ज्योति बिटिया...... एक कागज़ भिजवाया है, आनंद बाबू ने ....काका का स्वर.
यहीं दे दो काका........
"प्रिय ज्योति...........
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो,
फासले कम करो, दिल मिलाते रहो.......
दर्द कैसा भी हो, आँख नम ना करो,
रात काली सही, कोई गम ना करो,
एक तारा बनो, जगमगाते रहो.....
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो.
बांटना है अगर, बाँट लो हर ख़ुशी....
गम ना जाहिर करो तुम, किसी पे कभी,
दिल की गहराई मे, गम छुपाते रहो...
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो
अश्क अनमोल हैं, खो ना देना कहीं,
इनकी हर बूँद है, मोतियों से हँसीं,
इनको हर आँख से, तुम चुराते रहो,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो........."
शुभाकांक्षी.....आनंद
ये क्या है......क्या कहीं जाने का निर्णय...........नहीं..........ऐसा वो कर नहीं सकते......
माँ मैं अभी आई.....पैरों में चप्पल डालते हुए, मैने बताया......और उनका जवाब सुने बगैर.....वहाँ से हवा हो गयी.....
घर का दरवाज खुला हुआ है......एक राहत तो मिली........आनंद...................मैने इससे पहले इतनी ऊँची आवाज़ से कभी उनको नहीं पुकारा था...रसोई से मालिन माँ निकली.......आ बिटिया. ...... मालिन माँ.....आनंद कहाँ हैं......
पता नहीं........कुछ देर पहले तो यहीं था.......चला गया हो गया...कहीं .....बता के जाना तो उसकी शान की खिलाफ है......क्या बात है बेटी.......तू कुछ परेशान है....सब ठीक तो है ........सब ठीक है माँ........
मैं जानती हूँ वो कहाँ गए होंगे.........घाट पर बैठे होंगे.....वहीं जा कर बैठते हैं....जब किसी निर्णय पर पहुँचना होता है. ....... क्या मै वहाँ जाऊं.....नहीं.....इस वक़्त उनको अकेला रहने देना उचित होगा.
मै पिछले कई दिनों से उनसे बात नहीं कर पाई.....पता नहीं क्या हुआ है.......लेकिन वो भी सब समझते हैं.....और समझते हुए...अगर इस निर्णय पर पहुँच रहे हैं.......तो बात सरल तो नहीं है........
बेटा.... तू घर जा.....शाम गहरी हो रही है...वो आएगा तो मैं बता दूंगी........मलिन माँ ने कहा...वो अपनी जगह ठीक हैं.
मैं चल दी घर की तरफ......सामने से साहब चले आ रहे थे......ना कोई गर्म शाल, ना कोई चादर....सब लोग ठंड में घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं...और इनको देखो.....मगर इस वक़्त टोकना ठीक नहीं होगा.......
अरे....ज्योति जी आप.......?
क्या............? "जी और "आप" का संबोधन........काफी काफी समय से नहीं सुना था.... आनंद के मुँह से, अपने लिए........इसलिए......मैं चौंक गयी. मैं देखती रही उनकी तरफ.......
तुम घर चलो.....मैं थोड़ी देर मैं आउंगा.....शायद उनको महसूस हुआ "जी" और "आप" ....का असर मेरे उपर.
कुछ गर्म पहन लो, एहसान होगा ....जाते जाते मेरी एक हिदायत, आनंद को.
हाँ.......भूल गया था.
मैं इंतज़ार करुँगी......खाना वहीं खा लें ..... अगर कोई ऐतराज ना हो.....?
कुछ अजब से लहजे में बात हो रही है आजकल .... कुछ दूरी... या तो बन रही है.....या बना ली गयी है...दोनों के बीच में......देखना पड़ेगा. ज्योति और आनंद के बारे में.....और उनके स्वस्थ रिश्ते के बारे में सब को पता है....लेकिन फिर भी कुछ तो है की जिस की पर्दादारी है......
७:३० बजे हैं......ज्योति ने कहा है...वो इंतज़ार करेगी......मैं क्यों हिचकिचा रहा हूँ.......ये क्या हो रहा है......ये तो शुभ नहीं.
काका.........
आओ बाबूजी........दीदी..... आनंद बाबू आयें हैं.......
आने दो काका.........अरे वाह.....बड़े साफ़-साफ़ लग रहे हो.....नया कुर्ता लिया है क्या......जेकेट भी नयी है.....
हाँ....अभी शहर गया था....तभी लिया.....सब कुछ.....
चलो...इतना तो किया अपने लिए ....यही शुभ लक्षण है.
तुम भी ज्योति........
और क्या......मैं उँगलियों पर गिन सकती हूँ....जब आपने अपने लिए कुछ किया होगा.
आनंद.....आप इतने अच्छे हो....लेकिन आप मेरी बात को या मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझते.....
ज्योति........मैं नहीं समझता हूँ......ऐसा मत सोचो....बस अपने लिए कुछ करना.....ये स्वभाव ...नियति ने मुझे नहीं दिया......तुम यही समझ लो....और संतोष कर लो. क्यों दिल जलाती हो......
अच्छा..... आनंद एक बात बताओ.....कुछ खिंचाव सा नहीं महसूस हो रहा तुमको पिछले कुछ दिनों से.....हमारे बीच............खिंचाव तो नहीं.....हाँ कुछ बर्फ सी जरुर जमी लगती है......
जानते हो ना....आनंद ..बर्फ कब जमती है....जब ठंडक हो......वो चाहे रिश्तों मे या मौसम मे.क्यों........क्या कोई शक है मुझ पर..............
ऐसा....क्यों समझती हो......मुझे कोई शक नहीं है.......मुझे लगता है.....की हम दोनों एक दूसरे के लिए ज्यादा possessive होने लगे थे.......इसीलिए जब इतने दिनों तक बात-चीत ना हुई.....तो कुछ ठहराव सा महसूस होने लगा.
तुम तो जानते हो .....आनंद....मैं हूँ, या माँ, या काका.....अगर कोई भी बात होती है....अच्छी हो या बुरी, सुख की हो या दुःख की......सब से पहले तुम......हाँ सब से पहले तुम.
शायद..... इसीलिए मैं possessive हो चला था......लेकिन अभी शाम को जब घाट पर बैठा था...तब सोचा की possessive होना गलत नहीं है...लेकिन इतना भी नहीं ...की दूसरे का दम ही घुट जाए....इसलिए थोड़ी दी दूरी....जरुरी है ताकि बीच से हवा का बहाव बना रहे....रिश्तों मे नयापन बना रहे...रिश्तों मे कशिश बनी रहे.....
मैं....आनंद को निहारती रही.....आज काफी समय बाद ....आनंद का शायर जिन्दा हो रहा था.... और मै उस शायर को जीना चाहती थी...कुछ नहीं बोली....सिर्फ उनको सुनती रही.....
हर एक पेड़ से साए की आरज़ू ना करो,
जो धूप में नहीं रहते, वो छाँव क्या देंगे.
तुमको अच्छा नहीं लगा...की मैने तुमसे बिना पूंछे......स्कूल मे तुम्हारे लिए बात करली...?
क्या मैने या किसी ने आप से कुछ कहा......?
नहीं.....ना जाने क्यों मुझे ये लग रहा था......के मुझे तुमसे पूँछना चाहिए था.........मै दीना नाथ के घर क्यों नहीं आया उस दिन..........कारण भी सिर्फ तुम जानती हो....जिस काम से उस दिन मै शहर गया.....वो काम यहाँ से भी हो सकता था...मेरा मकसद सिर्फ इतना था...की तुम स्कूल ज्वाइन करलो ताकि......चाची की चिंता कुछ कम हो जाए.......भगवान् का दिया सब कुछ है तुम्हारे पास....जो हुनर, जो काबलियत हैं तुम्हारे अंदर...वो भी तो उसी की नेमत है.....तुम्हारा अपना भी तो एक व्यक्तिव है ...उसको निखर ने दो.....कब तक चाचा जी रूपी बरगद की छाँव मे बैठी रहोगी....कब तक...आखिर, ....आखिर कब तक. जो करना चाहती हो...करो....तुम पर तो कोई रोक-टोक भी नहीं है.
आनंद.....क्यों इतना सोचते हो......मैं जानती हूँ और मेरा भगवान् जानता है......की आनंद ने आज तक मुझे कभी कोई गलत सलाह नहीं दी.......कभी मेरा बुरा नहीं सोचा.....हाँ अगर कभी मैं लड़खड़ाई.....तो सम्हाला जरुर.....
पता नहीं.....ज्योति......
अरे.....तुम लोग खाना खाओगे.....या रत-जगा करना है..... चाची की आवाज़....
माँ..लगा दो.....
चाची....बता दिया होता...बातों-बातों में इतना टाइम निकल गया.......९:२० हो गया है......कोहरा तो देखो......
चाची.....बहुत तंग करता हूँ ना....
हाँ तंग तो करते हो.....जवाब ज्योति का.
कुछ रिश्ते समय की सीमा से बाहर होते हैं.......समय की शर्तों से परे होते हैं......उन पर वक़्त की T&C नहीं चलती....
और तो और लोगों की समझ से भी परे होते हैं......है ना......बोलो तो.
4 comments:
सही कहा कुछ रिश्ते वक्त भी कैद नही कर पाता
उनका फ़ैलाव बहुत विस्तृत होता है…………वक्त के दायर ेसे भी बाहर्…………और कभी एक पल से भी कम्………अंतस मे ही सिमट जाता है रूहो का मिलन जहाँ वक्त दीवार नही बनता।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
"लोगों की समझ से भी परे होते हैं....."
sach! kuch rishte aise hote hain!!!
nice post!
बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
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