अभी कुछ देर पहले श्रीमती जी बाज़ार से आई हैं, मेज के उपर थैला रखकर उनके मुंह से एक ही वाक्य निकला " हाय महंगाई" . मैने उनकी तरफ देखा , उन्होने मेरी तरफ देखा और मैने कहा " भगवान् है" . वो बोली अब भगवान् क्या करेगा . वो तो है ही. मैने कहा तुम समझी नहीं. जिस कदर आग लगी है महंगाई की, उस दौर में हम लोग दो टाइम खाना खा रहे है ये किसी चमत्कार से कम नहीं है. एक जमाना था जब गरीब आदमी रोटी और प्याज खा कर काम चला लेता था, आज कल वो अमीरी की निशानी बन गया है.
मेरे अभिन्न मित्र सुंदर लाल "कटीला" ने तो अपनी बैठक मे प्याज , आलू, टमाटर आदि से सजावट कर रखी है. जब मैने उनसे इसका कारण पूछा तो वो बोले भाईसाहब ये कीमती सब्जी है, और कीमती चीजों से घर सजाया है, आप को क्या आपत्ति है. मैने कहा नहीं भाई आपत्ति नहीं , थोड़ा नया सा लगा तो पूछ लिया. वो बोला भाईसाहब, ये सरकार जो न करवाये कम है. उसने मुझे ये ज्ञात करवाया की, भाईसाहब आपने शायद गौर नहीं किया कि सब्जी का अगर आप रेट पूछे तो सब्जी वाला भी पाव भर का ही रेट बताता है. कहीं न कहीं उसको भी डर रहता होगा कि अगर किलो का रेट बता दिया तो ग्राहक भाग न जाये.
अब तो पेट्रोल का रेट भी बढ़ा दिया है, सरकार ने. सोचता हूँ कि ऑफिस जाने के लिए स्कूटर छोड़ कर , बस से जाऊं. लेकिन कमबख्त बस का किराया भी महँगा हो गया. काश बैलगाड़ी का जमाना फिर से लौट कर आता. बैलगाड़ी को ऑफिस में पार्क करता. हरी - हरी घास बैल खाते. कितना अच्छा लगता. मेरी तो पहुँच नहीं है, कोई मेरी पीड़ा आदरणीय प्रधान मंत्री जी को भेज सकता है???
एक दिन सुंदर लाल सपरिवार मेरे घर आ धमका. श्रीमती जी ने खाने मे अरहर की डाल बना दी तो सुंदर लाल ने एक कटाक्ष कर ही दिया " ऊँचे लोग ऊँची पसंद" , जबकि उसको पता नहीं था की जब कोई मेहमान खाने पे आता है, तभी हम लोग अरहर कि दाल खाते है.
मेरे अंदर बड़ी अजीब - अजीब से विचार आते है, जैसे क्या मनमोहन सिंह जी की पत्नी को पता होगा कि आलू या प्याज, या टमाटर या तेल, या आटे, या दाल का भाव क्या है. मुझे शक है. मै भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि हे भगवान् मुझे अगले जन्म मे कोई सब्जी बना कर भेजना. एक बार ही बिकुंगा लेकिन महंगा बिकुंगा और एक बार कटने के बाद तो मुक्ति.
अभी तो आलू, प्याज, आटे, तेल के मुकाबले में मैं ही सस्ता हूँ........
1 comment:
तथास्तु.,...
मँहगाई ने हालत खराब कर दी है सबकी.
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