ये हमारे नेता हैं........ महिलाओ के संसद मे आरक्षण हो जाने से इनकी तो नानी मर गयी..... ऐसा लग रहा है. बेचारे अपना काबू खो बैठे हैं और जो अनाप शनाप उनके मुँह मे आ रहा बोल रहे हैं या बक रहे हैं , ये निर्णय आप के उपर. महिलाओ के बारे मे उनकी सोच पता चल रही है. लेकिन खामोश....... ये हमारे नेता हैं.
और मजे कि बात तो देखिये , उनके प्रवक्ता उनकी वकालत कर रहे हैं. क्या ये मुर्दों कि संसद है? इतना गुर्दा इनमे नहीं है कि कि गलत बात को गलत कह सकें, चाहे वो पार्टी के नेता ही कह रहे हों? पिछलग्गू, चाटुकार, भ्रष्ट और गुंडों कि पनाहगाह बन गयी है हमारी संसद. जो तिहाड़ या किसी और जेल मे हैं, वो थोडे से बदकिस्मत नेता हैं.
चलो वो तो जो कर रहे हैं, कर रहे हैं, हम क्या कर रहे हैं? हमीं तो उनको वोट देकर संसद मे भेजते हैं. रुपयों कि माला पहनाते हैं. खून मे तोलते हैं. और फिर गालियाँ देते हैं. गुर्दा तो हमारे अंदर भी नहीं हैं, ये मुट्ठी भर नेता (मजबूरी मे मैं नेता का शब्द इस्तेमाल कर रहा हूँ, क्योंकि एक पब्लिक फोरम पे असभ्य भाषा का प्रयोग वर्जित होता है) हमारी मजबूरी हैं, या जरुरत - सोचना पड़ेगा. हमारी क्या मजबूरी है जो सब कुछ जानते हुए भी हमको इनको चुनना ही पड़ता है- शायद कोई भी पढ़ा लिखा शरीफ राजनीति मे नहीं जाना चाहता है, क्योंकि वो गाली गलोज नहीं कर सकता, माइक नहीं तोड़ सकता , असभ्य टीका टिप्पड़ी नहीं कर सकता. तो इसका मतलब हमें इन गुंडों और मवाली जैसे नेताओ को झेलना ही पड़ेगा. क्यों मै सच कह रहा हूँ , न?
और अगर कोई आवाज़ उठाने कि कोशिश करता है तो उसकी माँ, बीबी और बेटियों का जीना हराम कर देते हैं ये नेता और इनके गुर्गे.
लेकिन ये हमारे नेता हैं......... इसीलिए ये हमारे नेता है.
पूंछते हो हाल मेरे कारोबार का, आइने बेचता हूँ मैं, अंधो के शहर में.
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