Saturday, January 1, 2011

जादू....

अजीब से कशमकश से दो-चार होता हूँ मैं.....जब विचारों की आंधी दिल-ओ-दिमाग पर काबिज होती है...तब शब्द मुट्ठी से रेत की तरह फिसलते हैं.....समझ में नहीं आता की कैसे भावनओं को कागज पर उकेरू.....तुम गूंगे का गुड हो......समझ रही हो न सखी......नहीं पता था की तुम इतनी अंदर तक समा चुकी हो......जल बिन मछली कैसे तडपती होगी...इसका कुछ तो अंदाज लग गया है मुझे.....हाँ राधा हाँ......

इतनी दिनों आने आप से अलग रहा...तुम ही तुम ख्यालों में छाई रहीं.....सिर्फ तुम.......तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता....बस इसी सीसे पर कभी उपर, कभी नीचे झूलता रहा....कई बार ऐसा भी धोखा हुआ है, चले आ रहे हैं वो नज़रे झुकाए.....सच प्यार जादू कर देता है.....राधा......

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