धीरे धीर गाड़ी स्टेशन पर रुकी। स्टेशन पर चहल-पहल बढ़ी। चाय वाले के आवाज़ भी सुनाई पड़ने लगी और गर्म समोसे वाले की भी। आनंद डिब्बे से उतरा और पास में पड़ी बेच पर बैठ गया। थोड़ी देर में इंजन ने सीटी दी और चंद मिनटों में स्टेशन पर फिर से सन्नाटा छा गया।
वही स्टेशन , वही भवानी काका की चाय की दुकान , चंद इक्के -ताँगे वाले। आनंद धीरे धीरे बाहर की तरफ चलने लगा , रिक्शा किया और घरकी तरफ चल पड़ा। कितने समय बाद घर लौटा हूँ ? आनंद का अपने आप से सवाल। कुछ भी नहीं बदला , इतने समय में। घर के सामने छोटा सा बगीचा , अभी हरा भरा है , कोई तो इसकी देखभाल कर रहा है , ग़ुलाब अब भी खिले हुए हैं। गुलमोहर के पेड़ से फूल ऐसे गिरे हैं की तमाम रास्ता ही लाल हो गया। बरगद के पेड़ पर झूला अब भी पड़ा हुआ है , लेकिन कोई झूलने नहीं आता। आनंद ने घर की सांकल छनछनाई , लेकिन कोई नहीं आया , हल्का सा धक्का देने से ही द्धार खुल गए और आनंद घर में घुसा , सब चीज़ें वैसी की वैसी ही तो रखीं थीं।
आ गया बेटा। पीछे से एक आत्मीय स्वर सुनाई पड़ा। मालिन माँ , जिनकी कमर अब झुक गयी थी , हाँथ में झोला उठाये , घर में घुसीं. आनंद को गले से लगाकर रो पड़ीं। कितना बदल गया है रे तू ? कितना चुप। मैं सब जानती हूँ। आ बैठ। हाँथ मुंह धो ले और पहले गुड का सरबत पी ले। ढेर सारी बाते करनी हैं तुझसे। आनंद ने मालिन माँ के पैर छुए और वही पास पड़ी आराम कुर्सी पर पसर गया। थक गया था।
मालिन माँ , एक कप चाय पिला दो पहले। तो कुछ आराम मिले। सर में हल्का सा दर्द और भारीपन है। आनंद ने मालिन माँ से कहा।
अभी देते हूँ बेटा।
तेरे जाने के बाद मैं यहीं रहती थी। तेरा बगीचा , देखा तूने , वैसा ही है। रामसरन , हामिद, पंडित जी , अंजलि, रवि, अविनाश सब पूछते थे तेरे बारे मैं। आनंद सुन रहा था , लेकिन वो शून्य में ऐसे देख रहा था जैसे सामने पटल पर कोई पिक्चर चल रही हो। सालों साल पुरानी।
ले बेटा चाय ले। और नहा कर थोड़ा आराम कर ले।
हाँ , मालिन माँ थक गया हूँ।
स्कूल कैसा है , मालिन माँ ? आनंद का प्रश्न।
ठीक है. अब तो काफी बच्चे हो गएँ हैं। दो महीने पहले कोई आया था स्कूल में, बड़ी रौनक थी , रंगीन बत्तियां भी जल रही थीं. कोई जलसा था शायद।
ज्योति की कोई ख़बर है तुझे ? आनंद से मालिन माँ का सीधा सवाल.
आनंद ने मालिन माँ की तरफ देखा और मुस्करा दिया। सुंदर लाल आया था कभी मेरे जाने के बाद ? बात घुमाने के आदत आनंद की
तेरी आदत नहीं गयी , मुस्कराहट में दर्द छुपाने की। मालिन माँ का सालों का अनुभव बोला.
रामदीन आता -जाता रहता है सो खबर मिलती रहती है ज्योति बिटिया की।
आनंद ने सिगरेट जलाई और एक तरकीब में उड़ते हुए धुएँ की तरफ देखता रहा।
कुछ दर्द ऐसे होतें हैं जो कभी नहीं भरते
ज़ब्ते ग़म कोई खेल नहीं है तुम्हें कैसे समझाऊं ,
देखना मेरी चिता कितना धुआँ छोड़ती है।
क्रमश :
वही स्टेशन , वही भवानी काका की चाय की दुकान , चंद इक्के -ताँगे वाले। आनंद धीरे धीरे बाहर की तरफ चलने लगा , रिक्शा किया और घरकी तरफ चल पड़ा। कितने समय बाद घर लौटा हूँ ? आनंद का अपने आप से सवाल। कुछ भी नहीं बदला , इतने समय में। घर के सामने छोटा सा बगीचा , अभी हरा भरा है , कोई तो इसकी देखभाल कर रहा है , ग़ुलाब अब भी खिले हुए हैं। गुलमोहर के पेड़ से फूल ऐसे गिरे हैं की तमाम रास्ता ही लाल हो गया। बरगद के पेड़ पर झूला अब भी पड़ा हुआ है , लेकिन कोई झूलने नहीं आता। आनंद ने घर की सांकल छनछनाई , लेकिन कोई नहीं आया , हल्का सा धक्का देने से ही द्धार खुल गए और आनंद घर में घुसा , सब चीज़ें वैसी की वैसी ही तो रखीं थीं।
आ गया बेटा। पीछे से एक आत्मीय स्वर सुनाई पड़ा। मालिन माँ , जिनकी कमर अब झुक गयी थी , हाँथ में झोला उठाये , घर में घुसीं. आनंद को गले से लगाकर रो पड़ीं। कितना बदल गया है रे तू ? कितना चुप। मैं सब जानती हूँ। आ बैठ। हाँथ मुंह धो ले और पहले गुड का सरबत पी ले। ढेर सारी बाते करनी हैं तुझसे। आनंद ने मालिन माँ के पैर छुए और वही पास पड़ी आराम कुर्सी पर पसर गया। थक गया था।
मालिन माँ , एक कप चाय पिला दो पहले। तो कुछ आराम मिले। सर में हल्का सा दर्द और भारीपन है। आनंद ने मालिन माँ से कहा।
अभी देते हूँ बेटा।
तेरे जाने के बाद मैं यहीं रहती थी। तेरा बगीचा , देखा तूने , वैसा ही है। रामसरन , हामिद, पंडित जी , अंजलि, रवि, अविनाश सब पूछते थे तेरे बारे मैं। आनंद सुन रहा था , लेकिन वो शून्य में ऐसे देख रहा था जैसे सामने पटल पर कोई पिक्चर चल रही हो। सालों साल पुरानी।
ले बेटा चाय ले। और नहा कर थोड़ा आराम कर ले।
हाँ , मालिन माँ थक गया हूँ।
स्कूल कैसा है , मालिन माँ ? आनंद का प्रश्न।
ठीक है. अब तो काफी बच्चे हो गएँ हैं। दो महीने पहले कोई आया था स्कूल में, बड़ी रौनक थी , रंगीन बत्तियां भी जल रही थीं. कोई जलसा था शायद।
ज्योति की कोई ख़बर है तुझे ? आनंद से मालिन माँ का सीधा सवाल.
आनंद ने मालिन माँ की तरफ देखा और मुस्करा दिया। सुंदर लाल आया था कभी मेरे जाने के बाद ? बात घुमाने के आदत आनंद की
तेरी आदत नहीं गयी , मुस्कराहट में दर्द छुपाने की। मालिन माँ का सालों का अनुभव बोला.
रामदीन आता -जाता रहता है सो खबर मिलती रहती है ज्योति बिटिया की।
आनंद ने सिगरेट जलाई और एक तरकीब में उड़ते हुए धुएँ की तरफ देखता रहा।
कुछ दर्द ऐसे होतें हैं जो कभी नहीं भरते
ज़ब्ते ग़म कोई खेल नहीं है तुम्हें कैसे समझाऊं ,
देखना मेरी चिता कितना धुआँ छोड़ती है।
क्रमश :
No comments:
Post a Comment