Monday, February 14, 2011

१४ फ़रवरी की शाम...

१४ फ़रवरी....बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल के, जो चीरा, तो कतरा-ए- खूँ ना निकला.....
Valientine's day यानी प्रेम का दिन...या प्रेमियों का दिन.....लीजिये हुज़ूर.....अल्लाह ने ३६५ दिन बनाये....इंसान ने उसमे भी अपनी अक्ल लगा दी...आज ये दिन , आज वो दिन.....Valentine day, friendship day, Promise Day, Mother's day, पता नहीं father's day होता है या नहीं....खैर मेरे लिए हर दिन Valentine day होता है....अगर ना हो..तो मर जाऊं.....

मैं किसी की critical analysis नहीं कर रहा हूँ....हर आदमी स्वतंत्र है यहाँ....मैं तो इक अजीब सा हादसा बयाँ कर रहा हूँ जो कल रात मेरे साथ गुजर गया....ऑफिस से लौटते-लौटते १० बज गए थे...मेरे कमरे से कुछ दूर वाले मकाँ से रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी....तो फिर इक अंदरूनी से जंग दो-चार हो गया......क्या हुआ है...इतनी रात को..कौन रो रहा है....मैं जहाँ रहता हूँ....वहाँ के लोगों की बोली मेरी समझ में नहीं आती है....क्या पूंछु..कैसे पूंछु.....१० बज रहे हैं...घर चलो.....आराम करो.....लेकिन इक छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ ने पैरों में बेड़ियाँ पहना दीं..... दिमाग कह रहा था...की अपने घर जा रे.लेकिन पाँव साथ देने को तैयार  ना थे....क्योंकि उस बच्चे की रोने की आवाज़ तो इंसानों जैसी थी.....वो ना तमिल में रो रहा था, ना तेलगु में, ना कन्नड़ा में, ना हिंदी में, ना अंग्रेजी में....नहीं रहा गया में उस झोपडी में पहुँच ही गया....

झोपडी के अंदर रहने वाली माँ की तबियत काफी खराब थी....लोग काफी जमा थे....अस्पताल ले जाने की तैयारी कर रहे थे.....दो बच्चे....उम्र यही कोई ३-४ साल की होगी.....पता नहीं माँ की हालत देख कर या वहाँ पर जमा हुई भीड़ को देख कर रोते ही चले जा रहे थे.......मैं उन दोनों बच्चों को लेकर और उनके साथ कुछ और बच्चे मेरे कमरे पर आ गए....उन बच्चों के पिता ने मुझसे कन्नड़ा में कुछ कहा...जो मेरी समझ में नहीं आया ...लेकिन उसके चेहरे की परेशानी और आँखों में भरे हुए चिंताओं के रंग ने मुझे बताया की वो कह रहा की आप जरा बच्चों को देख लो......मैंने  उससे कहा की आप अस्पताल जाओ...बच्चों की चिंता मत करो........में हिंदी...वो कन्नड़ा...लेकिन प्रेम की भाषा वो भी समझ गया..और मैं भी.....

तुम तो जानती हो ज्योति......मेरे पास बच्चों के लायक खिलोने नहीं होते....उनको देने की लिए टॉफियाँ नहीं होती....फिर मैंने पागल या जोकर होने का रूप रचा ...... और खूब नाचा उन बच्चों के बीच, मेरा गान उनकी समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन उनकी तालियों की आवाज़ और पहले तो शर्माती हुई हंसी, और बाद में खुल के हंसती हुई आवाज़ ने मुझ में जोश भर दिया..............और ईनाम में जानते  हो मुझे क्या मिला...............................वो दोनों बच्चे ............. हंसने लगे...........

और उनको हंसता हुआ देख कर, बाकी बच्चे भी खुश हो गए.....और फिर तो मेरे कमरे पर खूब धमा-चौकड़ी  हुई......मैंने महसूस  किया....की जब वो दो बच्चे रो रहे थे.....तो बाकी सारे बचे भी चुप थे.....शायद वो उन बच्चो की चिंता या डर समझ रहे थे...लेकिन जब वो दोनों हँसे....तो सब हँस  पड़े...ख़ुशी  और आंसू ...इनकी कोई भाषा नहीं होती........फिर रात में १२:१५ बजे सब बच्चों के साथ मिलकर मैंने bread  और jam  खाया......

अब तुम  बोलो...इससे अच्छा Valentine day क्या हो सकता है....मैने ख़ुदा से फिर इक इल्तिजा की....

कम से कम बच्चों की  हंसी की ख़ातिर,
ऐसी मिट्टी में मिलाना की खिलौना हो जाऊं.  

2 comments:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

masjid hai bahut door chlo youn kar len
kisi rote hue bachche ko hansaya jaye
aapne to asal me khuda ki ibadat kar li .

vandana gupta said...

सही मायनो मे तो आपने ही मनाया है प्रेम दिवस्…………यही तो इसका अर्थ होता है…………प्यार बांटते चलो…………क्या हिन्दू क्या मुसलमान हम सब है भाई भाई……………इस पंक्ति को सार्थक कर दिया।