कहाँ हो......कुछ तो बोलो....क्यों इस तरह तड़पा रही हो......तुमको तो पता ही है.....कि मैं कहाँ हूँ......तुम तो जानती हो.....फिर क्यों ऐसा.....कुछ तो बोलो...कुछ तो लिखो......मैं तुमको तुम्हारे शब्दों में ही ढूंढ लेता हूँ.......जैसे डॉक्टर आला लगा कर सीने कि धड्कने पढ़ लेता है......महसूस तो करो......
ये अच्छा हुआ....के भगवान् ने दिल कि धड्कों को आवाज़ नहीं दी.......हाँ ...मुझे तुमसे मुहब्बत है.......क्योंकि मैं पाता हूँ अपने आप को.....तुममे. ....तुम बसती हो.....मुझमे.....इस आग मे अपने जिस्मों को जलाकर आओ एक हो जाएँ......मुझमे प्यास है......तो तुम मदिरा हो.......
मेरे होंठो पे अपनी प्यास रख दो, और फिर सोचो.....
क्या इसके बाद भी दुनिया में, कुछ पाना जरुरी है.....?
इज़हार करो.....या इकरार करो......
4 comments:
आज तो बडी तडप उजागर हो रही है………क्या बात है……………वैसे मोहब्बत तो यही होती है जहाँ तडप अपने चरम पर होती है……………वैसे भी मोहब्बत इज़हार और इकरार की मोहताज़ नही होती………बहुत सुन्दर ।
nice
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
मेरा पहला कमेंट कहाँ गया।
very good poem...
दर्पण से परिचय
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