नहीं है तुमको इजाज़त दहलीज पार करने की,
मत जिद करो, देखो मान भी जाओ,
जब तुम दहलीज पार करते हो,
मेरे उपर रुसवाई का एक पर्दा पड़ जाता है....
तुम अपने घर में ही रहो,
क्यों घर से बाहर जाना चाहते हो,
बाहर की दुनिया तुम्हारी अहमियत नहीं समझती,
देखो खुल कर मैं नहीं समझा सकता,
क्योंकि, तुम एक आंसू हो और मैं एक पुरुष.....
तुम जानते हो ना तुम्हारी दहलीज,
मोती बन कर बसो, वहीं रहो.
पुरुष की आँख में और आंसू.....
जरुर घडियाली होंगे....दुनिया है कुछ भी कह सकती है...
मत जिद करो, देखो मान भी जाओ,
जब तुम दहलीज पार करते हो,
मेरे उपर रुसवाई का एक पर्दा पड़ जाता है....
तुम अपने घर में ही रहो,
क्यों घर से बाहर जाना चाहते हो,
बाहर की दुनिया तुम्हारी अहमियत नहीं समझती,
देखो खुल कर मैं नहीं समझा सकता,
क्योंकि, तुम एक आंसू हो और मैं एक पुरुष.....
तुम जानते हो ना तुम्हारी दहलीज,
मोती बन कर बसो, वहीं रहो.
पुरुष की आँख में और आंसू.....
जरुर घडियाली होंगे....दुनिया है कुछ भी कह सकती है...
2 comments:
क्योंकि, तुम एक आंसू हो और मैं एक पुरुष.....
बहने दीजिये ना……………क्यों रोक रहे हैं …………दुनिया का क्या है कैसे भी नही जीने देगी……………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
'duniya hai kuchh bhi kah sakti hai '
bhavporn ...
sundar.........rachna .
Post a Comment