कुछ दिन पहले परिवार के साथ ऊटी घूमने का प्रोग्राम बनाया. सवेरे सवेरे कार से निकले और चल पड़े.
खेतों की हरियाली, बीच मे गहने जंगल, रास्ते मे छोटे छोटे ढाबे, बारिश के मौसम मे जवां होती नदियाँ, जल प्रपात, यानी हर चीज़ मनमोहक. वाकई मे मन को मोह लेने वाली. हमारी कार के आगे एक ट्रक चल रहा था, जिस पर काफी कुछ लिखा हुआ था....... जैसे...... जगह मिलने पर पास दिया जाएगा, कृपया होर्न दें... आदि आदि. लेकिन जिस पंक्ति ने मुझे छुआ.... वो थी... " कृपया उचित दूरी बनाये रखें .......". मुझे लगा ये तो जीवन मे भी सत्य बैठती है.
जी..... जरा सा मनन करिए इस पंक्ति पर "कृपया उचित दूरी बनाये रखें ......." अगर हम सभी इस को अपना जीवन मंत्र बना ले तो............. नहीं......... हंसिये मत.... सोचिये. अरे नहीं ऐसा मत सोचिये की एक ट्रक वाला अब हमे जीवन का मंत्र सिखायेगा क्या ? हो भी सकता है. हम सब के बीच मे परेशानियां कब बढती हैं, जब हम एक-दूसरे के साथ बहुत घुल-मिल जाते हैं या घुलने -मिलने का प्रयत्न करते हैं. जब हम ज्यादा करीब हो जाते हैं तो एक दूसरे के गुण और अवगुण भी नज़र आने शुरू हो जाते हैं. और फिर हम एक दूसरे की कमियाँ भी देखने लगतें हैं. और जब उन कमियों को हम बर्दाशत नहीं कर सकते तो किनारा करना शुरू कर देते हैं. और रिश्तों मे दरार पड़ जाती है. हम सब उन रिश्तों को ज्यादा महत्व देते हैं जो हमारे मन मुताबिक़ हों. कहने को हम सब एक परिवार हैं. लेकिन परिवार मे एक दूसरे को सहना भी पड़ता है और फिर साथ साथ चलना भी पड़ता है. ... यही तो परिवार की खूबी है.
मै गलत तो नहीं कह रहा हूँ? इसी भूमिका पर मुझे बशीर बद्र साहब की एक शेर याद आ रही है.....
कोई हाँथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज़ का शहर है, जरा फासले से मिला करो.
ये सोचना हमको है की हम पास रह के दूर रहे... या.... दूर रह के पास रहें. इसलिए बंधुओं ....कृपया उचित दूरी बनाये रखें .......
है न लाख दर्जे की बात...........................
1 comment:
अगर उचित दूरी ना बनाई
तो पक्का है तोहार वाहन ठुक जाई
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