Monday, March 28, 2016

कभी किसी रोज़ यूँ भी होता . . . . . . 7

शाम ठंडी हो चली थी, रिश्तों की तरह।

आनंद ने हँसते हुए पास पड़ी कुर्सी की तरफ ईशारा करते हुए कहा कि बैठ जाओ या मैं आप के अदब में खड़े हो कर ही बात करूँ।

राधा मुस्कराई और कुर्सी में बैठ गयी।  आनंद भी आराम कुर्सी में  बैठ गया।

और सुनाई  . . .  क्या हाल चाल हैं आपके ,एक लम्बी साँस लेते हुए , बात शुरू करने ले लहज़े में आनंद ने राधा से पूँछा।

सब ठीक है।  एक रटारटाया जवाब, राधा का।

आप बताइए , राधा का प्रश्न , वो कुछ जानना चाहती है, लेकिन खुल के पूँछ नहीं पा रही है।

क्या जानना चाहती हो ? आनंद ने जवाब में कहा।

क्या अब सिर्फ ओपचारिकता रह गयी है , इस रिश्ते में ?

बहुत  जल्दी है अभी ऐसा कुछ कहना लेकिन  गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोर , लाख करो कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है. 

हम्म्म्म  . . . .  .

कुछ पूँछना था आप से।

तो पूँछिये।

आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं ?

राधा , क्या सोचूं। और जब  तक तथ्यों का पता न हो तो खाली assumptions बनाने से क्या हासिल होगा। ऐसा हुआ होगा , या वैसा हुआ होगा , इसलिए ये हुआ या वो हुआ. जब तक ये न पता की आप ने ऐसा किया तो क्यों  किया , तब तक क्या राय बनाऊं। लेकिन बिना किसी गलती के किसी को दण्ड दे देना , क्या उचित होता है? जो मेरे साथ हुआ।  आप के पतिदेव ने मुझसे कहा की मैं आप के घर न आऊं।  मैंने स्वीकार किया।

मैं कैसे कहूं की वो बेवफा है ,
मुझे उसकी मजबूरीयों का पता है।

आप एक भद्र महिला हैं।  और क्या कहूं।

ये सुनकर दोनों बड़ी शोर से हँसे और देर तक.

मैं एक बात पूँछू अगर आप इजाज़त दे, आनंद राधा से।

बिलकुल  . . .  . राधा की आज्ञा।

मैं आप को आप कह के सम्बोधित कर  रहा हूँ , पहले तुम कह के बात करता था।  ये आप को अटपटा नहीं लग रहा है?

लगता है और लग रहा है।

आपने कभी जाहिर नहीं किया।  . . . .

दोनों चुप।

वो ग़ज़ल तो सुनी होगी आपने  . . . .

प्यार जब हद से बढ़ा सारे तकक्लुफ् मिट गए,
आप से फिर तुम हुए , फिर तू का खुँवाँ हो गए।

हम तो उलटी ग़ज़ल गाने लगे  . . . . तू से तुम और फिर आप  .  . . .

 राधा मुस्करा दी।

तो क्या अब सिर्फ औपचारिकता ही रह गयी है ? आत्मीयता नहीं।  राधा का सवाल आनंद से।

आप मुझसे मिलने आज यहाँ आईं हैं , ये आत्मीयता ही है।  लेकिन जब रिश्तों पर वक़्त की जंग लग जाती है तो उसको साफ़ करने में भी वक़्त लगता है। और ये दोनों तरफ से होना चाहिए।  आप को याद होगा एक वक़्त था जब हम लोग घंटो बात करते थे और कौन से बात हमने नहीं की। लेकिन आज हालत ये है की दिन बीत जातें हैं , हफ्ते बीत जाते हैं , किसी को किसी की कोई ख़बर नहीं।

समझौता जो करते हैं , मुहब्ब्त नहीं करते।

आप टूटे नहीं।

वक़्त ने और लोगों ने कोशिश तो काफी करी लेकिन रखते हैं जो औरों के लिए प्यार का जज़्बा , वो लोग कभी टूट कर  बिखरा नहीं करते।                                                                                                                                                                                                                                                                    क्रमश:



  

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