Tuesday, December 7, 2010

दूर ही से सही, तुझ से निस्बत रहे.

कुछ वाक्ये खत्म नहीं होते हैं...... उनको दबा दिया जाता है. और कुछ लोग इस काम मे माहिर होते हैं....आनंद उनमे से एक हैं. अगर कुछ समझाना है... तो शब्दों के जादूगर, और कुछ नहीं बताना है.... तो इतने सीधे जैसे कुछ जानते  ही नहीं हों....कुछ समझते ही नहीं हों. .... उनकी इस आदत पर कभी गुस्सा भी आता ...... और कभी प्यार भी....मैं अभी तक नहीं समझ पाई की मुझ से विवाह की बात वो घुमा क्यों गए.....आज पूंछुगी. सीधे पूंछुगी.....

 माँ.... मैं  आनंद जी के घर जा रही हूँ....

सुन...... ये फल लेती जा....

लाओ.....और सुनो...मेरा खाना वहीं भिजवा देना....

मैं चल दी.....आज मन की सारी दुविधा दूर करने के लिए.

आनंद घर के बाहर ही मिल गए......बाग़ मे थे.....

क्या उखाड़ रहे हैं......

घास-पात.....जो काम की नहीं हो....उसको क्यों व्यर्थ बढने दें.....वो दूसरों का भी रास्ता रोकते हैं.

आनंद का पहला तीर.

तुम बैठो...मे १० मिनट मे आता हूँ.....और सुनो..खाली बैठ कर तो तुमको विचारों के पंख लग जाते हैं......इसलिए... अपने आप को चाय बनाने में व्यस्त कर सकती हो....

आनंद का  फरमाइश करने का अंदाज ऐसा है....की मैं मना कर ही नहीं पाती... या कर नहीं सकती...पता नहीं.

आइये..... चाय... साहब के इंतज़ार में भाप बन कर उडती जा रही है......

जी.....लाइए.....महक  तो दिलकश है...... अब पीकर भी देखली जाए....

आप.....

अरे, अरे.....गुस्सा ना होइए....खूबसूरत लड़कियों को गुस्सा नहीं करना चाहिए.....वो और ख़ूबसूरत लगती हैं.

क्या बात है.... आज सरकार.... बड़े मूड में हैं........

हाँ ... वो तो है.......दीनानाथ की बिटिया ...जिले मे 2nd आई है....दसवीं के इम्तेहान मे.

अरे वाह.....

अरे..... रसोई मे मिठाई रखी है .....लाओ तो. दीनानाथ दे गया था.

जी......मैं सोचने लगी.....आनंद इतने अच्छे मूड में हैं, इतने खुश हैं.....बात करूँ.....या ना करूँ....... चलो देखते हैं....

लो....खाओ. इस मिठाई की मिठास अलग है....इसमे  रानी बिटिया के पसीने की महक है.....

माथे से  पसीने की महक, आये ना जिसके
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता....

आप ने सवेरे - सवेरे कैसे दर्शन  दिए....

आप के दर्शन के लिए आई हूँ......

अरे....वाह..... आप ने तो मुझे भगवान् बना दिया. अरे...मुझे इंसान ही रहने दो. लेकिन...कुछ कहना या पूंछना है तो झिझको  मत....

आप को कैसे पता......की

ज्योति......कितने सालों से जानता हूँ तुमको..... बताओ.....उसके बाद भी अगर इतनी सी बात ना समझ सकूँ तो फिर.......

आप गुस्सा  तो नहीं करोगे.......

आप से , या आप पर कभी गुस्सा किया है......इसका मतलब की आज....कुछ ना कुछ तो जरूर होना है, सामना आज उनसे होना है. ...... बोलो......

आप.....मुझसे शादी क्यों नहीं करना चाहते.....मेरा सीधा सवाल..... आनंद मेरी तरफ देखते रहे....

मैने आप को बताया की माँ-पिता जी मेरे लिए रिश्ता देख रहे हैं.....तभी भी आप ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी. क्यों...? आप अकेले  क्यों और कब तक रहना चाहते हैं......कब तक तो बाद मे...पहले क्यों का जवाब दीजिये....इतना हक तो मैं रखती हूँ....पूंछने का. और मुझे भैया जी वाला आनंद नहीं चाहिए, बाबूजी वाला आनंद नहीं चाहिएमुझे सर वाला आनंद नहीं चाहिए.... मुझे आनंद वाला आनंद चाहिए.....

हम्म्म्म..............तो आज रानी लक्ष्मीबाई आई हैं.

यही समझ लो.....

देखो... ज्योति, हर रिश्ते की एक मियाद होती है.....एक समय सीमा होती है. वो रिश्ता उसके बाद मर जाता है....सोल्हो आने ना सही लेकिन सच है. जब विवाह होता है.....तो एक निश्चित समय बाद घर मे दो लोग रह जाते  हैं.... जिसको समाज पति-पत्नी का नाम देता है. नाम रह जाता है...इंसान मर जाते हैं. सम्मान खत्म हो जाता है.

पति...एक पति, एक पिता, एक बेटा, एक भाई.....और पत्नी... एक पत्नी, एक माँ, एक बहन और एक बेटी बन कर रह जाती है.....मैं ये नहीं कहता की मे सही हूँ......लेकिन, आजकल की जो ज़िन्दगी है ना...ज्योति... वो अपना टैक्स मांगती है. और उस टैक्स को भरते भरते .... कब लकडियाँ मिल गयीं, या कब कब्र नसीब हो गयी यही नहीं पता चलता. मै तुमको ....ज्योति की तरह ही देखना चाहता हूँ..... तुम्हारा अपना जो एक अस्तित्व है.....उसको तुम मिटाओ....या वो मिटे....मुझे गंवारा नहीं.

इसलिए..... तुमपर मेरा एक अधिकार है, या मुझ पर तुम्हारा एक अधिकार है.... और उसकी जो ख़ूबसूरती है.....वो ज्यादा जरूरी है. तुम को अच्छी तरह से ये ज्ञान है...की अगर तुम पर कभी कोई मुसीबत आये..... तो मै हूँ.....एक दोस्त. अगर कभी मेरी जरुरत हुई... तो मै हूँ.....

अगर हर आदमी और औरत आपकी तरह सोचने लगे तो कोई विवाह ही ना हो......

मुझे इस प्रश्न की उम्मीद थी. तुमने प्रश्न मुझसे किया..... और मैने अपनी सोच बताई. मै ये नहीं कहता सब मेरे तरह सोचते हों..... और संभव भी नहीं है.....तुम्हारे घर मे पांच लोग है..... उनसे इस विषय या किसी भी विषय मे राय लो....... पांच अलग-अलग राय मिलेंगी.

क्या आप किसी को प्रेम करते हैं......? मेरे पूर्व सोचे गए सवालों मे से ये आखरी सवाल.

कोई जवाब नहीं..... आज पहली बार आनंद को मैने अपने सामने इतना  खामोश पाया.

क्या मै इस मौन को अपने प्रश्न की स्वीक्रति समझूँ.....?

ज्योति..... प्रेम....गूंगे का गुड़ है. मुझे ये नहीं पता की प्रेम क्या होता है... तो मै तुम्हारे सवाल का क्या उत्तर दूँ...? अगर कोई .... किसी का बिना वजह इंतज़ार करता है.....ना मिलने पर मन बैचैन होता है......जिस सिम्त भी नज़र उठ जाएँ....उसी का इंतज़ार लगे......पल पल अगर वो हो तो कैसा हो, ये सोचने लगे ..... तुझे बरबाद तो होना था खुमार, नाज़ कर नाज़ की उसने तुझे बर्बाद किया. अगर अपने बरबाद होने पर भी गुरूर होना... प्रेम है.... तो मैने प्रेम किया है.

क़त्ल कर के मुझे कातिल ने बहुत हाँथ मले
जब उसने मेरे तडपने का तरीका देखा.

आनंद खामोश हो गए........

मुझे लगने लगा की शायद मैने गलत समय पर सवाल कर दिया...कितने खुश थे आज.

अचानक ...खामोशी टूटी.....ज्योति.... दिल पर कोई बोझ ना लेना. क्योंकि... तुमको सब कुछ पता है....जब  डूबते को तिनके का सहारा मिला... वो तिनका तुम ही हो......तुमने उस वक़्त मेरा साथ दिया....जब सब कुछ बिखर गया था. अब मै अपने आप को इतना मसरूफ रखना चाहता हूँ...की अतीत की पर्छाइ  भी  अगर गुजरे तो मेरे पास उसको देखने  का वक़्त ना हो.

ओह............ सूरज तो सर चढ़ आया.

दीदी..... काका की आवाज़.

आओ काका.....खाना लाये  हो?

हाँ दीदी..... और बाबूजी कहाँ हैं...?

काका राम-राम....कैसे हो.

ठीक हूँ बेटा..... दीनानाथ तो तुम्हारे  के गुण गा रहा हैं    गाँव भर मे.

हाल चाल पूँछ कर आनंद बाहर चले गए...चुरुट पीने... मेरा अंदाज़ से ज्यादा यकीन.

वो क्या भला..... काका से मेरा सवाल....

अरे दीदी.... आप को नहीं पता....?

उसकी बिटिया .... अव्वल आई है जिले में.

हाँ वो तो पता है.....तो ?

अरे.... अपने बाबूजी ही तो पढ़ाते  थे उसको.....

क्या..................????

मै चलता हूँ.... माँ जी ने कुछ सामान भी मंगवाया है बाज़ार से.

..........मै सवेरे - सवेरे से बैठीं हूँ......इतनी बात कर चुके  आनंद....मिठाई... भी खा ली...लेकिन इस इंसान के मुँह से एक बार भी ना निकला......की उसको मै पढ़ाता  था....... हे भगवान्......क्या इंसान हे ये. कोई गालियाँ दे तो सामने खडे हो के खा लेंगे....लेकिन तारीफ़ करे..... तो इधर-उधर बच निकलने का रास्ता ढूंढते हैं......

आनंद ....... तू मिले ना मिले, पर सलामत रहे, दूर ही से सही, तुझ से निस्बत रहे.

अरे वाह... आज तो दावत है......

आनंद....एक बात बोलूं..मानोगे?

तुम उपर कुर्सी पर बैठो....मै नीचे बैठ कर खाऊँगी.....

वो क्यों भला......आज इतना सम्मान किसलिए...?

मै कुछ स्वार्थी हो गयी थी.....इसलिए सिर्फ आनंद मै ही  चाहती थी....लेकिन
आनंद तो सब का है.... और आनंद से है.
सब के आनंद मे ही मेरा आनंद है... और
मेरे आनंद के आनंद मे ही, मेरा आनंद है.

चल....पगली.

1 comment:

vandana gupta said...

माथे से पसीने की महक, आये ना जिसके
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता....


क़त्ल कर के मुझे कातिल ने बहुत हाँथ मले
जब उसने मेरे तडपने का तरीका देखा.


अमर प्रेम की अमर दास्ताँ को जिस तरीके से आप संजो रहे हैं वो बहुत लुभा भी रहा है और दिल को जला भी रहा है……………

ये प्रेम के कौन से मोड आ गये
जहाँ लम्हे तो गुजर गये
मगर हम बेजुबाँ हो गये
कहानी कहते थे तुम अपनी
और हम बयाँ हो गये