एक कील और........ जी हाँ, एक कील और.
अंग्रेजी मे एक कहावत है "A bad man is better then a bad name". क्या आप सहमत हैं?
सुंदर लाल " कटीला" , ये नाम आप ने मेरे ब्लोग्स मे पढ़ा होगा. चलिए आज इनसे आप का परिचय करवाता हूँ. सुंदर लाल रंग रूप मे श्याम वर्ण के हैं, डीलडोल मे सुखे पतले- दुबले. आंखें बिल्ली जैसी चमकती हुई, और होंठो के किनारे से बहता हुआ लाल रंग का पान. अब आप समझ गए होंगे की उनका तखुलुस " कटीला" उनपर कितना फबता होगा.
खैर, मेरे मित्र , जी हाँ, सुंदर लाल जी "कटीला", की ये विशेष आदत है, की वो दूसरों के दोष भी अपने उपर ले लेते हैं और खुद चाहे अंदर से घुट के मर जाएँ, लेकिन जिस के लिया इलज़ाम उठाया, उसकी नज़र न नीचे हो. अब बताइए ऐसे इंसान को , आज कल के जमाने की हिसाब से , आप क्या कहेंगे......... सज्जन या परले दर्जे का बेवक़ूफ़.
आज मै कमियाँ गिनाने बैठा हूँ.... और सुंदर लाल तुमको सुनना पड़ेगा. तुम्हारी सब से बड़ी कमजोरी है , दुनिया को अपना मानना, सब को अपना समझना. तुमको ये क्यों नहीं समझ मे नहीं आता की लोग तुम को इस्तेमाल कर रहे हैं.................? देखो तुमको इस्तेमाल करके कौन कहाँ से कहाँ पहुँच गया.............. और तुम?????
भाईसाहब............... मै आप की हर दलील से इतेफाक रखता हूँ.... मै हूँ ही ऐसा..... आप एक बात बताइए . इंसान का जो स्वभाव होता है, वो तो ईश्वर की देन है....? मानते हैं...?
हाँ मानता हूँ.
तो क्या चंद लोगों की ख़ातिर आप उस परमपिता की दी हुई अनमोल भेंट को अस्वीकार कर देंगे.
नहीं............
अरे अगर लोग मुझको इस्तेमाल करते हैं , तो इसका मतलब तो यही हैं की मै किसी लायक हूँ...? अगर मै नालायक होता तो क्या वो मुझे इस्तेमाल करते?
नहीं............
तो फिर.
रही अंदर - अंदर घुटने की बात. भाई, मै जो करता हूँ, या जो मेरे साथ होता है या हो रहा है, वो मेरे कर्म को फल है. तो घुटन कैसी. अरे घुटते तो वो होंगे जिनकी नीयत ठीक न हो.
सुंदर लाल तुम तो दार्शनिक हो गए हो.
दार्शनिक या बेवक़ूफ़...... ये भगवान् जानता है. जब तक लोग अपने अपने पूर्वाग्रहों मे फंसे रहेंगे....... इंसान कैसे सुधरेगा.
हम सभी किसी से जब मिलते हैं तो अगर उनके बारे मे कोई पूर्वाग्रह है तो उसी नज़र से देखतें है. हमारी ये सोच उस इंसान को ये साबित करने का मौका ही नहीं देती की " मेरे दोस्त, मै वो नहीं हूँ, जो आप मेरे बारे में सोचतें हैं". मुझे याद आती है नूर साहब की वो शेर:-
अब तो बस जान ही देने की है बारी ए नूर,
मैं कहाँ तक करूँ साबित की वफ़ा है मुझ मैं.
सुंदर लाल " तुम पे रोज़ इलज़ाम लगते है.... तुमको तकलीफ नहीं होती??
तकलीफ......... होती है भाईसाहब ... जरुर होती. इंसान हूँ कोई, पत्थर तो नहीं.
फिर.....
फिर क्या...
तुम जवाब क्यों नहीं देते.....
भाई साहब.... अंधो के आगे रोना, अपने नैना खोना.
फिर तुम कैसे सब पी जाते हो.
भाईसाहब... मेरे उपर और सब कामों की इतनी मोटी चादर है, की इतना वक़्त मेरी पास नहीं है. की मै इनसब पर सोचूं. वक़्त और भगवान् .... ये दोनों मेरी साथ न्याय जरुर करंगे..... क्या सच है, क्या झूठ... वक़्त के साथ सब सामने आएगा.....और किसने मेरे साथ क्या किया, या मैने किसके साथ क्या किया....... इस का निर्णय भगवान् के उपर, क्योंकि वो सर्वज्ञ है.
मै ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ " ए मेरे मालिक, मेरे अंदर जो कमियाँ हैं, मुझे शक्ति दे की मै उनको दूर कर, तेरे करीब आ सकूँ". और अपने दोस्तों से गुजारिश करता हूँ...... एक कील और......
1 comment:
बडी गहरी बात कह दी।
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