अच्छा , चाचा अब इजाज़त दीजिये , इंशाल्लाह फिर मुलाकत होगी और खाला चाय के लिए शुक्रिया।
सलाम करके आनंद वहां से चल दिया। चलता रहा और चलता रहा. जब उद्देश सामने हो या गंतव्य सामने हो तो चल ने का अंदाज़ में और जब गंतव्य सामने न हो तो चलने के अंदाज़ में फर्क होता है , ये तो मानते हों न आप। यही फर्क आज आनंद के चलने में था। वो चल रहा था लेकिन उसे कहीं जाना न था. पंचो वाला पीपल भी निकला गया , सरजू की चाय की दूकान भी निकल गयी। सूरज भी धीरे धीर सर पर आ रहा था. आनंद
अरे आनंद बाबू !!!
अचानक कान में पड़ी इस आवाज़ ने आनंद को रोका , उसने मुड़ कर देखा तो धनीराम।
अरे धनीराम ! कैसे हो भाई ? आनंद ने पूंछा।
मैं ठीक हूँ , आनंद बाबू। आप कैसे हैं ?कब आये ? चिट्ठी न कोई सन्देश ? सब कुशल तो है न।
अरे भाई ...... रुको , रुको। सांस तो ले लो। आनंद ने हँसते हुए कहा।
अरे मैं धनीराम का परिचय तो कराना भूल गया। वो नाव का मालिक है , जिस पर कभी आनंद और ज्योति जाया करते थे.
सब ठीक है भाई। कुछ समय के लिए शहर चला गया था। अचानक मन उखड़ गया शहर से। तो वापस चला आया। अपनी मिट्टी अपनी ही होती है।
बाबू जी ज्योति बिटिया कैसी हैं ? एक innocent सा सवाल।
और आजकल या अब सिर्फ यही सवाल है जहाँ और जिस पर आनंद चुप रह जाता है.
भाई काफी समय से मुलाक़ात नहीं हुई है इसलिए पता नहीं।
एक दिन चाची मिलीं थीं बाज़ार में। धनीराम ने कहा। लेकिन में थोड़ा जल्दी में था इसलिए नमस्ते कर
के निकल गया।
ह्म्म्म्म्म। ......
अच्छा भाई अभी चलता हूँ। फिर आऊंगा सैर के लिए।
जी आनंद बाबू।
आनंद फिर चल दिया।
वो बरगद तो बड़ा जाना पहचाना सा लगता है , रेल की पटरी पार कर के आनंद थोड़ा आगे बढ़ा ही था तो सब कुछ तो वैसा ही था। वही बरगद , वही पोखरा और वही कृष्ण मंदिर। दिन का समय था , तो शान्ति पसरी हुई थी चारों तरफ. बीच बीच में किसी गाड़ी की आवाज़ सन्नाटे को चीर जाती थी। आनंद वहीँ बरगद के नीचे बैठ गया। पोखरे का शांत पानी। उफ्फ्फ . . . . . . . . बहुत सारी यादें , मतलब बहुत सारी इस जगह से जुडी थीं।
पिता जी . . . . . . . . . . . . . . आनंद भैया।
अब ये आवाज़ किसकी थी और पिता जी कौन हैं , क्या भी बताने की जरूरत है ? चलिए बताता चलता हूँ। वो आवाज़ अंजलि की थी और पिता जी , पंडित जी हैं , जो इस मंदिर के पुजारी हैं।
कुछ समय बाद पंडित जी , अंजलि और आनंद आमने सामने थे। तीनो चुप। जहाँ पर आँखों से बातें हो रहीं हों , वहां शब्दों का प्रयोग अनुचित है।
बोलो अनुचित है न ?
क्रमश :
सलाम करके आनंद वहां से चल दिया। चलता रहा और चलता रहा. जब उद्देश सामने हो या गंतव्य सामने हो तो चल ने का अंदाज़ में और जब गंतव्य सामने न हो तो चलने के अंदाज़ में फर्क होता है , ये तो मानते हों न आप। यही फर्क आज आनंद के चलने में था। वो चल रहा था लेकिन उसे कहीं जाना न था. पंचो वाला पीपल भी निकला गया , सरजू की चाय की दूकान भी निकल गयी। सूरज भी धीरे धीर सर पर आ रहा था. आनंद
अरे आनंद बाबू !!!
अचानक कान में पड़ी इस आवाज़ ने आनंद को रोका , उसने मुड़ कर देखा तो धनीराम।
अरे धनीराम ! कैसे हो भाई ? आनंद ने पूंछा।
मैं ठीक हूँ , आनंद बाबू। आप कैसे हैं ?कब आये ? चिट्ठी न कोई सन्देश ? सब कुशल तो है न।
अरे भाई ...... रुको , रुको। सांस तो ले लो। आनंद ने हँसते हुए कहा।
अरे मैं धनीराम का परिचय तो कराना भूल गया। वो नाव का मालिक है , जिस पर कभी आनंद और ज्योति जाया करते थे.
सब ठीक है भाई। कुछ समय के लिए शहर चला गया था। अचानक मन उखड़ गया शहर से। तो वापस चला आया। अपनी मिट्टी अपनी ही होती है।
बाबू जी ज्योति बिटिया कैसी हैं ? एक innocent सा सवाल।
और आजकल या अब सिर्फ यही सवाल है जहाँ और जिस पर आनंद चुप रह जाता है.
भाई काफी समय से मुलाक़ात नहीं हुई है इसलिए पता नहीं।
एक दिन चाची मिलीं थीं बाज़ार में। धनीराम ने कहा। लेकिन में थोड़ा जल्दी में था इसलिए नमस्ते कर
के निकल गया।
ह्म्म्म्म्म। ......
अच्छा भाई अभी चलता हूँ। फिर आऊंगा सैर के लिए।
जी आनंद बाबू।
आनंद फिर चल दिया।
वो बरगद तो बड़ा जाना पहचाना सा लगता है , रेल की पटरी पार कर के आनंद थोड़ा आगे बढ़ा ही था तो सब कुछ तो वैसा ही था। वही बरगद , वही पोखरा और वही कृष्ण मंदिर। दिन का समय था , तो शान्ति पसरी हुई थी चारों तरफ. बीच बीच में किसी गाड़ी की आवाज़ सन्नाटे को चीर जाती थी। आनंद वहीँ बरगद के नीचे बैठ गया। पोखरे का शांत पानी। उफ्फ्फ . . . . . . . . बहुत सारी यादें , मतलब बहुत सारी इस जगह से जुडी थीं।
पिता जी . . . . . . . . . . . . . . आनंद भैया।
अब ये आवाज़ किसकी थी और पिता जी कौन हैं , क्या भी बताने की जरूरत है ? चलिए बताता चलता हूँ। वो आवाज़ अंजलि की थी और पिता जी , पंडित जी हैं , जो इस मंदिर के पुजारी हैं।
कुछ समय बाद पंडित जी , अंजलि और आनंद आमने सामने थे। तीनो चुप। जहाँ पर आँखों से बातें हो रहीं हों , वहां शब्दों का प्रयोग अनुचित है।
बोलो अनुचित है न ?
क्रमश :
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