Sunday, December 16, 2012

आप की कसम।

कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी जुबानी मेरी .....

बात करने से बात बढती भी है , बात साफ़ होती है भी है और बात से बात निकलती भी है .....इसीलिए तो कहा है ....बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी .....मानो या न मानो।

तुमने पूंछा  था की क्या मैं नाराज़ हूँ .....?

नहीं नाराजगी किस बात की ..... हाँ अफ़सोस जरूर हुआ और है भी .....क्योंकि मैं तुमको एक अलग पैमाने पर देखता था, कईयों से अलग, कईयों से जुदा। मेरी सोच। या तो मैं भी    की तरह सोचना शुरू कर दूं ...या जो मेरी मौलिक सोच है उसको बरकरार रखूं। दुनिया की भेड़ चाल में चलना ....मेरे बस का नहीं।

जब भी डूबे तेरी यादों के भंवर में डूबे, 
ये वो दरिया है जो हमें पार न करना आया।

लेकिन बशीर बद्र का वो जो शेर है :-

कुछ तो मजबूरियाँ रही होगीं,
यूँ ही कोई बेवफ़ा  नहीं होता .....

और जब तक मैं सच्चाई की तह तक न पहुँच जाऊं , कोई राय या कोई धारणा बना लेना गलत होगा। और मेरा ये firm belief है की सच एक न एक दिन सामने आ जाता है और झूठ के पाँव नहीं होते।  और जब तक सच सामने नही  आ जाता  तब तक बर्दाशत करना। यही समझदारी है। दुनिया ने ही सीखाई है ये समझदारी .......
एक न एक दिन जरूर आएगा जब जमाना हमको ढूँढेगा, न  जाने हम कहाँ होंगे।

हाँ ये जरूर सोचता हूँ कि  कहाँ गयी तुम्हारी अपनी शख्सियत , तुम्हारी अपनी एक individual personality. मनुष्य ईश्वर  की सर्वश्रेष्ठ कृति है है ......ऐसा सुना है  और मानता भी हूँ .....

दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइए ,
मेरी जबीं पे अपना मुकद्दर सजाइए।
लोगों ने मुझ पे किया हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
इक बार आप भी तो मुझे आजमाइए।

तुम मुझको जितना या कितना जानती हो ...ये तो पता नहीं , लेकिन इतना तो जानती  होगी की मैं उनमें से नहीं हूँ जो तुमको शर्मसार करे या रुसवा ....

बाकी तुम्हारी सोच और तुम्हारी मर्जी .........इसके आगे और क्या बोलूं ..... तुम्हारी आज भी वही इज्ज़त है और वही स्थान है मेरे दिल में जो था ....हम किरायेदार बदलते नहीं ....बस  इतना है की ..

गिरता है अपने आप पर , दीवार की तरह, 
अंदर से जब चटकता है, पत्थर सा आदमी।.

आप की कसम। 

Tuesday, December 11, 2012

इक आम आदमी..

मैं सच कह  रहा हूँ की मैं झूठ बोलता हूँ ...

हँसी आ गयी न ...... आनी  ही थी .....

कल एक शुभचिंतक से मुलाक़ात हो गयी ...... तो  उनका पहला स्वाभाविक सा सवाल ...कैसे हो ....

अब बताइए मैं क्या जवाब दूँ .......

तुरंत झूठ बोल दिया " ठीक हूँ, बढ़िया हूँ" आदि आदि   ....... अब अगर ये सवाल वो आदमी पूंछे  जिसे कुछ पता न हो .....तो मेरा जवाब उचित है लेकिन जब ये सवाल वहां से आया हो जिसको पूरा अंदाज है या अंदाज हो ....तो कोई हमे बतलाये की हम बतलाये क्या .....ये तो उसी तरह की बात हो गयी की किसी सोते हुए इंसान को जगा कर उससे पूंछे  " सो रहे थे क्या ?" अल्लाह ....अल्लाह .... ये अदा कैसी है इन हसीनो में .....

खैर छोडिये  इन बातों को अब आगे बढ़ते हैं .......

मेरी हालत तो ऐसी है की ....

मैं तो  ग़ज़ल  सुना के अकेला खडा रहा, 
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए .....

सब मगन हैं अपनी अपनी दुनिया में  ....

अच्छा एक सवाल  हूँ .......गुरु या ईश्वर जो सारे जग को प्रेम का पाठ पढ़ाता  है ....क्या वो ये कह सकता है की फलाने आदमी या फलाने इन्सान से दूरी रखो ......संभव है ? मेरे हिसाब से नहीं ......कदापि नहीं . गाने सुनने का शौक हो लेकिन घुंघरू की आवाज़ पसंद नहीं .....

इक पुराना गाना है ना ...

ऐ इश्क ये सब दुनिया  बेकार की बाते करतें हैं, 
पायल की धुनों का इल्म नहीं  झंकार  की बाते करतें हैं .....

मेरा ये आलेख किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं हैं। इसे  व्यक्तिगत तौर  पर ना लिया जाए ......इक आम आदमी का आम सा लेखन ...प्रेम .....जी हाँ प्रेम तो आज कल आम हो गया और मैं इक आम आदमी। 

Thursday, December 6, 2012

आगे तुम्हारी मर्जी ............

बहने दो ....... an outlet is must...

Means....

Yes.....I mean the same ...what you have understood. 

You want me to face the wrath...again and again and again ...

forget the world.....दुनिया .... दुनिया ....दुनिया। 

उस दुनिया को क्यों नहीं जीते जो तुम्हारे अंदर है .....जो कुदरत की देन है ........समझो मेरी बात को, महसूस करो इस सच को की हमारा स्वभाव, हमारा nature ... ये खुदा की देन है .....क्यों इस को बदलना चाहते हो .....वो भी दूसरों की वजह से .......कमाल करते हैं .....आप। जब तक अंदर से पस और मवाद नहीं निकलेगा ..... आराम कहाँ से आएगा ....... I am telling you. 

तो क्या करूँ .....बगावत कर दूँ ......??.....चुप क्यों हैं ....बोलिए न ......

किस कमबख्त ने तुमसे बगावत करने को कहा है ......लेकिन इतना जरूर याद रखना की Jonathan - Livingston Seagull --में ......परिवार से आगे बढ़ना पड़ा उसे .....क्योंकि वो अपनी जिन्दगी जीना चाहता था .........

परिवार से आगे बढ़ना पड़ा ....इस को समझायेंगे ........

मुझे लग रहा था .....की तुम इस पर जरूर भोंवे ऊँची करोगे .......मैं किसी परिवार से बगावत करने का पक्षधर नहीं हूँ ......लेकिन मैं इसका भी पक्षधर नहीं जहाँ जिन्दगी मेरी .....शर्तें तुम्हारी .....परिधान मेरा ...पसंद आप की .....साँसे मेरी ....अधिकार आप का .........ये जिन्दगी है .......जेल नहीं .......जहाँ हर कैदी आज़ाद है .....चारदीवारी के अंदर .......

जिन्दगी जीने को दी ..................जी मैंने, किस्मत में लिखा था पी ..............तो पी मैंने। 
मैं न पीता तो उसका लिखा गलत हो जाता , उसके लिखे को निभाया .............क्या खता की मैंने .....

You can not understand......what ordeal I am passing thru ....

May be....and truly so......only the wearer knows where shoe pinches.....

then ...what you say.....

Me.....मेरी तो सोच बड़ी सरल है .......अपने इस मकड़  जाल से निकलो ....और वो करो ....जिसमें तुम्हे ख़ुशी मिलती है। अगर दूसरों को ख़ुशी देनी है तो खुश रहना जरूरी है ........प्रसन्ता का उदय तो आत्मा में होता है ....चेहरे पर जो झलकता है ..वो तो उसका प्रतिबिम्ब है .....

आगे तुम्हारी मर्जी ...........

वक़्त जब लिखेगा अपना फैसला तब देखना 
सैकड़ों खुशफेह्मियों के मुंह खुले रह जायेंगे। 

Tuesday, December 4, 2012

अरे हाँ .....आशा

प्रिय आशा, 

 ...... काफी समय बाद तुमको लिख रहा हूँ। 

तुम्हारा पत्र पढ़ा और हिल गया अंदर तक। नहीं ....नहीं। संभव नहीं है . काफी समय बाद तुम्हारा पत्र आया और कारवाँ गुजर गया, गुब्बार देखते रहे।

बड़े मगरूर दोस्तों से नवाज़ा  है खुदा ने, 
अगर मैं न करूँ याद तो जहमत वो भी नहीं करते। ....

.खैर ये शिकवे-गिले का वक़्त नहीं है। .........

 प्रेम वो गुड नहीं है जिसे चीटें  खाएं। प्रेम जिस बिना पे खड़ा होता है या पनपता है ......वो है विश्वास, और विश्वास .... पर्वत को भी हिला सकता है ....कोई कड़वी  भावना नहीं है, कोई अलगाव  नहीं है और न ही इसका क्षय संभव है। कोई संकीर्ण सोच प्रेम को मार नहीं पाई ....

माना हमारे बीच रख दी वक़्त न कुछ दूरियां , 
कोशिश ये हो दिलों में रास्ता ज़िंदा रहे ......

प्रेम तो वो अगरबत्ती है जो धीमे धीमे जलता है और महकाता रहता है .....

वक़्त पे भरोसा रखो ....ये चलता है और चलता रहता है .....यही तो इसकी ख़ूबसूरती है ....यही तो इसका हुस्न है .....ये पलटता भी है .....ये युसूफ को मिस्र के बाज़ार में बिकवाता भी है और उसको शाहे मिस्र भी बनवा देता है। अरे प्रेम में अगर तपे नहीं तो सोना कैसे बनोगे ....बोलो तो। 

और ....

सोना बनो तो फिर इतना सोच लो, 
हर शख्स इक बार परखता जरूर है। ......

लो मेरी तरफ देखो .....

इतना टूटा हूँ की छूने  से बिखर जाऊँगा, 
अब अगर और दुआ दोगे तो मर  जाऊँगा ......

क्या और कुछ कहूँ अपने बारे में ....नहीं ना .....

बारिश में तो नहाया है न तुमने .....अब बताओ हल्की  हल्की  फुहारों में जो भीगने का आनंद है .....वो घनघोर बारिश में कहाँ ....

इस प्रेम की अगन में तपने का आनंद लो .......आशा, विश्वास के साथ.....

और आशा का दिया तो जिन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है ..... कम से मेरा तो .....

जो आके रुके दामन पे सबा, वो अश्क नहीं है पानी है, 
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की कीमत होती है .....

अब बोर मत हो ...... क्या करूँ शायरी मेरी फितरत है .....कभी खुल के बात नहीं करता हूँ ....इशारों इशारों में कह देता हूँ ......और उसको जहाँ पहुंचना होता है ...पहुँच जाता है। कितने पत्थर मेरे आँगन में आये हैं ......जानती हो ....किस किस के हैं ये पत्थर जानती हो ......मेरे अपने ही .....you know. अब मेरे अपने ही हैं तो मैं कर भी क्या सकता हूँ .....जानती हो न कौन सी ताकत है जिसने आज तक मुझको ज़िंदा रखा है ........प्रेम।

हाँ .....आशा प्रेम।

आमीन !!!!!!!