Wednesday, December 8, 2010

वाह रे भाग्य.... वाह रे वाह

क्या लेंगे..... आप लोग.

मैं तो चाय लूँगा, सर में दर्द है ........रोहित का सीधा सा जवाब.

आप......

मैं भी चाय ले लूंगी.......कुमोनिका जी का एहसान करने सा स्वर.

राधा....ये ......आनंद और फ़कीर..... ये क्या है?  रोहित का सवाल और सवाल मे छोटे भाई के ना रहने  का दुःख भी झलका.

भाई साहब.....मैं भी कुछ नहीं जानती हूँ...बस दिवाली से कुछ दिन पहले कोई फ़कीर आया है.... गाँव मे हल्ला हो गया.......मैं  भी मंदिर जाती हूँ... तो वहाँ जाकर उनको देखा तो आंखे फटी रह गयी......यहाँ कोई नहीं जानता की मैं फ़कीर... oh ... sorry .... आनंद को जानती हूँ.

आप से कब मुलाक़ात हुई थी आनंद की...... मेरा प्रश्न..रोहित जी से.

ठीक से तो याद नहीं है..... लेकिन माँ की death  के बाद एक बार घर आये थे.

जुलाई में आये थे..... कुमोनिका का सीधा सा जवाब. तुम्हारे पास भैया की कुछ चीजें हैं...? कुमोनिका का सीधा सा सवाल.

रोहित, कुमोनिका...की तरफ देखते रहे.....

माता जी का स्वर्गवास तो २००४ में हुआ था..ना...२००९ तक आप लोगों ने कोई खबर नहीं ली की आनंद कहाँ हैं....?

खबर कैसे लेते .... जब उसका कोई अता-पता ही नहीं था. हाँ.....सब कुछ छोड़ने की बात करता था....लेकिन मैने कभी इस बात को इतनी गंभीरता से नहीं लिया.... और उसने सब कुछ छोड़ ही दिया......रोहित की आँखों में  कुछ आंसू छलके. अगर तुम बुरा ना मानो ...... तो उसकी चीजे ...मै देख सकता हूँ?  

मै क्यों बुरा मानूँ...... भाईसाहब? बस एक गुजारिश है.

बोलो....

उन चीज़ों मे से जो  आप के काम की ना हों....वो में रख सकती हूँ.......

तुम रख कर क्या करोगी......कुमोनिका जी का एक  और वार.

करुँगी...तो कुछ नहीं....आप के परिवार से २ पुश्तों की जान पहचान है.....बस इसलिए.

राधा....जब आनंद नहीं रहा......तो ये चीजे तुम रखो या मैं रखूं.....क्या फर्क है... रोहित का सुलझा हुआ सा जवाब.

ये लीजिये......२ डायरियां.....एक कलम.....एक घडी...और ये १२ रुपए. ये है उनकी जमापूंजी. और अगर चाहिए तो ये झोला चेक कर लीजिये. .... मै कुमोनिका जी से मुखातिब हुई .

अरे...... ये घड़ी... तो पिता जी की है......और कलम भी.....अभी तक सम्हाल रखा था उसने......

उन्होंने ही तो अभी तक सम्हाल रखा था........

और हाँ..... ये उनका death certificate है.....ये आप के काम का हो सकता है....

सुनो.... शाम हो रही है... चलना भी है? कुमोनिका का रोहित जी को.....

हाँ......जब मौत घर देख लेती है... तो फिर ...... २००१ में  पिता जी..२००४ में माँ और २००९ में....ये.

कहाँ रुके हैं आप लोग....? बच्चे कहाँ हैं...?

इनकी कंपनी का गेस्ट हाउस है....वहाँ रुके हैं. बच्चों  को नानी के घर छोड़ा है....

ओह....तो खाना खा कर जाइएगा.

नहीं ..... राधा.... आज नहीं. कहाँ किया उसका अंतिम संस्कार और किसने किया..?

यहीं हुआ.... और पंडित जी ने किया... वो उनको अपना बेटा मानते थे.....और गाँव वालों के लिए वो फ़कीर थे....और गाँव के बच्चों के लिए....फ़कीर बाबा.....वो और उनका मालिक.

और तुम्हारे लिए.....कुमोनिका का एक और तीर.

मेरे लिए.....हमारे और आपके परिवार  को जोडती हुई कड़ी थे वो.

क्या मैं डायरी देख सकता हूँ....रोहित ... रह रह कर आनंद से जुड़ रहे थे....छोटा भाई था उनका. 

...सही लिखा है उसने....किसी से मोह नहीं था....माँ के बाद...तो और भी अलग हो गया......ये तपस्वनी कौन है.....जिसने उसको फ़कीर बना दिया. ........ लेकिन कहीं भी.....डायरी में, उसने किसी से कोई शिकायत नहीं लिखी. सब के लिए दुआ ही मांगता रहा........तुमने तो अंतिम देखा है उसको......कैसा लगता था..... रोहित रो पड़े. उसके खाने - पीने का......?

भाई असहाब जैसा मैं शुरू में जानती थी, जैसा देखा था...उसका बिलकुल उलटा देखा मैने उनको. वो चुलबुला आनंद, वो शायर आनंद....वो रंगीला आनंद.....सब कुछ गायब हो गया था.....बस मालिक, मौला....और तपस्वनी.....पता नहीं किस चीज़ की तलाश थी उनको.....जिसको ढूंढते रहे.....इस दुनिया मे नहीं मिली... तो उस दुनिया मे चले गए ढूँढने.....पलकें तो मेरी भी नम हो रही थी....शांत....और हर बात पर मुस्करा देना.....ये तो उनकी निशानी बन गयी थी.

भाईसाहब......डायरी का पेज नंबर ८७ पढ़िए ---- कई दिनों  से हँसा नहीं हूँ, अकेले में जब हंसता तो लोग पागल समझ कर एक-दो गालियाँ दे देते हैं, माँ बच्चों को " पागल है कह कर दूर कर लेती हैं, कुछ बच्चे तो पत्थर मार कर भाग जाते हैं" ..............ऊफ.......किस चीज़ की तलाश थी उसको.....

उसके खाने-पीने का...?

भिक्षा.....

क्या.......

हाँ भाईसाहब...... भिक्षा, वो भी सिर्फ दो रोटी. यहाँ से १० कोस दूर एक गाँव है... वहाँ पर इनको दो रोटी वाला फ़कीर कह कर बुलाते थे.

लेकिन भैया.....को तो खाने-पीने का बड़ा शौक था.....

हाँ.....तभी तो अपने आप को चंद गालियों, कुछ अपमान और दो रोटियों में बाँध  लिया था.

लेकिन....बहुत शांत अंत हुआ.....उनका. जो भी उनको चाहिए था....उसी के ध्यान में बैठ गए होंगे .....और कब शरीर छूटा , कोई नहीं जानता.

ये तपस्वनी कौन है....कुमोनिका जी का प्रश्न. तुम तो नहीं........? मैं कुमोनिका जी साहस की दाद दे रही थी की इस मौके पर भी वो अपने तीर छोड़ना ..... ना भूल सकीं.

रोहित.....कुमोनिका, आप जरा खामोश रह सकती हैं.

नहीं भाई साहब...कह लेने दीजिये....ये तपस्वनी कौन है....... किस लिए वो फ़कीर बन गए.... सब जवाब वो अपने साथ लेकर चल गए.

हाँ ...... राधा. मानता हूँ. लेकिन वो किस्मत का बहुत धनी था....की अंत समय में लोगों का प्यार ले कर गया. वही उसने बांटा...वही उसे मिला भी. और कम से कम वहाँ उसके प्राण निकले जहाँ कोई ना कोई तो था जो उसको जानता था, पहचानता था.... लावारिस नहीं गया वो.

अरे.... राधा....आनंद का अस्थिकलश पंडित जी के पास है....उसको भी प्रवाहित करना है.


अभी तक पंडित जी के पास है.....??? इतना मोह.....? एक फ़कीर से..... जिसके अपने, उसके ना हो सके...उसको पंडित जी ने अपनाया.......वैसे भाई साहब....बुरा ना मानियेगा....कुछ चूक आप से भी हुई.

यहाँ पास में कावेरी नदी है...उसी में प्रवाहित कर दीजियेगा.

पिता जी, माता जी को गंगा  में  और छोटे भाई को कावेरी में................सब मेरे ही हाँथो....

वाह रे भाग्य.... वाह रे वाह

1 comment:

vandana gupta said...

उफ़! कितना मार्मिक चित्रण किया है आज्…………खामोश हूँ बस्।