Wednesday, March 31, 2010

ईमान के शीशों पे बड़ी गर्द जमी है.

ऐ- मालिक , बरस जाये यहाँ नूर की बारिश, 
ईमान  के शीशों पे बड़ी गर्द जमी है.  
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होने लगी है शाम चलो मैकदे चलें,
याद आ रहा है जाम, चलो मैकदे चलें.
दैरों-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके,
है एक ही मुकाम, चलो मैकदे चलें.
अच्छा नहीं पियेंगे , जो पीना हराम है,
जीना न हो हराम, चलो मैकदे चलें
ऐसे फिजां मे, लुत्फे-इ-इबादत न आएगा,
लेना है उसका नाम, चलो मैकदे चलें