Sunday, December 19, 2010

अब बारी तुम्हारी......

तुम्हारे शब्द जादू करते हैं.....तुमको पता है.....नहीं...तुमको पता नहीं होगा....आँख कब अपने आप को देख पाती है.
अगरबत्ती तो एक कोने में जलती है.....घर पूरा महकता है.....मुहब्बत वो खुशबू है....वो एहसास है....जो अनदेखे, अनजानों को महबूब बना देती है.....वो ताकत है ये ....प्यार....अब तो मान जाओ.

तुम्हारे एक-एक शब्द में मैं अपने आप को पाता हूँ....और मेरे एक-एक शब्द में तुम अपने आप को महसूस कर सकती हो.....क्योंकि  मैं कल्पना के पंख लगा कर सपनों कि दुनिया मे नहीं जीता.....सिर्फ जो महसूस करता हूँ...लिख देता हूँ. मुझे  नहीं पता साहित्य  क्या होता है....मैं अपने आप को तुमसे जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ.....कहीं ना कहीं.......या जुड़ता हुआ....कितना अच्छा हो...कि ना तुम मुझे देखो...और ना मैं तुमको....पर फिर  भी एक इंतज़ार बन जाए......एक बेकरारी पैदा हो जाए.....अगर कोई सन्देश ना आये, तो गुस्सा भी आये....जबकि...अनदेखे  हैं हम....वो हो सकता है..सिर्फ प्रेम हो...प्रेम के अलावा कुछ  भी नहीं....जिस्म और देह के बंधन से परे.....क्या यही प्यार है.....बोलो तो....बोलो ना.

जहाँ पर ओपचारिकता ना हो......"जी" कहने की, ना धन्यवाद  कहने की...एक बार मेरा नाम , बिना "जी" लगा कर लो तो  ...बोल के देखो.....मुझसे नहीं....तो अपने आप से ही सही.....सारी ओप्चारिक्ताओं को ताक पर रख कर..... तुम्हारा हृदय बहुत कोमल है.....और हो भी क्यों ना......प्रेम की तरंगे सागर मे ही तो उठती हैं....पत्थरों  में नहीं.....मै एक बार डूब  के देखूं ...इस प्रेम के सागर में......अथाह और अगाध समुद्र में.......

खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उल्टी धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार.

मुझको याद आता है Richard  Bach  का वो कथन " Can miles truly separate you from the person you love....If  you want to  be with someone you  love , aren't  you already  there " ..... दूरियां कब प्रेम को कम कर पायीं हैं.....उलटा ही हुआ....दूरियों ने प्रेम की आग को और हवा दी है.....देख रही हो ना प्रेम की जादूगरी....ये प्यार ही तो है...जो बुत को ख़ुदा बना देता है......और इन्तेहाँ  ये है की ... बन्दे  को ख़ुदा करता है इश्क.....कोई शक....?

अच्छा...नहीं मानती हो........

तुम झूठ बोलती हो......कम से कम अपने आप से तो मत बोलो.

मुहब्बत की आग जलाती नहीं...निखारती है......ज्यों - ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल  होए.  

बहुत कुछ कह दिया ना मैने.......नहीं...सब कुछ तो कह दिया.....अब क्या रहा मेरे पास.....छुपाने को, बताने को....

अब बारी तुम्हारी......

3 comments:

JAGDISH BALI said...

दिलकश !

Puneet said...

खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उल्टी धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार.

is dariya ke gehrayee aaj tuk na koi jan paya hai na jaan payega... kitne aaye aur chale gaye is prem ki dariya mein..

vandana gupta said...

क्या कहेगी अपनी बारी मे………………हाल तो एक जैसा ही होगा ना दोनो तरफ़्………………जिसे एक का दिल कहता होगा और दूसरे का सुनता होगा वहाँ शब्द मोहताज़ नही होते और ना ही दूरियाँ जब दिल मिल जायें और एक हो जायें वहाँ तो सिर्फ़ लफ़्ज़ ही बोलते हैं ……………दिल की हर धड्कन का हाल कह जाते हैं………………लीजिये पता नही आपकी कहानी ने तो मुझसे ही क्या क्या लिखवा लिया…………शायद आगे की कहानी……………अब आप पूरी कीजिये और बताइये क्या ऐसा ही तो नही हुआ।
एक लिंक दे रही हूँ पढियेगा:
http://ekprayas-vandana.blogspot.com

ये भी मेरा ही ब्लोग है। यहाँ प्रेम सही अर्थो मे मिलेगा।