Sunday, July 11, 2010

अगर उचित लगे...... तो आगे मिलेंगे.

निदा फाजली साहब की एक शेर है
" हर आदमी में होते हैं , दस बीस आदमी.
जब भी किसी को देखना, कई बार देखना".

एक तराजू और अपने आप को नापने का. क्या हम ने कभी ये सोचा है की हम कितनी जिन्दगियाँ एक बार मे जीते हैं? और उनमे से कितनी बार हम मरते हैं.... रोज़ मरते है. और फिर भी एक लम्बी आयु की कामना करते हैं. कुछ याद आया.... जी ठीक वही जो आप सोच रहे है. युधिष्टर - यक्ष संवाद.

किसी के लिए हम कुछ और किसी के लिए कुछ.......... क्या ये जरूरत है या मजबूरी. कुछ  लोग इस कला मै माहिर होते हैं. लेकिन मै इस दोहरी, तिहरी न जाने कितनी जिन्दगियाँ जीते जीते उब गया हूँ, थक गया हूँ. काफी समय से सोच रहा हूँ की मै सिर्फ , मै बन कर जियूँगा. लेकिन कैसे..... क्या मै अपनी  जिन्दगी नहीं जी सकता.

मै खुद, मेरा मन, और मेरा ह्रदय , इन तीनो के बीच रोज़ मरता हूँ. लेकिन अब नहीं............. एक दिन एक सज्जन से मुलाक़ात हुई. उनसे भी मैने इस बात के चर्चा  की तो हंसे और बोले....  तुम अकले नहीं हो. सब हैं. ये और बात की कितने लोग इस त्रिकोण से निकलना चाहते है.

क्या करूँ.........

ध्यान करो........

किस पर, किस का ध्यान ?

ह्रदय पर.......... मालिक का ध्यान.

क्या..............?

हाँ......... तुम ये तो मानते हो की ह्रदय हमारा  केंद्र बिंदु  है. अगर ह्रदय रुक जाये तो इंसान खत्म.

जी. ....मानता हूँ.

ह्रदय मे ईश्वर का निवास है........... मानते हो?

जी....... मानता हूँ.

जैसा हम सोचतें हैं, वैसा हम बनते हैं. ............. जानते हो?

जी..........

अगर मै ये कहूँ की तुम ईश्वर हो........... क्या कहोगे?

मै हाँथ जोड़ता हूँ........... मुझे माफ़ करें.

मै जानता था. अच्छा एक बात बताओ.

तुमने अभी ये माना की ईश्वर का निवास तुम्हारे ह्रदय मे है. तो उसकी शक्तियां भी तुम्हारे अंदर हैं. इस बात को भी मानो और स्वीकार करो. हम सभी को ईश्वर ने असीम शक्ति का मालिक बनाया है बस उसपर माया की चादर डाल दी और हम से कहा जाओ.............चादर हटाओ और अपने आप को देखो.

लेकिन हम.................  माया की चादर हटाने के बजाय उसे लपेट बैठे. बोलो क्या मै गलत कह रहा हूँ.

नहीं.........

इन्सान के उत्थान  के लिए जो जरुरी होता है, ईश्वर ने वो सब हमे दिया.... बुधि और इच्छा शक्ति. Intelligence and will power. ये बात मानते हो?

जी....

लेकिन क्या हम इन दोनो वरदानों का उपयोग उस लिये करते हैं, जिस लिए करना चाहिये?  ध्यान दो मैने "वरदान", शब्द का प्रयोग किया है. हम ईश्वर से वरदान मांगते हैं, भीख मांगते हैं...........हमे ये दे दो, वो दे दो... वो भी हंसता होगा. अरे सब कुछ तो मैने तुमको दे दिया .............. हम  न पहचाने , तो गलती हमारी  है.

ईश्वर ने  बुधि दी, सही - गलत का चयन करने के लिए और इच्छा शक्ति दी, सही मार्ग पर चलने के लिए. उचित समय पर उचित कदम.......... यही तो सफलता का रास्ता है.  और वरदान क्या होता है.

वो तो ठीक है........... लेकिन क्या ध्यान से ये सब संभव है?

ये सब ध्यान से ही संभव है.

अपने आप को समेटो और एक बनो. तुम तो जानते होगे जब नदी मे, या नहर मे एक प्रवाह होता है तो उसकी धार तेज होती है, लेकिन जब उसमे से कई धाराएँ अलग अलग बहती हैं तो उसके प्रवाह की तेजी कम हो जाती है. उसी तरह मन को एक तरफ मोड़ो. उसकी जो इधर-उधर भागने की आदत  है, उस को वश मे करो........ तब तुम पाओगे तुम दस बीस नहीं सिर्फ एक हो. और वो एक तुम नहीं सिर्फ "वो" है.

ध्यान एक साइंस है, ध्यान दर्शन है........... ह्रदय को केंद्र बनाओ. फिर देखो.................... जब तुम उसको अनुभव करोगे तब वहाँ पर अपने आप को ही पाओगे..... इसे ही तो आत्म्साक्ष्त्कार कहते है.

देखो ---------- Read and enjoy or do and become-----------पसदं तुम्हारी है. वो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है, क्योंकि उसके पास असीम समय है " कालोअस्मी" कृष्ण ने कहा गीता मे. तुम ये देखो तुम्हारे पास कितना समय है. उसने तो सिर्फ तुमको यहाँ भेजा था, तुमने अपने आप को हिस्सों मे बाँट लिया....... सोचना,  अगर उचित लगे...... तो आगे मिलेंगे.   

2 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दरता से जीवन दर्शन करा दिया।

Devatosh said...

Vandana ji, bahut bahut shukriya, aap ke protsaahan ki liye.