बाबा में दुनिया जीत के भी दिखा दूंगा....
अपनी नज़रों से दूर तो मुझको जाने दे....
तुम सामने हो...या मैं एक ख्वाब देख रहा हूँ......नहीं ये तो शीशा है.......ओह...तो ये एक भरम है....लेकिन तुम तो भरम नहीं हो....तुम हकीकत हो.....मैं तुमको छू सकता हूँ ......महसूस कर सकता हूँ....तुम्हारी साँसों कि आपा-धापी से धडकता हुआ तुम्हारा दिल.....मैं महसूस कर सकता हूँ......सब कुछ कह देने के लिए कलम उठाती तुम्हारी उंगलियाँ.....और चंद अलफ़ाज़ लिख कर शर्म से झुकती हुई पलकें...क्या नहीं कहतीं......और तुम समझती हो कि मैं कुछ समझता नहीं.....मुहब्बत कब कलम कि गुलाम हुई है...बोलो तो.
तुम तो कलम कि रानी हो....जब तुम कलम हाँथ में उठाती हो...तो विचारों के बीच आपा-धापी मच जाती कि कहीं में व्यक्त होने से ना रह जाऊं......मैं कोई तारीफ़ कर ने के मूड में नहीं हूँ....हकीकत बयाँ करने का मेरा अपना ही ढंग है......कई लोग बौने नजर आते हैं....जब तुम कलम उठाती हो......कितनी ख़ूबसूरती से , कितनी नफासत से, कितनी नजाकत से.....और हाँ......कितनी सहजता से...तुम अपनी बात कह देती हो...मैं घंटो...सोचता रहता हूँ...कि इसमे मैं कहाँ हूँ......या कहाँ कहाँ हूँ......
कितनी आसन हो तुम....जैसे गीता, जैसे कुरआन....जिसमे सिवाय प्रेम के कुछ और है ही नहीं.....क्यों लोगों तुमको जटिल समझते हैं......तुम विचारों कि वो बहती हुई नदी हो.....जिसमे डूबकर मैं भी सोचता हूँ कुछ नगीने समेट लूँ.....लेकिन जितना तुम मे डूबता हूँ.....तुम उतनी ही और गहरी होती जाती हो......कहीं ऐसा ही ना हो मैं तुम में डूब कर ही रह जाऊं...और तुमसे ही मेरा अस्तित्व नज़र आये....ये प्यार कि सीमा या पराकाष्ठा हो सकती है....लेकिन सच मानो...ये संभव है......
लो मैं तुमको क्या समझाऊं......तुम तो खुद ...प्यार हो.....अब शरमा कर नजर ना झुकाओ......
बोलो ये सच है....ना. .....मैं तुम्हारे जवाब के इंतज़ार मैं हूँ.
2 comments:
मोहब्बत में जवाब किसने दिया है
ये फलसफा तो खुद बयां हुआ है
इसे कहते हैं बिना कहे बात होना ..........दोनों तरफ के अल्फाज़ खुद ही कह दिए और मोहब्बत शब्दों की मोहताज़ भी नहीं रही ...........क्या खूब लिख रहे हैं आप .............एक अहसास को शब्दों में बांध दिया जबकि अहसास बंधते नहीं हैं ...........
bhut hi sundar prastuti/.....
*काव्य-कल्पना*
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