Thursday, December 30, 2010

कहाँ हो तुम.....

दिल का तड़पना क्या होता है......अब समझ में आ रहा है. जलती हुई शमां पे तो कोई भी परवाना कुर्बान हो जाता है...लेकिन जो बुझी हुई शमां पे कुर्बान हो जाए..वो बिरला ही होगा.......तुम सखी हो....तुम प्रियतमा हो.....तुम राधा हो.

दिल तो हर जीती हुई चीज़ का धडकता है.....लेकिन वो दिल जो किसी के लिए धडके.......उस धडकन का मज़ा अलग, नशा अलग....ना हो ख़ूने जिगर तो अश्क पीने का मज़ा क्या है.....तुम एक नशा हो.....

क्या एक पल हम अपनी ज़िन्दगी नहीं जी सकते......कहाँ हो तुम.....एक बार मेरे सीने पर अपना सर रखो और फिर महसूस करो...कि मोमबत्ती.....गर्मी पा कर कैसे पिघलती है.....

Wednesday, December 29, 2010

देखो सच बताना.....

देखो सच बताना.....

तुम जब मुझको पढ़ती हो......तो तुमको लगता नहीं है.....कि ये कुछ कहना चाहता है...लेकिन कह नहीं पा रहा  है.... ...........देखो सच बताना.....


तुम अपने आप को पाती नहीं हो......मेरे हर शब्द में........देखो सच बताना.....


तुम जब मुझको पढ़ती हो.....तुमको लगता नहीं है....कि तुम भी प्यार करने लगी हो......देखो सच बताना.....


तुमको इंतज़ार नहीं रहता है.....मेरा.......देखो सच बताना.....


तुम जानती हो कि मैं क्या वरदान चाहता हूँ.....लेकिन तुम फिर भी जानना चाहती हो.....देखो सच बताना.....


तुम भी मेरे प्रेम कि लहर मे बह जाना चाहती हो........लेकिन मकान खाली नहीं है....कह के किनारा कर लेती हो.....देखो सच बताना.....


तुम जानती हो कि हमारे दिल एक दूसरे कि बात कहते हैं......लेकिन तुम इकरार नहीं करना चाहती हो...देखो सच बताना.....


तुम प्रेम कि देवी हो...और मैं प्रेम का भिक्षुक...तुम वरदान में प्रेम दे सकती हो...... लेकिन ........देखो सच बताना.....

अपना ध्यान रखना.....

ख़त आया हुई दिल को तसल्ली लेकिन,
दिल बहुत तड़पा, जब याद तुम्हारी आई.....

तुम को पता होगा.....की मुझे  तुम्हारी कितनी चिंता रहती है......क्योंकि मुझे इस बात का एहसास है.....की तुम वो सागर हो....जिसके चेहरे पर तो हंसी और मुस्कराहट की लहरें हिलोरें मारती हैं.....लेकिन अंदर ....गहराई में  जो ज्वालमुखी फटतें हैं...वो कोई नहीं देख पाता......मुझे चिंता है......

तुम एक सीधी और सरल किताब हो....जैसे कक्षा १ या २ की हिंदी की किताब .... प्रे, म, त, ल, क..... इत्यादि  .....वो तो हमरे उपर है...की हम उन अक्षरों को जोड़ कर प्रेम बना लें.....या तलाक.....तुम्हारी शहद से भीगी हुई , ख़स की तरह  महकती हुई, पायल की तरह खनकती हुई .....आवाज़ ........... मेरी साँसों को जीवंत करती हुई.....तुम्हारी सांसे, दिल में , हसरतों के हुजूम के बीच रास्ता बनाती हुईं  ... तुम्हारी धडकने....सब कुछ ....ज़िंदा है......मेरे अंदर.....मानो तो मेरी बात......मानती हो न.....बोलो तो.

एक जमाना गुजर गया......अपना ध्यान रखना.....

Tuesday, December 28, 2010

इकरार करो...............

कहाँ हो......कुछ तो बोलो....क्यों इस तरह तड़पा रही हो......तुमको तो पता ही है.....कि मैं कहाँ हूँ......तुम तो जानती हो.....फिर क्यों ऐसा.....कुछ तो बोलो...कुछ तो लिखो......मैं तुमको तुम्हारे शब्दों में ही ढूंढ लेता हूँ.......जैसे डॉक्टर आला लगा कर सीने कि धड्कने पढ़ लेता है......महसूस तो करो......

ये अच्छा हुआ....के भगवान् ने दिल कि धड्कों को आवाज़  नहीं दी.......हाँ ...मुझे तुमसे मुहब्बत है.......क्योंकि मैं पाता हूँ अपने आप को.....तुममे. ....तुम बसती हो.....मुझमे.....इस आग मे अपने जिस्मों को जलाकर आओ एक हो जाएँ......मुझमे प्यास है......तो तुम मदिरा हो.......

मेरे होंठो पे अपनी प्यास रख दो, और फिर सोचो.....
क्या इसके बाद भी दुनिया में, कुछ पाना जरुरी है.....?

इज़हार करो.....या इकरार करो......

Thursday, December 23, 2010

ध्यान रखना.......

अब कुछ दिन अगर मैं ना दिखूं तो कुम्हला मत जाना.....फूल खिले हुए और हवाओं मे डोलते हुए ही अच्छे लगते हैं.....क्या अभी मझे ये कहने कि जरूरत है कि फूल कौन है......तुम्हारा शरमाना मुझे अच्छा लगता है.....क्यों...अच्छा लगता है........क्योंकि ये वो सब कहता है....जो तुम कह नहीं पाती हो....लिख नहीं पाती हो......

नया साल...तुम्हारे लिए मंगलमय हो......ध्यान रखना.......

Wednesday, December 22, 2010

बोलो ये सच है....ना.

बाबा में दुनिया जीत के भी दिखा दूंगा....
अपनी नज़रों से दूर तो मुझको जाने दे....

तुम सामने हो...या मैं एक ख्वाब देख रहा हूँ......नहीं ये तो शीशा है.......ओह...तो ये एक भरम  है....लेकिन तुम तो भरम नहीं हो....तुम हकीकत  हो.....मैं तुमको छू सकता हूँ ......महसूस  कर सकता हूँ....तुम्हारी साँसों कि आपा-धापी से धडकता हुआ तुम्हारा दिल.....मैं महसूस कर सकता हूँ......सब कुछ कह देने के लिए कलम उठाती तुम्हारी उंगलियाँ.....और चंद अलफ़ाज़ लिख कर शर्म से झुकती हुई पलकें...क्या नहीं कहतीं......और तुम समझती हो कि मैं कुछ समझता नहीं.....मुहब्बत कब कलम कि गुलाम हुई है...बोलो तो.

तुम तो कलम कि रानी हो....जब तुम कलम हाँथ में उठाती हो...तो विचारों के बीच आपा-धापी मच जाती कि  कहीं में व्यक्त होने से ना रह जाऊं......मैं कोई तारीफ़ कर ने के मूड में नहीं हूँ....हकीकत बयाँ करने का मेरा अपना ही ढंग है......कई लोग बौने नजर आते हैं....जब तुम कलम उठाती हो......कितनी ख़ूबसूरती से , कितनी नफासत से, कितनी नजाकत से.....और हाँ......कितनी सहजता से...तुम अपनी बात कह  देती हो...मैं घंटो...सोचता रहता हूँ...कि इसमे मैं कहाँ हूँ......या कहाँ कहाँ हूँ......

कितनी आसन हो तुम....जैसे गीता, जैसे कुरआन....जिसमे सिवाय प्रेम के कुछ और है ही नहीं.....क्यों लोगों तुमको जटिल समझते हैं......तुम विचारों कि वो बहती हुई नदी हो.....जिसमे डूबकर मैं भी सोचता हूँ कुछ नगीने समेट लूँ.....लेकिन जितना तुम मे डूबता हूँ.....तुम उतनी ही और गहरी होती जाती हो......कहीं ऐसा ही ना हो मैं तुम में डूब कर ही रह जाऊं...और तुमसे ही मेरा अस्तित्व नज़र आये....ये प्यार कि सीमा या पराकाष्ठा हो सकती है....लेकिन सच मानो...ये संभव है......

लो मैं तुमको क्या समझाऊं......तुम तो खुद ...प्यार हो.....अब शरमा कर नजर ना झुकाओ......

बोलो ये सच है....ना. .....मैं तुम्हारे जवाब के इंतज़ार मैं हूँ.

फूलो रे नीम फूलो....

मुहब्बत .............हमने माना ज़िन्दगी बर्बाद करती है
ये क्या कम है कि मर जाने पर दुनिया याद करती है.........
किसी के इश्क में दुनिया लूटा  कर हम भी देखेंगे......

कौन कहता है मुहब्बत ज़िन्दगी बर्बाद करती है..........मुझे ख्वाहिश नहीं दुनिया को जीत लेने कि.......बस एक तुम्हारे दिल में बस जाऊं.....साथ हो जाऊं.....तो दुनिया.....आबाद हो जाए.......ये किस एहसास को ज़िंदा कर दिया तुमने......और उपर से ये फासले.....और ये मजबूरियाँ......मुहब्बत कि आग को और परवान चढ़ा रहीं हैं......त्तुम भी तो इसी दरिया से गुजर रही हो........आँखों के पानी से ये आग कब बुझी है.......ये तो और बढ़ी है.......यकीन ना मानो.....तो अपने दिल में झाँक कर देख लो.....हाँथ कंगन को आरसी क्या......लिखना....फिर मिटा देना....फिर लिखना..फिर मिटा देना.....ये हाल तुम्हारा ही नहीं.......मेरा भी है.....

उल्फत का मज़ा तब है, जब दोनों हों बेकरार....
दोनों तरफ हो आग, बराबर लगी हुई......

कब धीरे-धीरे तुम मेरे अंदर उतर गयीं....पता ही नहीं चला....ये कैसी ख़ुमारी पैदा कर दी तुमने.....नशा है मुझको....तुम्हारा नशा....आंखें तरस गयीं....तुमको देखने के लिए......मैं जानता हूँ.....ये एक स्वप्न जैसा है......लेकिन उम्मीद का दिया तो ज़िन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है..........कितना इत्मीनान देता है......सिर्फ एक ये एहसास ...कि कहीं एक दिल है जो मेरे लिए भी धड़क रहा है......झूठ मानो तो पूंछ लो दिल से.......मैं कहूँगा तो रूठ जाओगे......ये भी किस्मत कि मजबूरी देखो.....कि..

जब नाम तेरा प्यार से लिखतीं है उंगलियाँ....
मेरी तरफ जमाने कि उठती हैं उंगलियाँ.

सच मानो एक बार सिर्फ एक बार.......कागज पर मेरा नाम लिखो.....और फिर देखो उस कागज को फाड़ने मैं...कितनी तकलीफ होती है.........मैं इस दौर से गुजर रहा हूँ...इसलिए तुम से बयाँ कर रहा हूँ......मैने तुमसे कहा था....कि तुम एक सागर हो...और मैं एक छोटी सी नदी....तुम मुझे अपने में ले क्यों नहीं लेतीं.....प्यार में दो कि गुंजाइश कहाँ होती.......

तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम,
जिधर देखें, जहाँ जाएँ.....

है ना पागलपन.....लेकिन वो प्यार ही क्या.....जिसमे "मैं" और "तुम" दोनों रह जाएँ....... वो नशा ही क्या जो सर चढ़ के ना बोले.....सही है ना....बोलो तो.

अब तो कुछ बोलो..........जो बात इस सीने में दफन हो गयी......वो दफन ही रहती है......बहने दो अपने आप  को, एक अलह्र्ट नदी कि तरह, एक पहाड़ी झरने कि तरह......फूटने दो इसमे से कविता के स्वर.....दर्द के नहीं...प्रेम के.....देखों...पूरब में लाली छाने लगी है.....आज तुम रोकेगी नहीं अपने आप को......बहो....निर्झर बहो.....महसूस करो.....मुहब्बत कि इस दुनिया में तुम्हारा इंतज़ार है........

किसी नज़र को तेरा इंतजार आज भी है,
कहाँ हो तुम, कि ये दिल बेकरार आज भी है.......

रोको मत अपने आप को...पैरों में..लेकिन, किन्तु कि बेड़ियाँ मत डालो......

फूलो रे नीम फूलो.... 

    

Tuesday, December 21, 2010

मौन.........................

"मौन"...............................कब तक मौन कि भाषा समझूँ......कभी-कभी तो मन करता है...कि मेरे कान में चुपके से आ के वो सब कह  दो....जो दिल में ग़ुबार कि शक्ल में उठता है......आँखों से आंसुओ के रूप में बहता है.....दिल में धडकन कि तरह गूंजता है......कागज पर कविता के रूप में उतरता है....तुम्हारे ही नहीं मेरे भी.......मौन तो वहाँ समझा जा सकता है......जहाँ हम-तुम आमने - सामने हों...जहाँ पर हम चेहरे पर आते जाते हुए रंगों से दिल में उठते हुए.....अरमानों का अंदाज लगा सकते हों......लेकिन जब दूरी दिल कि नहीं.....किलोमीटर में हों....तो मन तड़पता है......कि अब बोल दो....या सुन लो.....एक बार मिलन हो...लेकिन ऐसा...हो कि तुम - तुम ना रहो, मैं- मैं ना रहूँ.....

मेरे पास, मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ,
तुझे धड्कनों में बसा लूँ में, कि बिछुड़ने का कभी डर ना हो....

कहाँ हो..........सुन रहे हो ना मुझे....................बोलो.................बोलो तो......

कब तक महसूस करते रहेंगे......मैं नदी हूँ...तुम सागर हो.....तो मुझको  अपने में समा क्यों नहीं लेते....

तुम भी चुप, मैं भी चुप, रात भी चुप, चाँद भी चुप.
सभी कुछ गुम हुआ  बस एक ही पैमाने में.......

आज चाँद को देखा.....तुम याद आये......बहुत खूबसूरत , मगर तनहा..... तुम चांदनी बनकर मुझपर छा क्यों नहीं जाती......एक बार....सिर्फ एक बार....

Sunday, December 19, 2010

मैं क्यों ना जलूं....बोलो तो.

माँ........देख एक जादूगरनी आई है...........वो हाँथ की सफाई  का जादू नहीं दिखाती है.......वो शब्दों का जादू बिखेरती  है...और शब्दों से अपना बना लेने की अद्भुत क्षमता है उसके  अंदर........अरे माँ...तू तो है ही नहीं....

उसके शब्द महकते  हैं, वो अपने हर शब्द में झलकती  है....झिलमिलाती है.....जैसे सुबह की ओस की बूँद, सूरज की पहली किरण.....का स्पर्श पाते ही....झिलमिलाती है....मैं उस जादूगरनी को जानता हूँ.....वो.....ना , ना ....नाम नहीं बताउँगा.....क्योंकि...वो छुई -मुई जैसी नाजुक....लेकिन जब वो मुरझाती है......तब कोई नहीं जान पाता....क्योंकि उस का दिल मुरझा जाता है........और फिर आंखे  तो दिल का राज़ खोल ही देती हैं......पढने वाला होना चाहिए....बोलो  ....मैं ठीक कह रहा हूँ...ना.

कुछ लम्हे....मुझे भी अता करो....मुझे  जलन होती है....उन सभी से जिनके करीब तुम हो.....

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को खबर ना हो....
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो......

देखा तुमने..... तुम अद्भुत हो......तुम राधा भी हो और मीरा भी.........एक दर्श दीवानी....एक प्रेम दीवानी....

मैं क्यों ना जलूं....बोलो तो.

अब बारी तुम्हारी......

तुम्हारे शब्द जादू करते हैं.....तुमको पता है.....नहीं...तुमको पता नहीं होगा....आँख कब अपने आप को देख पाती है.
अगरबत्ती तो एक कोने में जलती है.....घर पूरा महकता है.....मुहब्बत वो खुशबू है....वो एहसास है....जो अनदेखे, अनजानों को महबूब बना देती है.....वो ताकत है ये ....प्यार....अब तो मान जाओ.

तुम्हारे एक-एक शब्द में मैं अपने आप को पाता हूँ....और मेरे एक-एक शब्द में तुम अपने आप को महसूस कर सकती हो.....क्योंकि  मैं कल्पना के पंख लगा कर सपनों कि दुनिया मे नहीं जीता.....सिर्फ जो महसूस करता हूँ...लिख देता हूँ. मुझे  नहीं पता साहित्य  क्या होता है....मैं अपने आप को तुमसे जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ.....कहीं ना कहीं.......या जुड़ता हुआ....कितना अच्छा हो...कि ना तुम मुझे देखो...और ना मैं तुमको....पर फिर  भी एक इंतज़ार बन जाए......एक बेकरारी पैदा हो जाए.....अगर कोई सन्देश ना आये, तो गुस्सा भी आये....जबकि...अनदेखे  हैं हम....वो हो सकता है..सिर्फ प्रेम हो...प्रेम के अलावा कुछ  भी नहीं....जिस्म और देह के बंधन से परे.....क्या यही प्यार है.....बोलो तो....बोलो ना.

जहाँ पर ओपचारिकता ना हो......"जी" कहने की, ना धन्यवाद  कहने की...एक बार मेरा नाम , बिना "जी" लगा कर लो तो  ...बोल के देखो.....मुझसे नहीं....तो अपने आप से ही सही.....सारी ओप्चारिक्ताओं को ताक पर रख कर..... तुम्हारा हृदय बहुत कोमल है.....और हो भी क्यों ना......प्रेम की तरंगे सागर मे ही तो उठती हैं....पत्थरों  में नहीं.....मै एक बार डूब  के देखूं ...इस प्रेम के सागर में......अथाह और अगाध समुद्र में.......

खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उल्टी धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार.

मुझको याद आता है Richard  Bach  का वो कथन " Can miles truly separate you from the person you love....If  you want to  be with someone you  love , aren't  you already  there " ..... दूरियां कब प्रेम को कम कर पायीं हैं.....उलटा ही हुआ....दूरियों ने प्रेम की आग को और हवा दी है.....देख रही हो ना प्रेम की जादूगरी....ये प्यार ही तो है...जो बुत को ख़ुदा बना देता है......और इन्तेहाँ  ये है की ... बन्दे  को ख़ुदा करता है इश्क.....कोई शक....?

अच्छा...नहीं मानती हो........

तुम झूठ बोलती हो......कम से कम अपने आप से तो मत बोलो.

मुहब्बत की आग जलाती नहीं...निखारती है......ज्यों - ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल  होए.  

बहुत कुछ कह दिया ना मैने.......नहीं...सब कुछ तो कह दिया.....अब क्या रहा मेरे पास.....छुपाने को, बताने को....

अब बारी तुम्हारी......

Saturday, December 18, 2010

मानते हो ना....

ज्योति....................

ये तो आनंद कि आवाज़ है...... इतनी रात गए......? सब ठीक तो है.....

काका.....जरा दरवाज़ा खोल दो......कोई आवाज़ दे रहा है.

देखता हूँ....बिटिया.......अरे आनंद बाबू!!! आप इतनी रात गए...... सब ठीक है ना.....

हाँ काका....सब ठीक है.............अरे.....ये क्या......आप का तो बदन तप रहा है. ...... आप यहाँ बैठो.....मैं बुलाता हूँ....अरे बिटिया......

आनंद तुम......क्या हुआ.....?

कुछ नहीं......

बिटिया.....ये चल नहीं पा रहा था....मेरा हाँथ पकड़ कर तो अंदर आया है. बदन तप रहा है इसका....

ओहो.............तुम्हारा तो माथा तप रहा है. ....कुछ दवा ली....?

नहीं..... शाम के बाद अचानक ज्वर सा लग रहा था....चाची को मत जगाना......काका एक कप.....

हाँ.....चाय बन जाएगी....लेकिन अचानक ज्वर क्यों......काका....जरा चाय बना दोगे.....?

पता नहीं.......

क्या बात है, आनंद.......क्यों परेशान हो......? सब यहीं हैं.

ज्योति....मैं आज पहली बार अकेलपन से घबरा गया...इसलिए इतनी रात गए दस्तक दे दी. मन को साधते- साधते , कभी कभी मन डगमगा जाता है.....आज कई सालों बाद.....मैकदे चला गया.......सोचा कि अपने आप से दूर जाने का ये रास्ता भी आजमा कर देखते हैं......

तो आज आजमाया है क्या.....?

हाँ........इसलिए.....मैं अब चलता हूँ....मेरा यहाँ बैठना उचित नहीं है....मैं आज असभ्य हो गया हूँ. तुमको अपना मानता हूँ....इसलिए चला आया.....रिक्शे वाले ने भी पैसे नहीं लिए....कितनी दया का पात्र बन गया हूँ...

ऐसा मत कहो...आनंद... हर आदमी तुमको प्यार करता है.....इस गाँव में.

लो बेटा...चाय पी लो......दवा लानी है क्या.....काका ने पूंछा.

नहीं काका.....दवा मेरे पास है.

मैं आनंद को देख रही थी....ये इंसान कितना सरल और कितना क्लिष्ट है..... कितनी सहजता से कह दिया कि तुमको "अपना" मानता हूँ ......प्रेम करता है....बोलता नहीं है......तड़पता है..... शांत रहता है.....रोता है..लेकिन हंसता रहता है. ....है ना सरलता और क्लिष्टता का अनकहा संगम.

ज्योति......समय कितना हुआ होगा...मैं तो घड़ी भी पहनना भूल गया...

एक बजने में १० मिनट बाकी हैं....

ओह......तुम भी आराम करो...जाओ जा कर सो जाओ....मैं यहीं सो रहूंगा. सवेरे चला जाऊँगा.....

कितना सोच रहा है....ये आदमी. ज्वर से शरीर तप रहा है.....लेकिन मर्यादा का पूरा ध्यान है.....निराला है ये.

ज्योति.....आँख बंद होते हुए.....आनंद कि आवाज़......क्या हर बात शब्दों से बोलकर ही समझाई जा सकती है..?  भावनाओं को मैं समझा नहीं सकता......अगर भावनाएं शब्दों कि गुलाम हैं.....तो जो बोल नहीं सकते...वो प्रेम नहीं करते...?

भावनाएं  कब शब्दों कि गुलाम हुई हैं......ये वो हकीकत है जो निगाहों से बयां होती है ....आनंद.
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सवेरा हुआ....नीचे आ कर देखा तो आनंद जा चुके थे.....काका..... आनंद गए क्या....?

हाँ बिटिया ...वो तो सवेरे ६ बजे ही चला गया था......

६ बजे......

हाँ..... काफी देर तक मुझसे बात करता रहा.......रात में....

क्या कह रहे थे......शायद मैं अपने बारे में सुनना चाहती थी.

माँ.....मैं आनंद जी के घर जा रही हूँ......

क्या हुआ...इतने सवेरे क्यों.......

रात भर कि सारी कथा माँ...को सुनाई.......

अच्छा जा.....

आ ज्योति बिटिया......मालिन माँ...दरवाजे पर ही मिल गयीं.....

आनंद हैं.......

हाँ...वो पीछे आँगन मे बैठा है....

अरे ज्योति......तुम कब आईं....कल रात मे तकलीफ दी.....उसके लिए माफ़ करना.

अच्छा मैं चलती हूँ........

अरे...बैठो......

तबियत कैसी है......

पहले से बेहतर.....

आनंद....अपना भी मानते  हो.....और माफ़ी भी मांगते हो....

ज्योति.....कल अपने आप से दूर भागने कि कोशिश में फेल हो गया.... अपने आप से दूर भागा और अपने के ही पास गया. कल पहली बार मुझको लगा कि अपना मानते हो.....तो जाओ उसके पास...अधिकार है तुम्हारा और मैं चला गया. कई बार एस होता है..कि हम अपने मन मे ही दूरियां बना लेते हैं... जबकि दूसरा बाहें पसार कर हमको सीनी से लगाने को बेताब होता है.

जहनो मे दीवार ना हो तो , मिलना कोई दुशवार नहीं है.

मानते हो ना....

Friday, December 17, 2010

इधर-उधर कि.....

इन्द्रधनुष देखा है...बहुत खुबसूरत लगता है..ना...... हर रंग कि अपनी खूबसूरती होती है....जरा एक रंग हटा कर इन्द्रधनुष को देखो.....फीका लग रहा है....है ना..... तुम तो जानती ही हो प्रकाश भी सात रंगों से मिलकर बना है.....ये सब कुदरत के करिश्मे हैं....मानती हो ना....इसी तरह सुख-दुःख, हंसना-रोना, जन्म-मृत्यु , मिलन-विछोह ये सब जीवन के रंग हैं...इनमे से कोई भी रंग कम करके जरा जीवन कि कल्पना करो.....नहीं हो सकती.....बस अंतर वहाँ पर है.....जो इस सच को समझ ले....और इसको ईश्वर कि देन समझ कर कबूल कर....उस के सामने सर झुका कर ख़ुशी-ख़ुशी इस को स्वीकार कर.....हंसता रहे......जो तुम अब तक करती आई हो....

ये सोचना भी इस वक़्त तुम्हारा जायज है....कि ये मुझे अचानक क्या हो गया......मैं इतना दार्शनिक कब से और क्यों हो गया भला....बोलो तो. .....

ज्योति  ये भी तो जीवन का एक रंग है....और एक फक्कड़ आदमी ज्यादा दार्शनिक हो जाता है..... जब जगह-जगह लोग, उसको,  आगे चल, भाई.....ये कहते हों.....और उसकी हकीकत को कोई ना जानता हो....तो वो उनको देख कर उन पे हंसे ना तो क्या करे....याद है ना तुमको वो लाइन...."या वो जगह बता दे, जहाँ पर खुदा ना हो....", मुझको यहाँ से वहाँ धक्का दे देते हैं....

ज्योति....मैने कभी नहीं सोचा था कि मैं इंसान से मशीन बन जाउंगा....मैं इन रोबोट के बीच में रह रह के थक गया हूँ....यहाँ पर इंसान नहीं मिल रहे हैं.......तुम यहाँ पर किसी इंसान को जानती हो तो पता भेज दो....या खुद आ जाओ.....मेरा ये एहसास कि मैं भी इंसान हूँ....दिन ब दिन कम होता जा रहा है......क्या मैं कुछ परेशान सा लग रहा हूँ.......? ना.....मैं परेशान नहीं हूँ....कभी मन करता है कि बगावत कर दूँ दुनिया से .....लेकिन......, लेकिन....., लेकिन......इस लेकिन...ने ऐसी जंजीर डाल रखी है...पैरों मैं...कि सिवाय दम घुटने के अलावा कोई और चारा....फिर हाल अभी तो नज़र नहीं आ रहा है.....

अजब चराग हूँ, दिन रात जलता रहता हूँ, 
मैं थक गया हूँ , हवा से कह दो, कि अब बुझाए मुझे....    

देखा...मैं खुद अपनी ही बातों से हट रहा हूँ......बादल चाहे कितना ही सूरज को ढंक लें .....उसकी गर्मी को तो कम नहीं कर सकते......ये भी तो इन्द्रधनुष का एक रंग  है......इंसान का मूड भी कैसा धूप का छाँव जैसा है...ना..बोलो तो.....

ज्योति...तुम जानती हो मेरे जीवन जीने का मन्त्र क्या है......अगर बताऊँ तो हंसोगी  तो नहीं.......पहले बोलो...हंसोगी तो नहीं ना....ठीक तो ये है मेरा जीवन जीने का मन्त्र....

"सँभलो कि सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को. नर हो न निराश करो मन को।।


जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ!
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो, उठ के अमरत्व विधान करो।
दवरूप रहो भव कानन को, नर हो न निराश करो मन को।।"

...............देखो हंसना नहीं....तुम ने वादा किया है......आओ, अंधकार से ज्योति कि और चलें.....

Thursday, December 16, 2010

यारों घिर आई शाम चलो मैकदे चलें

दर्द कैसा भी हो, आँख नम ना करो,
रात काली सही, कोई गम ना करो,
एक तारा बनो, जगमगाते रहो.....ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो...

यही सिखाया था ना तुमने मुझे...जब मैं रिश्तों कि सुनामी में डूब रहा था.....अब तुम्हीं  अगर कमजोर पड़ोगी.....तो इस रिश्तों कि नाव को कौन संभालेगा....बोलो तो...

हाँ .....मैं  बहुत अकेला हूँ....पल - पल तुम्हारी याद आती है. यादों का भी अजीब सा रिश्ता होता है...ना....कभी ये मन पर बोझ डाल कर मन को डुबो देती हैं.....और कभी डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं.....मैं उन्ही यादों कि कश्ती पर सवार हो कर....जीवन सागर मैं उठने वाली हर लहर से लड़ रहा हूँ......हर पल तुमको अपने पास पाता हूँ...... और किस तरह तुमने रिश्तों के शीशे को तमाम पत्थरों से बचाया है.....मैं जानता हूँ, प्रत्यक्षदर्शी हूँ, सब याद है....पगली....कहाँ जाऊँगा....तुमको छोड़ कर....

दिन को आंखे खोलकर, संध्या को आंखे मूंदकर , 
तेरे हर एक रूप कि पूजा नयन करते रहे.....
उँगलियाँ  जलती रहीं, और हम हवन करते रहे...

कभी कभी ये अकेलापन मुझको पागलपन कि हद तक ले जाता है....और मैं अकेला अपने आप से बाते करता हूँ....फिर ये सोच कर चुप हो जाता हूँ कि कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा....देखा..अपने आप से भी बात करने से डरने लगा हूँ मैं......शाम से अब डरने लगा हूँ....क्योंकि...शाम कुछ लोगों के मिलने का वक़्त हो सकती है.....लेकिन मेरे लिए....अकेले हो जाने का वक़्त होता है.....

तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता......

मैं इस अकेलेपन को जी रहा हूँ.....इसके अलावा मैं क्या कर सकता हूँ...बोलो तो. 

मैं ये भी तो नहीं कह सकता.....

यारों घिर आई शाम चलो मैकदे चलें.....कुछ दिन और सही...इस रात कि भी सुबह होगी.....होगी ना.....बोलो तो.....

Tuesday, December 14, 2010

ये मेरा भाग्य

मैं ज्योति को घर छोड़ आगे चल पड़ा......सोचता हुआ.....कि इस से बात कर दिल कितना हल्का हो जाता है.......अनायास ही कुछ समय पहले  का वाक्या मेरे जहन में घूम गया.....जब मैं टूटा था......और ज्योति ने अपनी हदों से पार जाकर मेरा साथ दिया....और आज मैं फिर चल - फिर रहा हूँ.......मैं हार सकता हूँ...लेकिन ज्योति को ज़िन्दगी मैं कभी भी हार नहीं मानने दूंगा....ये वादा किया था मैने अपने आप से.

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले....

हाँ....जो चोट खाई थी मैने......उस जख्म मैं कभी-कभी दर्द होता है.....जब-जब पुरवाई चलती है...पुराने जख्म उभर जाते हैं......तब एक वही  ही तो हो...जो उन अनदेखे   जख्मों पर मरहम लगाती थीं...
याद है उसीने  ने मुझसे कहा था.....

रखते हैं जो ओरों के लिए प्यार का जज्बा,
वो लोग कभी टूट कर बिखरा नहीं करते....

जब कभी वो  दूर हुईं...मैने अपने लेखों के सहारे उस  तक अपना सन्देश पहुंचाने कि कोशिश करी......लेकिन अगर वो  कभी भी हारी .....तो मैं हारूंगा ही नहीं..... टूट भी जाउंगा....और तब सम्हालने वाला भी कोई नहीं होगा.....ये मेरा भाग्य होगा.....

धीरे धीरे मैं कब उसकी तरफ झुकता चला गया पता नहीं चला....रह-रह के पुराना दर्द कभी टीस दे जाता था....तो दर्द बाँट लेता था........लेकिन नहीं....अब नहीं....और नहीं......

मेरा भाग्य......

Sunday, December 12, 2010

चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें.......

चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें.......

आजकल साहब बड़े मूड में हैं.........कहीं किसी  हँसीं  से तो पाला नहीं पड़ गया.........आज आनंद के साथ कई दिनों बाद घाट पर आई..... तो बिना कुछ पूंछे नाव वाले  को बुला लिया....और चल दिए.....boat-ride पर......कहने लगे कि लोग long drive पर जाते हैं.... हम आज long boat  ride पर चलते हैं.... ...लेकिन सच बोलूं.....तो मैं सपनो कि दुनिया में थी....शांत.... चारों तरफ माहौल शांत...ठंडी हवा.......और शबाब पर चांदनी.....आनंद आज पूरी तरह से गजलों के मूड में.......एक शब्द में अगर कहूँ...तो पूरा रोमांटिक माहौल.......

कुछ और बोलो......

क्या बोलूं......मैं इस माहौल को उतारने कि कोशिश कर रहा हूँ......

अगर हम कहें, और वो मुस्करा दें,
हम उनके लिए ज़िन्दगानी लुटा दें......

ज्योति.....दुआ करो...कि ये जो रिश्ता है...यूँ ही हरा-भरा बना रहे....विश्वास कि जमीन, और प्यार कि फुहारें..... कौन सा पौधा नहीं जम जायेगा......तुम ने रिश्तों को बनाने और बना कर निभाने.....कि आग में जिस तरह अपने आप को जलाया है.....वो मिसाल है...और इसिलए तो उस आग में  तप कर सोना बन गयी हो......तुम्हारी शान मे एक शेर पेश करूँ.....

इरशाद.....

तमाम जिस्म ही घायल था, घाव ऐसा था,कोई ना जान सका रखरखाव ऐसा था...
खरीदते तो खरीददार खुद ही बिक जाते, तपे हुए खरे सोने का भाव ऐसा था.

सरकार....आज इतनी मेहरबानी....? 

ये कम है. ...एक गजल तुम पे लिखूं, वक़्त का तकाजा है बहुत.....

बस करो....आनंद. मैं और सम्हाल ना पाउंगी......

मैं भूला नहीं हूँ...ज्योति......अभी एक साल पहेली ही....जो , मैं तो हादसा ही कहूंगा, तुमने और चाची ने बर्दाशत किया है.....जब रमन  आकर रहा था तुम्हारे पास....और परिणाम.....

आते - जाते हर दुःख को नमन करते रहे,
उंगलियाँ जलती रहीं, और तुम हवन करते रहे.....

इसीलिए.....मैं बहुत इज्ज़त करता हूँ.....

चाहते नहीं हो...........?

क्या....... इज्ज़त करना....?

आनंद.....कितनी आसानी से नासमझ बन जाते हो तुम......लोग कहतें हैं कि तुम बहुत सीधे हो...

वो तो मैं हूँ....देखो जी....मैं चालाक नहीं हूँ.....ये इल्जाम नहीं लग सकता मेरे उपर कि मैं चालाक  हूँ.

हाँ...ये तो है......

ज्योति....
.सच्चा  प्रेम वही है, जिसकी त्रप्ति आत्मबली पर हो निर्भर,
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर. 

आज सिर्फ आनंद को देखने का मन है......बहुत समय बाद आज आनंद ज़िंदा हुए हैं....मैं उनको रोकना नहीं चाहती नदी  कि तरह बहने दो उनको...आज ये खुल  रहे हैं.....देखतें हैं...इस खान में से मेरे लिए हीरा कब निकलता है.......

काफी देर हो गयी......भाई नाव घाट पर लगा दो....नहीं चाची....आज गाँव निकाला दे देंगी......

चलो...तुमको घर छोड़ दूँ.....

छोड़ दूँ........

तुम शब्दों के जाल में क्यों उलझाना चाहती हो मुझको.......

मैं.... शब्दों के जादूगर  तो तुम हो.......अभी तो मैं उस जादू से बाहर नहीं आ पाई हूँ....जो तुमने अभी बिखेरा है.

जादू शब्दों मे नहीं होता है....उन शब्दों को कहने वाले में होता है....लो और ये बात में किसको बता रहा हूँ...तुम तो खुद एक जादूगरनी हो...या कहूँ......


गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो, जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे.....

सच कह रहे हो आनंद......

Beyond Time......A new Experiment-2

आज काफी हल्कापन है.....आज मदहोश हुआ जाए रे...मेरा मन, मेरा मन. मेरा मन ......आज काफी दिनों  बाद धूप निकली...बर्फ पिघली....पर्वतों से भी... और रिश्तों की भी. कल ज्योति से जो बात हुई...उसने गलतफहमियों के जो बादल...एक रिश्ते पर ग्रहण की तरह छा रहे थे.....दूर हो गए......आपस की समझदारी से......और बात करने से...यूँ तो मैने देखा है....की चुप रहने से भी....इंसान काफी मुश्किलों से बच सकता है....लेकिन जब जरुरी हो.....तो बात करना भी जरुरी है..... वो एक कहवत है.....कि " मछली भी तभी मुसीबत मे पड़ती है, जब मुँह खोलती है" ....खैर...अंत भला तो सब भला......

मालिन माँ......आज जरा मटर का पुलाव बना दे.......

क्या.....क्या ...जरा फिर से बोल..........आज तूने कोई फरमाइश करी है खाने कि..........बेटा तबियत तो ठीक है, ना........आज बड़ा चहक रहा है...बेटा....

...... 2 लोगों के हिसाब से खाना बना दे माँ.......

क्यों....लड़की वाले आ रहे हैं क्या......मालिन माँ ने चुटकी ली......

अरे.............नहीं....... ज्योति से मैने कहा है....कि आज यहीं खा ले.....

लो....इसमे क्या नई बात है.....ज्योति बिटिया तो बनवा के भी खा लेती है......

अच्छा....अब पुलाव बना दे....और जब तक पुलाव बनता है....एक कप चाय दे दे....

अच्छा......

आओ ज्योति.....अरे वाह......किधर हो....

क्या  मतलब....

अरे... गुलाबी रंग में गुलाबी रंग दिखाई नहीं दे रहा था...इसलिए पूंछा....अच्छा  किया काजल लगा लिया.....

जाने किस किस कि मौत आई है,
आज रुख पे कोई नकाब नहीं......

हाय.....सदके जावाँ.....जान ले लो.

कितनी चमकदार धूप है.....ना. वो देखो मेरे बाग़ में गुलाब कितना इतरा रहा है...और डहेलिया तो जैसे कह रहा है...कि हम किसी से कम नहीं......गेंदा.........जाओ जरा गुलाब के बगल में खड़ी हो तो.......

क्यों...........अरे  जाओ तो............

लो...........अब बताओगे क्यों.......मैं  देख रहा था....कि ज्यादा सुंदर कौन है.

ओहो......तुम भी ना आनंद.............सातवें आसमाँ में बिठा देते हो.

सातवाँ......खैर......चाची कैसी हैं......

ठीक हैं....अच्छी हैं......खुश हैं......

सब मालिक की कृपा  है और सब पर मालिक की कृपा है......

एक खूबसूरत रिश्ता...जो कुम्हलाने लगा था....फिर से खिल गया  है....ज़िन्दगी कितनी सुंदर हो जाती....जब एक दूसरे को समझकर जी जाती है.....और एक दूसरे की लिए जी जाती है.....जहाँ प्रेम तो है....लेकिन जिस्मों से परे है.....जहाँ पर विश्वास है.....लेकिन  शर्तों पर टिका हुआ नहीं है.  जहाँ शक नहीं...विश्वास की जमीन हो...वहाँ प्रेम मर नहीं सकता. जहाँ पर अपने से ज्यादा दूसरे की चिंता हो..वहाँ स्वार्थ टिक नहीं सकता....जहाँ...दूसरे के दर्द में.....खुद की आंखे भीग जाती हों...वहाँ.....प्रेम ही हो सकता है......

ज्योति.....कल राघव का पत्र आया था.........राघव,  ज्योति का एकलौता भाई है....और शहर में नौकरी करता है....नैना उसकी बिटिया का नाम है.....

आप के पास भी आया......? कल मेरे घर भी आया . नैना की पहली सालगिरह है.....हाँ...बुलाया है.....

तुम कब जाओगी..........

तुम....मतलब.....क्या आप नहीं जाओगे.....? नहीं मैं जा नहीं पाउँगा......

खैर....मैं कारण नहीं पूछूंगी   .....नहीं तो तुम फिर मुझे समझा दोगे और मैं समझ जाउंगी......मेरे साथ यही तो एक कमजोरी है.......तुम मुझे कुछ समझाते हो....मैं तुरंत समझ जाती हूँ.......आनंद हँस पड़े. ....अच्छे लगते हैं...जब ठहाका  मार कर हंसते हैं.......हंसते कम ही हैं.

अरे नहीं.....ऐसी कोई बात नहीं है.....सुनो....ये ५०० रुपए रख लो....नैना बिटिया के लिए कुछ खरीद कर लेती जाना.

जी...जैसा हुक्म....

खाना लगा दूँ......मालिन माँ....ने पूंछा. ....ज्योति बिटिया.....कैसी है....? चाची कैसी हैं...?

दोनों ही ठीक हैं.....ज्योति का दो प्रश्नों  का एक उत्तर.

ये ले बिटिया...थाली पकड़.    और ये तू ले बेटा......

मटर पुलाव.......????? ज्योति का विस्मित होते हुए प्रश्न......क्या बात है....मालिन माँ....आज तो दावत कर दी आपने....

मेरा क्या...बिटिया....आज आनंद की फरमाइश थी......और वो ६-६ महीनी मे एक बार होती है.....सो पूरी करनी पड़ी.....

अच्छा सुन बेटा....ये ५० रुपए ले कर जा रही हूँ.....शाम को सब्जी लेती हुई आउंगी.....

ठीक है......

कल रात कितने बजे पहुंचे.....

१०:३० या १०:४० होंगे.......आजकल नींद और आखों के बीच की अठखेलियों ने दुखी कर रखा है......कल रात भी २ बजा दिया....नींद ने आते....आते....मैने नींद से कहा अब तो आखिरी  बस भी आ गयी....अब तो आ जाओ....तब कहीं आईं........

कुछ लिखा क्या...नया.

हाँ....

दिखाओ तो.....

तुम्हारी हर कहानी में दर्द क्यों होता है.........

क्यों हर प्रेम कहानी मे दर्द ही होता है......अगर दर्द ना हो तो प्रेम नहीं है......बोलो तो .....

और मैं कोई साहित्यकार या कवि तो हूँ नहीं.......जो कल्पना के पंख लगा कर उड़ जाऊं.....और स्वप्न लोक में विचरण कर वापस जमीन पर आ जाऊं.....मैं जो महसूस करता हूँ.....जो देखता हूँ...जो मुझपे गुजरती है....लिखता हूँ.

हूँ......

हूँ...तो ऐसे बोल रही जैसे सब समझ मे आ गया हो.........

क्यों....क्यों नहीं समझ सकती मैं........मैने भी तो प्रेम किया है.....दर्द मैं समझती हूँ.

Saturday, December 11, 2010

Beyond Time......A new Experiment

ज्योति बिटिया...... एक  कागज़ भिजवाया है, आनंद बाबू ने ....काका का स्वर.

यहीं दे दो  काका........

"प्रिय ज्योति...........

ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो,
फासले कम करो, दिल मिलाते रहो.......
दर्द कैसा भी हो, आँख नम ना करो,
रात काली सही, कोई गम ना करो,
एक तारा बनो, जगमगाते रहो.....
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो.


बांटना है अगर, बाँट लो हर ख़ुशी....
गम ना जाहिर करो तुम, किसी पे कभी,
दिल की गहराई मे,  गम छुपाते रहो...
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो


अश्क अनमोल हैं, खो ना देना कहीं,
इनकी हर बूँद है, मोतियों से हँसीं,
इनको हर आँख से, तुम चुराते रहो, 
ज़िन्दगी में सदा मुस्कराते रहो........."

शुभाकांक्षी.....आनंद

ये क्या है......क्या कहीं जाने का निर्णय...........नहीं..........ऐसा वो कर नहीं सकते......

माँ मैं  अभी आई.....पैरों  में चप्पल डालते हुए, मैने बताया......और उनका जवाब सुने बगैर.....वहाँ से हवा हो गयी.....
घर का दरवाज खुला हुआ है......एक राहत तो मिली........आनंद...................मैने इससे पहले इतनी ऊँची आवाज़ से कभी उनको नहीं पुकारा था...रसोई से मालिन माँ निकली.......आ बिटिया. ...... मालिन माँ.....आनंद कहाँ हैं......
पता नहीं........कुछ देर पहले तो यहीं था.......चला गया हो गया...कहीं .....बता के जाना तो उसकी शान की खिलाफ है......क्या बात है बेटी.......तू कुछ परेशान है....सब ठीक तो है ........सब ठीक  है माँ........

मैं जानती हूँ वो कहाँ गए होंगे.........घाट पर बैठे होंगे.....वहीं जा कर बैठते हैं....जब किसी निर्णय पर पहुँचना होता है. ....... क्या मै वहाँ जाऊं.....नहीं.....इस वक़्त उनको अकेला रहने देना उचित होगा.

मै पिछले कई दिनों से उनसे बात नहीं कर पाई.....पता नहीं क्या हुआ है.......लेकिन वो भी सब समझते हैं.....और समझते हुए...अगर इस निर्णय पर पहुँच रहे हैं.......तो बात सरल तो नहीं है........

बेटा.... तू घर जा.....शाम गहरी हो रही है...वो आएगा तो मैं बता दूंगी........मलिन  माँ ने कहा...वो अपनी जगह ठीक हैं.

मैं चल दी घर की तरफ......सामने से साहब चले आ रहे थे......ना कोई गर्म शाल, ना कोई चादर....सब लोग ठंड में  घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं...और इनको देखो.....मगर इस वक़्त टोकना ठीक नहीं होगा.......

अरे....ज्योति जी आप.......?

क्या............? "जी और "आप" का संबोधन........काफी काफी समय से नहीं सुना  था.... आनंद के मुँह से, अपने लिए........इसलिए......मैं चौंक गयी. मैं देखती रही उनकी तरफ.......

तुम घर चलो.....मैं थोड़ी देर मैं आउंगा.....शायद उनको महसूस हुआ "जी" और "आप" ....का असर मेरे उपर.

कुछ गर्म पहन लो, एहसान होगा ....जाते जाते मेरी एक हिदायत, आनंद को.

हाँ.......भूल गया था.

मैं इंतज़ार करुँगी......खाना वहीं खा लें ..... अगर कोई ऐतराज ना हो.....?

कुछ अजब से लहजे में बात हो रही है आजकल .... कुछ दूरी... या तो बन रही है.....या बना ली गयी है...दोनों के बीच में......देखना पड़ेगा. ज्योति और आनंद के बारे में.....और उनके स्वस्थ रिश्ते   के बारे में सब को पता है....लेकिन फिर भी कुछ तो है की जिस की पर्दादारी है......


७:३० बजे हैं......ज्योति ने कहा है...वो इंतज़ार करेगी......मैं क्यों हिचकिचा रहा हूँ.......ये क्या हो रहा है......ये तो शुभ नहीं.

काका.........

आओ बाबूजी........दीदी..... आनंद बाबू आयें हैं.......

आने दो काका.........अरे वाह.....बड़े साफ़-साफ़ लग रहे हो.....नया कुर्ता लिया है क्या......जेकेट   भी नयी है.....

हाँ....अभी शहर गया था....तभी लिया.....सब कुछ.....

चलो...इतना तो किया अपने लिए ....यही शुभ लक्षण है.

तुम भी ज्योति........

और क्या......मैं उँगलियों पर गिन सकती हूँ....जब आपने अपने लिए कुछ किया होगा.

आनंद.....आप इतने अच्छे हो....लेकिन आप मेरी बात को या मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझते.....

ज्योति........मैं नहीं समझता हूँ......ऐसा मत सोचो....बस अपने  लिए कुछ करना.....ये स्वभाव  ...नियति ने मुझे नहीं दिया......तुम यही समझ लो....और संतोष कर लो. क्यों दिल जलाती हो......

अच्छा..... आनंद एक बात बताओ.....कुछ खिंचाव सा नहीं महसूस  हो रहा तुमको पिछले कुछ दिनों  से.....हमारे बीच............खिंचाव  तो नहीं.....हाँ कुछ बर्फ सी  जरुर जमी लगती है......

जानते हो ना....आनंद ..बर्फ कब जमती है....जब ठंडक हो......वो चाहे रिश्तों मे या मौसम मे.क्यों........क्या कोई शक   है मुझ पर..............

ऐसा....क्यों समझती  हो......मुझे कोई शक नहीं है.......मुझे लगता है.....की हम दोनों एक दूसरे के लिए ज्यादा possessive होने लगे थे.......इसीलिए जब इतने दिनों तक बात-चीत ना हुई.....तो कुछ ठहराव  सा महसूस होने लगा.

तुम तो जानते  हो .....आनंद....मैं हूँ, या माँ, या काका.....अगर कोई भी बात होती है....अच्छी हो या बुरी, सुख की हो या दुःख की......सब से पहले तुम......हाँ सब से पहले तुम.

शायद..... इसीलिए  मैं possessive  हो चला था......लेकिन अभी शाम को जब घाट पर बैठा था...तब सोचा की possessive होना गलत नहीं है...लेकिन इतना भी नहीं ...की दूसरे का दम ही घुट जाए....इसलिए थोड़ी दी दूरी....जरुरी है ताकि बीच से हवा का बहाव बना रहे....रिश्तों मे नयापन बना रहे...रिश्तों मे कशिश बनी रहे.....

मैं....आनंद को निहारती रही.....आज काफी समय बाद ....आनंद का शायर जिन्दा हो रहा था.... और मै उस शायर को  जीना चाहती थी...कुछ नहीं बोली....सिर्फ उनको सुनती रही.....

हर एक पेड़ से साए की आरज़ू ना करो,
जो धूप में नहीं रहते, वो छाँव क्या देंगे.

तुमको अच्छा नहीं लगा...की मैने तुमसे बिना पूंछे......स्कूल मे तुम्हारे लिए बात करली...?

क्या मैने या किसी ने आप से कुछ कहा......?

नहीं.....ना जाने क्यों मुझे ये लग रहा था......के मुझे तुमसे पूँछना    चाहिए था.........मै दीना नाथ के घर क्यों नहीं आया उस दिन..........कारण भी सिर्फ तुम जानती हो....जिस काम से उस दिन मै शहर गया.....वो काम यहाँ से भी हो सकता था...मेरा मकसद सिर्फ इतना था...की तुम स्कूल ज्वाइन करलो ताकि......चाची की चिंता कुछ कम हो जाए.......भगवान् का दिया सब कुछ है तुम्हारे पास....जो  हुनर, जो काबलियत हैं तुम्हारे अंदर...वो भी तो उसी की नेमत है.....तुम्हारा अपना भी तो एक व्यक्तिव है ...उसको निखर ने  दो.....कब तक चाचा जी रूपी बरगद की छाँव मे बैठी रहोगी....कब तक...आखिर, ....आखिर कब तक. जो करना चाहती हो...करो....तुम पर तो कोई रोक-टोक भी नहीं है.

आनंद.....क्यों इतना सोचते हो......मैं जानती हूँ और मेरा भगवान् जानता है......की आनंद ने आज तक मुझे कभी कोई गलत सलाह नहीं दी.......कभी मेरा बुरा नहीं सोचा.....हाँ अगर कभी मैं लड़खड़ाई.....तो सम्हाला जरुर.....

पता नहीं.....ज्योति......

अरे.....तुम लोग खाना खाओगे.....या रत-जगा करना है..... चाची की आवाज़....

माँ..लगा दो.....

चाची....बता दिया होता...बातों-बातों में इतना टाइम निकल गया.......९:२० हो गया है......कोहरा तो देखो......

चाची.....बहुत तंग  करता हूँ ना....

हाँ तंग तो करते हो.....जवाब ज्योति का.

कुछ रिश्ते समय की सीमा से बाहर होते हैं.......समय की शर्तों से परे होते हैं......उन पर वक़्त की T&C नहीं चलती....

और तो और लोगों की समझ से भी परे होते हैं......है ना......बोलो तो.

चिंता ना करो......

जब सब अपने...किनारा करने   लगे...तो मैं क्या करूँ.....बालो तो.

ऐसा क्यों बोल रहे हो....आनंद.

हर प्रश्न का उत्तर नहीं होता....है...कुछ बाते...समझ ली जातीं हैं. ....... ज्योति.

किसने किनारा कर लिया ...किस अपने ने......?

पूछते हैं वो की ग़ालिब कौन है,
कोई हमे बतलाये की हम बतलाएं क्या.......

प्रेम अपनी कीमत मांग रहा है.....इसकी कीमत तो ज़िन्दगी होती...दे दूँ.......जब कोई किसी पर टिक जाए.....ज़िन्दगी का बाकी सफर करने के लिए....उस समय.....जब सहारा हटे तो......बोलो कोई क्या करे....बोलो तो.

आनंद.....हर सफ़र मे तो आसानियाँ नहीं होती.....कुछ सफ़र मुश्किलों के दौर  से गुजरते हैं..... और अकसर गुजरते  हैं......

ठीक कह रही हो, ज्योति...

ये ज़िन्दगी का सफ़र भी अजीब ही निकला,
सफर में सब हैं, मुसाफिर कोई नहीं लगता.......

बहुत कुछ सिखा दिया है ज़िन्दगी ने......ऐसा लगता है.

हाँ............जो स्कूल ना सिखा पाया......वो ज़िन्दगी ने सिखा दिया.... इंसान को पढना स्कूल मे नहीं सीखा था...वो इस स्कूल मे सीख लिया.

इतना टूट क्यों रहे हो...आनंद....

पता नहीं.....कुछ देर मुझे अकेला छोड़ दो......

आनंद ....अपना ध्यान रखना.....

मैं कुछ भी नहीं कर सकती.....

चिंता ना करो......सब वक़्त-वक़्त की बात है.

हे जानकी नंदन..... अब तुम ही मेरा ध्यान रखो.

एक - एक करके सब को अलग कर मुझको अपनी गोद मे  ले लो....जानकी नंदन.

Friday, December 10, 2010

मेरी चिंता ना करना.......

मैं थोड़ी देर आराम कर   लूँ......मैने ज्योति से कहा...

चलो...उसने ..चाची के बगल वाला  कमरा खोल दिया.....आओ.

कब आँख लग गयी.....पता नहीं.....जब उठा तो सूरज आधे से ज्यादा रास्ता आसमान चल चुका था...और मुझे याद नहीं था..की जो चाभी मालिन माँ ने मुझे दी थी.....वो मैं बाहर मेज पर ही भूल आया था.

अरे....चाची दोपहर हो गयी......चलता हूँ.....आँख  लग गयी थी......

आराम कर ले बेटा.......नहीं चाची अब चलता हूँ......

ठीक है......

घर पहुंचा.....तो दरवाजा खुला हुआ था......अचरज हुआ.....याद आया कि मालिन माँ ने तो चाभी दी थी....फिर दरवाजा खुला हुआ कैसे है......खैर ....ऐसा कुछ तो है ही नहीं जो कोई ले जाएगा.......हाँ उल्टा कुछ रख कर  जाए   तो ठीक है......मैं घर में घुसा.......ज्योति......सामने , मेरी मेज पर रखे कागजों से दो चार हो रही थी.......चेहरे का रंग सफ़ेद........

क्या हुआ.....तुम कब आयीं...? .... कोई जवाब नहीं.....सिर्फ मेरी तरफ देखती रही......

लगता है.....कुछ पढ़ लिया है......

उसने कुछ पन्ने मेरे आगे कर दिए......... तो ये सब चल रहा है दिमाग में.......इसीलिए  कल रात नींद ना आई....?

अब चुप रहने कि बारी मेरी थी........क्या जवाब देता.....सच तो उसके सामने बिखरा पड़ा था.

ऐसा क्या हो गया......जो ये विचार तुम्हारे दिमाग में आया...? ये तो तुमको बताना पड़ेगा.....ज्योति का अधिकार पूर्ण सवाल. तुम क्या समझते हो....कि इतने दिनों से बात-चीत  नहीं हुई....तो मैं आराम से थी......मैने तो सारा गुस्सा...आज सवेरे तुम पर निकाल दिया.....लेकिन तुम....इतना बड़ा निर्णय ले रहे हो....यहाँ से जाने का....? क्या मेरे क़त्ल का इल्जाम ले कर जी पाओगे......?

क्या मतलब.....?

और क्या.....तुम जानते  हो, समझते हो.....कि मैं ........ खैर..............तो तय कर लिया है.......जाने का....? कहाँ जाओगे....? और हो सके तो इतना बता देना........वो जाने के लिए खड़ी हो गयी.......

रुको....ज्योति........हाँ मै कुछ उलझा हुआ हूँ......

तो मेरे साथ तो तुम बाँट सकते हो.....बोलो तो.

जी बहुत चाहता है, सच बोले, क्या करें हौसला नहीं होता .

तम्हारे ह्रदय में  जो है.....मैं अच्छी तरह समझता हूँ......बहुत आदर और सम्मान करता हूँ.....तुम्हारा....और तुमको अपना मानता हूँ......गाँव वाले , स्कूल वाले...मुझको जो भी समझते हों......लेकिन मैं जब अपने आप  को तुम्हारे आगे रखता हूँ......बहुत छोटा नज़र आता हूँ......तुमसे तो कुछ भी नहीं छुपा है......

आनंद .....बस ... ऐसा ना बोलो.

नहीं ज्योति....आज ना रुको...अगर मैं आज नहीं बोला...तो शायद कभी ना बोल पाऊं.......

ज्योति ने अपने हाँथो से मेरा मुँह बंद कर दिया........ऐसा ना.....कहिये......मैं आप को समझती हूँ.......आप के अंदर जो मंथन चलता रहता है....मैं ये तो नहीं कहूँगी कि मुझे  पता है.......लेकिन हाँ.....अंदाज जरुर है. जो कुछ आपने बर्दाश्त किया है.......वो सब मुझे पता है.....इसलिए....जब काका ने दीनानाथ कि बेटी.....को आप पढ़ाते थे, मुझे बताया तो ......मुझे आश्चर्य हुआ......क्या क्या नहीं कहा था उसने आप को घर बुलाकर.....आप को गाँव से निकालने कि धमकी भी तो उसी ने दी थी आपको....., चरित्र निर्माण कि शिक्षा भी तो उसी ने दी थी आपको.....वो ये भूल गए....कि जिनके अपने घर कांच  के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. ....... लेकिन आप ने जी तरह से उसका जवाब दिया......मै सलाम करती हूँ आपको.

ज्योति....सलाम तुम नहीं...मैं करता हूँ...तुमको.....अगर मैं तुमको एक सन्यासिनी बोलूं तो बुरा मत मानना. सब कुछ है तुम्हारे पास.....सब कुछ...लेकिन जिस तरह से तुम उन सब से विरक्त हो......वो मिसाल....नहीं मिलती...कम से कम आज कल तो नहीं.........कैसे कोई.....एक को साध कर...सब में रहते हुए.....सब से अलग रह सकता है....तुम ने सिखाया.......मैं तुम्हारी तपस्या भंग नहीं कर सकता.......

तपस्या तो मेरी तब भंग होगी   .....अगर तुम यहाँ से जाओगे.....अभी  तो मेरी तपस्या का फल...मुझे पूरी तरह से मिला भी नहीं है......और जितना तुम मेरे हो....अगर मेरी तपस्या का फल उतना हैं.... तो विश्वास करो......मैं इससे खुश हूँ...बहुत खुश........ कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.............. एक तुम ही तो हो....जो ज्योति को ज्योति कि तरह समझते हो.........तुम ही ने तो मुझे जगाया.....याद है तुमको...तुम्ही ने कहा था...कि सोचो उस माँ के बारे में....जो बच्चे को जन्म देती है, दूध पिला कर .....ज़िन्दगी देती है.....और जब बात अपने स्वाभिमान पर आ जाए ... तो उसी बच्चे को पीठ पर बाँध, लोगों से लोहा भी लेती है.............. सन्यासी तो तुम हो......कभी तो लगता है...कि तुम मेरे हो.....और दूसरे ही पल ये एहसास होता है.......कि किसी के नहीं हो.......एक पल तुम्हारी बातों मे प्यार ही प्यार झलकता है.....तो दूसरे पल तुम कर्म और duty पर जोर देते हो......

पता नहीं.......ये सब तो मैं नहीं जानता.....लेकिन मैं ये जरुर सोचता हूँ कि तुमको अपने बारे में बताकर, या मेरे बारे में जानकर कितनी तकलीफ होती होगी....कितनी ठेस लगती होगी.....तुम्हारी भावनाओं को ...... मैं क्या करूँ...... मैं...... हूँ ना एक आवारा  .....तुम ही ने कहा था..ना किनारा करने को......एक बार......

मेरी चिंता ना करना.......

मैं क्या करूँ, आपका........1

३ दिन हो गए.....ज्योति ने स्कूल ज्वाइन कर लिया.....कितनी जल्दी उसने अपनी जिम्मेदारियों.....को पहचान लिया. ........ अच्छा लगा. ....... प्रिंसिपल साहब भी तारीफ़ कर रहे थे.....लेकिन तीन दिनों से उसकी कोई खबर भी नहीं है.....तीन क्यों.....ज्यादा हो  गए होंगे....सब ठीक हो...भगवान् करे. स्कूल मे इतना वक़्त नहीं मिलता की बातें कर सकें...... और स्कूल के बाद इतना वक़्त नहीं मिलता....की बातें हो. ......अच्छा.....बस सब शुभ हो.

पिछले कुछ रोज़ से एक अजीब सा ख्याल दिमाग में घूम रहा है.....क्या,  मैं बताऊँ.....अच्छा चलो बताता  हूँ......एक दिन ख्याल आया की बस इस गाँव से चलो.....यहाँ तेरा काम हो गया.......जिस काम के लिए तुझे यहाँ भेजा गया....वो काम संपन्न हो गया. लेकिन कौन सा काम......जब मेरे दिल ने ये सवाल पूंछा.......तो जवाब.....अजीब सा था......साधु और पानी कहीं भी रुकने नहीं चाहिए......साधु अगर रुका..... तो मोह में पड़ सकता है......और पानी अगर रुका तो दुर्गन्ध देता है......ये क्या जवाब हुआ.....? बोलो तो...

मैं कोई साधू नहीं हूँ. इतना तो में जानता हूँ......लेकिन यहाँ से निकलूं कैसे......प्रिंसिपल साहब को क्या बोलूंगा, चाची को क्या बताऊंगा , ज्योति से क्या बोलूंगा.....पता नहीं......स्कूल स्थापित हो गया है, ज्योति के स्कूल ज्वाइन कर लेने से चाची के माथे की लकीरों मे कुछ कमी दिख रही है........और ज्योति को भी अपने हुनर का एहसास हो गया है........सब कुछ हो गया है..... तो क्या यही मेरा प्रयोजन था यहाँ आने का........रात के करीब १.३० बजे  हैं.......  लगता है आँखों से नींद की खटपट हो गयी है.......

लोग कहते हैं.....मैं सोचने  वाला इंसान नहीं हूँ.....शायद वो ठीक हों......क्या सोचूँ......सोच कर क्या कर लिया और क्या कर लूँगा.....जो होना है, वही होगा....... अब सब अपने - अपने काम से जग गए हैं... अब कहीं और चल...फिर वही ख्याल. ........ अरे........ ये तो सवेरे  का उजाला है...क्या भोर हो गयी .....? हाँ , लगता तो है.......तो क्या रात आँखों में  कट गयी......आज छुट्टी है......दिन भर क्या काम करना है.......

आनंद बेटा.....मालिन माँ , की मुझको जगाने वाली पुकार.....

मैं जग रहा हूँ....अम्मा....आ जाओ.

ये क्या.......चुरुट, कागज़, कलम और चाय के गिलास...... सोया नहीं है क्या...रात भर.

नहीं...अम्मा..मै तो सोया था..... नीदं नहीं सोई....वो जगती रही .....

मेरा जवाब सुनकर  ...मालिन माँ....मेरी तरफ देखतीं रहीं.....और बोलीं....पता नहीं तू क्या बोले है....

आनंद बेटा.....जाकर ज्योति बिटिया को देखा आना....कल रात उसकी तबियत खराब थी....

किसकी ज्योति की......क्या हुआ ........ अम्मा.

पता नहीं......मुझे तो अभी राम सिंह  मिला था....वही बता रहा था.

क्या इसीलिए......कल इतनी खामोश थी, ज्योति स्कूल में....?

मैं आता हूँ...अम्मा. ........ अरे कुछ खा तो ले...... लौट कर खा लूँगा. आप काम कर के चली जाना....अगर मुझे देर हो.....

मै ज्योति के घर पहुंचा.......चाची.......

आजा आनंद बेटा...... क्या हुआ......सुना लक्ष्मी बाई की तबियत खराब है....?

हाँ......जा....अपने कमरे में है वो......

सुना...सरकार की तबियत नासाज़ है.....मेरा हल्का-फुल्का सवाल.

उनके देखे से जो आ जाती है, मुँह पर रोनक,
लोग समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है.........ज्योति का शायराना जवाब.

आज तो सवेरे-सवेरे.........मैं यहाँ पर इतना  साफ़ कर दूँ....... गमगीन माहौल  को हल्का करने में थोड़ा बहुत मजाक मैं कर लेता हूँ.......

क्या हुआ....

वक़्त मिल गया तुमको.....मिजाज़पुर्सी का?

क्या बात है...तेवर इतने गर्म क्यों है...?

तीन  दिनों से बात नहीं की है......स्कूल में  तो आनंद इधर, आनंद उधर, आनंद यहाँ, आनंद वहाँ......बस आनंद को ज्योति से बात करने का वक़्त नहीं है.......

तुम्हारी तबियत खराब है...या गुस्से से तबियत खराब कर ली है.....?

मैं क्या करूँ आप का.....बोलो तो.

मेरा कुछ ना करो.....उठो.....नाश्ता कर लो....मुझे  बहुत भूख  लगी है........

आनंद.....तुम मुझको ना बहलाओ........तुम को कब से भूख लगने लगी.......माँ ने अभी तक तुमको तुम्हारी संजीवनी बूटी ...नहीं दी....?

वो क्या...भला..?

चाय और क्या......तुम्हारे लिए तो वो संजीवनी बूटी ही है.......बोलो. मैं तीन दिन से तुम्हारे लिए भी खाना ले कर स्कूल आ रही थी.....लेकिन.....वहाँ तो तुम........हवा हो.....जाओ बात मत करो......

मैं बैठ कर ज्योति के चेहरे पर आते-जाते भावों और रंगों को देख रहा था...... उसके गुस्से में..गुस्सा कम...प्यार ज्यादा था....मैं क्या बोलता था.

सोचा था....की चलो वैसे तो तुम्हारे  खाने का कोई ठीक नहीं है.......मै ले जाउंगी तो कम से कम एक टाइम तो पूरा खाना खालोगे तुम......मेरे स्कूल ज्वाइन करने के और कारणों में से , ये भी एक कारण था............ज्योति को तो जैसे हर चीज़ पता है स्कूल की.....किसी से कुछ पूंछो तो ....आनंद साहब से पूंछ लीजिये......और आनंद साहब.......बदल गए हो तुम......लेकिन तुम क्या समझोगे.

मैने मन में सोचा...तुम ठीक समझ रही हो ज्योति....मैं क्या समझूंगा.......लेकिन मैं आज कुछ  सोचने की मूड में नहीं था ....... आज ज्योति को बहने दो......वो बोलती गयी.......

चाची  ने पोहा बनाया है.....नाश्ते में.....मैने फिर उसको छेड़ा.....चलो उठो....नाश्ता कर लो.....तुम कमअक्ल  हो...वैसे....

अच्छा....... अरे.... नाश्ता कर लो....ताकत आजायेगी तो फिर लड़ लेना......

रामसिंह.........ये तो मालिन माँ की आवाज़ है.......

आओ.....मालिन....नाश्ता कर लो.......चाची ने कहा.....मालिन तो जैसे इंतज़ार में थी...वहीं बैठ गयीं.....लो बेटा ये चाभी रख लो......चाची ..... आप समझा दो ..... आनंद बाबू  को.....

क्या समझा दूँ.......मालिन......

अरे.....रात भर सोया नहीं है.......बैठा रहा....कागज पर कागज लिखता रहा.....पता नहीं क्या लिखता रहता है. सवेरे आकर जैसे ही मैने बताया की बिटिया की तबियत ठीक नहीं है.....जैसे बैठा था...वैसे ही चला आया......कैसा आदमी है.... ये.....चाची जरा.....थोड़ा पोहा डाल दे ...इसमे......मैं तो ना खाऊं... तो मर जाऊं.

ज्योति के चेहरे रंग बदल गए......गुस्सा काफूर .... हो गया .....मालिन माँ की बाते सुनकर..... वो मुझे देखती रही......मुझे  माफ़ कर दो.....आनंद.... बहुत कुछ उलटा-सीधा बोल दिया......

अच्छा चाची ...जाती हूँ.....आनंद बेटा...कपड़े धो कर फैला दिए हैं .......दिन मे आकर समेट दूंगी......  जी......वो चल दीं.

ज्योति.....मै जरा तीरथ राम  के घर जाकर दवाई ले आती हूँ......११ बजे बुलाया था उसने......अच्छा माँ.

मैं चुप......ज्योति भी चुप......अब कौन तोड़े सन्नाटे को...?

रात भर सोये क्यों नहीं.....

कुछ बैचेनी  थी.....

क्यों....? आनंद चुप. ....... अगर उनको किसी बात का जवाब नहीं देना है तो भगवान् नीचे आ जाएँ.....लेकिन मुँह नहीं खुलवा सकते.

क्या लिख रहे थे.....कोई लेख, या कहानी.....

पता नहीं......कहानी ही लग रही  है.

कहाँ है...मुझको पढ़ना है......

वो.....प्रिंसिपल साहब कह रहे थे की बच्चों को लेकर किसी प्रतियोगिता  मे जाना है....तुम्हारा नाम दे दें.

स्कूल ज्वाइन करने की लिए , मुझसे पूंछा था....तब तो सारा काम कर के शहर चले गए थे....अब इस वक़्त मेरी अनुमति की क्या जरूरत है......आनंद मेरे लिए कुछ गलत नहीं सोच सकते. .............लेकिन....मै स्कूल को स्कूल मैं छोड़ कर आती हूँ.....

मैं समझ गया की आज तो मेरा घिराव होगा......अब यहाँ से बच निकलने का रास्ता देखना पड़ेगा......घबराओ मत......कोई जबरदस्ती नहीं है....अगर तुम जवाब...नहीं देना चाहोगे.....लेकिन.....झूठ मत बोलना.....

तुम जानती हो, ज्योति , मैं झूठ नहीं बोलता....

हाँ...लेकिन सच भी नहीं बताते......

मैं एक बात बोलूं.....हाँ बोलो.....पिछले २-३ दिन  से मैं देख रही हूँ......की तुम किसी गहरी सोच में हो......अगर उचित समझो और मुझे भरोसे के लायक....समझते तो बाँट सकते हो....

ऐसा क्यों कह रही हो........तुमसे तो मै हर बात करता हूँ....

तो रात भर सोये क्यों नहीं.......क्या बात थी....जिसने आनंद की नींद उड़ा दी.....? सब ठीक तो है ना.....? सच बताना.....

सब ठीक है....पगली. ...फिर झूठ......सब ठीक नहीं है ...पगली....ये बोलना  था......

अरे बाप रे.....आज तो ........

हाँ आज तो कयामत है.......

में कुर्सी से टेक लगा कर ...आँख बंद कर बैठा रहा.....सोचता रहा की क्या बोलूं.......की मै इस गाँव से जाने का सोच रहा हूँ......मै आज सोचने के मूड में नहीं हूँ......लोग कहते हैं.....मैं सोचने  वाला इंसान नहीं हूँ.....

मैं क्या करूँ, आपका.......बोलो तो...... कहीं नहीं जाना है........यहीं बैठे  रहो..चुपचाप....मेरे सामने....मेरे पास.....कहीं नहीं जाना है......

Thursday, December 9, 2010

वो १२ पन्ने......

रोहित...कुमोनिका के साथ मंदिर पहुंचे, मैं वहीं उनका इंतज़ार कर रही थी. जैसा कल तय हुआ था.

पंडित जी ...नमस्कार ... रोहित और कुमोनिका का शांत अभिवादन. कुमोनिका आज काफी बदली हुई सी लग रही थीं...संभव हो रोहित जी ने कुछ कहा या समझाया हो.

नमस्ते ... साहब....

बाबूजी नमस्ते......अंजलि का अभिवादन... रोहित और कुमोनिका को.

आप फ़कीर बाबा के भाई हैं.....?

हाँ... बेटी. ... रोहित ने अंजलि  के सर पर हाँथ फेरते हुए जवाब दिया.

बाबा... ये आप के लिए है.....

ये क्या है... साहब.....

साहब नहीं...बेटा कहिये......अगर आनंद आप का बेटा हुआ..... तो मैं भी तो हुआ.....

पंडित जी निरुत्तर हो कर रोहित....की तरफ देखते रहे.....और हाँथ बढ़ा कर भेंट स्वीकर करी.... एक नया धोती और कुर्ता....और शाल.

ये आप के लिए है बिटिया.....कुमोनिका ने ....अंजलि की तरफ एक तोहफा बढाया.

अंजलि दो कदम पीछे हट गयी.... और पंडित जी की तरफ देखने लगी......

ले ले  बिटिया....पंडित जी ने अंजलि से कहा.

इसकी क्या जरूरत थी.....पंडित जी ने रोहित जी से कहा.

हर चीज़ जरूरत से ही होती है क्या ..... बाबा...कुमोनिका का जवाब  पंडित जी को .

मैं अवाक.... इस अचानक हुए परिवर्तन से......कल तक तो तीर चल रहे थे और आज...... खैर...जो भी हो रहा है.....अच्छा ही हो रहा है......इसके पीछे का सत्य , वक़्त के साथ ही आगे आयेगा.

बाबा....कुछ और बताइए..... आनंद के बारे मैं......आप के साथ तो ३ महीने रहा.

मेरे पास रहा ....साथ तो किसी के नहीं रहा. साथ तो अपने मालिक के रहा और किसी तपस्वनी के.......पंडित जी ने मेरी और देखा.... तुम तो जानती हो राधा बिटिया....साथ तो वो किसी के नहीं रहा.

हाँ....बाबा....साथ तो वो किसी के नहीं रह पाए.

बेटा.... पंडित जी रोहित से मुखातिब हुए....... जहाँ तक मै समझता हूँ.....फ़कीर वो ऐसे ही नहीं बन गया.  टूटने तो वो उसी दिन से लगा था...जिस दिन आप की माँ का देह-अंत हुआ था. ... क्या उसी ने अंतिम संस्कार किया था.

हाँ....मैं पहुँच नहीं पाया था टाइम पर.

सब से छोटा बेटा था क्या.....?

हाँ...क्यों बाबा?

एक कहावत है बेटा....." बड़ेंन का बाप, छोटन का महतारी....बीच वालेन का राम रखवारी".... उसने आप लोगों मे माँ को ढूंढा....लेकिन.....नहीं पाया....फिर ...उसे अपनापन , प्यार, ममता....कोई उसको भी समझे......इन सब चीज़ों ने धीरे धीरे उसको घुन की तरह चाट लिया.....और वो अपने आप को धीरे धीरे सब से  अलग करता चला गया. फिर कोई तपस्वनी आई...उसके जीवन मे......और वो भी तमाम  तरह की जंजीरों में. फ़कीर की हालत उस पंछी जैसी थी....जो उड़ कर जाना तो चाहता था तपस्वनी के पास...लेकिन पैर तमाम तनाबों से बंधे हुए थे..... जितना मुक्त था वो...उतने  ही बन्धनों मे था. इसीलिए सब कुछ छोड़....कर वैरागी हो गया.

मैं...पंडित  जी का चेहरा देखती रह गयी.....इतना सूक्ष्म विश्लेषण......

किसी मालिक.....के सहारे जीता रहा वो.

ये लीजिये...चाय.....अंजलि..सब के लिए चाय ले कर आई.....

सब चुप...सब गुमसुम....मैं अवाक.

पंडित....बाबा....कुमोनिका...का संबोधन ......  भैया......कैसे गुजर -बसर करते थे...?

पंडित जी हल्के से हंसे.......गुजर-बसर.....? बेटी.....पहली बार पंडित जी ने कुमोनिका को इस नाम से संबोधित किया.....उसको कुछ चाहिए नहीं था.....रही खाने पीने की बात.....मैने कई बार उससे कहा की यहीं खा लिया करे , क्यों भिक्षा के लिए जाता है....तो कहने लगा....बाबा....मांग ने अहंकार नहीं रहता. जो मिल गया...ठीक नहीं..तो अल्लाह हाफ़िज़. अमीर था वो.....कुछ नहीं चाहिए था उसे. सब था उसके पास.....

बाबा.....वो भिक्षा मांगने  जाते थे..............?

हाँ... वो जाता  था. एक दिन तो हँस रहा था, क्योंकि  किसी ने उसको २ रुपए दे दिए थे. मैं खामोश......क्या बोलती......के मेरे दरवाजे भी आये थे......


उफ..............हम जरा मंदिर के दर्शन कर ले बाबा...रोहित जी ने आज्ञा मांगी.

बिलकुल बेटा......

बाबा...इतना कैसे पढ़ लिया आप ने फ़कीर  को....मैं पूंछ बैठी पंडित जी से.

राधा .... बेटी....जो डायरी मैने तुमको दी थी.....उसके कुछ पन्ने मेरे पास रह गए थे.....

क्या......वो १२ पन्ने....जिन्होने फ़कीर की डायरी को ८८ तक सीमित कर दिया था. मैं सोचने लगी.....

मैं तो पढ़ नहीं सकता.... और अंजलि समझ नहीं सकती.... सो मेरा काम आसन हो गया. उसने पढ़ दिए...वो पन्ने....मैने समझ लिया...फ़कीर बेटे को....... बेटी....ना जाने क्यों मुझे लगता है की उसकी वो तपस्वनी...यहीं-कहीं आस-पास ही है...तभी तो यहाँ तक खिंचा चला आया.....और यहाँ से फिर इतना आगे चला गया....

मैं बाबा की आसमाँ मैं खोई हुई आँखों को देखती रही.....कहीं इनको पता तो नहीं चल गया की तपस्वनी कौन है...? लेकिन....कहीं  भी फ़कीर ने कोई नाम नहीं लिखा......जाते - जाते भी किसी की तरफ कोई ऊँगली ना उठे .....इसका ध्यान रखा .... मेरे फ़कीर ने.

बाबा.....रोहितजी की आवाज़.....

हाँ बेटा... आ गए आप लोग.

हाँ बाबा.....मन तो नहीं है...लेकिन जाना तो पड़ेगा....क्या मैं अपने भाई को ले जा सकता हूँ.....

बिलकुल..... बाबा ने लाल कपड़े से बंधी हुई मिट्टी की हंडिया रोहित जी के हवाले कर दी....और रो पड़े.

जब छोटा था तब गोद मैं खिलाया था.....आज फिर गोद में है......बदमाश.... रोहित जी रोक ना सके अपने आप को.

अच्छा बाबा,  अब आज्ञा दीजिये.... राधा... तुम्हारा एहसान रहा मेरे उपर......अगर संभव हुआ तो चुकाउंगा...

ऐसा ना कहिये .............

वो लोग चले गए...... गाड़ी की धूल दूर तक उडती रही.....

 चला गया फ़कीर......बाबा चारपाई पर बैठे हुए बोले.

मेरा मन १२ पन्नों में उलझ गया....जो पंडित जी के पास रह गए..... शायद बाबा मरे मन की बात भाँप गए.....और बोले ..बिटिया जो तेरी चीज़ है.. तुझी को मिलेगी......तू जानती है....बिटिया क्या लिखा था उस फ़कीर ने...अंत में....."आज मैं अपने गंतव्य पर पहुँच गया हूँ, मेरा कृष्ण, तपस्वनी, सब मिल गए.....अब यात्रा पूरी हुई" ......

मैं सन्न रह गयी.....बाबा की तरफ देखा....चिंता ना कर बेटी.... फ़कीर और तपस्वनी.... दोनों मेरी ही तो बच्चे हैं......

मैं फूट पड़ी......फ़कीर मैं पहली बार रोई......बाबा ने गले से लगा लिया......

मैं कितना भाग्यशाली हूँ........कृष्ण  भी यहाँ, राधा भी यहाँ.... और फ़कीर भी यहाँ. ये प्रेम.....है. ये ले बेटी वो पन्ने.....मैने पन्ने सर से लगा लिए....

जीती रह बेटी..... तू अमर हो गयी.....

Wednesday, December 8, 2010

मेरा क्या....जारी है...

आज दो दिन हो गए.... लेकिन आनंद का कुछ पता नहीं....कह के गए थे की दूसरे दिन ही आ जायेंगे. आज मन कुछ खराब है....कुछ उदासी... इस वक़्त आनंद की जरुरत है मुझको........

दीदी.... ये तार आया है. .

तार.....किसका तार. तार के नाम से आज भी मेरे गाँव वाले और में भी काँप जाते हैं....पता नहीं क्या खबर आई है.

लाओ काका....यहीं कमरे में दे दो.

लो दीदी..... तबीयत ठीक नहीं है क्या.....?

हाँ काका....कुछ ढीली है.

किसका तार है बिटिया.......माँ कमरे में घुसीं.

आनंद का.....

क्या हुआ...... सब ठीक तो है ना...?

हाँ ठीक हैं.....लिखा है...की कल दोपहर तक आउंगा. काम नहीं हुआ है अभी.

कौन सा काम....बेटी...?

क्या पता माँ...मुझे भी सारी बाते कहाँ बताते हैं........

तू जाने और आनंद जाने.....चाय पियेगी...मैं बना रही हूँ.

दे दो.....माँ....आधा कप.

पूरी बात ना बताने की आनंद की आदत,  ना जाने कब जाएगी. झूठ बोलते नहीं  हैं....सच बताते नहीं हैं. किस काम से शहर  गए हैं... भगवान् जाने. दीनानाथ से पूंछू .... लेकिन क्या ....की आनंद किस काम से शहर गए हैं....? अगर उनको पता चल गया...की मैने पूंछा था..... तो बुरा लगेगा....उनको. खैर....कल तो आ ही रहे हैं. लेकिन मैं आनंद ही आनंद के बारे मैं क्यों सोचती रहती हूँ......ये मुझे क्या हो रहा है...?

ले बेटी....चाय....और जरा तैयार हो जा.

कहाँ जाना है....माँ?

अरे..... दीनानाथ की बिटिया अव्वल आई है ना....उसने बुलाया है....स्कूल वाले भी आ रहे हैं.

ओहो.....तो शायद इस दावत से बचने के लिए....साहब शहर निकल गए......

अच्छा माँ.....मैं अभी आती हूँ.

नमस्कार...प्रिंसिपल साहब.....

अरे...ज्योति बिटिया....कैसी हो? माता जी कहाँ हैं...?

मैं ठीक हूँ.....माँ...भी आईं हैं.

जरा दर्शन तो करवा दो......

हाँ, हाँ ....आइये.

माँ..... प्रिंसिपल साहब.

अरे नमस्कार प्रिंसिपल साहब ..कैसे हैं आप...? मुबारक हो ..... आप के स्कूल की बिटिया अव्वल आई है जिले में.

शुक्रिया.... माता जी. मुबारक तो आनंद को देनी चाहिए.

आनंद को......???

हाँ...सारी मेहनत  और दिशा दर्शन तो उसी का था.

माँ..मेरी तरफ देखने लगी.....मैं क्या बोलती.

अरे...माँ जी ...मिथिला  के साथ रात रात बैठ कर उसी ने तो उसको को पढाया.  आप से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ.....आशा करता हूँ आप निराश नहीं करेंगी....

अरे...ऐसे क्यों कह रहे हैं.... निःसंकोच कहिये.

आप अगर ज्योति बिटिया से कह दे तो वो भी स्कूल में आ कर कुछ योगदान कर दें कुछ दिशा दर्शन कर दें. 

हाँथ कंगन को आरसी क्या, पढे-लिखे को फ़ारसी क्या..... यहीं बात कर देती हूँ. ....ज्योति.....यहाँ आ तो बेटी.

क्या हुआ माँ....बेटी....प्रिंसिपल साहब कह रहे हैं...की अगर तू भी स्कूल जा कर कुछ पढ़ा दे....?

मैं........ थोड़ा सा टाइम दो ना माँ, सोचने के लिए......ये क्या....अब मैं क्या तय करूँ.....तय तो आनंद ही करेंगे...कल.

किसी तरह से रात कटी....सुबह हुई.... आंखे दरवाजे पर...... कब संदेशा आये...की आनंद आगये.....ओहो....अभी तो ९:३० ही बजे हैं.........दोपहर होने को आई....कोई समाचार नहीं......क्या हुआ....?

बिटिया......बाबूजी...कल रात को आगये थे.....काका ने समाचार दिया.....

कल रात को...............?

हाँ दीदी.......जब आप लोग दीनानाथ के घर गए थे, तब वो यहाँ आये थे...ये पर्चा दे गए आप के लिए.....

दो तो....." स्कूल ज्वाइन कर लो, तुम्हारी जरूरत है" शुभाकांक्षी .......आनंद.

मै सन्न रह गयी...........पढ़ कर. ये क्या.... सारा काम कर के गए...और माध्यम बनाया प्रिंसिपल साहब को.

माँ..मैं आनंद जीके घर जा रहीं हूँ....स्कूल के बारे मैं सलाह लेनी है....

ठीक..है..खाना खाने आजाना और उसको भी ले आना.

ठीक  है माँ..... मैं उड़ चली.....

तुम कल रात आ गए....मुझे खबर तक नहीं दी, तार मैं तो लिखा था की कल दोपहर मे आओगे.....तुम्हे पता है मुझे कितनी चिंता थी....१० बार तो काका को यहाँ भेज दिया....कुछ चिंता किसी की हो तो समझो........क्या करूँ मे तुम्हारा.....

बैठ जाओ, सांस ले लो, पानी पी लो ...फिर तीर चलाओ........... आनंद ने शांति से कहा. हाँ अब बोलो.....

क्या काम था शहर में.......जो बिना बताये चले गए......कल दीनानाथ के घर क्यों नहीं आये...?

अरे बाप रे......लड़की हो या टेप  रेकॉर्डर..?

जाओ...... बात मत करो.....

अरे बाबा....मेरा कुर्ता बचा कर गुस्सा थूक दो.....स्कूल तो ज्वाइन कर रही हो ना....

ना ज्वाइन करने की .....गुजाइश कहाँ छोड़ी हैं तुमने....मुझे हंसी आगई.

हाँ...अब ठीक है.....देखो....स्कूल को तुम्हारी और तुम को स्कूल की जरूरत है....घर पर खाली बैठ कर कितनी मक्क्खियाँ मार लोगी..? और खाली दिमाग  शैतान का घर भी होता है.  Post Graduate हो....तो अपना हूनर जाया क्यों कर रही हो....एक बार जब परिवार  की जिम्मेदारी कन्धों पर आ जाती है.....तो ज़िन्दगी सिलबट्टे में चली जाती है. जब तक यहाँ हो.....ज्वाइन कर लो.... उपयुक्त करो तन को.....

मैं एक बार फिर लाजवाब......

३ से साढ़े तीन हज़ार तक तनख्वाह होगी... चाचा जी की पेंशन ... माँ के हाँथ में दे दो..अपने खर्चे के लिए इतना तो काफी है.....बोलो हाँ की ना...?

मै निरुत्तर  आनंद की तरफ देखती रह गयी.....जो बात मैं ना सोच पाई.....वो इस इंसान के दिमाग में है.....आवारा मसीहा.

कब से ज्वाइन करना है.....

कल से......

अच्छा शहर क्यों गए थे......

दीनानाथ की बिटिया की छात्रवृति की बात करने.....

तो वो खुद नहीं जा सकता था.....

ज्योति...आज मिथिला अव्वल आई....तो स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी....कल कुछ और बच्चे अगर स्कूल का नाम रोशन करते हैं..... तो चाचा जी का नाम रोशन होगा ....... चाची जी के लिए कितने गर्व की बात होगी....क्यों छोटी छोटी बातों पर मुँह फूला लेती हो.....मैं जानता हूँ दीनानाथ से तुम्हारी क्या नारजगी है.... उसने मेरा अपमान किया था.....अपने घर बुलाकर...यही ना.... तो ईश्वर ने उसका जवाब  उसको दे दिया ना.....मिथिला को अव्वल दर्जा दिला कर  .....तुम इतनी अच्छी हो...लेकिन कभी-कभी छोटी सी बात पर बिफर जाती हो......

आनंद...........you are too good.

अच्छा..... चलो.....चाय बना दो........मैं समोसे ले कर आया......

आनंद........आनंद .......आवारा मसीहा....आनंद.

वाह रे भाग्य.... वाह रे वाह

क्या लेंगे..... आप लोग.

मैं तो चाय लूँगा, सर में दर्द है ........रोहित का सीधा सा जवाब.

आप......

मैं भी चाय ले लूंगी.......कुमोनिका जी का एहसान करने सा स्वर.

राधा....ये ......आनंद और फ़कीर..... ये क्या है?  रोहित का सवाल और सवाल मे छोटे भाई के ना रहने  का दुःख भी झलका.

भाई साहब.....मैं भी कुछ नहीं जानती हूँ...बस दिवाली से कुछ दिन पहले कोई फ़कीर आया है.... गाँव मे हल्ला हो गया.......मैं  भी मंदिर जाती हूँ... तो वहाँ जाकर उनको देखा तो आंखे फटी रह गयी......यहाँ कोई नहीं जानता की मैं फ़कीर... oh ... sorry .... आनंद को जानती हूँ.

आप से कब मुलाक़ात हुई थी आनंद की...... मेरा प्रश्न..रोहित जी से.

ठीक से तो याद नहीं है..... लेकिन माँ की death  के बाद एक बार घर आये थे.

जुलाई में आये थे..... कुमोनिका का सीधा सा जवाब. तुम्हारे पास भैया की कुछ चीजें हैं...? कुमोनिका का सीधा सा सवाल.

रोहित, कुमोनिका...की तरफ देखते रहे.....

माता जी का स्वर्गवास तो २००४ में हुआ था..ना...२००९ तक आप लोगों ने कोई खबर नहीं ली की आनंद कहाँ हैं....?

खबर कैसे लेते .... जब उसका कोई अता-पता ही नहीं था. हाँ.....सब कुछ छोड़ने की बात करता था....लेकिन मैने कभी इस बात को इतनी गंभीरता से नहीं लिया.... और उसने सब कुछ छोड़ ही दिया......रोहित की आँखों में  कुछ आंसू छलके. अगर तुम बुरा ना मानो ...... तो उसकी चीजे ...मै देख सकता हूँ?  

मै क्यों बुरा मानूँ...... भाईसाहब? बस एक गुजारिश है.

बोलो....

उन चीज़ों मे से जो  आप के काम की ना हों....वो में रख सकती हूँ.......

तुम रख कर क्या करोगी......कुमोनिका जी का एक  और वार.

करुँगी...तो कुछ नहीं....आप के परिवार से २ पुश्तों की जान पहचान है.....बस इसलिए.

राधा....जब आनंद नहीं रहा......तो ये चीजे तुम रखो या मैं रखूं.....क्या फर्क है... रोहित का सुलझा हुआ सा जवाब.

ये लीजिये......२ डायरियां.....एक कलम.....एक घडी...और ये १२ रुपए. ये है उनकी जमापूंजी. और अगर चाहिए तो ये झोला चेक कर लीजिये. .... मै कुमोनिका जी से मुखातिब हुई .

अरे...... ये घड़ी... तो पिता जी की है......और कलम भी.....अभी तक सम्हाल रखा था उसने......

उन्होंने ही तो अभी तक सम्हाल रखा था........

और हाँ..... ये उनका death certificate है.....ये आप के काम का हो सकता है....

सुनो.... शाम हो रही है... चलना भी है? कुमोनिका का रोहित जी को.....

हाँ......जब मौत घर देख लेती है... तो फिर ...... २००१ में  पिता जी..२००४ में माँ और २००९ में....ये.

कहाँ रुके हैं आप लोग....? बच्चे कहाँ हैं...?

इनकी कंपनी का गेस्ट हाउस है....वहाँ रुके हैं. बच्चों  को नानी के घर छोड़ा है....

ओह....तो खाना खा कर जाइएगा.

नहीं ..... राधा.... आज नहीं. कहाँ किया उसका अंतिम संस्कार और किसने किया..?

यहीं हुआ.... और पंडित जी ने किया... वो उनको अपना बेटा मानते थे.....और गाँव वालों के लिए वो फ़कीर थे....और गाँव के बच्चों के लिए....फ़कीर बाबा.....वो और उनका मालिक.

और तुम्हारे लिए.....कुमोनिका का एक और तीर.

मेरे लिए.....हमारे और आपके परिवार  को जोडती हुई कड़ी थे वो.

क्या मैं डायरी देख सकता हूँ....रोहित ... रह रह कर आनंद से जुड़ रहे थे....छोटा भाई था उनका. 

...सही लिखा है उसने....किसी से मोह नहीं था....माँ के बाद...तो और भी अलग हो गया......ये तपस्वनी कौन है.....जिसने उसको फ़कीर बना दिया. ........ लेकिन कहीं भी.....डायरी में, उसने किसी से कोई शिकायत नहीं लिखी. सब के लिए दुआ ही मांगता रहा........तुमने तो अंतिम देखा है उसको......कैसा लगता था..... रोहित रो पड़े. उसके खाने - पीने का......?

भाई असहाब जैसा मैं शुरू में जानती थी, जैसा देखा था...उसका बिलकुल उलटा देखा मैने उनको. वो चुलबुला आनंद, वो शायर आनंद....वो रंगीला आनंद.....सब कुछ गायब हो गया था.....बस मालिक, मौला....और तपस्वनी.....पता नहीं किस चीज़ की तलाश थी उनको.....जिसको ढूंढते रहे.....इस दुनिया मे नहीं मिली... तो उस दुनिया मे चले गए ढूँढने.....पलकें तो मेरी भी नम हो रही थी....शांत....और हर बात पर मुस्करा देना.....ये तो उनकी निशानी बन गयी थी.

भाईसाहब......डायरी का पेज नंबर ८७ पढ़िए ---- कई दिनों  से हँसा नहीं हूँ, अकेले में जब हंसता तो लोग पागल समझ कर एक-दो गालियाँ दे देते हैं, माँ बच्चों को " पागल है कह कर दूर कर लेती हैं, कुछ बच्चे तो पत्थर मार कर भाग जाते हैं" ..............ऊफ.......किस चीज़ की तलाश थी उसको.....

उसके खाने-पीने का...?

भिक्षा.....

क्या.......

हाँ भाईसाहब...... भिक्षा, वो भी सिर्फ दो रोटी. यहाँ से १० कोस दूर एक गाँव है... वहाँ पर इनको दो रोटी वाला फ़कीर कह कर बुलाते थे.

लेकिन भैया.....को तो खाने-पीने का बड़ा शौक था.....

हाँ.....तभी तो अपने आप को चंद गालियों, कुछ अपमान और दो रोटियों में बाँध  लिया था.

लेकिन....बहुत शांत अंत हुआ.....उनका. जो भी उनको चाहिए था....उसी के ध्यान में बैठ गए होंगे .....और कब शरीर छूटा , कोई नहीं जानता.

ये तपस्वनी कौन है....कुमोनिका जी का प्रश्न. तुम तो नहीं........? मैं कुमोनिका जी साहस की दाद दे रही थी की इस मौके पर भी वो अपने तीर छोड़ना ..... ना भूल सकीं.

रोहित.....कुमोनिका, आप जरा खामोश रह सकती हैं.

नहीं भाई साहब...कह लेने दीजिये....ये तपस्वनी कौन है....... किस लिए वो फ़कीर बन गए.... सब जवाब वो अपने साथ लेकर चल गए.

हाँ ...... राधा. मानता हूँ. लेकिन वो किस्मत का बहुत धनी था....की अंत समय में लोगों का प्यार ले कर गया. वही उसने बांटा...वही उसे मिला भी. और कम से कम वहाँ उसके प्राण निकले जहाँ कोई ना कोई तो था जो उसको जानता था, पहचानता था.... लावारिस नहीं गया वो.

अरे.... राधा....आनंद का अस्थिकलश पंडित जी के पास है....उसको भी प्रवाहित करना है.


अभी तक पंडित जी के पास है.....??? इतना मोह.....? एक फ़कीर से..... जिसके अपने, उसके ना हो सके...उसको पंडित जी ने अपनाया.......वैसे भाई साहब....बुरा ना मानियेगा....कुछ चूक आप से भी हुई.

यहाँ पास में कावेरी नदी है...उसी में प्रवाहित कर दीजियेगा.

पिता जी, माता जी को गंगा  में  और छोटे भाई को कावेरी में................सब मेरे ही हाँथो....

वाह रे भाग्य.... वाह रे वाह

वाह रे...भाग्य

पंडित जी...........

कौन है भाई......

अरे मैं.......हूँ.....हरिओम.

आओ.... हरिओम ....कोई चिट्ठी लाए हो क्या...... हरिओम गाँव के डाकिये का नाम है.

अरे ...नहीं बाबा..... शहर से कोई बड़े साहब और मेम  साहब आये हैं..... आप का पता पूंछ रहे थे..... सो मै उनको ले आया.

कौन आया है.....

पंडित जी थोड़ा सिहर गए......क्योंकि किसी से बनावट से मिलना.... उनके चरित्र मे नहीं है....

जी साहब.....? पंडित जी बड़े साहब से मुखातिब हुए.

पंडित जी मेरा नाम  रोहित है और ये मेरी पत्नी कुमोनिका.

जी स्वागत है...कहिये मैं आप के लिए  क्या कर सकता हूँ......

पंडित जी....आप के मंदिर मे कुछ दिनों पहले कोई आदमी रहता था....

साहब...ये मंदिर है....यहाँ लोग आते जाते रहते हैं.....हम किसी का हिसाब नहीं रखते.

ये देखिये......ये तस्वीर.... क्या ये इंसान यहाँ रहा है..... आप को कुछ याद पड़ता है....?

पंडित जी तस्वीर देख....चोंक गए......लेकिन बहुत ख़ूबसूरती से अपने भावों को छुपा गए. आज ७० साल की दुनियादारी का अनुभव काम दिखा रहा था. वो तस्वीर उसी फ़कीर की थी...

जी..... आप का इनसे क्या सम्बन्ध है......अगर आप बुरा न माने....?

जी.... मैं उनका बड़ा भाई और ये उनकी भाभी हैं.

ओह.......अरे..... अंजलि बिटिया....जरा खटिया तो डाल  दे....

हाँ.... बाबा.

आप लोग बैठिये , मैं अभी १० मिनट मे आया. ...... अंजलि ...साहब और मेमसाहब को पानी पिला दे.... अलमारी मे कांच के गिलास हैं...कपड़े से पोंछ लेना.

जी बाबा.....

दिन मे ३ बजे.....दरवाजे की घंटी बजी....कौन है....?

...................अरे बाबा आप......इस वक़्त यहाँ,.................. सब कुशल तो है......?

बिटिया..... फ़कीर  की याद तो हैं ना तुझको ..........

हाँ बाबा... याद है...लेकिन आप इतना हांफ क्यों रहे हो....यहाँ बैठो.

मन ही मन सोचने लगी की बाबा बोल दो...की फ़कीर ज़िंदा है.

उसके बड़े भाई और भावज आये हैं.....

कहाँ.....यहाँ

हाँ.... मंदिर मे बैठा कर आया हूँ. साहब लगते है. मोटर गाड़ी से आयें हैं. मेरे पास कुछ मिठाई नहीं थी...तो लेने के लिए रति लाल की दूकान पर जा रहा था...तो याद आया की पैसे तो है ही नहीं... तू बिटिया २० रुपए दे दे.... कल वापस कर दूंगा....

बाबा................क्या बोल रहे हो. बिटिया भी बोल रहे हो.... और.........

ये लो.... और ये एक डिब्बा मिठाई भी ले जाओ. ..... मैं आऊं क्या.... मंदिर..?

आना चाहे तो आ......

अच्छा आप चलो.....मै आती हूँ. पंडित जी चले गए..... और मै भाग्य के इस खेल पर विस्मित...वहीं बैठ गयी.

उनके भैया और भाभी....... मतलब .... रोहित और कुमोनिका....? यहाँ इस गाँव मे....? क्या काम हो सकता है......?
मैने एक बार फिर....फ़कीर की डायरी ...देखी और फिर से सम्हाल दी.

साहब....माफ़ करियेगा....आप को इंतज़ार करना पड़ा. लीजिये....मिठाई खाइए.

पंडित जी बड़ा शांत वातावरण है यहाँ का. बरगद का पेड़....पोखरा.....काफी समय बाद गाँव देखा.

काम की बात करो..... कुमोनिका जी का..... भाई साहब को आदेश.

अच्छा..पंडित जी आप ने इस इंसान को देखा है....?

हाँ साहब देखा है.... यहाँ पर था.

अच्छा....अब कहाँ होंगे...भैया?

कुमोनिका .... जी का वात्सल्य से भरा स्वर.....

क्या काम आन पड़ा...साहब. ...... आप अगर उचित समझें तो बता सकते हैं. पंडित जी के स्वर में दृढ़ता.

अरे...पंडित जी अब क्या बताऊँ......ये २-३ कागज हैं.... इस पर छोटे भाई के दस्तखत चाहिए थे.....

क्या .... जायदाद के कागज हैं.....पंडित जी ने अपने ७० साल का अनुभव सामने रखते हुए पूंछा.

हाँ .....पंडित जी. लेकिन वो साहब हैं कहाँ......?

वो मेरा बेटा था....पंडित जी का दो टूक जवाब. और अब वो इस दुनिया मे नहीं हैं. आज से पहले आप ने कभी उनको ढूँढने की कोशिश नहीं की.... वो कहाँ है...कैसा है....है भी या नहीं है......

नहीं पंडित जी ऐसा नहीं है.....कुमोनिका जी का रक्षात्मक जवाब. इनके पास टाइम नहीं होता.... फिर बच्चे...और घर....आप तो सब कुछ छोड़ कर मंदिर में रहते हैं.....आप क्या समझ.....

जी...आप ठीक कह रहीं हैं....बेटी.....प्लेट में लगा कर मिठाई ला. और चाय भी ला....चाय तो पीते हैं ना आप लोग.....?

अरे नहीं...पंडित जी इसकी क्या जरूरत है......?

साहब......रति राम की दूकान की मिठाई है.....पास के गाँव तक नाम है उसका. और ये लीजिये... ये मिठाई मेरी एक बेटी ने आप लोगों के लिए भेजी है. ... वैसे साहब.....आप के भाई का नाम क्या था......

आनंद....

जैसा नाम....वैसा ही उसका स्वभाव...पंडित जी अपने आप से बोले.

अच्छा...साहब...अगर वो नहीं मिलेगा...तो आप क्या करोगे?

क्या करेंगे......ढूंढेंगे.

नहीं साहब...वो आप को इतना कष्ट नहीं देगा. ये कह कर पंडित जी अपने कमरे में गए.... और हाँथ मे एक मिट्टी की हंडिया , लाल कपड़े से बंधी हुई, ले कर लौटे.....ये है साहब...आनंद.

क्या.........................ये क्या...................

जी.... आज १५ दिन हो गए. अब इसके दस्तखत की जरूरत नहीं पड़ेगी आप को.....वो एक सतफ़ितेक (certificate ) बनता है...ना आदमी के मर जाने पर.... वो लगा दीजियेगा.....आप के सारे काम आसन कर गया ...आनंद. .... शक ना करिए मेरे उपर.....आप ने जब तस्वीर दिखाई..... तो मैं चौंक  गया.......क्योंकि..... वो तो मेरा फ़कीर था.....मेरा बेटा था......उसकी कुछ चीजें थी...जो यहाँ एक बिटिया.....है...उसके पास हैं......

पंडित जी.....एहसान होगा....अगर आप उन तक हमे पहुंचा  दें.....रोहित का शांत स्वर.

अंजलि....मैं साहब लोगों के साथ.... राधा बिटिया  के घर जा रहा हूँ...जरा मंदिर देख लीजियो.....बिटिया.

जी बाबा.....अंजलि का जिम्मेदारी से भरा जवाब.

राधा बिटिया......देख कौन आये हैं.

आओ...बाबा....कौन है....

मुझे अंदेशा था...नमस्ते...आइये.

अरे राधा..... तुम...?

रोहित... जी का अपनत्व से भरा आश्चर्य .....

तुम....कुमोनिका जी..... का आश्चर्य से भरा... सवाल.

बैठिये.....                                                                                                                             क्रमश:

Tuesday, December 7, 2010

इजहार......

ज्योति....अपने घर चली गयी. मैं उसके सवालों से नहीं उसकी मनोदशा को लेकर चिंतित था. मै उसके मनोभावों को लेकर चिंतित था. क्या मैं गलत हूँ.....? आज काफी समय बाद मेरे अंदर ये शोर मचा. वो शोर...जिसको मैं काफी समय पहले दफना चुका था. अलमारी से गरम चादर निकाल कर मै नदी के किनारे घूमने निकल गया.

ऐसा क्या हुआ...जो मुझे विचलित कर रहा है.....?

मै जिस  दौर से गुजरा हूँ...आम इंसान को तोड़ने के लिए काफी था. नहीं..... मुझे ज्योति से मिलना चाहिए.....चलो. उसीके घर चलते हैं.

क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...........

आप......ज्योति का विस्मित सा स्वर.

हाँ...मैं..................क्यों मैं अंदर नहीं आ सकता हूँ??

आनंद .... ये तुम्हारा ही घर है......उसके मुँह से शब्द निकल गए.  यहाँ तुमको , अगर पूंछ कर आना पड़े.....तो.

अच्छा अब तो से आगे मत बोलना .....

लो बाबूजी .... काका ने एक कुर्सी रखते हुए कहा.

आता हूँ.... जरा चाची को पा लागन तो कह दूँ.

चाची राम - राम.....

अरे.... आनंद बेटा...कब आया तू? तबीयत कैसी है...अब?

अभी आ आया हूँ...चाची और तबीयत तो रानी लक्ष्मी बाई की कृपा से पहले से ठीक है.

ईश्वर की कृपा तो सुनी थी.....ये  रानी लक्ष्मीबाई की कृपा.....? ज्योति.... के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट.

अरे...... चाची.... अब क्या बताऊँ....

लो बाबूजी पानी पी लो............

अब ठंड मे ठंडा पानी पिला दो...काका. इतने दिनों बाद तो चलने लायक हुए हैं.......फिर लिटा दो बिस्तर पर. ज्योति की डांट काका को.

बेटा चाय..पिएगा....?

चाची... जरा अदरक और तुलसी डाल देना. गले को आराम मिलेगा.

अभी लाई....

बैठो लक्ष्मी बाई......ज्योति से मेरा आग्रह.

ये लक्ष्मी बाई- लक्ष्मी बाई क्या लगा रखा है.... बैठते हुए ज्योति का विरोध.

आज बुरा लगा.... सवेरे जो मैने कहा....? मेरा प्रश्न ज्योति से.

नहीं.....

ज्योति..... जो कुछ समझता हूँ....तुमको अपना समझ कर बोल देता हूँ.... अगर बुरा लगा हो...तो मै माफ़ी......

ये क्या कह  रहे हैं......क्या इसलिए आये हो?

सच बोलूं तो हाँ.......तुम्हारे जाने के बाद काफी देर तक सोचता रहा....और मंत्रमुग्ध हो गया तुम्हारी साफगोई पर. कितनी हिम्मत कर के तुमने आज अपना दिल खोला मेरे आगे.

मुरीद तो मै हो गयी आप की....कुछ भी नहीं छुपाया आपने. मेरे सारे सवालों के जवाब दे दिए. कितना संतुलन. मैने आपकी दुखती रग पर हाँथ रखने का पाप आज किया है. बहुत अच्छा किया की आप घर आये. कम से कम दिल को तसल्ली तो हो गयी..नहीं तो आज नींद ना आती. .................बिना रुके हुए ज्योति सारी बातें कहती चली जा रही थी ..मै सुनता रहा......

लो बेटा ...चाय लो.

लाओ चाची..... आज खाने मे क्या बन रहा है.....? रोटी सब्जी.....खाना खा कर ही जाना.

जी चाची....वो बढ़ गयीं रसोई की तरफ.

शुक्रिया..... आप ने खाने के लिए कहा. ज्योति का स्वर.

अरे...भाई...मुझे भी भूख लगती है...?

आनंद ...... आप बहुत सुलझे हुए इंसान हो. मै आप को खोना नहीं चाहती.

खोना...मै भी नहीं चाहता. कई सालों से एक स्वस्थ रिश्ते की खोज मे भटक रहा था. उस खोज पर दुबारा  निकलने का साहस नहीं है.  अगर एक सवस्थ रिश्ता चाहिए... तो एक दूसरे को समझना पड़ता है.....कई बार अपने आप को छोड़ना पड़ता है. जब किसी दूसरे को स्वीकार करें.... तो उसकी हर अच्छाई और हर बुराई के साथ स्वीकार करें....तभी रिश्ता पूर्ण होता है. नहीं तो .... रिश्ते शर्तों पर बनते हैं.......

ठीक कह रहे हो आनंद..... लेकिन..जहाँ मेरा रिश्ता हुआ... वो अगर ऐसा ना सोचते हुए तो?

किसी को अपने साथ लाने के लिए पहले उसको समझो. अपने आप को लादो मत उसके उपर. पति होने के नाते , वो एक इज्ज़त जरूर  चाहेंगे....स्वाभाविक है. और एक पत्नी होने के नाते... तुम थोड़ा  सा प्रेम चाहोगी.... वो भी natural है....लेकिन.....अगर तुमको , उनको अपने साथ लाना है.....तो अपने अंदर एक flexibility जरूर रखना. जैसे बच्चे के साथ बच्चा   बन कर ही खेला जाता है..... और जब वो आप का हो जाए.....तो फिर जो उसको सीखाएँ....बोलो है की नहीं.....?

ज्योति.... ज़िन्दगी बहुत सरल है.....हम सोच-सोच कर, अपनी तरफ से किन्तु-परन्तु लगा कर उसको complicated बना देते हैं......और जब सब उलझ जाता है..... तो किस्मत और भगवान् को दोष देते हैं......बोलो.... इसमे भगवान् का क्या दोष? लो एक शेर सुनो.....

ज़िन्दगी जीने को दी, जी मैने.                                            (बोलो हाँ.... ज्योति ...हाँ)
किस्मत मे लिखा था पी, तो पी मैने.                                   (बोलो हाँ.... ज्योति ...हाँ)
मै ना पीता तो उसका लिखा गलत हो जाता,                       (बोलो हाँ.... ज्योति ...हाँ)
उसके लिक्खे को निभाया, क्या खता की मैने.                       (बोलो हाँ.... ज्योति ..... चुप)

आप भी ना....आनंद...क्या करूँ, मै आप का.

काका..... जरा चाची से पूंछो....के नाराज़ होना है तो होलें....लेकिन  क्या एक कप चाय और मिल जायेगी.

जी..... बाबूजी .... अभी लाया. आप तो वैसे भी इतने टेम बाद आये हो.

आनंद.................... आप लोगों को कैसे जीत लेते हो...?

ज्योति....मेरे बारे मैं.....जो तुम्हारे मन पर प्रभाव है उसको दूर  करो.

क्या प्रभाव..है.... हाय  राम... जरा जानूं तो.

अगर किसी को जीतना है...... तो प्यार बांटो. जहाँ तक मेरा अनुभव जाता है... दुनिया मे हर आदमी दो चीज़ों का भूखा होता है.....

वो क्या भला.......

प्यार और सम्मान....सम्मान का मतलब फूल-मालों से लादना नहीं होता है.

ठीक कह रहे हैं आप......मैं समझती  हूँ.

जो हम देते हैं- वही हमें  वापस मिलता है. ये दुनिया का, कुदरत का नियम है....प्यार दो-प्यार ही वापस मिलेगा, इज्ज़त  दो- इज्ज़त  ही वापस मिलेगी.......

कई बार ऐसा भी होता है...आनंद, की हम तो प्यार बांटते हैं, बदले में गालियाँ मिलती हैं.....अपमान मिलता है....

हाँ ये भी होता है..... लेकिन, दूसरे ने हमे साथ क्या किया...ये बाद मे आता है. हमारा  जो स्वभाव है, जो धर्म है... उस से हम तो विमुख ना हुए..... ये जरूरी है. कर्तव्य    करा...और आगे बढ़ गए. क्यों हम उसके परिणाम जानने  के लिए उससे चिपक जाते हैं... तकलीफ तब होती है....ज्योति.

जिसकी फितरत ही है डसना, वो तो डसेगा,
मत सोचा कर मर जावेगा, 
तनहा-तनहा मत सोच कर, मर जावेगा,

ये सब इतना आसान नहीं है ...आनंद.

मुश्किल भी नहीं.....हमारे उपर है...की हम सूरज की तरफ देखते हैं... या  परछाइं  की तरफ. 

अच्छा एक बात और पूंछु....

बोलो...

जिसको भी आप ने प्रेम किया....क्या उसने कभी आप का हाल-चाल जाने की नहीं कोशिश  करी...? अगर आप जवाब ना देना चाहें....तो रहने दीजियेगा.

नहीं ज्योति.....ऐसा अब कुछ नहीं है...जिससे मै विमुख हूँ. रही बात हाल-चाल जानने की..... किस के पास वक़्त है.... और किस को जरूरत है..? प्लास्टिक के ग्लास मे कोका-कोला पी कर ग्लास को हम जेब या पर्स मे तो नहीं रखते... use and throw.

आनंद...अब आगे कुछ मत बोलो..... कोई कैसे कर सकता है आप के साथ....?


कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता....... खैर छोड़ो.....इन बातों को. मेरा जवाब.

अभी भी आप उसके पक्ष मे बोलते हो......

पगली... ये प्रेम है....कोई चुनाव का मैदान नहीं जहाँ पक्ष और विपक्ष हो.

चाची...... पेट में चूहे दौड़ रहे हैं.......

बस बेटा ....... लगा रही हूँ.....

क्यों झूठ बोल रहें हैं........घर में तो चाय और चुरुट से पेट भर जाता है.....माँ को खुश कर रहे हैं...?

ज्योति....अगर उनको इस बात से ख़ुशी मिल रही है.... तो इसमे कोई नुकसान तो नहीं है?

आनंद...किनती छोटी छोटी बातों का ध्यान रखते हो आप....?

पागल.... ये बाते ध्यान रखने वाली नहीं हैं........हम बड़ी बड़ी खुशियों की तलाश मे , छोटी छोटी खुशियों को नज़रंदाज़ कर जाते हैं......जो हमारे चारों तरफ बिखरी पड़ी हैं......

लाओ चाची...वाह....मूली के पराठे और मेथी का साग......साथ में अदरक की चटनी.... चाची ... तुझे सलाम.

बस कर कर.... चल खा....

और रानी लक्ष्मी बाई की थाली......?

ला रहीं हूँ...उसके लिए भी.

आप जानते हो...आनंद मुझे सबसे बड़ी चिंता किस बात की है...? जब में  चली जाउंगी.... दूसरे घर..तो आप की देखभाल कौन करेगा? आप तो मुँह खोलोगे  नहीं....?

बस चाची .... और नहीं......दो दिन का खाना खा लिया, आज.

सांप हैं क्या आप?

लो सुन लो चाची क्या पूंछ रहीं हैं..... आप की बेटी.

क्या.....?

पूंछ रहीं है की क्या मैं सांप हूँ....?

हाय  राम.... क्यों?

अरे माँ.... सांप जाड़ों मे एक दिन मे इतना खा लेता है की फिर ३- ४ दिन की फुर्सत.

चाची समझा लो बिटिया को......... कहीं डस लिया तो अनर्थ हो जायेगा......

तो डस लो..... डसो तो सही....

मे ज्योति के चेहरा देखता रह गया.

चलो अपना लड़ाई-झगडा खुद ही निपटाओ.

अच्छा चाची... अब चलता हूँ.....

ठीक है  बेटा... आते रहना.

जी... चाची से विदा लेकर मैं बाहर निकला ... ज्योति दहलीज तक आई......

अच्छा .... अब इज्ज़ाज़त  दो.....

आनंद....... ...........

बोलो........

............कुछ नहीं......

उसकी झुकी हुई नज़र.....एक नाज़ुक सी मुस्कराहट सब कह गयी......

इजहार......

दूर ही से सही, तुझ से निस्बत रहे.

कुछ वाक्ये खत्म नहीं होते हैं...... उनको दबा दिया जाता है. और कुछ लोग इस काम मे माहिर होते हैं....आनंद उनमे से एक हैं. अगर कुछ समझाना है... तो शब्दों के जादूगर, और कुछ नहीं बताना है.... तो इतने सीधे जैसे कुछ जानते  ही नहीं हों....कुछ समझते ही नहीं हों. .... उनकी इस आदत पर कभी गुस्सा भी आता ...... और कभी प्यार भी....मैं अभी तक नहीं समझ पाई की मुझ से विवाह की बात वो घुमा क्यों गए.....आज पूंछुगी. सीधे पूंछुगी.....

 माँ.... मैं  आनंद जी के घर जा रही हूँ....

सुन...... ये फल लेती जा....

लाओ.....और सुनो...मेरा खाना वहीं भिजवा देना....

मैं चल दी.....आज मन की सारी दुविधा दूर करने के लिए.

आनंद घर के बाहर ही मिल गए......बाग़ मे थे.....

क्या उखाड़ रहे हैं......

घास-पात.....जो काम की नहीं हो....उसको क्यों व्यर्थ बढने दें.....वो दूसरों का भी रास्ता रोकते हैं.

आनंद का पहला तीर.

तुम बैठो...मे १० मिनट मे आता हूँ.....और सुनो..खाली बैठ कर तो तुमको विचारों के पंख लग जाते हैं......इसलिए... अपने आप को चाय बनाने में व्यस्त कर सकती हो....

आनंद का  फरमाइश करने का अंदाज ऐसा है....की मैं मना कर ही नहीं पाती... या कर नहीं सकती...पता नहीं.

आइये..... चाय... साहब के इंतज़ार में भाप बन कर उडती जा रही है......

जी.....लाइए.....महक  तो दिलकश है...... अब पीकर भी देखली जाए....

आप.....

अरे, अरे.....गुस्सा ना होइए....खूबसूरत लड़कियों को गुस्सा नहीं करना चाहिए.....वो और ख़ूबसूरत लगती हैं.

क्या बात है.... आज सरकार.... बड़े मूड में हैं........

हाँ ... वो तो है.......दीनानाथ की बिटिया ...जिले मे 2nd आई है....दसवीं के इम्तेहान मे.

अरे वाह.....

अरे..... रसोई मे मिठाई रखी है .....लाओ तो. दीनानाथ दे गया था.

जी......मैं सोचने लगी.....आनंद इतने अच्छे मूड में हैं, इतने खुश हैं.....बात करूँ.....या ना करूँ....... चलो देखते हैं....

लो....खाओ. इस मिठाई की मिठास अलग है....इसमे  रानी बिटिया के पसीने की महक है.....

माथे से  पसीने की महक, आये ना जिसके
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता....

आप ने सवेरे - सवेरे कैसे दर्शन  दिए....

आप के दर्शन के लिए आई हूँ......

अरे....वाह..... आप ने तो मुझे भगवान् बना दिया. अरे...मुझे इंसान ही रहने दो. लेकिन...कुछ कहना या पूंछना है तो झिझको  मत....

आप को कैसे पता......की

ज्योति......कितने सालों से जानता हूँ तुमको..... बताओ.....उसके बाद भी अगर इतनी सी बात ना समझ सकूँ तो फिर.......

आप गुस्सा  तो नहीं करोगे.......

आप से , या आप पर कभी गुस्सा किया है......इसका मतलब की आज....कुछ ना कुछ तो जरूर होना है, सामना आज उनसे होना है. ...... बोलो......

आप.....मुझसे शादी क्यों नहीं करना चाहते.....मेरा सीधा सवाल..... आनंद मेरी तरफ देखते रहे....

मैने आप को बताया की माँ-पिता जी मेरे लिए रिश्ता देख रहे हैं.....तभी भी आप ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी. क्यों...? आप अकेले  क्यों और कब तक रहना चाहते हैं......कब तक तो बाद मे...पहले क्यों का जवाब दीजिये....इतना हक तो मैं रखती हूँ....पूंछने का. और मुझे भैया जी वाला आनंद नहीं चाहिए, बाबूजी वाला आनंद नहीं चाहिएमुझे सर वाला आनंद नहीं चाहिए.... मुझे आनंद वाला आनंद चाहिए.....

हम्म्म्म..............तो आज रानी लक्ष्मीबाई आई हैं.

यही समझ लो.....

देखो... ज्योति, हर रिश्ते की एक मियाद होती है.....एक समय सीमा होती है. वो रिश्ता उसके बाद मर जाता है....सोल्हो आने ना सही लेकिन सच है. जब विवाह होता है.....तो एक निश्चित समय बाद घर मे दो लोग रह जाते  हैं.... जिसको समाज पति-पत्नी का नाम देता है. नाम रह जाता है...इंसान मर जाते हैं. सम्मान खत्म हो जाता है.

पति...एक पति, एक पिता, एक बेटा, एक भाई.....और पत्नी... एक पत्नी, एक माँ, एक बहन और एक बेटी बन कर रह जाती है.....मैं ये नहीं कहता की मे सही हूँ......लेकिन, आजकल की जो ज़िन्दगी है ना...ज्योति... वो अपना टैक्स मांगती है. और उस टैक्स को भरते भरते .... कब लकडियाँ मिल गयीं, या कब कब्र नसीब हो गयी यही नहीं पता चलता. मै तुमको ....ज्योति की तरह ही देखना चाहता हूँ..... तुम्हारा अपना जो एक अस्तित्व है.....उसको तुम मिटाओ....या वो मिटे....मुझे गंवारा नहीं.

इसलिए..... तुमपर मेरा एक अधिकार है, या मुझ पर तुम्हारा एक अधिकार है.... और उसकी जो ख़ूबसूरती है.....वो ज्यादा जरूरी है. तुम को अच्छी तरह से ये ज्ञान है...की अगर तुम पर कभी कोई मुसीबत आये..... तो मै हूँ.....एक दोस्त. अगर कभी मेरी जरुरत हुई... तो मै हूँ.....

अगर हर आदमी और औरत आपकी तरह सोचने लगे तो कोई विवाह ही ना हो......

मुझे इस प्रश्न की उम्मीद थी. तुमने प्रश्न मुझसे किया..... और मैने अपनी सोच बताई. मै ये नहीं कहता सब मेरे तरह सोचते हों..... और संभव भी नहीं है.....तुम्हारे घर मे पांच लोग है..... उनसे इस विषय या किसी भी विषय मे राय लो....... पांच अलग-अलग राय मिलेंगी.

क्या आप किसी को प्रेम करते हैं......? मेरे पूर्व सोचे गए सवालों मे से ये आखरी सवाल.

कोई जवाब नहीं..... आज पहली बार आनंद को मैने अपने सामने इतना  खामोश पाया.

क्या मै इस मौन को अपने प्रश्न की स्वीक्रति समझूँ.....?

ज्योति..... प्रेम....गूंगे का गुड़ है. मुझे ये नहीं पता की प्रेम क्या होता है... तो मै तुम्हारे सवाल का क्या उत्तर दूँ...? अगर कोई .... किसी का बिना वजह इंतज़ार करता है.....ना मिलने पर मन बैचैन होता है......जिस सिम्त भी नज़र उठ जाएँ....उसी का इंतज़ार लगे......पल पल अगर वो हो तो कैसा हो, ये सोचने लगे ..... तुझे बरबाद तो होना था खुमार, नाज़ कर नाज़ की उसने तुझे बर्बाद किया. अगर अपने बरबाद होने पर भी गुरूर होना... प्रेम है.... तो मैने प्रेम किया है.

क़त्ल कर के मुझे कातिल ने बहुत हाँथ मले
जब उसने मेरे तडपने का तरीका देखा.

आनंद खामोश हो गए........

मुझे लगने लगा की शायद मैने गलत समय पर सवाल कर दिया...कितने खुश थे आज.

अचानक ...खामोशी टूटी.....ज्योति.... दिल पर कोई बोझ ना लेना. क्योंकि... तुमको सब कुछ पता है....जब  डूबते को तिनके का सहारा मिला... वो तिनका तुम ही हो......तुमने उस वक़्त मेरा साथ दिया....जब सब कुछ बिखर गया था. अब मै अपने आप को इतना मसरूफ रखना चाहता हूँ...की अतीत की पर्छाइ  भी  अगर गुजरे तो मेरे पास उसको देखने  का वक़्त ना हो.

ओह............ सूरज तो सर चढ़ आया.

दीदी..... काका की आवाज़.

आओ काका.....खाना लाये  हो?

हाँ दीदी..... और बाबूजी कहाँ हैं...?

काका राम-राम....कैसे हो.

ठीक हूँ बेटा..... दीनानाथ तो तुम्हारे  के गुण गा रहा हैं    गाँव भर मे.

हाल चाल पूँछ कर आनंद बाहर चले गए...चुरुट पीने... मेरा अंदाज़ से ज्यादा यकीन.

वो क्या भला..... काका से मेरा सवाल....

अरे दीदी.... आप को नहीं पता....?

उसकी बिटिया .... अव्वल आई है जिले में.

हाँ वो तो पता है.....तो ?

अरे.... अपने बाबूजी ही तो पढ़ाते  थे उसको.....

क्या..................????

मै चलता हूँ.... माँ जी ने कुछ सामान भी मंगवाया है बाज़ार से.

..........मै सवेरे - सवेरे से बैठीं हूँ......इतनी बात कर चुके  आनंद....मिठाई... भी खा ली...लेकिन इस इंसान के मुँह से एक बार भी ना निकला......की उसको मै पढ़ाता  था....... हे भगवान्......क्या इंसान हे ये. कोई गालियाँ दे तो सामने खडे हो के खा लेंगे....लेकिन तारीफ़ करे..... तो इधर-उधर बच निकलने का रास्ता ढूंढते हैं......

आनंद ....... तू मिले ना मिले, पर सलामत रहे, दूर ही से सही, तुझ से निस्बत रहे.

अरे वाह... आज तो दावत है......

आनंद....एक बात बोलूं..मानोगे?

तुम उपर कुर्सी पर बैठो....मै नीचे बैठ कर खाऊँगी.....

वो क्यों भला......आज इतना सम्मान किसलिए...?

मै कुछ स्वार्थी हो गयी थी.....इसलिए सिर्फ आनंद मै ही  चाहती थी....लेकिन
आनंद तो सब का है.... और आनंद से है.
सब के आनंद मे ही मेरा आनंद है... और
मेरे आनंद के आनंद मे ही, मेरा आनंद है.

चल....पगली.