Friday, March 19, 2010

बिक गए बाज़ार में.....

एक पुरानी फिल्म का शीर्षक था " दूल्हा बिकता है" , नहीं ऐसे बात नहीं है कि दूल्हा अब नहीं बिकता है, अब तो और भी ऊँचे दाम पर बिकता है. लेकिन अब बिकने वालों की कतार मे सिर्फ अकेला दूल्हा ही नहीं है. दाम लगाईये , देखिये क्या - क्या नहीं बिकता है.   

प्यार, मुहब्बत की कीमत तो कई बार लगती है और उसके अच्छे खरीदार भी मिल जाते हैं और अच्छे व्यापारी भी. सबसे सफल व्यापारी वो माना जाना चाहिये जो कितने लोगो की संवदनाओ को बेच चुका हो. और नए ग्राहक भी उसको मिल जाते हों. जो बिकने को तैयार न हो, उन्हें  या तो खोटा सिक्का समझा जाता है , या नाकारा. ऐसे माहोल मे वो लोग क्या करें. क्योंकि वो लोग अपनी खुद्दारी के साथ बिकना चाहते हैं. 

उसूलो पे जहाँ आंच आये, टकराना जरुरी  है, 
जो जिन्दा हैं तो ज़िंदा नज़र आना जरुरी है.

सच कहूंगा, एक बार मैने भी बिकने की कोशिश करी, और में बिका भी. लेकिन मै खोटा निकला. क्योंकि मेरे खरीददार ने मुझे ६ महीने इस्तेमाल करने के बाद, रद्दी घोषित कर दिया. हालांकि मै अपने खरीददार को भी बुरा नहीं कहता , क्योंकि, मैने ही उससे कहा कि

" दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइये ,
मेरी ज़बीं पे अपना मुक्क्क़दर सजाइए ,
लोगों ने मुझ पे किये हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
एक बार आप भी तो मुझे आजमाइए"  

लेकिन साहब, मै इस बाज़ार से थोड़ा निराश हूँ. क्योंकि यहाँ पे सारे धान पांच पसेरी ही तोले जाते हैं.

चाहत के बदले में हम तो बेच दे अपनी मर्जी तक,
कोई मिले तो दिल का गाहक, कोई हमे अपनाये तो.  

1 comment:

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi badhiya likha hai aapapne bhahut hi ispastata liye aalekh waqai me aaj ke samya me bhi sab dhan bais paseri hi samajha jata hai.
poonam