Thursday, April 19, 2012

I am fine-2

अरे....नैना the philospher .....मेरे जाते ही तुम को ज्ञान मिला या ये संगत का असर है....ज्योति तो गंगा है.....देखा थोड़ी देर में ही..तुम राम राम बोलने लगीं..........सब हँसने  लगे....

नैना.....ये जो जिन्दगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है....कहीं छीन लेती है हेर ख़ुशी , कहीं मेहरबाँ बेहिसाब है. तुमको लगता है ज्योति ने काफी कुछ बता दिया हैं इन दस मिनटों में..मेरे बारे में.......


हाँ आनंद.....नैना का जवाब.....मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है..तुमको देख कर तो कोई गुमाँ भी नहीं होता.....

नैना..ये जो मैडम बैठीं है न..कभी इनके बारे सोचा है.....

कौन ज्योति के बारे में......

हाँ...ज्योति के बारे में....

हाँ आनंद .....जानती हूँ.....और अब समझ में आ रहा है की क्यों तुम दोनों इतना करीब हो.....या ये कहूँ की दोनों  एक ही नाव में हो.....

नहीं नैना......एक ही नाव तो नहीं कह सकते हैं....लेकिन खग जाने खग की भाषा.....नदी के दो किनारे की तरह हैं..जो कभी मिल नहीं सकते.....लेकिन बिना किनारों के दरिया भी नहीं होता.....और किनारे तभी टूटते हैं जब सैलाब आता है, जब तूफ़ान आता है.....नैना..तुमने लोहे की पिंजरे में बंद चिड़िया तो देखी होगी....

हाँ आनंद देखी है......

और उसी चिड़िया को सोने की पिंजरे में बंद कर दें तो कोई फर्क पड़ेगा....

नहीं...चिड़िया को तो कोई फक्र नहीं पड़ेगा ...

वही हैं..........ये ज्योति......क्या नहीं है इसके पास....लेकिन फिर भी एक रिक्तता.....एक कमी.....में जब भी इसकी आँखों की तरफ देखता हूँ...तो रिक्तता साफ़ नज़र आती है....इसलिए..में इनसे नज़र मिलाते हुए भी डरता  हूँ.....और ये भी डर रहता  है...की नज़र लड़ ही न जाए......

आनंद.............ज्योति....का कुछ शर्माता हुआ लहजा.

चलो बेटा...खाना तैयार है.....यहीं दे दूँ......मालिन माँ....तुरंत कबूल कर लेने वाला प्रस्ताव....

मेहरबानी होगी..अगर यहीं दे दो......ज्योति का जवाब मालिन माँ को.

ज्योति को देख कर कभी कभी एक शेर याद आता है.....एक समुंदर ने आवाज़ दी, मुझको पानी पिला दीजिये.

इतना सूक्ष्म विश्लेष्ण सुनकर नैना कभी आनंद की तरफ तो कभी ज्योति की तरफ देखती रही...लेकिन लाजवाब..शायद अपने मन में इंसान की मानसिकता का विश्लेषण कर रही थी....

नैना...कभी ज्योति के साथ रह कर उसको समझना............सालों पुरानी किताब है....इतनी जल्दी खत्म नहीं होती है......सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता.........


आनंद.....बस करो ...ज्योति का आग्रह....




जैसा तुम चाहो ...ज्योति..


‘‘यह फ़क़त आपकी इनायत है।
वरना मैं क्या, मेरी हक़ीक़त क्या ?’
                                                                                                                                             जारी है...

Friday, April 13, 2012

......I am fine....

गर्मी की दोपहर का अपना लुत्फ़ होता है.....

आनंद.........

कौन..........अरे तुम.......

हाँ.....इतना चौंक  क्यों गए......आनंद ?

अनअपेक्षित...था इसलिए चौंक गया.....नैना....आओ अंदर आओ. ...बैठो.

कैसी हो.......अरे हां.....आप लोगों से नैना का परिचय नहीं करवाया.....नैना , ज्योति की सहेली हैं....और स्कूल में मेरे साथ पढ़ातीं हैं.........

मालिन माँ....दो गिलास पानी दे दो......

क्या लोगी नैना.....चाय....या खाना. ....

कुछ नहीं आनंद......

ले बेटा पानी.......

लाओ माँ ......ये नैना हैं....मेरे साथ स्कूल में......

हाँ हाँ जानती हूँ.......ज्योति बिटिया के घर में मिल चुकी हूँ.....कैसी है बिटिया...?

मैं ठीक हूँ.....

ओहो....तो जान पहचान पहले से ही है.......

जी.....जनाब.....

नैना की निगाहें बता रही थीं कि वो घर का निरीक्षण कर रही है.......शायद  नैना पहली बार आनंद के घर आई है.....

और बताओ..नैना...क्या समाचार हैं....कैसे आना हुआ....?

समाचार.....................हूँ...........आनंद......ज्योति से कब से नहीं मिले हो.....?

लगभग १ महीने से.......

क्यों......?

क्यों मतलब....?

अरे मतलब क्यों नहीं मिले हो........? सब ठीकठाक है न...

हाँ...क्यों...ऐसा क्यों पूंछ रही हो.......नैना.

आनंद .......ज्योति बहुत परेशान है......

मैं जानता हूँ....नैना.

तो तुम उस से मिले क्यों नहीं.......आनंद ?

नैना......ज्योति ने तुमको क्या बताया......?

आनंद....ज्योति तुमको बहुत अपना मानती है.....बहुत.....वो हर वक़्त लोगों से भले घिरी रहती हो..लेकिन वो उन लोगों  में तुमको ढूंढती है......लेकिन...निराशा...

नैना.....मैं जानता हूँ और समझता भी हूँ......लेकिन कभी कभी वक़्त ऐसे मोड़ पर ला कर खडा कर देता जहाँ इंसान चाहते हुए भी...कुछ नहीं कर सकता.....अपाहिज हो जाता है.....ज्योति के अंदर जो रण चलता है...मैं उससे अनजान नहीं हूँ....और ये भी मैं जानता हूँ.....कि जल्दी ही वो इससे निकल भी जायेगी.

तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो.....

क्योंकि वक़्त कभी भी एक सा नहीं रहता....वो चलता रहता है..बदलता रहता है.....और बदलेगा भी...

मालिन माँ......................

हाँ बेटा........

माँ एक एक कप चाय बना दो..और जरा ज्योति के घर जाकर उसको बुला लोगी......

अच्छा........

आनंद...ज्योति के अंदर कि जो तड़प, जो व्याकुलता , जो डर बैठे हैं.....वो उसको जीने नहीं देंगे.....जीने नहीं दे रहे हैं.....

नैना.....प्रेम अगर कमजोरी है...तो उतनी ही बड़ी शक्ति भी है......वो प्रेम ही था जिसने तुलसीदास को उफनती हुई गंगा पार करा दी....वो प्रेम ही था जिसने अजगर को रस्सी बना दिया....शारीरिक ही सही..लेकिन प्रेम था....वो प्रेम ही था जिसने हनुमान को हिमालय लाने की शक्ति दी.....और ये भी प्रेम ही है जो ज्योति को हालातों से लड़ने की शक्ति दे रहा है......

और तुम्हारा.....आनंद...तुम्हारा क्या हाल है......?

मेरा.....?

हाँ तुम्हारा....तुम क्या सोचते हो..की तुम कुछ बताओगे नहीं तो मुझे कुछ पता नहीं होगा.....तुम ससब को हिम्मत और हौसला बाँटते हो...और तुम......आज अकेले खड़े हो...अकेल लड़ रहे हो..अपनी सारी जिम्मेदारियों के साथ.......

हे.......नैना......तू यहाँ.....

आओ ज्योति.........

काफी दिनों बाद ज्योति को देखा.....वही होंठो पे हंसी, आंखे सूखी.....

मालिन माँ.....

हाँ समझ गयी......तीन लोगों के लिए खाना बनना है......

मालिन माँ...तुसी ग्रेट हो....

चल चल....मक्खन मत लगा....क्या बनाऊं.......

आज तो नैना...की फर्माइश है......

मेरी क्यों .........

अरे पहली बार आई हो........तो ये तो हक है आपका.......

चल.....पराठा सब्जी बनती हूँ.....ठीक है......

ठीक है......

हूँ................ज्योति जी को सादर प्रणाम......

आनंद एक बार फिर अपने अंदर के जोकर को जगा रहे है....ताकि ज्योति का मन कुछ हल्का हो....

आनंद.................

अच्छा..नैना.....देखो कोयल अभी भी मीठा गाती है....ज्योति और नैना खिलखिला कर हँस पड़े....

आनंद तुम भी ना...............

ज्योति.....जहाँ तक मैं तुमको जानता हूँ.....तुम हार मानने वालों में से नहीं हो......लेकिन जब तूफ़ान तेज होता है....तो वही शाख बचती है..जो लचक जाती है.....

लेकिन आनंद......

हाँ....नैना.....

लेकिन ये सब कब तक................

किसने वक़्त देखा है...नैना.......मैं कैसे बताऊँ.....कब तक....लेकिन हर तूफ़ान की एक उम्र होती है.....

आनंद बेटा.......मालिन माँ .....का बुलावा...

आया माँ....

मैं अभी आया....तुम लोग बतियाओ.....

नैना.......हमलोग अपने दुःख और तकलीफों से इतने घिरे हुए और परेशान हो जाते हैं....कभी आनंद के बारे में सोचा हमने.......तू तो जानती है.....ये इंसान......जो रोज़  रोज़ चोट खाता है.....कभी शब्दों से , कभी व्यंग बाणों से....कभी लोगों की शूल जैसी चुभती हुई निगाहों से.....जिन लोगों को इस इंसान ने दूध पिलाया..वही लोग अब जहर उगल रहे है....इसके उपर.....लेकिन कोई इसके चेहरे से भाँप सकता है......इस इंसान ने विश्वासघात की हद देखी है....जब कोई दोस्त बन कर पीठ पर छूरी मारता है...तब क्या तकलीफ होती है....इस से पूंछो..नैना......लेकिन चेहरे पर शिकन.....कभी नहीं.....

मैं अंदर आ सकता हूँ......

आओ आनंद......कहाँ गए थे......

अरे मलिन  माँ ......ने एक काम से भेजा था......

आनंद.......

हाँ..नैना........

बहुत आसान है किसी को hurt करना और कहना sorry ...लेकिन बहुत मुश्किल है खुद hurt होना और कहना ......I am fine....



                                                                                                                                     अभी जारी है......











Tuesday, April 3, 2012

मुट्ठी भर रेत..

सिमटाव.....कुदरत का नियम है. सुबह भी सिमटती है और शाम भी......जन्म से लेकर मृत्यु की यात्रा जीवन का विस्तार है...या सिमटाव....पता नहीं. जीवन की ये यात्रा कई ठहराव  से गुजरती हुई अपने सिमटाव की तरफ है.....इस यात्रा में कई बार आँखे पथरा भी गयी.....सांस थम सी गयी.....लोग आते रहे....लोग जाते रहे..और आते- जाते भी रहेंगे...लेकिन ये जीवन की यात्रा नहीं रूकती.....हाँ ..नहीं रूकती...अनवरत......चलती रहती है.


कभी कभी मन करता है पल दो पल एकांत में बैठ कर..अपने जीवन का विश्लेषण करूँ....मेरे जीवन की ये गंगा किन किन रास्तों से होती हुई ..कहाँ तक पहुँच गयी.....मैं तो जल हूँ...जिस पात्र में डाला गया , उसी का रूप धारण कर लिया.....कभी पात्रों ने मुझे स्वीकार किया.... कभी छलका दिया गया....मन में इतनी यादों ने घर बना लिया है....उन यादों की भीड़   में खुद को ढूंढना मुश्किल सा हो जाता है. स्म्रतियों का भी अलग स्वभाव होता है, अलग चरित्र होता होता...है..कभी कभी ये मन पर बोझ डालकर उसको डुबो देना चाहती हैं और यही कभी डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं......मैं अपने आप में झाँक कर देखता हूँ....उस तिनके की तरह पाता हूँ जिसको लहरों ने जहाँ चाहा, जिधर चाहा ..बहा दिया.......


किसी चीज़ की तलाश ता उम्र मेरे साथ साथ चलती रही...और अभी भी है...कभी लगा मिल गयी..कभी लगा ये नहीं....इसी तलाश ने मुझे आवारा, बंजारा बना डाला.....लोग मिलते रहे, बिछुड़ते  रहे....और मैं जैसे समुद्र मैं कोई तिनका कभी इस लहर ने बहा दिया , कभी उस लहर ने डुबो दिया.....अफ़सोस रहा...हाँ एक अफ़सोस रहा की अभी तक कोई ऐसा नहीं मिल पाया जो मुझे जो मैं हूँ वो समझे.....लेकिन  फिर प्रश्न...कोई समझे क्यों......सब से रिश्ता बना रहे , मेरी इस कोशिश  ने कितनी बार मुझको जहर पिलाया , और मैंने पिया...ये जानते हुए....कि..


यूँ तो हर रिश्ते  का अंजाम यही होता है,
फूल खिलता है, महकता है, बिखर जाता है....

.लेकिन अब तो साहिल की तलाश है....किनारे की तलाश है....लेकिन सारे रिश्ते मुट्ठी मे रेत की तरह होते हैं.....सिर्फ मुट्ठी भर रेत.. 

Sunday, April 1, 2012

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोर,

हाँ सवाल हैं...मेरे जहन में भी सवाल उठते हैं.....लेकिन अफ़सोस सवाल ही हैं...कोई जवाब नहीं है उनका....कौन देगा जवाब.....सब तो किनारा करने लगे हैं.....या कर चुके हैं......क्यों.....????? क्या मैं अछूत हूँ.......या मुझसे बात करने में या सम्बन्ध रखने में status symbol पर चोट लगती है......आज आनंद की सहनशीलता जवाब दे रही थी......लेकिन वो अभागा पूछे भी तो किस से......शीशे के सामने बैठ कर..खुद से......कहाँ गए वो सब लोग जो दावा करते थे....अपने होने का.... दुःख  दर्द बांटने  का..... साथ साथ चलने का.....कहाँ गए.....

कौन देता है साथ यहाँ उम्र भर के लिए.
लोग तो जनाजे में भी कंधा बदलते रहते हैं.

ये क्या approach  है लोगों की  जब उनका मन किया तो बात की..जब मन किया......सम्बन्ध विच्छेद ....अरे आनंद क्या इंसान नहीं है....... कुछ नहीं बोलता है...तो इसक ये मतलब तो नहीं की लोग जब मन करे तब उसकी तरफ पत्थर उछाल दें........ignore करने की पीड़ा , avoid  करने का दर्द बहुत तकलीफ देता है.....और ख़ास कर जब वो उनसे मिला हो.....जो अपने हों...बिलकुल अपने.....

दर्द होता है...बहुत दर्द होता है....लेकिन कुछ नहीं कहूंगा......सिर्फ इतना कहूँगा ....

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोर,
लाख करो कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है....