Thursday, October 20, 2011

नीड़ का निर्माण....5

आनंद.....तुम ने निदा फाजली की वो ग़ज़ल सुनी होगी....

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी.

हाँ ज्योति....ये जिन्दगी का सच भी है....

तुमको नहीं लगता की हम दोनों एक ही कश्ती में हैं...आनंद

हाँ...तभी तो साथ साथ हैं.....मैं जानता हूँ...और समझता भी हूँ ज्योति...जो तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग में चलता है और चल रहा है.....लेकिन हर रिश्ते को कोई नाम देना तो जरुरी नहीं हैं ना...खासकर जहाँ पर दिल के रिश्ते हों..वहां कोई बंधन स्वीकार नहीं होता......चाहे बंधन एक नाम का ही क्यों ना हो.....मैने रिश्तों को टूटते हुए देखा है, मैंने रिश्तों में दरार पड़ते देखा है.....लेकिन दिलो के रिश्ते...जिस्म का बंधन टूटने के बाद भी नहीं टूटते....ज्योति.....दिल के रिश्ते देश और काल से परे होते हैं.....सुनने में दार्शनिक लगता है, philosphy लगती है..लेकिन सच भी यही है...कोई भी रिश्ता तभी ज़िंदा रहता है जब उसके बीच सांस लेने की जगह हो....नहीं तो दम घुटने लगता है....

ठीक कह रहे हो आनंद...नहीं तो दम घुटने लगता है....

हाँ ज्योति...अब इस पैमाने पर मेरे और अपने रिश्ते को नापो...

Where words fail, action speaks. Where action fails, eyes speak. Where eyes fail, tears speak. And where everything fails, LOVE SPEAKS.

ज्योति....जिन्दगी बहुत खूबसूरत है....इसकी सबसे बड़ी ख़ूबसूरती जानती हो क्या है....

क्या है.....

रोज़ नए रंग दिखाती है.....नयापन बना रहता है, ताजगी बनी रहती है....कभी उपर की तरफ चलती है तो कभी नीचे...कभी इतना उपर ले जाती है की डर लगने लगता है...तो कभी इतने नीचे ले जाती है की डर लगने लगता है....कभी निराशा का बदल छा जाता है तो वहीँ पर आशा की किरण भी चमकती है....

मैं आनंद को देख रही थी....जिसको आम लोग...जोकर, बेवक़ूफ़ या पागल कह कर किनारा कर लेते हैं....वो आज एक दार्शनिक बन गया और कितने आराम से जिन्दगी को जी गया...जख्म सह गया...अपमान पी गया ..... इनको प्रेम ना करूँ तो क्या करूँ.....प्रेम सिर्फ प्रेम...लेकिन इनसे भी बच कर रहना पड़ेगा....वो अपना समाज है ना....

कहाँ करने देगा नीड़ का निर्माण फिर....???????

Wednesday, October 19, 2011

नीड़ का निर्माण फिर...4

कितना अन्धेरा हो गया है......ज्योति तुम घर जाओ.....क्या वक़्त हुआ होगा.....

साढ़े छह....बजे हैं.... ज्योति का जवाब.

अरे साढ़े छह बजे इतना अन्धेरा होता है कहीं......

आनंद....अक्तूबर खत्म होने को है.....जाड़ा धीरे धीरे पाँव पसार रहा है....दिन छोटे होते जा रहे हैं.....

हाँ....ज्योति दिन छोटे होते जा रहे हैं और कम भी.......

ऐसा मत कहो ...आनंद....

नहीं ज्योति....मैं कोई negative रूप में नहीं ..बल्कि हकीकत बयान कर रहा हूँ.

बहुत बदल गए हैं आनंद...आंखें अनंत में न जाने क्या ढूंढती रहतीं हैं....अपने अंदर से बाहर निकलते ही नहीं हैं......आंखें सूख गयी हैं...हंसी गायब.....या ..इन सब से बहुत आगे निकल गए हैं आनंद....

चलो ज्योति घर चलो...कुछ ठण्ड सी लग रही है....

बुखार तो नहीं है....आनंद ...? ज्योति का चिंतित स्वर.

हो भी सकता है.......पीठ मे दर्द है. . लगता है मौसम की करवट..अपना असर दिखा रही है....

आनंद ....... तुम अपना ध्यान नहीं रख सकते..?

ज्योति...जब जीवन सिर्फ जिम्मेदारियों से भरा हो.....तो कहाँ वक़्त मिलता है...अपना ध्यान रखने का...बोलो...बोलो तो...... कभी कभी मन करता है.......

क्या मन करता है...आनंद बोलो...

वो देखो मालिन माँ आ रही हैं......

मुझे आनंद की ये बच निकलने की अदा बड़ी पसंद है....

अरे ज्योति बिटिया......कैसी है.....? मालिन माँ का प्यार भरा सवाल.

आप कैसी हो......

मैं तो ठीक हूँ......अब तो ये साधू आ गया है...अब ठीक हूँ.

मालिन माँ......

बैठ....चाय चाहिए....बनाती हूँ.....

मालिन माँ.....ज्योति ने बुलाया..

क्या है बिटिया.....?

ये साधू कौन है.....

साधू...ये है..ना.

आप चाय बना लो...

आनंद...तो मेरा अनुमान गलत नहीं है...

कौन सा अनुमान.......

यही की तुम बदल गए हो.....

नहीं ज्योति...मैं बदला नहीं...हूँ.....दुनिया के रीति-रिवाज सीखने की कोशिश कर रहा हूँ...

क्यों.....तुम जैसे हो..भले हो....जैसे हो....जो हो..वही रहो......why you want to dump your life..for hollow customs, for useless customs....just be who you are....


हाँ.....तुम ठीक कह रही हो.....

ले बेटा चाय...और ये गरम गरम मठरी.....

वाह.....तो तुम ने ठण्ड की शुरुआत कर दी...मालिन माँ.

ओह...ये गोरइया इतना शोर क्यों मचा रही हैं.....

शाम को घर लौट के आईं हैं... किसी कौव्वे ने इस का घोसला गिरा दिया है.......

ओह...नीड़ का निर्माण फिर...

Monday, October 17, 2011

नीड़ का निर्माण फिर...३

देखा ज्योति तुमने ..जिन्दगी कितनी रोचक होती है.....हम किसी बड़ी ख़ुशी की तलाश में अपने नजदीक बिखरी हुई अनगिनत छोटी छोटी खुशियों को नज़रअंदाज करते जातें हैं....और अपने अंदर कुंठा और तनाव को जन्म देते जाते है....

आनंद......ऐसा भी तो होता है की हमारे पास सुब कुछ होता है....लेकिन फिर भी एक खालीपन अंदर रहता है.....

हाँ बिलकुल होता है.....अगर ये खालीपन न हो तो महबूब को कौन याद करे...भक्त में याचना न होती तो , भक्त भगवान् बन गया होता....

तुमको किसी बात का अपराध बोध नहीं होता.....आनंद?

होता है....बिलकुल होता है...जब मैं किसी को जानबूझ कर, सोच समझ कर कोई नुक्सान करता हूँ....तब मै सो नहीं पाता हूँ......

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें.
वो हो गुनाह से पहेली, या गुनाह के बाद.    

आनंद...... तुम्हारे अंदर जो दर्द या गुस्सा भरा है अगर वो न निकला तो.....वो तुम्हारी अपनी सेहत पर भी तो असर डालता है.....?

कोई नीलकंठ यूँ ही नहीं कहलाता...ज्योति...

आनंद ....मैं क्या करूँ आप का...

एक कप बढ़िया सी चाय पिला दो......और अगर इज़ाज़त दो तो मै एक चुरुट पी लूँ...अब पी ही लेता हूँ....जानता हूँ तुम मना तो नहीं करोगी तो हाँ भी नहीं कहोगी .....मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया....हर फ़िक्र को धुएं  में उड़ाता चला गया..... 

आज कई दिनों बाद आनन्द को इतना गंभीर देखा... पता नहीं किस मिटटी से भगवान् ने बनाया इनको... अपमान, गुस्सा सब को पी कर भी कितना  शांत, सयंमित....किसी चीज़ की तलाश है..इनको..लेकिन मुंह से कभी निकलेगा नहीं.... आंखे बोलती हैं..लेकिन...आज के ज़माने में आंखे पढता कौन है, ये कला अब कहाँ रही....लोगों को शरीर पढने से फुर्सत नहीं है....

लो आनंद चाय......

हाँ...दो.......बैठो. ...... ज्योति..और बताओ स्कूल कैसा चल रहा है...?

ठीक है......तुम वापस आओगे?

हाँ....ज्योति......आउंगा.....लेकिन थोडा वक़्त और लूंगा....

क्यों.....

अभी समेटने की प्रक्रिया से गुजर रहाहूँ...

इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं, 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं... ............यही तो जिन्दगी है.....कल तक मैं दूसरों को जिन्दगी जीने की हिम्मत देता था....आज जब वक़्त ने करवट ली...तब ये महसूस करने का, नाप-तौल करने का...की जो उपदेश दूसरों को देते थे...अब उनको जीने का वक़्त है...अपने आप को नापने का वक़्त है...इंशा जी उठो अब कूच करो.... 

आनन्द...

Thursday, October 13, 2011

नीड़ का निर्माण फिर.....२

माँ.....आनंद आयें हैं.....ज्योति की आवाज़.

नमस्ते चाची......कैसी हो?

मैं तो ठीक हूँ बेटा....लेकिन तू....ये क्या हाल बना लिया है....? कहाँ था......बैठ....

सब ठीक है चाची....रही हाल की बात...तो कुछ दिन के लिए "उस से मन हटा कर दुनिया से लगा बैठा था, बाकी सब ठीक है.."

तेरी बात को समझना मेरे बस का नहीं है...तू बैठ..मैं चाय बनाती हूँ.

कैसे हो आनंद.....पास में कुर्सी  खींच कर ज्योति बैठ गयी.

बढ़िया हूँ...ज्योति.......वाकई में बढ़िया हूँ....वो कहते हैं ना की ईश्वर जिसको चाहता है....उसको "इल्लत, किल्लत और जिल्लत" थोक में देता है....और अब मुझे यकीन हो गया है..कि वो मुझे चाहता है....किसी से कोई शिकायत नहीं, कोई शिकवा नहीं...देह धरे को दंड है सब कहू को होय...

जानती हूँ, आनंद......

जानती हो ना ज्योति....अंग्रेजी मे एक कहावत है...Time is the biggest healar and death is the great leveller....तो सोचना क्या...और सोचना क्यों....

तुम्हारी जिन्दगी के फलसफे इतने सीधे और इतने आसान हैं...आनंद.....

मेरे पास सब कुछ है....हाँ..सब वो कुछ. लेकिन फिर भी एक खालीपन, एक रीतापन....कुछ तो है जो मेरे पास नहीं है, उसके ना होने का एहसास....पता नहीं.... 

ज्योति...पिछले ६ महीनो ने मुझे सोना बनने का मौका दिया है....हाँ...सोना बनने का....जो तभी खरा होता है...जब आग में जलता है....अब कोई लगाव नहीं...सिर्फ ड्यूटी, ड्यूटी और फिर ड्यूटी...यही है..जिन्दगी. 

हमने जाकर देख लिया है, राहगुजर के आगे भी, 
राहगुजर ही राहगुजर है, राहगुजर के आगे भी......

आनंद एक बात बोलूं.....

बोलो...

तुम कहना कुछ और चाहते हो..कह कुछ और रहे हो....क्या ऐसा तो नहीं..है.

पता नहीं....

तुम इतने चुप रहने वालों में से तो नहीं हो....जहाँ तक मै जानती हूँ...

हमको किस के गम ने मारा,
ये कहानी फिर सही.
किस ने तोडा दिल हमारा,
ये कहानी फिर सही............ज्योति.

ले बेटा....चाय ले...और ये हरी मटर का पोहा....

वाह चाची...इसकी सख्त जरूरत थी....काका कहाँ हैं...दिखाई नहीं पड़ रहे...

रामदीन .....का भतीजा गुजर गया....गए...वीरवार को....

अरे...कौन....सुनील......?

हाँ.....

हे राम....काका तो ठीक हैं....?

ठीक ही है बेटा......शाम को आ जायेगा....

और ज्योति ......स्कूल कैसा चल रहा है....

ठीक चल रहा है......आप का क्या प्रोग्राम है....

मेरा प्रोग्राम......? किस बारे में.....

स्कूल ज्वाइन करने के बारे में......

मैं तो इस्तीफ़ा काफी समय पहले दे चुका हूँ.....ज्योति. ..

कहाँ जा रही हो...?

आती हूँ.....

ज्योति लौटी तो हाँथ मे एक लिफाफा था....ये लो आनंद.

ये क्या है......अरे ये तो मेरा इस्तीफ़ा है....?.......

हाँ.....accept नहीं हुआ....

मतलब.....?

मतलब ये...कि इस्तीफ़ा accept नहीं हुआ.....

ये सब क्या है........ज्योति... 

आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया,
मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दिया.
पिछला निशान जलने का मौजूद था तो फिर,
क्यों हमने हाथ जलते अँगीठी पे रख दिया

क्रमश: ....... 

Tuesday, October 11, 2011

नीड़ का निर्माण फिर....

कभी किसी किताब का शीर्षक , किसी की जिन्दगी पर कितना सही बैठता है..देखा तुमने....ज्योति...हाँ ये शीर्षक है हरवंशराय बच्चन की आत्मकथा का....लेकिन देखो कितना सही बैठा है मेरे उपर.....नीड़ का निर्माण फिर....कहाँ से चला....और कहाँ पहुंचा...ओह...सीने पर हाँथ मत रखो...अंदर कुछ चुभ रहा है.....दर्द भी है.....लेकिन किस से कहूँ.....क्या विडंबना है न ज्योति....हम सब हर वक़्त लोगों से घिरे रहते हैं...लेकिन फिर भी अकेले रहते हैं....बिलकुल अकेले.  

मुस्कराने की आदत भी अच्छी आदत है..बहुत कुछ छुपा लेती है, बहुत सी बातों पर पर्दा डाल देती है....तुम सुन रही हो न ज्योति.....

हाँ आनंद सुन रही हूँ..यही पर हूँ....चुप मत हो..और बोलो.....बोलो न. 

क्या बोलूं...

घर से निकले थे हम मस्जिद की तरफ जाने को, 
रिंद बहका के हमे ले गए मैखाने को. 

ज्योति..ये जो तुम्हारा उपर वाला है न... इतना आजमाता है क्यों है अपने चाहने वालों को....

क्यों आनंद ...क्या किया उसने.....?

अरे उसने कुछ नहीं किया.... जो कुछ मेरे नसीब मै लिखना था...लिख दिया. ज्योति..जो बाते हम बातों बातों मे दूसरों को बताते हैं...उनको अपने उपर आजमाने का वक़्त आया है....वो भी देखना चाहता है....  की कितना लोहा है हमारे अंदर......तिनके तिनके इकअठे कर रहा हूँ...

नीड़ का निर्माण फिर....