Friday, December 10, 2010

मेरी चिंता ना करना.......

मैं थोड़ी देर आराम कर   लूँ......मैने ज्योति से कहा...

चलो...उसने ..चाची के बगल वाला  कमरा खोल दिया.....आओ.

कब आँख लग गयी.....पता नहीं.....जब उठा तो सूरज आधे से ज्यादा रास्ता आसमान चल चुका था...और मुझे याद नहीं था..की जो चाभी मालिन माँ ने मुझे दी थी.....वो मैं बाहर मेज पर ही भूल आया था.

अरे....चाची दोपहर हो गयी......चलता हूँ.....आँख  लग गयी थी......

आराम कर ले बेटा.......नहीं चाची अब चलता हूँ......

ठीक है......

घर पहुंचा.....तो दरवाजा खुला हुआ था......अचरज हुआ.....याद आया कि मालिन माँ ने तो चाभी दी थी....फिर दरवाजा खुला हुआ कैसे है......खैर ....ऐसा कुछ तो है ही नहीं जो कोई ले जाएगा.......हाँ उल्टा कुछ रख कर  जाए   तो ठीक है......मैं घर में घुसा.......ज्योति......सामने , मेरी मेज पर रखे कागजों से दो चार हो रही थी.......चेहरे का रंग सफ़ेद........

क्या हुआ.....तुम कब आयीं...? .... कोई जवाब नहीं.....सिर्फ मेरी तरफ देखती रही......

लगता है.....कुछ पढ़ लिया है......

उसने कुछ पन्ने मेरे आगे कर दिए......... तो ये सब चल रहा है दिमाग में.......इसीलिए  कल रात नींद ना आई....?

अब चुप रहने कि बारी मेरी थी........क्या जवाब देता.....सच तो उसके सामने बिखरा पड़ा था.

ऐसा क्या हो गया......जो ये विचार तुम्हारे दिमाग में आया...? ये तो तुमको बताना पड़ेगा.....ज्योति का अधिकार पूर्ण सवाल. तुम क्या समझते हो....कि इतने दिनों से बात-चीत  नहीं हुई....तो मैं आराम से थी......मैने तो सारा गुस्सा...आज सवेरे तुम पर निकाल दिया.....लेकिन तुम....इतना बड़ा निर्णय ले रहे हो....यहाँ से जाने का....? क्या मेरे क़त्ल का इल्जाम ले कर जी पाओगे......?

क्या मतलब.....?

और क्या.....तुम जानते  हो, समझते हो.....कि मैं ........ खैर..............तो तय कर लिया है.......जाने का....? कहाँ जाओगे....? और हो सके तो इतना बता देना........वो जाने के लिए खड़ी हो गयी.......

रुको....ज्योति........हाँ मै कुछ उलझा हुआ हूँ......

तो मेरे साथ तो तुम बाँट सकते हो.....बोलो तो.

जी बहुत चाहता है, सच बोले, क्या करें हौसला नहीं होता .

तम्हारे ह्रदय में  जो है.....मैं अच्छी तरह समझता हूँ......बहुत आदर और सम्मान करता हूँ.....तुम्हारा....और तुमको अपना मानता हूँ......गाँव वाले , स्कूल वाले...मुझको जो भी समझते हों......लेकिन मैं जब अपने आप  को तुम्हारे आगे रखता हूँ......बहुत छोटा नज़र आता हूँ......तुमसे तो कुछ भी नहीं छुपा है......

आनंद .....बस ... ऐसा ना बोलो.

नहीं ज्योति....आज ना रुको...अगर मैं आज नहीं बोला...तो शायद कभी ना बोल पाऊं.......

ज्योति ने अपने हाँथो से मेरा मुँह बंद कर दिया........ऐसा ना.....कहिये......मैं आप को समझती हूँ.......आप के अंदर जो मंथन चलता रहता है....मैं ये तो नहीं कहूँगी कि मुझे  पता है.......लेकिन हाँ.....अंदाज जरुर है. जो कुछ आपने बर्दाश्त किया है.......वो सब मुझे पता है.....इसलिए....जब काका ने दीनानाथ कि बेटी.....को आप पढ़ाते थे, मुझे बताया तो ......मुझे आश्चर्य हुआ......क्या क्या नहीं कहा था उसने आप को घर बुलाकर.....आप को गाँव से निकालने कि धमकी भी तो उसी ने दी थी आपको....., चरित्र निर्माण कि शिक्षा भी तो उसी ने दी थी आपको.....वो ये भूल गए....कि जिनके अपने घर कांच  के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. ....... लेकिन आप ने जी तरह से उसका जवाब दिया......मै सलाम करती हूँ आपको.

ज्योति....सलाम तुम नहीं...मैं करता हूँ...तुमको.....अगर मैं तुमको एक सन्यासिनी बोलूं तो बुरा मत मानना. सब कुछ है तुम्हारे पास.....सब कुछ...लेकिन जिस तरह से तुम उन सब से विरक्त हो......वो मिसाल....नहीं मिलती...कम से कम आज कल तो नहीं.........कैसे कोई.....एक को साध कर...सब में रहते हुए.....सब से अलग रह सकता है....तुम ने सिखाया.......मैं तुम्हारी तपस्या भंग नहीं कर सकता.......

तपस्या तो मेरी तब भंग होगी   .....अगर तुम यहाँ से जाओगे.....अभी  तो मेरी तपस्या का फल...मुझे पूरी तरह से मिला भी नहीं है......और जितना तुम मेरे हो....अगर मेरी तपस्या का फल उतना हैं.... तो विश्वास करो......मैं इससे खुश हूँ...बहुत खुश........ कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.............. एक तुम ही तो हो....जो ज्योति को ज्योति कि तरह समझते हो.........तुम ही ने तो मुझे जगाया.....याद है तुमको...तुम्ही ने कहा था...कि सोचो उस माँ के बारे में....जो बच्चे को जन्म देती है, दूध पिला कर .....ज़िन्दगी देती है.....और जब बात अपने स्वाभिमान पर आ जाए ... तो उसी बच्चे को पीठ पर बाँध, लोगों से लोहा भी लेती है.............. सन्यासी तो तुम हो......कभी तो लगता है...कि तुम मेरे हो.....और दूसरे ही पल ये एहसास होता है.......कि किसी के नहीं हो.......एक पल तुम्हारी बातों मे प्यार ही प्यार झलकता है.....तो दूसरे पल तुम कर्म और duty पर जोर देते हो......

पता नहीं.......ये सब तो मैं नहीं जानता.....लेकिन मैं ये जरुर सोचता हूँ कि तुमको अपने बारे में बताकर, या मेरे बारे में जानकर कितनी तकलीफ होती होगी....कितनी ठेस लगती होगी.....तुम्हारी भावनाओं को ...... मैं क्या करूँ...... मैं...... हूँ ना एक आवारा  .....तुम ही ने कहा था..ना किनारा करने को......एक बार......

मेरी चिंता ना करना.......

1 comment:

vandana gupta said...

कहानी जैसे जैसे बढ रही है मौन किये दे रही है……………इतने गहरे भाव और वो भी कितनी सहजता से समेटे हैं……………प्रेम की विलक्षणता को नमन है।