Monday, September 17, 2018

बताओ हैं न मेरे ख्वाब झूठे,
कि जब भी देखा, तुझे अपने साथ  देखा।

बहुत मग़रूर होते जा रहे हो,
मुहब्ब्त में कमी करनी पड़ेगी।

तुम मुहब्बत के कौन से तक़ाज़ों  कि बात करते हो,
यहाँ तो लोग ख़ुदा  को भी, फुरसत मिले तो याद करते हैं  .

 अब तो तन्हाई का ये आलम है फ़राज़ ,
कोई हँस भी देखे तो मुहब्बत का गुमाँ  होता है।

अच्छे लगे जो तुम, सो हमने बता दिया ,
नुक़सान  ये हुआ, कि तुम मगरूर हो गए।

 मेरी फ़ितरत में  नहीं ग़म  अपना बयाँ  करना ,
 अगर तेरे वजूद का हिस्सा हूँ तो महसूस कर  तकलीफ मेरी।

Koi Mukhlis Agar Hota Toh Mein Bhi Mohabat Karti. 

Dil To Bahot Milay Hain Magar Koi Dil Se Nahi Milta

कोई मुख़लिस  अगर होता तो हम भी मुहब्बत करते, 
दिल तो बहुत मिले मगर कोई दिल से नहीं मिला।  

Rah-e-muhabbat main ajab sa howa hai haal apna, 

Na zakhm nazar ata hai na dard saha jata hai...

राहे मुहब्ब्त में अजब सा हाल है अपना, 
न ज़ख्म नज़र आता है, न दर्द सहा जाता है।  

कुछ इश्क़ किया , कुछ काम किया



आज काफी दिनों बाद कलम उठाई और कुछ सादे पन्ने। सोचा चलो एक बार फिर से कोशिश करके देखते हैं कि उँगलियों में विचारों को कागज़ पर उकेरने की क्षमता अब बची है की नहीं। और यादों की गलियों से गुज़र हो गया।  क्या भूलूँ क्या याद करूँ।  अपने ऊपर लिखूँ या अपने अनुभवों को शब्दों का रूप दूँ।  सामजिक विषमताओं के ऊपर लिखूँ या प्रेम के ऊपर।  चलिए पुराने किरदारों को जगाया जाए। वक़्त काफी गुज़र गया , सच में वक़्त काफी गुजर गया।  लेकिन किरदारों को जगाने में थोड़ा वक्त्त तो लगता है।  क्योंकि सारे किरदार मेरे अंदर ही तो बसते हैं।  सुन्दर लाल कटीला हों या राधा या ज्योति।  

अभी कल ही की तो बात थी जब सब अपने थे।  अब भी अपने ही हैं लेकिन, आप समझ सकतें हैं।  वक़्त के तूफानों ने रिश्तों पर जंग लगा दी है।  जिनसे कल तक हक़ से बात हो थी आज उनसे ही excuse me कह के बात होती है।  अल्लाह अल्लाह ! नहीं नहीं इस बार पुराने किरदार नहीं , नए characters को ले कर खेल खेला जाएगा।  देखा बुरा मान गए न "खेल खेला जाएगा" को लेकर।  तो आप को लगता है कि वो सब एक खेल था ?

रुको , रुको। कोई नाराज़गी नहीं , कोई गिला शिकवा नहीं। चलो आगे का सफर जारी रखने को कोशिश करूंगा।  लेकिन मेरी कहानी घूमेगी प्रेम के इर्द गिर्द. क्योंकि यही एक काम है जो मैं अच्छे से कर पाता हूँ। 

वो लोग बहुत खुश किस्मत थे ,
जो इश्क़ को काम समझते थे
और काम से आशकी करते थे। 
 हम जीते जी मसरूफ रहे ,
कुछ इश्क़ किया , कुछ काम किया।  
                                                                                                                                         क्रमश: