माँ........देख एक जादूगरनी आई है...........वो हाँथ की सफाई का जादू नहीं दिखाती है.......वो शब्दों का जादू बिखेरती है...और शब्दों से अपना बना लेने की अद्भुत क्षमता है उसके अंदर........अरे माँ...तू तो है ही नहीं....
उसके शब्द महकते हैं, वो अपने हर शब्द में झलकती है....झिलमिलाती है.....जैसे सुबह की ओस की बूँद, सूरज की पहली किरण.....का स्पर्श पाते ही....झिलमिलाती है....मैं उस जादूगरनी को जानता हूँ.....वो.....ना , ना ....नाम नहीं बताउँगा.....क्योंकि...वो छुई -मुई जैसी नाजुक....लेकिन जब वो मुरझाती है......तब कोई नहीं जान पाता....क्योंकि उस का दिल मुरझा जाता है........और फिर आंखे तो दिल का राज़ खोल ही देती हैं......पढने वाला होना चाहिए....बोलो ....मैं ठीक कह रहा हूँ...ना.
कुछ लम्हे....मुझे भी अता करो....मुझे जलन होती है....उन सभी से जिनके करीब तुम हो.....
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को खबर ना हो....
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो......
देखा तुमने..... तुम अद्भुत हो......तुम राधा भी हो और मीरा भी.........एक दर्श दीवानी....एक प्रेम दीवानी....
मैं क्यों ना जलूं....बोलो तो.
1 comment:
किसके रोके रुकी है सहर्……………गज़ब का चित्रण्……………एक प्रेम दीवानी एक दर्श दीवानी यही तो रीत है……………जो मिलकर भी नही मिलता क्योंकि खुद उस आगे मे नही जला होता।
ये भी पढिये यहाँ भी ये ही भाव हैं…………
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
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