Friday, December 3, 2010

मेरा क्या....1

तबीयत कैसी है.....? एक कोमल सा स्पर्श मैने माथे पर महसूस किया. और एक मधुर सी आवाज़ उसके कानो मे पड़ी.


कौन है....? आँख खोलते हुए मैने पूंछा.


अरे .....  आप?


कितने  दिनों से बुखार है........? उनका सवाल.


अरे कुछ नहीं...... यही कुछ सर्दी जुकाम हो गया है. लेकिन आप को किसने बताया...... मेरा सवाल.


किसी ने नहीं.......२-३ दिनों से देखा नहीं...... इसलिए चिंता हुई. .. कुछ दवा वगैरह ली?


मै  मुस्करा दिया......


मुस्कराओ  नहीं......जवाब दो . दवा ली?


नहीं......


बिना दवा के ठीक हो जाओगे....? या आत्महत्या का इरादा है......


मै चुप....


तुम इतने लापरवाह क्यों हो.... खासकर अपने लिए..... बोलो तो. उसने कमरे मे बिखरे हुए कपड़ों और किताबों को को सम्हालते हुए सवाल पूंछा. क्या करूँ.... आप का.


मै फिर चुप......


चुप क्यों हो...... बोलो.


क्या जवाब दूँ....? कल शरीर इतना तप रहा था कि कहीं जाने कि हिम्मत नहीं हुई. .. किस से कहता..?


रामसिंह से ही कहलवा देते. वो तो यहाँ दिन भर था...... बता रहा था...... कि २ दिनों से कुछ खाया भी नहीं है... आप ने.


ये रामसिंह भी ना........


क्या राम सिंह भी ना........


उससे बोला था कि कुछ ना कहे , ज्वर है कुछ दिन मे ठीक हो जाएगा.


उठो...... ये रोटी और सब्जी खा लो.


मै ज्योति की आवाज़ मे अपनापन और आँखों मे नमी और माथे की सिलवटों को पढने की कोशिश कर रहा था.


जल्दी खाओ..... दवा भी लेनी है.....


हे भगवान्...... आप तो पूरी तैयारी से आईं हैं.


क्या करूँ...... कोई और हो जो आप को देख ले तो मै चिंता ना करूँ.


मैने  चुपचाप २ रोटी खा लीं , और वो वहीं बैठ कर पंखा झलती रहीं....

२ रोटी और ले लो...

अब ना खा पाउँगा...

अच्छा ..... ये दवा लेलो...

आजकल  मालिन माँ नहीं आ रही हैं क्या..... रसोई कितनी गन्दी पड़ी है....

मै साफ़ कर लूंगा..... आप तकलीफ मत करिए.....

क्या..... !   क्या मत करिए.... फिर से बोलो तो.....

कुछ नहीं.....में  वहीं चारपाई पर लेट गया.

मै उनकी तरफ देख कर....मन मै उनके  सरल स्वभाव कि बारे में सोचती रही.... कितना सरल इंसान है ये, कितनी सरलता से बात मान जाते हैं.... और लोग  कितना फायदा उठाते हैं इनका... और ये बात ये  भी जानते हैं.....ना खाने पीने का ध्यान, ना कपड़ों  कि चिंता.... बस किताबे और चुरुट....कोई परेशान है... इनके कान मै बात पड़ जाए तो रात ना दिन, ना सुबह ना शाम.....बस सेवा... और इनका ध्यान कौन रखे....

सुनो..... सो गए क्या...?

नहीं... बोलो...?

कुछ पैसे हैं.....?

वहाँ कील पर कुर्ता टंगा है... उसमे होंगे...

अरे...... इतना सारा पैसा.....कहाँ से आया....?

परसों बैंक से निकला था..... रामदीन को  बिटिया कि स्कूल कि फीस देनी है.... उसने मांगे  थे.....अब इस बात पर मत गुस्सा करना.

आप ना...... क्या करूँ आप का.

अब मै क्या करता....उसने माँगा...

तो मना करना तो आप को आता नहीं है......ना.

वो जो बसेसर को आप ने पैसे दिए थे.... वो लौटा दिए उसने....

तुमको किसने बताया...........

आप नहीं बताओगे तो क्या मुझे पता नहीं चलेगा.....?

तुम तो सर्वज्ञ हो......

मैं  मजाक नहीं कर रही हूँ......क्यों इतने लापरवाह हो अपने लिए.....कौन आया तुमको देखने.....

कमला बता रही थी कि कल तुम वहाँ गए थे....

हाँ... उसके बेटे कि तबियत ठीक नहीं थी...

तो आप उसको अस्पताल ले गए थे.....

अरे बाप रे.... तुम तो पल पल कि खबर रखती हो....

रखनी पड़ती है..... जानती हूँ तुमको ... और तुम्हारे स्वभाव को ... इसलिए.

उसको छूत कि बीमारी है.....जानते हैं ना आप.

हाँ...... तो क्या उसको ऐसे हे छोड़ देता?

मालूम है... कल पंचायत मे बात हो रही थी.... कि

कि.... जो छूत के बीमारों के पास जाएगा.... उसको गाँव मे अलग कर दिया जाएगा...जब तक बीमारी गाँव मे है.....

अरे... वाह.....कितना सुकून होगा.

आप का मै क्या करूँ......आप को कुछ हो गया तो......

कितना अपनापन है...इसके गुस्से में. मैं ज्योति का चेहरा देख रहा था. कितने सालों से ये मेरा ध्यान रखती है....मै जानबूझ कर ऐसा नहीं हूँ..... नहीं देखा जाता मुझसे दूसरों का दर्द.

ये लो..... चाय

चाय...!

इतना  चौंको मत.... जानती हूँ...कि तुम बिना खाने के रह सकते हो ..... बिना चाय के नहीं.....मीनमेख मत निकालना चाय में.

जी......

मैं एक बार फिर.... उनका चेहरा निहारती रही.... कि कैसे इंसान है ये.... दूसरों के लिए रोता है..... प्रार्थना करता है.....अपने लिए....ये बात इनकी समझ मे नहीं आती...... ये कौन सी मिट्टी के हैं.....

अच्छा .... मै अभी जा रही हूँ..... रात के लिए खाना मोहन के हाँथो भिजवा दूंगी...खा लेना....और हाँ... ये १०० रुपए लिए हैं...

जी...... वो चली गयी. कब आँख लग गयी पता नहीं.

बाबूजी........

कौन है....

मै हूँ....... राम सिंह

आओ राम सिंह... ये क्या है झोले मे....

ज्योति दीदी ने कुछ फल भिजवाये हैं.....

अच्छा तो १०० रुपए इसलिए मांगे थे..... भगवन ...मैने जरुर पिछले जन्म मे कुछ अच्छे कर्म किये होंगे.....

राम सिंह...इनको रसोई मे रख दे....

नहीं बाबूजी ... दीदी ने कहा है.... कि खिला कर आना...नहीं तो घर मत आना.

हे राम ... ये तेरी दीदी भी ना....

नहीं बाबूजी ... दीदी के लिए कुछ ना कहिये... वो घर पर बहुत रो रहीं थीं......

क्यों.......?

बता रहीं...थीं कि आप कि तबीयत ठीक नहीं रह रही है......और आप कुछ, किसी से बताते नहीं हैं.....बाबूजी दीदी .... आप कि चिंता करती हैं....

अच्छा.... राम सिंह... अब तू चल.....और जा कर दीदी से कह देना...कि मै फल खा लूँगा...... उनकी डांट खाने से तो अच्छा है कि, फल खा लूँ....है कि नहीं....

आप भी ना बाबूजी.......अच्छा चलता हूँ.... राम राम ... जल्दी ठीक हो जाओ आप.

राम सिंह चला गया.. अपने पीछे कई अनुतरित सवाल छोड़ कर....

दीदी रो क्यों रही थीं...क्या मै जानता नहीं... लेकिन आदमी कितने ही पैर क्यों ना उचका ले...चाँद को नहीं छु सकता.

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत ही मार्मिक लिखते हो देव..दिलको छू जाता है.इंसानियत के विभिन्न रूप से परिचय करा दिया एक छोटी सी रचना में .बधाई

vandana gupta said...

देव जी
आपकी हर कहानी दिल को छू जाती है………क्या कहूँ कुछ कहने लायक छोडते ही नही आप्।