गौर से देखो कैसी शांति है उसके चेहरे पे. कोई भी उसको देखकर ये कह सकता है-
उस तशना लब कि नींद न टूटे दुआ करो,
जिस तशना लब को ख्वाब मे दरिया दिखाई दे.
सो ने दो उसको....... आज काफी दिनों बाद नींद आई है उसको क्योंकि अब उसके पास खोने को कुछ भी नहीं बचा है. अभी तक तो वो अपने आप को बहुत संभाल के रखता था, क्योंकि वो अपने आप को किसी कि अमानत मानता था. अब जो उसके पास है वो कोई छीन नहीं सकता और उससे बड़ी कोई दौलत नहीं. जिसकी वो अमानत था, उसने छोड़ दिया है उसको. कल शाम, वो गाँव वाले पीपल के नीचे बैठा था, और गा रहा था-
जिन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं.
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मै, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं.
लोग उसको पागल कहने लगे हैं क्योंकि वो गाँव मे बच्चो को प्रेम का पाठ पढ़ाता है. वो सब के दुःख-दर्द मे शरीक होता है. एक दिन वो सुंदर लाल को समझा रहा था " अमीर वो नहीं है जिसके पास बहुत धन दौलत है, बल्कि अमीर वो है, जिसके पास खोने को कुछ भी नहीं है".
मै भी उसको काफी समय से देख रहा हूँ. वो कितनी दोहरी जिन्दगी जी रहा है, ऐसा मेरा मानना है, ऐसा मुझे लगता है. सोचा चलो उससे दोस्ती करी जाये. लेकिन उसमे भी वो चालाकी कर गया. दोस्ती तो करी और मुझसे मेरे बारे मे सब कुछ पूंछ लिया, जान लिया अपने बारे में कुछ कहने के बजाय , सिर्फ इतना कह दिया - मेरे कलम पे जमाने कि गर्द ऐसी गिरी, मै अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों.
मेरे बारे मे क्या जानना चाहते हैं आप. मैं भी आप लोगो जैसा था........................हमेशा अपने आप को अपने साथ रखता था, और अपना बोझ ढोता था.
आंसुओ कि जहाँ पायेमाली रही, ऐसी बस्ती चिरागों से खाली रही,
दुश्मनो कि तरह उस से लडते रहे, अपनी चाहत भी कितनी निराली रही.
2 comments:
बहुत मार्मिक रचना है पिछली भी पढी बहुत ही गहरे मे डूब कर लिखते हैं आप। । दोनो रचनायें दिल को छू गयी। शुभकामनायें
एक लेखक के दर्द को दिखलाती आपकी रचना बेहद लुभावनी लगी ह्रदय के हर एक तारों को झनझना दिया आपने अपनी कलम से और बड़ी आसानी से कह दिया "श .............वो सो रहा है "
जब आप उसको नहीं जगा सके तो मै तो ठहरा एक व्यंग्य शैली का एक अधना सा लेखक उसको कैसे जगा कर हंसा सकूंगा ! बेहद उम्दा प्रदर्शन
विनय पाण्डेय
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