कोई अनुशासन ही नहीं है, अजीब आप-धापी मची रहती है...जब देखो. इतना भी ख्याल नहीं रहता है की इन्हीं के बीच से होकर साँसों को भी आना-जाना होता है.....बेचैनियों जरा रास्ता तो दो की सांस आ जाये. रोज़ सांस कम से कमतर होती जा रही है.....जरा सा तो लिहाज करो.....
उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो,
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!एक बाज़ार सा लगा रहता है....मेरे सीने में....हसरतों का.......कई बार तो मैंने साँसों को भी समझाया है की.....साँसों जरा धीरे चलो.....तुम्हारे बेतरतीब आने से भी इबादत में खलल पड़ता है....लेकिन कोई मानने को तैयार ही नहीं है.....एक विद्रोह मेरे अंदर खुद से.....एक क्रान्ति......एक तरफ दिमाग अपनी सारी फौज ले के खडा है...और दूसरी तरफ दिल अकेला. कई बार दिल तो सम्हल जाता है लेकिन दिमाग अपना संतुलन खो बैठता है......और ये लीजिये......फिर दिल ही दिमाग को समझाता भी है.....ये कैसी दुश्मनी है......चल हट पगले .....दिल और दिमाग में दुश्मनी.............कभी हो ही नहीं सकती....
एक बाजू काटने पे तुले थे तमाम लोग,
सोचो, कैसे दूसरा बाजू......... न बोलता.
लेकिन....सीने में होती हुई इस घुटन से मैं परेशान हूँ.....क़िबला.....इसीलिए जब मौका मिलता है...एक दो गहरी सांस ले लेता हूँ.....क्या करूँ...जीना भी तो है.....हज़रात...मैं जिदगी को मजबूरी समझ कर नहीं जीना चाहता....ये तो अल्लाह-ताला की सबसे बड़ी नेमत है.....कम से कम इतना जरूर चाहता हूँ..की ये चादर , जैसी उसने दी है....अगर इसमे मखमल के पैबंद न लगा सकूँ तो कम से कम टाट के पैबंद तो न लगाऊं....बाहर के तूफानों को मैं झेल जाता हूँ.....अपने आप को किसी महफूज़ जगह बंद कर के....लेकिन इन अंदर के तूफानों का क्या करूँ........क्या अपने आप से भाग जाऊं.....लेकिन भाग के जाऊं कहाँ.....
इनको समझाओ..... की देखो, मेरी मानो......एक बात समझ लो....मुझको और तुमको रहना तो साथ साथ ही है...ता-उम्र. .....इसलिए कभी तुम मेरी मानो...कभी मैं तुम्हारी....इस तरह बगावत करने से...तो हासिल कुछ भी नहीं होगा....हाँ एक घुटन जरूर होगी.....देखो साँसों की डोरी को चलने दो....अगर वो सलामत ...तो सब सलामत.
कल दिल ने मुझसे से कहा...की तू तो पागल है....तू एहबाब के साथ रहना चाहता है, दोस्तों के बीच रहना चाहता है.... इसलिए नहीं की तू दोस्त-पसंद इंसान है...बल्कि इसलिए की तू डरपोक इंसान है...दोस्तों के बीच रहकर तेरा अपने आप से सामना ही नहीं होता....अरे उठ सामना कर अपने आप का, क्यों किसी के उपर निर्भर करता है......
कौन देता है यहाँ साथ उम्र भर के लिए,
लोग तो जनाजे में भी कंधा बदलते रहते है.
जब तू अकेला होता है...तो विचार, दिल के भाव, हसरतें, घाव....सब तुझ पर टूट पड़ते हैं..और तू डर कर....अपने आप से भागता है....मत कर ऐसा.... विचार, दिल के भाव, हसरतें, घाव....ये सब तेरे खुद के ईजाद किये हुए हैं....तेरी खुद की तामीर हैं....तोड़ दे इनको और निकल चल इन सब से बाहर....फिर देख.....क्या शानदार मुस्तकबिल तेरा इंतज़ार कर रहा है.....तू कदम तो बढ़ा....वो तुझको गोद में बिठाने को तैयार है, मुन्तजिर है .....लेकिन तू अपने बनाये इस जंजाल से निकल ही नहीं पा रहा है.....
तेरी तामीर के किस्से कहीं लिखे न जायेंगे,
तू जंगल से गुजरने के लिए रस्ता बनता है..........
ये जो हसरतों का जंगल तूने खुद अपने सीने में तामीर किया है....इसको तोड़....इसमे से रस्ता बना....और वो देख..................मुस्तकबिल....शानदार......हाँ...एक बात और...शुक्रिया अदा कर उन लोगों का..जिन्होने तुझको आज इस हाल में ला के छोड़ दिया.....
बुलंदी देर तक किस शख्स की हिस्से में रहती है,
बहुत उंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है.
दिल ने ये कहा है दिल से.
2 comments:
देव जी
दिल ने दिल से क्या कहा है यूं लगा सबके दिल का कहा है…………यही हाल तो हम सबके दिलो का है………
सब कुछ कहकर भी अधूरा रहता है
हर ख्वाब कब किसका पूरा हुआ है
उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!
आह! अब कहने को क्या बचा…………बस यही तो प्रेम की इन्तिहां है…………
धडकनो रुक जाओ कुछ देर के लिये
महबूब का दीदार करने दो
फिर सांस आये ना आये
हसरत तो निकलने दो
wah....bahut khoob
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