३ दिन हो गए.....ज्योति ने स्कूल ज्वाइन कर लिया.....कितनी जल्दी उसने अपनी जिम्मेदारियों.....को पहचान लिया. ........ अच्छा लगा. ....... प्रिंसिपल साहब भी तारीफ़ कर रहे थे.....लेकिन तीन दिनों से उसकी कोई खबर भी नहीं है.....तीन क्यों.....ज्यादा हो गए होंगे....सब ठीक हो...भगवान् करे. स्कूल मे इतना वक़्त नहीं मिलता की बातें कर सकें...... और स्कूल के बाद इतना वक़्त नहीं मिलता....की बातें हो. ......अच्छा.....बस सब शुभ हो.
पिछले कुछ रोज़ से एक अजीब सा ख्याल दिमाग में घूम रहा है.....क्या, मैं बताऊँ.....अच्छा चलो बताता हूँ......एक दिन ख्याल आया की बस इस गाँव से चलो.....यहाँ तेरा काम हो गया.......जिस काम के लिए तुझे यहाँ भेजा गया....वो काम संपन्न हो गया. लेकिन कौन सा काम......जब मेरे दिल ने ये सवाल पूंछा.......तो जवाब.....अजीब सा था......साधु और पानी कहीं भी रुकने नहीं चाहिए......साधु अगर रुका..... तो मोह में पड़ सकता है......और पानी अगर रुका तो दुर्गन्ध देता है......ये क्या जवाब हुआ.....? बोलो तो...
मैं कोई साधू नहीं हूँ. इतना तो में जानता हूँ......लेकिन यहाँ से निकलूं कैसे......प्रिंसिपल साहब को क्या बोलूंगा, चाची को क्या बताऊंगा , ज्योति से क्या बोलूंगा.....पता नहीं......स्कूल स्थापित हो गया है, ज्योति के स्कूल ज्वाइन कर लेने से चाची के माथे की लकीरों मे कुछ कमी दिख रही है........और ज्योति को भी अपने हुनर का एहसास हो गया है........सब कुछ हो गया है..... तो क्या यही मेरा प्रयोजन था यहाँ आने का........रात के करीब १.३० बजे हैं....... लगता है आँखों से नींद की खटपट हो गयी है.......
लोग कहते हैं.....मैं सोचने वाला इंसान नहीं हूँ.....शायद वो ठीक हों......क्या सोचूँ......सोच कर क्या कर लिया और क्या कर लूँगा.....जो होना है, वही होगा....... अब सब अपने - अपने काम से जग गए हैं... अब कहीं और चल...फिर वही ख्याल. ........ अरे........ ये तो सवेरे का उजाला है...क्या भोर हो गयी .....? हाँ , लगता तो है.......तो क्या रात आँखों में कट गयी......आज छुट्टी है......दिन भर क्या काम करना है.......
आनंद बेटा.....मालिन माँ , की मुझको जगाने वाली पुकार.....
मैं जग रहा हूँ....अम्मा....आ जाओ.
ये क्या.......चुरुट, कागज़, कलम और चाय के गिलास...... सोया नहीं है क्या...रात भर.
नहीं...अम्मा..मै तो सोया था..... नीदं नहीं सोई....वो जगती रही .....
मेरा जवाब सुनकर ...मालिन माँ....मेरी तरफ देखतीं रहीं.....और बोलीं....पता नहीं तू क्या बोले है....
आनंद बेटा.....जाकर ज्योति बिटिया को देखा आना....कल रात उसकी तबियत खराब थी....
किसकी ज्योति की......क्या हुआ ........ अम्मा.
पता नहीं......मुझे तो अभी राम सिंह मिला था....वही बता रहा था.
क्या इसीलिए......कल इतनी खामोश थी, ज्योति स्कूल में....?
मैं आता हूँ...अम्मा. ........ अरे कुछ खा तो ले...... लौट कर खा लूँगा. आप काम कर के चली जाना....अगर मुझे देर हो.....
मै ज्योति के घर पहुंचा.......चाची.......
आजा आनंद बेटा...... क्या हुआ......सुना लक्ष्मी बाई की तबियत खराब है....?
हाँ......जा....अपने कमरे में है वो......
सुना...सरकार की तबियत नासाज़ है.....मेरा हल्का-फुल्का सवाल.
उनके देखे से जो आ जाती है, मुँह पर रोनक,
लोग समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है.........ज्योति का शायराना जवाब.
आज तो सवेरे-सवेरे.........मैं यहाँ पर इतना साफ़ कर दूँ....... गमगीन माहौल को हल्का करने में थोड़ा बहुत मजाक मैं कर लेता हूँ.......
क्या हुआ....
वक़्त मिल गया तुमको.....मिजाज़पुर्सी का?
क्या बात है...तेवर इतने गर्म क्यों है...?
तीन दिनों से बात नहीं की है......स्कूल में तो आनंद इधर, आनंद उधर, आनंद यहाँ, आनंद वहाँ......बस आनंद को ज्योति से बात करने का वक़्त नहीं है.......
तुम्हारी तबियत खराब है...या गुस्से से तबियत खराब कर ली है.....?
मैं क्या करूँ आप का.....बोलो तो.
मेरा कुछ ना करो.....उठो.....नाश्ता कर लो....मुझे बहुत भूख लगी है........
आनंद.....तुम मुझको ना बहलाओ........तुम को कब से भूख लगने लगी.......माँ ने अभी तक तुमको तुम्हारी संजीवनी बूटी ...नहीं दी....?
वो क्या...भला..?
चाय और क्या......तुम्हारे लिए तो वो संजीवनी बूटी ही है.......बोलो. मैं तीन दिन से तुम्हारे लिए भी खाना ले कर स्कूल आ रही थी.....लेकिन.....वहाँ तो तुम........हवा हो.....जाओ बात मत करो......
मैं बैठ कर ज्योति के चेहरे पर आते-जाते भावों और रंगों को देख रहा था...... उसके गुस्से में..गुस्सा कम...प्यार ज्यादा था....मैं क्या बोलता था.
सोचा था....की चलो वैसे तो तुम्हारे खाने का कोई ठीक नहीं है.......मै ले जाउंगी तो कम से कम एक टाइम तो पूरा खाना खालोगे तुम......मेरे स्कूल ज्वाइन करने के और कारणों में से , ये भी एक कारण था............ज्योति को तो जैसे हर चीज़ पता है स्कूल की.....किसी से कुछ पूंछो तो ....आनंद साहब से पूंछ लीजिये......और आनंद साहब.......बदल गए हो तुम......लेकिन तुम क्या समझोगे.
मैने मन में सोचा...तुम ठीक समझ रही हो ज्योति....मैं क्या समझूंगा.......लेकिन मैं आज कुछ सोचने की मूड में नहीं था ....... आज ज्योति को बहने दो......वो बोलती गयी.......
चाची ने पोहा बनाया है.....नाश्ते में.....मैने फिर उसको छेड़ा.....चलो उठो....नाश्ता कर लो.....तुम कमअक्ल हो...वैसे....
अच्छा....... अरे.... नाश्ता कर लो....ताकत आजायेगी तो फिर लड़ लेना......
रामसिंह.........ये तो मालिन माँ की आवाज़ है.......
आओ.....मालिन....नाश्ता कर लो.......चाची ने कहा.....मालिन तो जैसे इंतज़ार में थी...वहीं बैठ गयीं.....लो बेटा ये चाभी रख लो......चाची ..... आप समझा दो ..... आनंद बाबू को.....
क्या समझा दूँ.......मालिन......
अरे.....रात भर सोया नहीं है.......बैठा रहा....कागज पर कागज लिखता रहा.....पता नहीं क्या लिखता रहता है. सवेरे आकर जैसे ही मैने बताया की बिटिया की तबियत ठीक नहीं है.....जैसे बैठा था...वैसे ही चला आया......कैसा आदमी है.... ये.....चाची जरा.....थोड़ा पोहा डाल दे ...इसमे......मैं तो ना खाऊं... तो मर जाऊं.
ज्योति के चेहरे रंग बदल गए......गुस्सा काफूर .... हो गया .....मालिन माँ की बाते सुनकर..... वो मुझे देखती रही......मुझे माफ़ कर दो.....आनंद.... बहुत कुछ उलटा-सीधा बोल दिया......
अच्छा चाची ...जाती हूँ.....आनंद बेटा...कपड़े धो कर फैला दिए हैं .......दिन मे आकर समेट दूंगी...... जी......वो चल दीं.
ज्योति.....मै जरा तीरथ राम के घर जाकर दवाई ले आती हूँ......११ बजे बुलाया था उसने......अच्छा माँ.
मैं चुप......ज्योति भी चुप......अब कौन तोड़े सन्नाटे को...?
रात भर सोये क्यों नहीं.....
कुछ बैचेनी थी.....
क्यों....? आनंद चुप. ....... अगर उनको किसी बात का जवाब नहीं देना है तो भगवान् नीचे आ जाएँ.....लेकिन मुँह नहीं खुलवा सकते.
क्या लिख रहे थे.....कोई लेख, या कहानी.....
पता नहीं......कहानी ही लग रही है.
कहाँ है...मुझको पढ़ना है......
वो.....प्रिंसिपल साहब कह रहे थे की बच्चों को लेकर किसी प्रतियोगिता मे जाना है....तुम्हारा नाम दे दें.
स्कूल ज्वाइन करने की लिए , मुझसे पूंछा था....तब तो सारा काम कर के शहर चले गए थे....अब इस वक़्त मेरी अनुमति की क्या जरूरत है......आनंद मेरे लिए कुछ गलत नहीं सोच सकते. .............लेकिन....मै स्कूल को स्कूल मैं छोड़ कर आती हूँ.....
मैं समझ गया की आज तो मेरा घिराव होगा......अब यहाँ से बच निकलने का रास्ता देखना पड़ेगा......घबराओ मत......कोई जबरदस्ती नहीं है....अगर तुम जवाब...नहीं देना चाहोगे.....लेकिन.....झूठ मत बोलना.....
तुम जानती हो, ज्योति , मैं झूठ नहीं बोलता....
हाँ...लेकिन सच भी नहीं बताते......
मैं एक बात बोलूं.....हाँ बोलो.....पिछले २-३ दिन से मैं देख रही हूँ......की तुम किसी गहरी सोच में हो......अगर उचित समझो और मुझे भरोसे के लायक....समझते तो बाँट सकते हो....
ऐसा क्यों कह रही हो........तुमसे तो मै हर बात करता हूँ....
तो रात भर सोये क्यों नहीं.......क्या बात थी....जिसने आनंद की नींद उड़ा दी.....? सब ठीक तो है ना.....? सच बताना.....
सब ठीक है....पगली. ...फिर झूठ......सब ठीक नहीं है ...पगली....ये बोलना था......
अरे बाप रे.....आज तो ........
हाँ आज तो कयामत है.......
में कुर्सी से टेक लगा कर ...आँख बंद कर बैठा रहा.....सोचता रहा की क्या बोलूं.......की मै इस गाँव से जाने का सोच रहा हूँ......मै आज सोचने के मूड में नहीं हूँ......लोग कहते हैं.....मैं सोचने वाला इंसान नहीं हूँ.....
मैं क्या करूँ, आपका.......बोलो तो...... कहीं नहीं जाना है........यहीं बैठे रहो..चुपचाप....मेरे सामने....मेरे पास.....कहीं नहीं जाना है......
1 comment:
नहीं...अम्मा..मै तो सोया था..... नीदं नहीं सोई....वो जगती रही .....
आह!कितना गहरा जवाब्……………मौन!!!!!!!!!
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