पंडित जी...........
कौन है भाई......
अरे मैं.......हूँ.....हरिओम. 
आओ.... हरिओम ....कोई चिट्ठी लाए हो क्या...... हरिओम गाँव के डाकिये का नाम है. 
अरे ...नहीं बाबा..... शहर से कोई बड़े साहब और मेम  साहब आये हैं..... आप का पता पूंछ रहे थे..... सो मै उनको ले आया.
कौन आया है.....
पंडित जी थोड़ा सिहर गए......क्योंकि किसी से बनावट से मिलना.... उनके चरित्र मे नहीं है....
जी साहब.....? पंडित जी बड़े साहब से मुखातिब हुए.
पंडित जी मेरा नाम  रोहित है और ये मेरी पत्नी कुमोनिका. 
जी स्वागत है...कहिये मैं आप के लिए  क्या कर सकता हूँ......
पंडित जी....आप के मंदिर मे कुछ दिनों पहले कोई आदमी रहता था....
साहब...ये मंदिर है....यहाँ लोग आते जाते रहते हैं.....हम किसी का हिसाब नहीं रखते. 
ये देखिये......ये तस्वीर.... क्या ये इंसान यहाँ रहा है..... आप को कुछ याद पड़ता है....? 
पंडित जी तस्वीर देख....चोंक गए......लेकिन बहुत ख़ूबसूरती से अपने भावों को छुपा गए. आज ७० साल की दुनियादारी का अनुभव काम दिखा रहा था. वो तस्वीर उसी फ़कीर की थी...
जी..... आप का इनसे क्या सम्बन्ध है......अगर आप बुरा न माने....? 
जी.... मैं उनका बड़ा भाई और ये उनकी भाभी हैं. 
ओह.......अरे..... अंजलि बिटिया....जरा खटिया तो डाल  दे....
हाँ.... बाबा. 
आप लोग बैठिये , मैं अभी १० मिनट मे आया. ...... अंजलि ...साहब और मेमसाहब को पानी पिला दे.... अलमारी मे कांच के गिलास हैं...कपड़े से पोंछ लेना.
जी बाबा.....
दिन मे ३ बजे.....दरवाजे की घंटी बजी....कौन है....? 
...................अरे बाबा आप......इस वक़्त यहाँ,.................. सब कुशल तो है......? 
बिटिया..... फ़कीर  की याद तो हैं ना तुझको ..........
हाँ बाबा... याद है...लेकिन आप इतना हांफ क्यों रहे हो....यहाँ बैठो. 
मन ही मन सोचने लगी की बाबा बोल दो...की फ़कीर ज़िंदा है. 
उसके बड़े भाई और भावज आये हैं.....
कहाँ.....यहाँ
हाँ.... मंदिर मे बैठा कर आया हूँ. साहब लगते है. मोटर गाड़ी से आयें हैं. मेरे पास कुछ मिठाई नहीं थी...तो लेने के लिए रति लाल की दूकान पर जा रहा था...तो याद आया की पैसे तो है ही नहीं... तू बिटिया २० रुपए दे दे.... कल वापस कर दूंगा....
बाबा................क्या बोल रहे हो. बिटिया भी बोल रहे हो.... और.........
ये लो.... और ये एक डिब्बा मिठाई भी ले जाओ. ..... मैं आऊं क्या.... मंदिर..? 
आना चाहे तो आ......
अच्छा आप चलो.....मै आती हूँ. पंडित जी चले गए..... और मै भाग्य के इस खेल पर विस्मित...वहीं बैठ गयी. 
उनके भैया और भाभी....... मतलब .... रोहित और कुमोनिका....? यहाँ इस गाँव मे....? क्या काम हो सकता है......?
मैने एक बार फिर....फ़कीर की डायरी ...देखी और फिर से सम्हाल दी. 
साहब....माफ़ करियेगा....आप को इंतज़ार करना पड़ा. लीजिये....मिठाई खाइए. 
पंडित जी बड़ा शांत वातावरण है यहाँ का. बरगद का पेड़....पोखरा.....काफी समय बाद गाँव देखा. 
काम की बात करो..... कुमोनिका जी का..... भाई साहब को आदेश. 
अच्छा..पंडित जी आप ने इस इंसान को देखा है....? 
हाँ साहब देखा है.... यहाँ पर था. 
अच्छा....अब कहाँ होंगे...भैया? 
कुमोनिका .... जी का वात्सल्य से भरा स्वर.....
क्या काम आन पड़ा...साहब. ...... आप अगर उचित समझें तो बता सकते हैं. पंडित जी के स्वर में दृढ़ता. 
अरे...पंडित जी अब क्या बताऊँ......ये २-३ कागज हैं.... इस पर छोटे भाई के दस्तखत चाहिए थे.....
क्या .... जायदाद के कागज हैं.....पंडित जी ने अपने ७० साल का अनुभव सामने रखते हुए पूंछा. 
हाँ .....पंडित जी. लेकिन वो साहब हैं कहाँ......? 
वो मेरा बेटा था....पंडित जी का दो टूक जवाब. और अब वो इस दुनिया मे नहीं हैं. आज से पहले आप ने कभी उनको ढूँढने की कोशिश नहीं की.... वो कहाँ है...कैसा है....है भी या नहीं है......
नहीं पंडित जी ऐसा नहीं है.....कुमोनिका जी का रक्षात्मक जवाब. इनके पास टाइम नहीं होता.... फिर बच्चे...और घर....आप तो सब कुछ छोड़ कर मंदिर में रहते हैं.....आप क्या समझ.....
जी...आप ठीक कह रहीं हैं....बेटी.....प्लेट में लगा कर मिठाई ला. और चाय भी ला....चाय तो पीते हैं ना आप लोग.....?
अरे नहीं...पंडित जी इसकी क्या जरूरत है......?
साहब......रति राम की दूकान की मिठाई है.....पास के गाँव तक नाम है उसका. और ये लीजिये... ये मिठाई मेरी एक बेटी ने आप लोगों के लिए भेजी है. ... वैसे साहब.....आप के भाई का नाम क्या था......
आनंद....
जैसा नाम....वैसा ही उसका स्वभाव...पंडित जी अपने आप से बोले.
अच्छा...साहब...अगर वो नहीं मिलेगा...तो आप क्या करोगे?
क्या करेंगे......ढूंढेंगे.
नहीं साहब...वो आप को इतना कष्ट नहीं देगा. ये कह कर पंडित जी अपने कमरे में गए.... और हाँथ मे एक मिट्टी की हंडिया , लाल कपड़े से बंधी हुई, ले कर लौटे.....ये है साहब...आनंद. 
क्या.........................ये क्या................... 
जी.... आज १५ दिन हो गए. अब इसके दस्तखत की जरूरत नहीं पड़ेगी आप को.....वो एक सतफ़ितेक (certificate ) बनता है...ना आदमी के मर जाने पर.... वो लगा दीजियेगा.....आप के सारे काम आसन कर गया ...आनंद. .... शक ना करिए मेरे उपर.....आप ने जब तस्वीर दिखाई..... तो मैं चौंक  गया.......क्योंकि..... वो तो मेरा फ़कीर था.....मेरा बेटा था......उसकी कुछ चीजें थी...जो यहाँ एक बिटिया.....है...उसके पास हैं......
पंडित जी.....एहसान होगा....अगर आप उन तक हमे पहुंचा  दें.....रोहित का शांत स्वर. 
अंजलि....मैं साहब लोगों के साथ.... राधा बिटिया  के घर जा रहा हूँ...जरा मंदिर देख लीजियो.....बिटिया.
जी बाबा.....अंजलि का जिम्मेदारी से भरा जवाब. 
राधा बिटिया......देख कौन आये हैं. 
आओ...बाबा....कौन है....
मुझे अंदेशा था...नमस्ते...आइये. 
अरे राधा..... तुम...? 
रोहित... जी का अपनत्व से भरा आश्चर्य .....
तुम....कुमोनिका जी..... का आश्चर्य से भरा... सवाल.
बैठिये.....                                                                                                                             क्रमश:
 
 
1 comment:
उफ़! किस मोड पर लाकर छोड दिया।
आपकी कहानी ने तो मुझे हिला दिया आज …………मै तो सोच रही थी कि वो उस दिन खत्म हो गयी और ज्योति और आनंद वाली दूसरी शुरु हो गयी है मगर ये तो उसी का भाग है अब जाकर समझ आयी है और राधा ही आनन्द का वो पहला प्यार थी जिसे वो जीता रहा हर पल उस रस मे डूबा रहा फिर चाहे कितनी ही ज्योति जला लो वो प्रकाश कहाँ सम्भव?
शायद ये गलतफ़हमी भी टाइटल के कारण हुयी अगर एक ही नाम से आती पूरी कहानी तो शायद ऐसा नही होता……………क्योंकि कहीं मुझे लग रहा था कि पात्र दोनो कहानियो के एक जैसे हैं मगर कुछ कहा नही सोचा शायद आगे कुछ अलग हो मगर अब सब समझ आ गया है…………शुक्रिया।
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