रोहित...कुमोनिका के साथ मंदिर पहुंचे, मैं वहीं उनका इंतज़ार कर रही थी. जैसा कल तय हुआ था.
पंडित जी ...नमस्कार ... रोहित और कुमोनिका का शांत अभिवादन. कुमोनिका आज काफी बदली हुई सी लग रही थीं...संभव हो रोहित जी ने कुछ कहा या समझाया हो.
नमस्ते ... साहब....
बाबूजी नमस्ते......अंजलि का अभिवादन... रोहित और कुमोनिका को.
आप फ़कीर बाबा के भाई हैं.....?
हाँ... बेटी. ... रोहित ने अंजलि के सर पर हाँथ फेरते हुए जवाब दिया.
बाबा... ये आप के लिए है.....
ये क्या है... साहब.....
साहब नहीं...बेटा कहिये......अगर आनंद आप का बेटा हुआ..... तो मैं भी तो हुआ.....
पंडित जी निरुत्तर हो कर रोहित....की तरफ देखते रहे.....और हाँथ बढ़ा कर भेंट स्वीकर करी.... एक नया धोती और कुर्ता....और शाल.
ये आप के लिए है बिटिया.....कुमोनिका ने ....अंजलि की तरफ एक तोहफा बढाया.
अंजलि दो कदम पीछे हट गयी.... और पंडित जी की तरफ देखने लगी......
ले ले बिटिया....पंडित जी ने अंजलि से कहा.
इसकी क्या जरूरत थी.....पंडित जी ने रोहित जी से कहा.
हर चीज़ जरूरत से ही होती है क्या ..... बाबा...कुमोनिका का जवाब पंडित जी को .
मैं अवाक.... इस अचानक हुए परिवर्तन से......कल तक तो तीर चल रहे थे और आज...... खैर...जो भी हो रहा है.....अच्छा ही हो रहा है......इसके पीछे का सत्य , वक़्त के साथ ही आगे आयेगा.
बाबा....कुछ और बताइए..... आनंद के बारे मैं......आप के साथ तो ३ महीने रहा.
मेरे पास रहा ....साथ तो किसी के नहीं रहा. साथ तो अपने मालिक के रहा और किसी तपस्वनी के.......पंडित जी ने मेरी और देखा.... तुम तो जानती हो राधा बिटिया....साथ तो वो किसी के नहीं रहा.
हाँ....बाबा....साथ तो वो किसी के नहीं रह पाए.
बेटा.... पंडित जी रोहित से मुखातिब हुए....... जहाँ तक मै समझता हूँ.....फ़कीर वो ऐसे ही नहीं बन गया. टूटने तो वो उसी दिन से लगा था...जिस दिन आप की माँ का देह-अंत हुआ था. ... क्या उसी ने अंतिम संस्कार किया था.
हाँ....मैं पहुँच नहीं पाया था टाइम पर.
सब से छोटा बेटा था क्या.....?
हाँ...क्यों बाबा?
एक कहावत है बेटा....." बड़ेंन का बाप, छोटन का महतारी....बीच वालेन का राम रखवारी".... उसने आप लोगों मे माँ को ढूंढा....लेकिन.....नहीं पाया....फिर ...उसे अपनापन , प्यार, ममता....कोई उसको भी समझे......इन सब चीज़ों ने धीरे धीरे उसको घुन की तरह चाट लिया.....और वो अपने आप को धीरे धीरे सब से अलग करता चला गया. फिर कोई तपस्वनी आई...उसके जीवन मे......और वो भी तमाम तरह की जंजीरों में. फ़कीर की हालत उस पंछी जैसी थी....जो उड़ कर जाना तो चाहता था तपस्वनी के पास...लेकिन पैर तमाम तनाबों से बंधे हुए थे..... जितना मुक्त था वो...उतने ही बन्धनों मे था. इसीलिए सब कुछ छोड़....कर वैरागी हो गया.
मैं...पंडित जी का चेहरा देखती रह गयी.....इतना सूक्ष्म विश्लेषण......
किसी मालिक.....के सहारे जीता रहा वो.
ये लीजिये...चाय.....अंजलि..सब के लिए चाय ले कर आई.....
सब चुप...सब गुमसुम....मैं अवाक.
पंडित....बाबा....कुमोनिका...का संबोधन ...... भैया......कैसे गुजर -बसर करते थे...?
पंडित जी हल्के से हंसे.......गुजर-बसर.....? बेटी.....पहली बार पंडित जी ने कुमोनिका को इस नाम से संबोधित किया.....उसको कुछ चाहिए नहीं था.....रही खाने पीने की बात.....मैने कई बार उससे कहा की यहीं खा लिया करे , क्यों भिक्षा के लिए जाता है....तो कहने लगा....बाबा....मांग ने अहंकार नहीं रहता. जो मिल गया...ठीक नहीं..तो अल्लाह हाफ़िज़. अमीर था वो.....कुछ नहीं चाहिए था उसे. सब था उसके पास.....
बाबा.....वो भिक्षा मांगने जाते थे..............?
हाँ... वो जाता था. एक दिन तो हँस रहा था, क्योंकि किसी ने उसको २ रुपए दे दिए थे. मैं खामोश......क्या बोलती......के मेरे दरवाजे भी आये थे......
उफ..............हम जरा मंदिर के दर्शन कर ले बाबा...रोहित जी ने आज्ञा मांगी.
बिलकुल बेटा......
बाबा...इतना कैसे पढ़ लिया आप ने फ़कीर को....मैं पूंछ बैठी पंडित जी से.
राधा .... बेटी....जो डायरी मैने तुमको दी थी.....उसके कुछ पन्ने मेरे पास रह गए थे.....
क्या......वो १२ पन्ने....जिन्होने फ़कीर की डायरी को ८८ तक सीमित कर दिया था. मैं सोचने लगी.....
मैं तो पढ़ नहीं सकता.... और अंजलि समझ नहीं सकती.... सो मेरा काम आसन हो गया. उसने पढ़ दिए...वो पन्ने....मैने समझ लिया...फ़कीर बेटे को....... बेटी....ना जाने क्यों मुझे लगता है की उसकी वो तपस्वनी...यहीं-कहीं आस-पास ही है...तभी तो यहाँ तक खिंचा चला आया.....और यहाँ से फिर इतना आगे चला गया....
मैं बाबा की आसमाँ मैं खोई हुई आँखों को देखती रही.....कहीं इनको पता तो नहीं चल गया की तपस्वनी कौन है...? लेकिन....कहीं भी फ़कीर ने कोई नाम नहीं लिखा......जाते - जाते भी किसी की तरफ कोई ऊँगली ना उठे .....इसका ध्यान रखा .... मेरे फ़कीर ने.
बाबा.....रोहितजी की आवाज़.....
हाँ बेटा... आ गए आप लोग.
हाँ बाबा.....मन तो नहीं है...लेकिन जाना तो पड़ेगा....क्या मैं अपने भाई को ले जा सकता हूँ.....
बिलकुल..... बाबा ने लाल कपड़े से बंधी हुई मिट्टी की हंडिया रोहित जी के हवाले कर दी....और रो पड़े.
जब छोटा था तब गोद मैं खिलाया था.....आज फिर गोद में है......बदमाश.... रोहित जी रोक ना सके अपने आप को.
अच्छा बाबा, अब आज्ञा दीजिये.... राधा... तुम्हारा एहसान रहा मेरे उपर......अगर संभव हुआ तो चुकाउंगा...
ऐसा ना कहिये .............
वो लोग चले गए...... गाड़ी की धूल दूर तक उडती रही.....
चला गया फ़कीर......बाबा चारपाई पर बैठे हुए बोले.
मेरा मन १२ पन्नों में उलझ गया....जो पंडित जी के पास रह गए..... शायद बाबा मरे मन की बात भाँप गए.....और बोले ..बिटिया जो तेरी चीज़ है.. तुझी को मिलेगी......तू जानती है....बिटिया क्या लिखा था उस फ़कीर ने...अंत में....."आज मैं अपने गंतव्य पर पहुँच गया हूँ, मेरा कृष्ण, तपस्वनी, सब मिल गए.....अब यात्रा पूरी हुई" ......
मैं सन्न रह गयी.....बाबा की तरफ देखा....चिंता ना कर बेटी.... फ़कीर और तपस्वनी.... दोनों मेरी ही तो बच्चे हैं......
मैं फूट पड़ी......फ़कीर मैं पहली बार रोई......बाबा ने गले से लगा लिया......
मैं कितना भाग्यशाली हूँ........कृष्ण भी यहाँ, राधा भी यहाँ.... और फ़कीर भी यहाँ. ये प्रेम.....है. ये ले बेटी वो पन्ने.....मैने पन्ने सर से लगा लिए....
जीती रह बेटी..... तू अमर हो गयी.....
2 comments:
मैं कितना भाग्यशाली हूँ........कृष्ण भी यहाँ, राधा भी यहाँ.... और फ़कीर भी यहाँ. ये प्रेम.....है.
आज तो देव जी आंसुओ से रुला दिया…………।प्रेम की यही तो पराकाष्ठा होती है जहाँ बिना कहे भी सब व्यक्त हो जाता है…………ज्यादा कहने की स्थिति मे नही हूँ……………भीतर कुछ दरक रहा है……………शायद!
prem....pyaar.....muhabbat..kitney bdnaam shabd hain.....lekin mai to jeet hi inkey sahaarey hun....main kya kaun.....bolo to.
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