Wednesday, March 17, 2010

अखिलेश्वर हैं अवलंबन को........

कहते हैं " तलवार से ज्यादा ताकत कलम मे होती है" . सुना तो मैने भी है. लेकिन आजकल कलम पे भी व्यसाय कि गर्द जम गयी है. मेरी कलम मुझे  कितना पैसा दिलवा सकती है, ये भी एक सोच पैदा हो गयी है या हो रही है. मै जब भी कुछ लिखता हूँ तो ये मान कर लिखता हूँ कि exceptions are every where. इसलिए मेरी बात को व्यक्तिगत न लीजिये तो एहसान होगा.

लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी कि " कुछ तो है बात के तहरीर मे तासीर नहीं, झूठे फनकार  नहीं हैं तो कलम झूठे हैं" वो कलम कहाँ गयी , वो फनकार कहाँ गए जिनकी कलम आग लगा देती थी. कहीं न कहीं कुछ तो चूक हो रही है. हम अपने चारो तरफ होते हुए भ्रष्टाचार   को देखते है और उसके साथ जीते हैं और फिर दम घुटने कि शिकायत भी करते हैं. हम samjhotay  करते करते इतनी झुक गए हैं कि ये भूल गए कि " इंसान भगवान् कि  सर्वश्रेष्ठ कृति है." चलिये मे थोड़ा सा दार्शनिक हो जाता हूँ. अगर एक बार भी हम ये मानते हैं कि भगवान्  हमारे अंदर है, तो फिर ये भी मानना पड़ेगा कि उसकी शक्ति भी हमारे  अंदर है. तो फिर हम टूट क्यों जाते हैं, झुक क्यों जाते हैं.  

हमारी हालत बिलकुल वैसी हो गयी है जैसे शेर  का  बच्चा , भेड़ो के बीच रहकर ये भूल गया कि वो शेर का बच्चा है.   क्या कोई रास्ता नहीं है. नहीं,  रास्ता तो है लेकिन उसपे चलने वाले कलेजे नहीं रहे. गुंडों का डर, नेताओ का डर, माफिया का डर, पुलिस का डर, अदालत से मिलने वाली तारीखों पे तारीखे का डर. कितने डर से लड़े कोई.

मै आहवाहन करता हूँ मेरे मित्रो का जो मेरे साथ सहमत हो कि आइये हम लोग कुछ नहीं तो कलम से एक ईमानदार कोशिश तो करे. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद  नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये.

आगे .......... अखिलेश्वर हैं अवलंबन को........ कोई शक ????????

1 comment:

रज़िया "राज़" said...

बडी देर से आपके ब्लोग पर आये पर दुरस्त आये। बढिया ब्लोग।