Wednesday, July 7, 2010

तूफ़ान........

वो तूफानों से बहुत परेशान है.
हमेशा तूफानों से घिरा रहता है. कभी बाहर का तूफ़ान और कभी अंदर. बाहर के तूफ़ान तो कमरे मै बैठकर सहन कर सकते हैं. लेकिन अंदर के तूफानों का कोई क्या करे. चंद जख्मों को छुपाना हो तो कोई बात नहीं, पट्टियां जिस्म पे बांधूं, तो कहाँ तक बांधू. और जब अंदर के तूफ़ान झंझावात मे बदलते हैं, तो कोई क्रांति ही जन्म लेती है.
क्यों भाई साहब ठीक कह रहा हूँ, न. सुंदर लाल का सवाल.

ठीक कह रहे हो. लेकिन इस बगावत का कारण?

मै तंग आ गया हूँ.

अरे........ पहले शांत हो जाओ. लो पानी पियो.

क्या भलाई का जमाना नही रहा? सुंदर लाल का दूसरा सवाल. 

नहीं ऐसा तो नहीं है.

तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों होता है? तीसरा सवाल.

देखो, मुझे नहीं पता की तुम क्यों इतने गुस्से में हो. लेकिन भलाई या बुराई. ये सब आजकल थोड़ी किताबो की बाते हो गयी हैं. आज कल इंसान को देखकर व्यहार किया जाता है. क्यों सबको एक जैसा समझते हो.

तो क्या करूँ?

व्यवहारिक बनो.

मतलब?

आशीष को जानते हो.

कौन वो सिन्हा साहब का लड़का?

हाँ.

क्या हुआ उसको?

कल मिला था. बिलकुल बिखरा हुआ, टूटा हुआ. तिनका तिनका समेटकर उसने अपने आप को सवारां था. और एक तूफ़ान उठा और तबाह कर गया. लेकिन हर तूफ़ान के बाद नयी सुबह भी आती है.

शमाँ को तो जानते होगे? वो एक नयी सुबह ले कर आई. और सिर्फ इतना कहा उसने

तकाजा है वक़्त की तूफा से जूझो , कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
भंवर से लड़ो, न तुम लहरों से खेलो,  कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे



देखो सुंदर लाल, अगर जमाने की चिंता करोगे तो ये तुम्हे चैन से जीने नहीं देगा. अगर जिन्दगी मे आगे बढना है बस अपने लक्ष्य को सामने रखो और बढते चलो. दुनिया ने किसका राहे फ़ना मे दिया है साथ. जैसे जीते आये हो वैसे ही जियो, यहीं उन लोगों को तुम्हारा जवाब होगा.

कद्र करो उनकी जो हर तूफ़ान मे तुम्हारे साथ खडे होते है. किस्मत वाले होते हैं वो लोग.

मत देखो उनकी तरफ जो तूफ़ान बन कर तुम्हारी बर्बादी चाहते हैं, सलाम करो उनको जो तूफ़ान में अपना हाँथ तुम्हारी तरफ बढ़ा कर, तुमको उस से निकालते है. वो अल्लाह के बंदे होते हैं.   

मेरे मौला, मेरे उन दोस्तों को मेरा सलाम.

1 comment:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कहा……………ऐसे साथ निभाने वाले बहुत मुश्किल से मिलते हैं।