Wednesday, January 5, 2011

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं....

ज्योति.........ज़िन्दगी से बड़ी किताब और ज़िन्दगी से बड़ा शिक्षक नहीं मिलेगा....ज़िन्दगी हर मोड़ पर हम से ये कहती है....कि मुझे मोड़ने कि कोशिश मत करो....मै जैसी हूँ, मुझे वैसे ही स्वीकार करो. मुझे अपने रंग में ढालने के चक्कर में, कई लोग जाँ से चले गए....लोगों कि समझ मे सच्चाई तो आ गयी कि ज़िन्दगी कोई मंजिल नहीं , बल्कि रास्ता है.....जो अनवरत है....रास्ते नहीं बदलते...रास्ते पर चलने वाले बदलते रहते हैं....हाँ ऐसे लोग जरुर हुए हैं...जिन्होने अपने रास्ते खुद बनाये हों.....तुम उनमे से एक हो.....

आनंद...तुम मेरी बेवजह तारीफ़ मत किया करो.

बेवजह.....बेवजह तो मै कोई काम नहीं करता. क्या ये जरुरी है...कि हर चीज़ कि वजह का हम को ज्ञान हो...? नहीं ना....

तो मैं क्या करूँ.....जो मेरे साथ हुआ..क्या उसके पीछे  भी कोई वजह होगी.....?

बिलकुल.....भगवान ने तुमको ये सिखाने के लिए.....कि किसी पर भी आँख बंद कर विश्वास मत करो.....तुम को ये पाठ पढ़ाया है....अब ज्यादा कुछ कहूंगा तो तुम बुरा मान जाओगी...

आप कि कौन सी बात का बुरा माना है मैंने .....बोलो...बोलो तो.

हमेशा थोड़ी सी दूरी बनाये  रखो..रिश्तों मे भी..ताकि हवा का संचार हो सके...जहाँ हवा का संचार नहीं होता...वहाँ दम घुटने लगता है...वो चाहे कमरा हो या रिश्ते...तुम तो जानती ही जहाँ   गुड़  होगा ...चींटे भी वहीं आते हैं.....समझीं.....

शायद ठीक कह रहे हो......आनंद..तुम.

रिश्तों में दूरी का मतलब मनमुटाव नहीं....एक स्वस्थ दूरी. और जहाँ तक मैं तुमको जानता हूँ, समझता हूँ.... सच कहूँ...तो उतना तुम अपने आप को नहीं जानती हो. मुझे बड़ी ख़ुशी और अभिमान भी है अपने उपर.....कि तुमने इतनी बड़ी बात मुझे बताने के काबिल समझा....इतना विश्वास है तुमको मेरे उपर. मैं वाकई शुक्रगुजार हूँ...अल्लाह-ताला का.

तो अब मैं क्या करूँ ...आनंद? वो शख्स मुझे अकसर दिखाई पड़ता है....और जख्म फिर से हरे होने लगते हैं.....जख्मों मे टीस फिर से उठने लगती है.....बोलो मैं क्या करूँ...?

जो मैं कहूंगा..मानोगी..?

ऐसा क्यों कह रहे हो...?

क्योंकि मैं तुमको जानता हूँ..इसलिए ऐसा पूंछ रहा हूँ...

बोलो....

शरीर के जिस हिस्से में कैंसर हो जाता है...डॉक्टर उस हिस्से को काट कर अलग कर देता है....तुमको जो चोट लगी है...वो दिल पर लगी है....और दिल निकाल कर तुम अलग नहीं कर सकती हो....अपने मन के उस कोने में जहाँ वो इंसान घर कर के बैठा है.....उस को वहाँ से निकाल फेंको.....इस प्रक्रिया में दर्द भी होगा, क्योंकि वो इंसान कभी तुम्हारे घर का हिस्सा भी रहा है...लेकिन...वो भी हमारा ही अंग होता है...जिसको डॉक्टर काट कर निकाल देते हैं....जब धीरे - धीरे तुम बीमार अंग को काट फ़ेंक दोगी...तो वो तुम्हारे , खुद के लिए अजनबी हो जाएगा.....फिर वो चाहे सामने आ जाए.....तुम्हारे अंदर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं होगी...और जब प्रतिक्रिया ही नहीं....तो तुम शांत....और हाँ स्वस्थ भी....अच्छा कुछ दिन इस को कर के देखो....अगर बेहतर लगे तो जारी रखना....नहीं तो सितारों से आगे जहाँ और भी हैं.... 

हूँ........

क्या हूँ.....लंबा इलाज है..लेकिन अचूक इलाज है.....

तुम इतना सोचते हो ....आनंद?

ना जी ना.....मैं क्यों सोचने लगा......

मजाक मत करो....आनंद.

तो क्या करूँ.....बोलो तो.

तुमको सहानभूति की दो-चार वाक्य बोलूं....हाय राम....ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ......बल्कि मैं तो ये कहता हूँ......जो हुआ, सो हुआ, जब हुआ, तब हुआ.....छोड़ो ये ना सोचो....बस अपने हाव-भाव, अपनी body  language  से चोर को ये एहसास दिला दो...की...मुझे पता है की तूने चोरी की है...लेकिन जा....मैं चुप हूँ....क्योंकि तेरी यही सजा है.....ईसा मसीह  बनने की कोई जरूरत नहीं है, ना गाँधी....क्योंकि....सूअर के आगे मोतिया बिखेरना .....समझदारी नहीं, बेवकूफी की निशानी है.....ज्यादा हो गया क्या....?

आनंद तुम भी....ना.

चलो...अब ज्यादा ज्ञान देना ठीक नहीं होगा....

चाची.....भूख लगी है......दो रोटी मिलेगीं क्या....

हाय राम....कैसे माँग रहा आनंद बेटा.

अरे चाची माँगू नहीं तो क्या करूँ.....ये रानी लक्ष्मी बाई....तो हिल नहीं रही हैं....

माँ देखो लो......इनको.

माँ क्या देख ले ...वो तो कई सालों से मुझे देख रहीं है.....नूरजहाँ.

आनंद, आनंद....आनंद.

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