Tuesday, July 13, 2010

मेरे घर के आगे "मुहब्बत" लिखा है.

रज़िया................ माँ की आवाज़.

आई अम्मी.........

कहाँ घूमती फिर रही है..........? सवेरे से . चल नाश्ता कर ले.

मै थोड़ा सा परिचय करा दूँ. मेरे घर के पड़ोस मे मकारिम मुल हक़ साहब रहते है. पिछले १७ सालों से हम लोग पडोसी है. एक ही परिवार है, यूँ भी कह सकते हैं. मैं उनकी नमाज़ का कायल हूँ और वो मेरे ध्यान के. उनके २ बच्चे हैं- रज़िया और शमीम.

रज़िया की उम्र ९ साल और शमीम की १२. मेरे दो बच्चे हैं नैना और आनंद. नैना , रज़िया की हम उम्र और आनंद शमीम से एक साल बड़ा. या तो वो मेरे घर मै रहते हैं या मेरे बच्चे उनके घर. रज़िया की अम्मी का नाम शबनम है. उनके मायेके मै कोई जलसा है जिसमे  शिरकत फरमाने वो लोग फैजाबाद जा रहे हैं. घर मे एक अजीब सा त्यौहार का माहोल बना हुआ है. मेरी पत्नी ने कह रखा है की उनके रास्ते का खाना वो बनायेंगी और शबनम कल बाज़ार गयी थी रज़िया और शमीम के लिए नए कपड़े खरीद ने तो नैना और आनंद के भी नए कपड़े आये.

अम्मी........... मैने नैना के साथ नाश्ता कर लिया है और शमीम और आनंद भाई को लेकर चाचा  बाज़ार गए हैं. बच्चे इज्ज़त से मुझे चाचा कहते हैं.

तुम क्यों चची को परेशान कर रही हो.......

कौन मुझको परेशान कर रहा है........... राधिका का सवाल (राधिका मेरी पत्नी का नाम है)

अरे भाभी ........... देखो न. चिड़िया की तरह फुदकने की इसकी आदत अभी गयी नहीं. मै नाश्ता तैयार करके बैठी हूँ ... किसी का पता ही नहीं हैं...

शबनम....... सब ने नाश्ता कर लिया है, मैने सोचा तुम्हारे साथ नाश्ता करू तो मै ये उपमा लाइ हूँ..... लाओ तुमने क्या बनाया है.

भाभी........ अभी कितना काम है. कपडे भी नहीं पैक किये हैं.

शबनम........ सब हो जाएगा.

भाभी आप हो तो हिम्मत बंधी रहती है.

अच्छा .... अच्छा........ मक्खन कम लगाओ. लाओ नाश्ता दो. तुम्हारे भाई साहब कल ये वालिद और वालिदा के लिए लायें है इनको रखो.

भाभी.................

कुछ कहना मत. चुपचाप रखो. अगर छुट्टी की समस्या नहीं होती तो हम सभी फैजाबाद चलते.

कितना अच्छा होता न, भाभी, अगर हम सब लोग चलते.

कोई बात नहीं..... फिर कभी. सेवइयां  तो बड़ी अच्छी............. बनी हैं.

अच्छा...... अभी मैं चलती हूँ. कोई जरूरत तो आवाज़ दे लेना.

जरूर भाभी.

मै और मकारिम मियाँ स्कूल से साथ साथ हैं. मियां उर्दू, फारसी , हिंदी , अंग्रेजी मै माहिर हैं और रात को जब कुरआन शरीफ या भगवद गीता की कहानियां चारों बच्चो को नहीं सुनाते, मियाँ का दिन पूरा नहीं होता. कभी धर्म हमारे बीच नहीं आता. पाँचो टाइम के नमाज़ी हैं.

दीवाली कभी उनके बिना पूरी नहीं होती और ईद कभी हमारे बिना नहीं मनती. एक बार दीवाली की मिठाई पहले उनके घर नहीं तो बुरा मान गए थे , मियाँ.

तुम फर्क करने लगे हो..............?

दिल टूट गया ये सुनकर. माफ़ी मांगनी पड़ी. लेकिन जिस तरह से गले लगा कर बोले " तुम मेरे भाई हो, आइन्दा कभी माफ़ी मांगी तो खुदा मुझे माफ़ नहीं करेगा."

एक बार नैना की तबियत नहीं ठीक थी और मुझे काम के सिलसिले मे बाहर जाना था. परेशान था. मियाँ चेहरे के भाव खूब पढते हैं " घर आये तो सीधे पूंछा क्या बात क्यों परेशान हो?"

नैना बीमार है और मुझे बाहर जाना है.

तो........ जाओ.

बाद मे पता चला की मियाँ ने तीन दिन दूकान नहीं खोली. मियाँ और शबनम ने नैना को गोद से उतारा नहीं.

अगर कभी मैं गुस्से मे मियाँ के लिए कुछ कह दूँ तो राधिका मेरे बीच मे खड़ी हो जाती है.

बाहर के लोग हमे हिन्दू और मुसलमान के रूप मे जानते है. जब इंसान के रूप मे जानना हो......... तो हमारे घर आइयेगा. अगर कभी मुझसे और मियाँ से मिलने का मन हो इलाहाबाद आइये बस धर्म, जाती, सम्प्रदाय का चश्मा उतार दीजियेगा मैं और मिया आपको बाहें पसारे मिलेंगे

मेरे घर का सीधा सा इतना पता है... मेरे घर के आगे "मुहब्बत" लिखा है.






  

1 comment:

सहसपुरिया said...

यही हक़ीक़त है असली हिन्दुस्तान की....अल्लाह नज़रे बद से बचाए.
बहुत अच्छी POST.