Thursday, March 25, 2010

चलो बाँट लेते हैं अपनी सजाएँ

 जो मै ऐसा जानती , प्रीत करे दुःख होये,
नगर ढिंढोरा पीटती , प्रीत न करियो कोए.


लेकिन मै प्रीत या प्रेम के विरुद्ध नहीं हूँ , यदि वो प्रेम है.

क्योंकि प्रेम का दर्द ............... अल्लाह........ इस का मज़ा ही कुछ और है. जिसने भी प्रेम किया होगा, वो मेरी इस बात से सहमत होगा. इस आग मे जलने का मज़ा ही कुछ और है.

 " उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले" .

कितना सही और कितना सच कहा ग़ालिब ने. इस आग मे जलना, वो भी उसके हाँथो जिसे हम प्रेम करते हों, किस्मत वालों को ये दर्द नसीब होता है.


मेरा दिल , जो हैं न, धडकता बहुत है. लोग कहते हैं बीमारी है, मै कहता हूँ मुझे ज़िंदा होने का एहसास दिलवाता हैं ये दिल. हर धडकते हुए पत्थर को लोग दिल समझते हैं, उम्र  बीत है दिल को दिल बनाने में. . और जब भी उसकी याद आती है, तब जो दर्द उठता है , वल्लाह.............. क्या मज़ा देता है. और जानते हो, जब तुम ये दर्द किसी के साथ बाँट न सको और सारा का सारा दर्द अकेले ही बर्दाशत करना पडे.  ये मज़ा दुगना हो जाता है


मेरे मित्र श्रीमान सुंदर लाल जी कटीला, मेरी इस बात से बड़े खफा - खफा से रहते हैं की तुमको जो बात कहनी है सीधे कहो.... भूमिका क्यों बांधते हो. मै उनको कैसे समझाऊं कि-


कौन सी बात कहाँ , कैसे कही जाती है,
ये सलीका हो, तो हर बात सुनी जाती है.








2 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

आपने तो मेरे दिल की बात कह दी.....
...............
यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....

Shikha Deepak said...

हर धडकते हुए पत्थर को लोग दिल समझते हैं,
उम्र बीत है दिल को दिल बनाने में. .
और जब भी उसकी याद आती है, तब जो दर्द उठता है , वल्लाह.............. क्या मज़ा देता है। और जानते हो, जब तुम ये दर्द किसी के साथ बाँट न सको और सारा का सारा दर्द अकेले ही बर्दाशत करना पडे. ये मज़ा दुगना हो जाता है
.......सही कहा है......इसे वही समझ सकता है जिसे यह दर्द मिला हो।