें तो मुझ पर हैं एक से एक नयी ......
खूबसूरत था जो इल्जाम वो नाम तेरा था .......

चाय पियोगे सुंदर ........आनंद का बात को घुमाने का चिर परिचित अंदाज .....

Thursday, September 20, 2012

शीशे का खिलौना ....3

 हर  एक आदमी में  होते हैं दस बीस आदमी,
जब भी किसी  को देखना ........ कई बार  .......देखना। ................लो चाय लो राधा  .....अविनाश ने ये एक शेर सुनाई राधा को चाय देते हुए ........सुनी तो होगी ....ये शेर राधा ....

हाँ ...... अविनाश। यहाँ  इसका जिक्र क्यों .........बोलो तो ......

एक   हल्की  सी मुस्कराहट के साथ अविनाश  ने कहा ......क्या बताऊँ राधा ....कितने किरदार जीता था अपने अंदर वो आदमी .............लेकिन  कोई उसकी गहराई न नाप पाया ...... मुझे भी कई चीज़ों से , कई बातों से महरूम रखा उसने। ..........बिलकुल Gemini राशि , मिथुन राशि वाला था न .........लगभग सारे लोग जो ये जानता थे की आनंद की राशि मिथुन है ......उन सबका  एक ही विचार था ......अरे भाई मिथुन राशि   वालों से तो दूर  ही रहो ....अंदर कुछ और बाहर कुछ ....... लेकिन सब ने negative ही लिया ......

जब भी करता है कोई प्यार की बातें,
हम शहर के शहर सितारों में सजा लेते हैं।

"मुझे अब आप के support की कोई जरूरत नहीं है ..... और ऐसा मैंनेकिया  ही क्या ......."

ये क्या है ......अविनाश ......ये तो कोई शेर भी नहीं लगती ....

और ये शेर है भी नहीं ......लेकिन ये है क्या .....ये मुझे भी नहीं पता ........

नहीं वो तो ठीक है .... लेकिन अचानक तुमने ये sentence क्यों बोला .....

मैंने नहीं बोला ......राधा। ये वाक्य आनंद ने कई पन्नों पर लिखा ...मैं भी सोच रहा हूँ ....की इसके पीछे क्या हो सकता है। आगे सुनोगी .........

बोलो ....... अविनाश।

हम तो  आगाज़े  मुहब्बत में  ही लुट गए फ़राज़,
लोग तो कहते थे की अंजाम बुरा होता है .............

तो क्या बात ज्योति पर  आ के रूकती है ....अविनाश

पता नहीं ....राधा। कुछ कहना मुश्किल है . आनंद जैसा निर्मोही ......मुहब्बत में इतना गहरा उतर गया .....विश्वास नहीं होता ......और सच बताऊँ .... तो उसको खुद भी नहीं एहसास रहा होगा। और फर्श से अर्श तक का सफर तय करने में ...जिन्दगियाँ ....लग जाती हैं।

मेरे शिकवों पे उस ने हंस कर  कहा फ़राज़,
किस ने की थी वफ़ा जो हम करते .....

Interesting .............. है न अविनाश। ......

Yes...it is. 

तुम ने सारे papers पढ़ लिए ...... अविनाश ......?

नहीं राधा .........

और क्या लिखा है कुछ बताओ .....

भूले है रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
किश्तों में खुदकशी का मजा हम से पूंछईए .....

किश्तों में  खुदकशी .....................अविनाश ...

Tuesday, September 18, 2012

शीशे का खिलौना था ....2

नहीं अविनाश .....आनंद की मृत्यु अभी तक इक रहस्य है ....मेरे लिए। सच बोलूं ....जब अकेले बैठ कर सोचती हूँ की आनंद हमारे बीच अब नहीं है तो यकीन नहीं आता। वो हँसता हुआ चेहरा आज भी आँखों के सामने घूमता है ......अविनाश।

राधा ......तुम उसको कुछ सालों से जानती हो ....मेरे वो बचपन का साथी था

लेकिन अविनाश ....ऐसा क्या हुआ था आनंद को ......

कुछ नहीं .......

कुछ नहीं ....मतलब।

राधा ........अगर लोग समझते हैं की आनंद बीमार था ...तो गलत सोचते हैं। राधा अविनाश के सिगरेट के धुएं से बनते हुए छल्लों को देख रही थी ........राधा ...... इंसान के अंदर जब जीने की इच्छा खत्म हो जाए ...वो कितनी ही बीमारियों को जन्म दे सकती है। आनंद .... उन्ही एक बीमारी से ग्रस्त हो   था।

क्या .......आनंद ने जीने की इच्छा ही छोड़  दी थी ........

हाँ राधा ...........

कारण  ...........?

देखी  जो मेरी नब्ज तो इक लम्हा सोचकर ,
कागज उठाया और इश्क का बीमार लिख दिया ........

आनंद और मुहब्बत ..................नहीं अविनाश।

क्यों ..... राधा .......?

आनंद जैसा मस्त मौला , कभी यहाँ कभी वहां , कभी इधर कभी उधर .... कभी ऋषि तो कभी रसिक। वो तो एक पहाड़ी नदी की तरह था ........वो एक जगह रुकने वाला इंसान नहीं था , एक जगह बंधने वाला इंसान नहीं था .......

अविनाशा राधा की तरफ देखता रहा .....मुस्कराता रहा ....

राधा .......कभी आनंद के अंदर झाँक कर देखा था .......

अविनाश .....क्या इस प्रेम कथा के दूसरे  सिरे पर  ज्योति थी .....

हाँ .....राधा ....ये सही शब्द चुना तुमने ......"दुसरे सिरे पर " .......लेकिन उस नासमझ ने नहीं समझा ...... एक ..दोनोँ  एक। ...........देना है तो निगाह को ऐसी  रसाई दे, मैं देखूं आईना , मुझे तू दिखाई दे। ....ये सोचता था वो। .............

कैसे जानते हो इतना तुम , अविनाश .......

उसके कई  अध् लिखे पत्र मेरे पास है ...........उनको एक फाइल में  संजोया है। .......

फाइल का नाम है ...... शीशे का खिलौना था ....


शीशे का खिलौना था

बन्दगी हमने छोड़ दी फ़राज़ ........

ऐसा क्यों कह रहे हैं .......

क्या करें लोग जब खुदा हो जायें  ........

अविनाश , ये शेर है या तुम्हारा विचार ........

एक हंसी सी तैर गयी अविनाश के चेहरे पर  ......जैसे तुम समझो ......राधा।

अविनाश  .....  कल  ज्योति से मुलाकात हुई .....बड़ी खुश है वो अब।

ये तो अच्छी बात है न .............

अरे हाँ .......एक परिचय तो रह गया .....अभी तक आप जिसको सुंदर लाल के नाम से जानते आयें हैं .....उनका असली नाम अविनाश है ......बैंक में  काम करते  हैं ...और आनंद के बचपन के मित्र हैं .....वो तो आप लोग जानते ही हैं ...

राधा .....ये जो जिदंगी है न ....किसी के लिए रूकती नहीं है और वक़्त इसका इंजन है ....बस ये छुक - छुक कर के नहीं टिक टिक कर के चलती है .......आनंद ने बस एक गलती करी और अपनी जिन्दगी दे कर उसका मोल चुकाया।

कौन सी गलती .....अविनाश  ?

मैंने उसको इक सलाह दी थी .....

क्या ,,,,सलाह ...?

यही की " बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना, दरिया जहाँ समंदर से मिला, फिर दरिया नहीं रहता ..."
उसकी ये आदत की जैसा वो है वैसे ही सब हैं ............उसको इस लोक से उस लोक में  ले गयी ...

अविनाश ...किसी की मजबूरी भी तो हो सकती है .....यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता।

संभव है ......राधा ....बिलकुल संभव है। लेकिन जब हम प्रेम करते है या प्रेम में  पड़ते हैं ....तब किसी की सलाह तो नहीं लेते .........की मैं   इससे या उससे प्रेम कर लूँ ......तो पीछे हटने में दूसरों की सलाह क्यों .......फिर वो कोई भी क्यों न हो ........

मैं कुछ समझी नहीं .... अविनाश ....

मत समझो ......यही अच्छा है ...मैंने दोनों को समझा .......

फिर ....?

फिर क्या .....शीशे का खिलौना था , कुछ न कुछ तो होना था ...हुआ।

अविनाश ......

कुछ मत कहो राधा .......





Tuesday, August 28, 2012

शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो .....

शायद फिर इस जनम में  मुलाक़ात हो न हो .....

किस को ढूंढ रहा है तू .......देख न पैरों में  छाले  पड़  गए ....

नहीं ......नहीं ...... तू सुन मत .....चलता चल ........वो देख ..........कहीं वो तो नहीं ......

किस छलावे  में  जी रहा है ....... जो तेरा है वो कहीं जा नहीं सकता ..... जो तेरा है नहीं वो मिल नहीं सकता है

हाँ  ....... हाँ  .............. मैं जानता हूँ .........  अगर ये ग़लतफहमी मुझे ज़िंदा रखे है ..... तो मुझे ज़िंदा रहने दो ...
कुछ देर के लिए मैं अपने ग़मों से निजात पा लेता हूँ .......तो क्या गलत है ....

तो क्या यादें शराब हैं ........

उससे कम भी तो नहीं हैं .....यादें ............यही तो मन को डुबो देतीं हैं .......और यही डूबते हुए मन को सहारा भी  देतीं है ......

देखी  जो मेरी नब्ज , तो इक लम्हा सोचकर,
कागज उठाया और इश्क का बीमार लिख दिया।

उठ .....आनंद .........कईयों को इस इश्क ने बीमार बना दिया .......लेकिन .....तू नहीं ......तू नहीं ........

साबित कर कि .......इश्क ताक़त भी देता है ....हिम्मत भी ......जिन के सर  हो इश्क की छांव , पाँव के नीचे जन्नत होगी ....... जानता है न तू .........और मानता भी है ............

बदलने को तो इन आखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम , हमारे गम नहीं बदले।
तुम अगले जन्म में  हम से मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में  हम नहीं बदले।

कब तक दूसरों के लिए , दूसरों की तरह अपनी जिन्दगी जिएगा ......... जिन्दगी तेरी है .........

हाँ ....... जिन्दगी मेरी है ........लेकिन ......

जिदगी से बड़ी सजा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।
इतने हिस्सों में  बँट  गया हूँ में ,
मेरे हिस्से में  कुछ बचा ही नहीं।

अब समेट अपने आप को ..... वो देख कौन तेरा इंतज़ार कर रहा है .........

इधर उधर बहते हुए ...... टकराते हुए, बिखरते हुए, समेटते हुए, जिए जा रहा हूँ .... मैं।

जो बिछड़े हैं, फिर कब मिले है .....फिर भी तू इंतज़ार कर शायद ......

Saturday, August 25, 2012

तपस्वनी और फ़कीर................

पंडित बाल कृष्ण शर्मा......ओह.......नाम से तो मैंने आपका परिचय करवाया ही नहीं। तनिक याद करिए....तपस्वनी और फ़कीर .....के वो पंडितजी।....जी बिलकुल सही जगह पहुंचे है आप।.....उनका पूरा  नाम पंडित बाल कृष्ण शर्मा है।.......वृद्ध हो चले हैं।...उनकी बिटिया अंजलि बड़ी हो चली है।...गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ाती है।

बरसात अभी थमी है।.......मंदिर के बरामदे में  पंडित जी बैठे हुए कहीं खोये खोये से दूर आसमान में  देख रहे थे या कुछ सोच रहे थे।........लगता है कुछ पुरानी यादों ने फिर से करवट ली है।........

बाबा....लो चाय ले लो।

ला बिटिया।......

क्या सोच रहे हो बाबा।....

कुछ खास नहीं, बिटिया।........ याद है.... फ़कीर की।.....

.. बाबा.......सब कुछ याद है।

बिटिया वक़्त की सबसे ख़ास बात क्या है जानती है।.....

क्या......बाबा?

गुजर जाता है।.....अच्छा हो तब भी।....और बुरा हो तब भी।

हाँ।...बाबा। ये तो है।

एक बात और बिटिया।......ये वक़्त ही है जो अपने और पराये की पहचान भी करवा देता है। जब हम कामयाब होते हैं तब लोगों को पता चलता है की हम कौन हैं।..और जब हम असफल होते हैं तब हमको पता चलता है की हमारे दोस्त कौन हैं।.....

 काफी वक़्त बीत चुका है।....बहुत कुछ बदल गया ...हालात बदले, इंसान बदले।.......कुछ  इंसानों को हालत ने बदला , कुछ इंसानों ने हालातों को बदला......थोड़ा सा याद करने की कोशिश तो करो.......फकीर चला गया...आनंद ...यही नाम था न उसका......

क्या हुआ ....बाबा? आज अचानक फ़कीर बाबा की याद।......

हाँ।.....बिटिया ........आज राधा को देखा .....काफी समय बाद।........

उन्होंने तो मंदिर आना भी बंद कर दिया है बाबा।

कोई बात नहीं .....वो तो राधा है। तपस्वनी और फ़कीर................

ये क्या है तुम्हारे हाँथ में ......बाबा?.....ये तो डायरी लगती है।.....

हाँ बेटी।.......बिटिया।....थोड़ी सी चाय और डाल  दे गिलास में  ..........कुछ भारी पन  सा है सर  में ...

भूल जाना भी तो इक तरह कि  नेमत है फ़राज़,
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें 
                                                               ...................................................................................चलने दें 


Tuesday, July 17, 2012

अंजू बैनर्जी ...

अंजू बैनर्जी ....नाम ही तो है।

..जी हाँ नाम ही तो है, लोगों के लिए ये सिर्फ एक नाम ही तो है।......बताईये  अब सिर्फ एक नाम के उपर भी कुछ लिखा जा सकता है......?

जी नहीं.........

क्यों नहीं.........

कभी जाड़ों की रात में  गहरे नीले रंग के आसमान पर  चमकते हुए टिमटिमाते हुए तारों को देखा है......या उसी आकाश में  दूध सा सफ़ेद  चमकता हुआ चाँद देखा है ..................

गुलाब के फूलों को हवा कभी लचकते हुए कभी हुए डोलते देखा है।......गुलाब की पंखुरी हवा में  एक कामायनी की तरह इधर उधर उड़ती  हुई देखी  है।....


कभी सुबह सुबह बारीश से भीगी हुई जमीन पर  हरसिंगार के फूलोँ की चादर देखी  है।..... 


किसी पहाड़ी  नदी का अल्हड़पन देखा है।.......


कभी पास से गुजरी ताजा हवा का झोंका जो अभी अभी बेला के फूलों को छू  कर आया हो .......महसूस किया है।.....


जी ....कुछ कहा आपने।.......


अतिशोक्ती .......ज्यादा हो गयी।.....


नहीं हुज़ूर नहीं।.......आप ने देखा ही नहीं .....अंजू बैनर्जी को। 


आपने........सुबह की ताज़ी ओस की बूँद पर सूरज की पहली  किरन .........देखी  होगी।..उससे झिलमिलाते हुए सतरंगी रंग।


हवा में  उड़ता हुआ उसका दुपट्टा .......जब चेहरे को छूता हुआ निकलता है तो ऐसा लगता जैसे बारिश की बूंदे चेहरे को भिगोती हुई हवा के साथ उड़ रहीं हों।...


अंजू बैनर्जी...............

बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम , हमारे ग़म  नहीं बदले,
तुम अगले जन्म में  हम से मिलोगी तब तो मानोगी,
 जमाने और सदी की इस बदल में  हम नहीं बदले। ..................................जारी है। 

Tuesday, June 5, 2012

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी

सुंदर लाल चला गया।.......

ज्योति लौट कर आई तो देखा मेज पर  रखा हुआ लिफाफा ................सोचती रही क्या कर।..पढूं या न पढूं।....  चलो पढ़ कर देखने में क्या नुकसान है. 

उसने लिफ़ाफ़े में से ख़त निकाला......

प्रिय मित्र, 

काफी समय से तुम से मुलाक़ात नहीं हुई  और मैं तुम्हे भूल गया हूँ ऐसा भी नहीं...

तुम तो मेरे सुख दुःख के सहभागी रहे हो....तुमने मेरे जीवन के अनेक उतार चढ़ावों को देखा है. तुम तो जानते हो सुंदर...मैं कितना अपने लिए जिया हूँ...बस अब और नहीं. अब चादर समेट लेने का वक़्त आ गया लगता है. ...पिछले इक महीने से vomiting में खून आ रहा है.....लगता है चाय और चुरुट ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया है. गुस्सा मत होना वैद्य जी के पास गया था...65 मिनट उनके साथ था.....साठ मिनट डांट पिलाई और पांच मिनट दवाई.....खांसी बढ़ गयी है और ज्वर भी लगातार बना रहता है....थकान बहुत है. खाने पीने से मन हट गया है. सुंदर....जीवन मे एकाकीपन भरता जा रहा है......इतनी चोटें खाई है सुंदर की अब और चोट खाने की हिम्मत भी नहीं बची है......कोई नहीं है.....सब अपने काम से काम से लग गए हैं....और कोई किनारा कर चुका है......२ महीने हो गए हैं घर से निकला नहीं हूँ.......वैद्य जी कह रहे हैं की हवा पानी बदलने की लिए कुछ दिन पास के गाँव हो आओ.......

ज्योति......हाँ ज्योति....अब चोंको मत.....अच्छी है अपने घर परिवार में मस्त है व्यस्त है....२ महीने पहले देखा था.....कब तक वो भी मेरी देखभाल करे.....कोई बच्चा तो नहीं हूँ.....लेकिन सुंदर.....वो मेरी बहुत अपनी है......वो साथ रहती है तो हिम्मत बंधी रहती है.....एक हौसला सा बना रहता है...लेकिन कब तक वो भी साथ दे.....समाज के अपने कायदे क़ानून हैं.....लेकिन सुंदर...ये समझ में नहीं आया की बिना कारण बताये या जुर्म बताये किसी को सजा देना क्या ठीक है....और वो भी उसको जो उसके उपर निर्भर हो.....वो भी पूरी तरह से.....शायद ठीक हो......पता नहीं सुंदर.....मैं इतना दुनियादार्री तो नहीं जानता हूँ....किसी को अपना मानता हूँ तो वो तुम हो और ज्योति......

पिछले महीने स्कूल का वार्षिक समारोह था..तबीयत ठीक ना होने की वजह से जा नहीं पाया....संपत राम आया था समारोह की तस्वीरें लेकर. ज्योति को उसमे देखा..वो बहुत सुंदर लग रही थी.....सुना सारे कार्यक्रम की बागडोर ज्योति के हाँथ में थी...मैं बहुत खुश हूँ...... लेकिन इजहार करना मैं ना सीख पाया....तुम्हारी अगर ज्योति से मुलाक़ात हो.....और 
हमारी बेखुदी का हाल वो पूंछे अगर,
तो कहना होश बस इतना है की तुमको याद करते हैं...

तुमको मेरे घर के पीछे वाली खिड़की तो याद होगी......जहाँ से घर के पीछे का खुला मैदान दिखाई पड़ता था.....दूर तक धूप ही धूप और एक नीम का पेड़...और मैदान से गुजरती हुई रेल की पटरी......सुंदर...मेरा जीवन भी उसी मैदान की तरह हो गया सूखा नीरस......और मेरे हृदय पर धड़ा धड़ा धड़ा धड़ा चलती हुई  रेल जो दिल को छलनी करती हुई चली जाती है और फिर देर तक सन्नाटा , सूनापन........

सुंदर कभी कभी अफ़सोस होता है की मैं अपने लिए क्यों नहीं जिया ....शुरू से ही , जीवन की शुरुआत से ही......कुछ ढूंढता रहा......

एक चेहरा साथ साथ रहा पर मिला  नहीं, 
किसको तलाशते रहे कुछ पता नहीं.....

ज्योति के साथ वो रिक्तता पूरी सी हो चली थी......जीवन मे रस और रंग दोनों का ही समावेश हो रहा था...लेकिन विधि ...उसको तो कुछ और ही मंजूर था....

जिसको तुम पूंछते हो , वो मर गया फ़राज़,
उसको किसी की याद ने ज़िंदा जला डाला
..............

बहुत तकलीफ है, सुंदर....दर्द बहुत है.....

उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ, 
हमें यकीं था हमारा कसूर निकलेगा. 

अब वक़्त-ए- रुखसत आ चला है........मालिन माँ की चिंता है.....बहुत परेशान है मुझको लेकर.....मुझसे कह रही थी की मैं ज्योति से बात करूँ क्या.....

मैंने मना कर दिया.......

मिली मुझे जो सजा वो किसी खता पे न थी फ़राज़,
मुझे पे जो जुर्म साबित हुआ वो वफ़ा का था।...

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी 

पन्ने दर पन्ने जिन्दगी।.....

दिन के बारह बजे दरवाजे पे सांकल की दस्तक....गर्मी के दिनों में ..........कौन हो सकता है .......काका जरा दरवाजा तो खोलो।...चारपाई पर  लेटे  लेट ज्योति ने रामदीन से कहा।

अच्छा बिटिया .......

रामदीन ने दरवाजा खोला तो एक अजनबी चेहरे को सामने देखा।

जी आप कौन।........

मैं सुंदर लाल .....ज्योति जी यहीं रहती है।......

जी......

जरा कह दीजिये की सुंदर लाल आयें हैं।..मैं आनंद बाबू  का दोस्त हूँ।.....

अच्छा अच्छा।..........मैं अभी आया। रामदीन ज्योति को बताने अंदर चला गया।

बिटिया ...कोई सुंदर लाल आयें हैं।..कह रहे हैं की मैं आनंद बाबू  का दोस्त हूँ।......

सुंदर लाल।.....ज्योति अचानक उठ कर बैठ गयी।...वो जानती है सुंदर लाल को आनंद बाबू  के दोस्त को।...उनको अंदर बुला लो।..काका और जरा गुड़ का शरबत बना दो।...

अरे सुंदर लाला जी आप।.......? यहाँ अचानक।.....

हाँ ज्योति।.....पिछले हफ्ते आनंद के न रहने की खबर सुनी।... घर गया तो ताला  बंद था ...इसलिए यहाँ चला आया..भरी दोपहर में  आप को तकलीफ दी।...माफ़ी चाहता हूँ।...

अरे  नहीं माफ़ी की क्या बात है।.....ज्योति महसूस कर रही थी सुंदर लाल की बातों में  एक उदासी, एक बनावटीपन .............नहीं तो सुंदर लाल तो बोल बोल के नाक में  दम  करने वाला इंसान था।...आनंद का परम मित्र और मुंह बोला भाई।.....

ये कैसे हुआ ...ज्योति।.....तबियत तो ठीक थी न आनंद की।.......

सुंदर।...मैं कई दिनों से आनंद से मिली नहीं थी।....मेरे पास भी ये खबर एक पोस्टकार्ड से आई।.....

तुम्हारे पास भी।...............???? वो भी पोस्टकार्ड से।.........क्या तुमने भी।...............उसको छोड़ दिया था ज्योति।...

सुंदर लाल के इस सीधे सवाल से ज्योति थोड़ी असहज हुई ......

हाँ सुंदर लाल........एक निश्चित दूरी बना ली थी मैंने।........

मतलब....वो अकेला रह गया था।....तुमको पता है ज्योति।....आनंद का ये आखिरी ख़त जो उसने मुझे लिखा था।....शायद अंतिम दिनों में .............पढो।...सुंदर लाल ने एक लिफाफा ज्योति के आगे रख दिया।...ज्योति पशोपेश में .....लिफाफा उठाये की न उठाये।......

अच्छा चलता हूँ।..ज्योति।.....सुंदर लाल उठ के चलने को हुआ।.....

सुंदर लाल।.....

बस  ज्योति ..अब कुछ कहने और सुनने को बचा नहीं।......तुम को उसकी एक एक हालत पता थी।....तुम पर वो  कितना निर्भर करता था।..तुमको शायद अंदाज नहीं है इस बात का।..............

चरित्रहीन था वो। आवारा था वो।.....

अच्छा तुमको इतना तो पता होगा की उसको चार कंधे मिले की नहीं।......

पन्ने दर पन्ने जिन्दगी।.....

वैसे उसकी खता  क्या थी....????

बोलो ...बोलो तो।




Thursday, May 24, 2012

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी.

अरे मालिन माँ ....................रामदीन काका यहाँ आओ....

आनंद के बाद आनंद की घर की सफाई शरू  हुई.....घर में है ही क्या.....चंद हसीनो के बुताँ, चंद हसीनो के खतूत. किताबें , पन्ने कुछ सादे कुछ लिखे हुए....कुछ पर आधे अधूरे अलफ़ाज़....जैसे कुछ  लिखना चाहता हो.....लेकिन छोड़ दिया.........कुछ डायरियां...........ओफो....शरत चंद का तो पूरा संग्रह मौजूद है.....  ये  कौन सी किताब है....ओह..आवारा मसीहा.......आखरी पन्ना..

हमारे हुस्न की इस बेरूखी से था तुम्हे शिकवा, 
मगर सच ये की ना था कोई मेरा चाहने वाला................ज्योति......

मेरे होंठो का तब्बसुम दे गया धोखा तुम्हे, 
तुमने मुझको बाग़ जाना, देख ले सेहरा हूँ मैं.......

ये तो आनंद की डायरी है....देखूं तो क्या लिखा है......

ये.....क्या आनंद मुस्लिम बन गए थे क्या......दायें से बाएं लिखते थे....आखरी पन्ने से शुरुआत करते थे....

चुपके से भेजा था इक गुलाब उनको.....
खुशबू ने शहर भर में मगर तमाशा बना दिया....

आज काफी दिनों बाद घर से निकला.....उस हादसे के बाद. हादसे तो मेरे जीवन का एक हिस्सा ही बनते जा रहे हैं......आज एक तो कल एक...शायद उपर वाले की मेहरबानी होगी......काफी दिनों से उसके घर नहीं गया हूँ.....तबीयत भी नहीं ठीक रहती है.....अब बस और लिखा नहीं जाता. 

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी. 

कोई तो समझने  वाला होगा......क्या कहूँ......

हम तो आग़ज - ए - मुहब्बत में ही लुट गए "फराज", 
लोग कहते थे की अंजाम बुरा होता है......

ऐसा मेरी ही साथ क्यों होता है....लूटना क्या मेरे ही नसीब में है, चोट खाना क्या मेरे ही नसीब में है.....

आज मालिन माँ गाँव जा रही हैं.....

पता नहीं......

चलो जरा घूम के आता हूँ......अरे चुरुट खत्म हो रही है.......

ज्योति ..............के घर जाऊं....ना जाऊं.....जाऊं....ना जाऊं.....

ये संशय क्यों......पता नहीं......

चीजें उतनी आसान नहीं है.......

आनंद.....अगर बोलोगे नहीं तो लुटते रहो.....अपनों के ही हाँथो....अब हँस क्यों रहे हो.....अपने उपर या हालातों के उपर.....

ना रे ना.....

क्या बोलूं.....बता तो जरा. 

ज्योति से मुहब्बत है...ये बोलूं......

क्या बताएं उसको उससे क्या छुपायें हम की जो, 
एक नज़र में जो ले ज़हन  और दिल की तलाशी साथ साथ.....

ले बिटिया ...चाय ले.....ले....मालिन माँ की गंभीर सी आवाज़......वो खनक खत्म हो गयी....वो चुलबुलापन खत्म....

सब हवाएं ले गया मेरे समंदर की कोई, 
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया. ......

एक बिखराव की तरफ.....लेकिन , लेकिन.........

दर्द होता है...ज्योति बहुत दर्द होता है......तकलीफ भी बहुत होती है.....मैं भी तो इंसान ही हूँ......लेकिन ..

जब्त का अहद भी है शौक का पैमाना भी है,
अहदे पैमाँ से गुजर जाने को जी चाहता है,
दर्द  इतना है की हर रग में है महशर बरपा, 
सुकूँ इतना है की मर जाने को जी चाहता है. 

 मैं जानता हूँ कभी कभी में तुम पर नाराज़ भी  हुआ.....लेकिन बुरा नहीं चाहा....मैंने अगर तुमको कभी डांटा भी तो ये मानकर की बुखार उतारने की लिए कड़वी दवा भी खानी पड़ती है...

लेकिन..............ये भी मेरी नियति रही की जब मुझे किसी ख़ास अपने की जरूरत हुई...तो में अपने आप को अकेला ही पाया....नितांत अकेला........सब मुझे मझधार में छोड़ कर आगे निकल गए...लेकिन मैंने मुस्कराना नहीं छोड़ा....हौसला नहीं हारा, हिम्मत नहीं छोड़ी.....

लेकिन कहते हैं ना Coming events cast their shadow......मुझे भी अपने अंत का एहसास होने लगा है.....

मैं तो दरिया हूँ हर बूँद भंवर है जिसकी, 
तुमने अच्छा ही  किया मुझसे किनारा कर के......

कहाँ तक तुम मेरे साथ चलतीं ज्योति...... कहाँ तक मेरे साथ चल पाओगी.....सेहरा में कौन चलना चाहेगा.....बोलो तो....? 

कहाँ  इतनी फुर्सत है लोगों को कि जिस्म के पार जाकर दिल में उतर कर किसी को पहचाना जाए.....और अगर जिस्म के पार उतर कर भी आनंद जैसा सेहरा मिला तो.....

अपने आप को चंद पन्नों में कैद कर रहा हूँ.......जैसे कोई हवा को बाँध रहा हो.....

मेरा कारनामा-ए-ज़िन्दगी , मेरी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं,
ये  किया नहीं....वो हुआ नहीं.....ये मिला नहीं...वो रहा नहीं......

लोग पता नहीं मेरे बारे में क्या क्या कहते हैं......मगर अच्छा नहीं कहते.....और मैं बुरा नहीं हूँ.....ये भी नहीं कहते. इस शहर में बसने नहीं देते..... और दुनिया से जाने नहीं देते..

लेकिन  .............उम्र जलवों मे बसर हो , ये जरुरी तो नहीं , हर शबे-ग़म कि सहर हो ये जरुरी तो नहीं.....

चंद  पन्ने .........अलमारी में दाहिनी और रखे हैं........उनको निकाल लेना.......

उनको पढ़ना....फिर देखना पन्ने दर पन्ने ...कोई आदमी ज़िन्दगी कैसे जीता है.....अलफ़ाज़....आदमी का साथ कैसे छोड़ते है.....

.....पन्ने दर पन्ने .....ज़िन्दगी.

Wednesday, May 23, 2012

अंतिम संस्कार .............

और  फिर सब कुछ  खत्म........

खाक  ख़ाक  में  मिल गयी......

ज्योति.......मैं  कभी अपने लिए नहीं जिया...लेकिन बहुत अकेले  जिया.....बिलकुल अकेले।

सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती............

अब जब की ये कहानी खत्म हो चली है।.....इसके पात्रों से एक  बार  फिर  आप  का तारुफ़  करता चलूँ ......

कहानी।..............

हाँ ...कहानी ही तो थी।......


Tuesday, May 22, 2012

अंतिम संस्कार.....

आनंद नहीं रहा.......यकीन  नहीं हो रहा है।......अरी ज्योति बिटिया।........ये तो मालिन  माँ है।........

आओ  मालिन माँ ............

बिटिया....तेरा आनंद गया .......मालिन माँ  ........जिन्होंने आनंद  के हर  रूप को देखा है।.....बेटे की तरह माना था।.....अब वो नहीं है।.....

बिटिया।..ये चाभी रख ले उसके घर की।......मैं तो गाँव वापस  जा रहीं हूँ।.....अब इस  गाँव में क्या रह गया। 

अरे मालिन।........यहाँ आओ।................ज्योति की माँ ने मालिन माँ को बुलाया। उनको सब जानना था। वो अभी भी ये मानने  को राजी नहीं की आनंद नहीं रहा। 

ये सच है क्या मालिन।......

हाँ चाची ....

पिछले दो महीनो से बहुत परेशान था।......खाना पीना छोड़ कर  सिर्फ  चाय  और चुरुट ........कितना समझाया , कितना पूंछा ...लेकिन  दिल  नहीं  खोल पाया। पता नहीं किस  सदमे को पी रहा था।.......एक  दिन  सवेरे सवेरे झोला लेकर चल  दिया.....मैंने सोचा टहलने जा रहा होगा , सो मैंने भी कुछ  नहीं पूंछा ........दोपहर तक  कोई पता नहीं।......तीसरे पहर संदेशा आया।.....की वो नहीं रहा।......लो चाची ....ये चाभी .....उसका सारा सामन.......घर पर  है।....मैं न  रह  पाउंगी ...मालिन  तो चली गयीं।....

ज्योति ...इस  पशोपेश   में  की अब क्या करे........लेकिन  रसम  अदायगी तो करनी पड़ती है।.....ज्योति  ने हिम्मत करी और उसने खंडहर मैं जाने का निश्चय  किया।.........आनंद का घर ....अब यादों का खंडहर बन गया था।.......दरवाजा खोल  ज्योति अंदर आई।......तो चीजें जैसे उसे तब  मिलती  थीं बिलकुल  वैसी  ही थीं।......गेंदे के फूल  वैसे ही लहरा रहे  थे।.....गुलाब  की कतारें वैसे ही झूम  रहीं  थी।...गुलाब को देख कर ज्योत  को याद आया की इसी गुलाब  के पास खड़े  होने को कहा था एक  बार आनंद ने की देखें गुलाब तुम्हारे सामने टिकता है की नहीं।.... कहीं से कोई  निशाँ  ऐसा  नहीं था जो आनंद  के  न  रहने  का पता दे रहे हों....शायद  कहीं गए हैं अभी आ  जायेंगे।....

कलम  मेज  पर  खुला पड़ा है, शायद कुछ  लिख  रहे होंगे.........पन्ने हवा से उड़ रहे थे।......किताबों  पर  धूल  की परत जमी हुई थी...........आनंद  एक  ना  हारने  वाला इन्सान .....आनंद  ने  ज्योति  को कितनी बार समझाया .....

मुसीबतों से उभरती है शक्सियत यारो 
जो पत्थरों से न उलझे वो आइना क्या है...

ओफ्फो .......कौन सा  पन्ना ....है ये.......

ज्योति.........संभव  है जब तुम ये पढ़ रही हो।....मैं काफी दूर  निकल  गया हूँ।....याद है ज्योति तुम एक बार बहुत  परेशान  थीं।.....जब  मैंने तुमसे कहा था।....की लक्ष्मी बाई  का ध्यान करो।....जो माँ  के रूप अपने बच्चे  को दूध  पिला सकती  है।..और जरूरत पड़ने पर  बच्चे को पीठ पर  बाँध  कर द्दुश्मनो  से लोहा भी ले सकती है।.......

हम ने  माना की तगाफुल  न  क रोगे लेकिन, 
ख़ाक  हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक 

                                   अंतिम संस्कार ......आग अभी ठंडी नहीं हुई है।
                                                                                       ..जारी है।..




अंतिम संस्कार.....

रामदीन ..........एक  पहचानी सी आवाज़  का संबोधन 

कौन है ............दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए रामदीन  काका का सवाल। 

अरे मैं .......  सोहन  लाल 

आओ  भाई.....क्या चिट्ठी लाए हो।..

ये ल़ो ..............सोहन लाळ ...चिट्ठी देकर आगे बढ़ गया। 

किस की चिट्ठी है।..काका ..........ज्योति का सवाल  रामदीन  काका से। 

पता नहीं लो देख  लो।......रामदीन  ने चिट्ठी ज्योति के हाँथ में  रख दी।.........

ये क्या कोना फटा पोस्टकार्ड।.......ज्योति की सांस  सी थम गयी।....वही खड़ी पढने लगी।.....

किसकी चिट्ठी है।...बिटिया।....?? ज्योति की माँ  का सवाल।.......

चिट्ठी माँ  के हाथों कर ज्योति वहीँ जमीन  पर  बैठ  गयी।......

अरी ....क्या हुआ।...  

माँ .......आनंद नहीं रहे।......

क्या.......................

एक  महीना हुआ।........

क्या कह रही है।.......तू होश में तो है।.....

उनके घर से चिट्ठी आई है।.....

तो वो यहाँ नहीं था........ तू कब  से नहीं मिली उससे।......  क्या हुआ था उसे.........

ज्योति क्या जवाब देती।......कैसे कहती की मैं खुद ही उनसे किनारा कर बैठीं हूँ।....

                                                                                                                                 अंतिम  संस्कार ...जारी है।. 


Friday, May 11, 2012

कौन दे .........................

दिन  बीतते गए  वक़्त  गुजरता गया..........लोग  मिलते  रहे , लोग  जुदा होते रहे।..... बहुत  कम  लोग  ऐसे मिले  जो आनंद  के जीवन  पर  छाप  छोड़ गए......आज  वक़्त  मिला  तो आनंद ने  अपने आप को  पलट  देखा... जिसे  जानता था वो, आनंद अब  कहीं नहीं है।....

वक़्त क़ी  आग  ने आनंद  को तपा तपा कर .....बहुत  मजबूत  बना  दिया  है।... आनंद .........अब  इसमे भी  आनंद  का  अनुभव  कर  रहा है ......क्या  पता इस  में  क्या  अच्छाई  छिपी है।.....रेगिस्तान  में  खड़े  खजूर  के  पेड़ को देखो ........... हाँ ......आनंद  अब वो है।......गरम  हवा  और गरम  रेत .........पता  नहीं नियति  उसको  किस  दिशा में  ले ज़ा  रही हैं।.....

कहाँ  तक  लडे ..............कहाँ  तक........थक  गया है ....वो......

लेकिन  आराम  करने क़ी  मनाही  है........जहर  पीते पीते जिगर  छलनी  हो गया  है।.......

तो ........क्या   करेगा  आनंद ....... अब ..

सवाल  तो  बहुत हैं।...... मगर जवाब  कौन दे।......

कौन  दे .........................


Monday, May 7, 2012

फूलो रे नीम फूलो....

मुहब्बत .............हमने माना ज़िन्दगी बर्बाद करती है
ये क्या कम है कि मर जाने पर दुनिया याद करती है.........
किसी के इश्क में दुनिया लूटा  कर हम भी देखेंगे......

कौन कहता है मुहब्बत ज़िन्दगी बर्बाद करती है..........मुझे ख्वाहिश नहीं दुनिया को जीत लेने कि.......बस एक तुम्हारे दिल में बस जाऊं.....साथ हो जाऊं.....तो दुनिया.....आबाद हो जाए.......ये किस एहसास को ज़िंदा कर दिया तुमने......और उपर से ये फासले.....और ये मजबूरियाँ......मुहब्बत कि आग को और परवान चढ़ा रहीं हैं......त्तुम भी तो इसी दरिया से गुजर रही हो........आँखों के पानी से ये आग कब बुझी है.......ये तो और बढ़ी है.......यकीन ना मानो.....तो अपने दिल में झाँक कर देख लो.....हाँथ कंगन को आरसी क्या......लिखना....फिर मिटा देना....फिर लिखना..फिर मिटा देना.....ये हाल तुम्हारा ही नहीं.......मेरा भी है.....

उल्फत का मज़ा तब है, जब दोनों हों बेकरार....
दोनों तरफ हो आग, बराबर लगी हुई......

कब धीरे-धीरे तुम मेरे अंदर उतर गयीं....पता ही नहीं चला....ये कैसी ख़ुमारी पैदा कर दी तुमने.....नशा है मुझको....तुम्हारा नशा....आंखें तरस गयीं....तुमको देखने के लिए......मैं जानता हूँ.....ये एक स्वप्न जैसा है......लेकिन उम्मीद का दिया तो ज़िन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है..........कितना इत्मीनान देता है......सिर्फ एक ये एहसास ...कि कहीं एक दिल है जो मेरे लिए भी धड़क रहा है......झूठ मानो तो पूंछ लो दिल से.......मैं कहूँगा तो रूठ जाओगे......ये भी किस्मत कि मजबूरी देखो.....कि..

जब नाम तेरा प्यार से लिखतीं है उंगलियाँ....
मेरी तरफ जमाने कि उठती हैं उंगलियाँ.

सच मानो एक बार सिर्फ एक बार.......कागज पर मेरा नाम लिखो.....और फिर देखो उस कागज को फाड़ने मैं...कितनी तकलीफ होती है.........मैं इस दौर से गुजर रहा हूँ...इसलिए तुम से बयाँ कर रहा हूँ......मैने तुमसे कहा था....कि तुम एक सागर हो...और मैं एक छोटी सी नदी....तुम मुझे अपने में ले क्यों नहीं लेतीं.....प्यार में दो कि गुंजाइश कहाँ होती.......

तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम,
जिधर देखें, जहाँ जाएँ.....

है ना पागलपन.....लेकिन वो प्यार ही क्या.....जिसमे "मैं" और "तुम" दोनों रह जाएँ....... वो नशा ही क्या जो सर चढ़ के ना बोले.....सही है ना....बोलो तो.

अब तो कुछ बोलो..........जो बात इस सीने में दफन हो गयी......वो दफन ही रहती है......बहने दो अपने आप  को, एक अलह्र्ट नदी कि तरह, एक पहाड़ी झरने कि तरह......फूटने दो इसमे से कविता के स्वर.....दर्द के नहीं...प्रेम के.....देखों...पूरब में लाली छाने लगी है.....आज तुम रोकेगी नहीं अपने आप को......बहो....निर्झर बहो.....महसूस करो.....मुहब्बत कि इस दुनिया में तुम्हारा इंतज़ार है........

किसी नज़र को तेरा इंतजार आज भी है,
कहाँ हो तुम, कि ये दिल बेकरार आज भी है.......

रोको मत अपने आप को...पैरों में..लेकिन, किन्तु कि बेड़ियाँ मत डालो......

फूलो रे नीम फूलो....