ज्योति दीदी....आप को प्रिंसिपल साहब ने बुलाया है.....काका ने स्टाफ रूम में आकर मुझे सूचना दी.
आप की जानकारी के लिए बता दूँ...की स्कूल की स्थापना के समय से ही काका यहाँ पर हैं..इसलिए सब लोग आदर से उन्हें काका कहते हैं.....उनका नाम संपत राम है.
आती हूँ काका......मैं प्रिंसिपल के कमरे की तरफ चल दी.....
अंदर आ सकती हूँ ....सर?
कौन....ज्योति...आओ बेटी. ...बैठो.....सब ठीक है....?
हाँ सर...सब ठीक है. आप ने बुलवाया था....?
हाँ....तुमने कुछ सुना....?
किस बारे में, सर...... ?
आनंद के बारे में....
हाँ सर...सुना है की उन्होंने इस्तीफा दे दिया है......प्रिंसिपल साहब ने एक कागज निकाल कर सामने रख दिया......
ये है.......२ पंक्तियों का इस्तीफ़ा........तुम्हारी उस से कोई बात हुई...?
नहीं सर.....२ दिन पहले घर आये थे....लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं हुई.....
तो मैं इसको स्वीकार कर लूँ...... प्रिंसिपल साहब ने मुझसे पूंछा.
अब मैं क्या जवाब दूँ........मैं प्रिंसिपल साहब का चेहरा देखती रही......
मैं जानता हूँ बेटी और समझता हूँ ...तेरे और आनंद के रिश्ते को, उसकी गहराई को, उसकी पवित्रता को..इसीलिए तुझे यहाँ बुलाया है. तेरी क्या राय है....?
सर..इसको अभी कुछ दिन hold करिए.....जहाँ तक मैं आनंद को जानती हूँ...उनको कुछ दिन का टाइम दे दीजिये...और कुछ दिन का एकांत....वो वापस आयेंगे.
वो है कहाँ.....? तीन दिन से कुछ अता-पता ही नहीं है....संपत को उसके घर भेजा तो घर पे मिला ही नहीं...क्या बाहर गया है...?
बाहर तो नहीं गएँ हैं......लेकिन मैं आज बात करुँगी.
देख ले बेटी......ले ये इस्तीफ़ा तू रख ले, अगर वो माँ जाए तो फाड़ देना...नहीं तो देखेंगे क्या करना है.
ठीक है...सर. ...मैं कमरे से बाहर निकली....तो सोचने लगी कि आश्वासन तो दे दिया है...लेकिन कहाँ खोजू उस आवारा मसीहा को....? बिना बताये गायब हो जाना तो उनके चरित्र की विशेषता है..... चलो शायद मालिन माँ को पता हो.....स्कूल के बाद मैं आनंद के घर की तरफ चल दी.....सब्जीमंडी में ही मालिन माँ मिल गयीं......
अरी...ज्योति बिटिया...तू यहाँ.....? घर जा रही थी क्या...?
हाँ माँ.....आनंद कहाँ हैं....?
आनंद...........घर पर है.....क्यों क्या हुआ है....
कुछ नहीं माँ....ज़रा मिलना है.
मुझ बुढिया से छिपा रही है बेटी....आनंद को मैंने कभी इस हाल में नहीं देखा जैसा पिछले चार दिन से है.....किसी से भी मिलने को मना कर रखा है...संपत २ बार आया, दोनों बार मना करवा दिया.
क्या हुआ माँ...वो ठीक तो हैं....मुझे अंदेशा था की मेरे एक हफ्ते की दूरी ने उनकी क्या हालत कर दी होगी....लेकिन ये दूरी, दूरी नहीं थी......हालात थे....मैं समझा लूंगी उनको.
चल घर चल...मेरा काम हो गया है...घर ही जा रही हूँ.
घर के बाहर बाग़ की दशा देख कर घर के अंदर रहने वाले की दशा का अंदाज हो गया मुझे.
आनंद .......ज्योति आई है.....मालिन माँ का सूचित करने वाला स्वर.
आओ...ज्योति.....एक मलिन सी आवाज़.
अंदर जिस व्यक्ति को देखा उसका नाम उसकी दशा के बिलकुल विपरीत.
ये क्या आनंद....क्या हाल है ये......कब से इस हाल में हो....कहलवा नहीं सकते थे....या मालिन माँ को भी मना कर दिया था की ज्योति को कुछ न बताये....
बैठोगी या खड़े खड़े ही भाषण दोगी....? आनंद का घुटा हुआ सा स्वर.
मैं अभी आती हूँ....मालिन माँ ......मैं अभी आ रही हूँ...ज़रा दो कप चाय बना दो....
अच्छा बिटिया....मालिन माँ का जवाब....वो सोचने लगीं...की इसको क्या हो गया ...आंधी की तरह आई तूफ़ान की तरह चली गयी.....
१० मिनट बाद ज्योति डॉक्टर को ले कर फिर आई....
ह्म्म्म...इनको तो काफी तेज बुखार है....कोई दवा ली.....?
नहीं ली होगी.....ज्योति का विश्वास से भरा हुआ जवाब डॉक्टर को.
साहब को १०३ बुखार है...और कोई दवा नहीं....डॉक्टर ने आग में हवा डालते हुए कहा.
क्रमश: