जाइए.......बात करवा ले कोई आप से, नहीं नहीं ये मैं नहीं कह रहा हूँ, ये तो वो नामुराद पन्ने हैं जो मन को खींच कर सालों साल पीछे ले जा रहे हैं।
वही गाँव के बाहर, जंगल के पास, ऊँचे टीले पर कृष्ण का मंदिर, टीले से नीचे जाती हुई पगडंडी और दो कोस की दूरी पर पुराना घाट। आज भी सब वही हैं। मदिर भी , पगडंडी भी और घाट भी , कोई नहीं है तो तुम। मंदिर में आज भी शाम को आरती होती है , आरती की आवाज़ दूर तक सुनाई पड़ती है , घंटे -घड़ियालों की आवाज़ भी , लेकिन थोड़ी देर बाद फिर सन्नाटा छा जाता है। और मैं सन्नाटे की आवाज़ को सुनता हूँ। जी हाँ सुनता ही नहीं महसूस भी करता हूँ। लेकिन वो ठंड के मौसम की सुनसान रातें और मंदिर के बरामदे में बैठा हुआ मैं, साधुओं के साथ चिलम , miss करता हूँ। वो बारिश की शाम और ठिठुरती हुई तुम , फिर रमेश की दूकान की गर्म गर्म चाय , याद है।
मयकशी का तो मज़ा इस भरी बरसात में है ,
और बरसात में भी दिन में नहीं रात में है।
लेकिन एक रीतापन , एक खालीपन , एक अकेलापन , हमेशा मेरे साथ रहता है। जो मुझसे ये हमेशा कहता है:-
तुम अपने बारे में कुछ देर सोचना छोड़ो तो मैं बताऊँ, कि तुम किस कदर अकेले हो।
तुम्हे याद है ज्योति हम लोग boat ride पर जाते थे, रामदीन , अरे वही नाव वाला , अभी कुछ दिन पहले गुज़र गया। भला आदमी था। उसकी नाव भी अनाथ जैसी घाट से बंधी हुई है और आती जाती लहरें उससे अठखेलियां करती रहती है। आज काफी दिनों बाद पगडंडी पर चला गया और लो कम्बख़्त मार गाना भी क्या बज रहा है हामिद मियाँ के रेडियो पर ……यकीन होगा किसे कि हम तुम एक राह संग चले हैं।
हँसी आ गयी ..........
सरजू मिला था कल ....... अब तुमको पहले तो ये बताऊँ की सरजू कौन है , तुम्हारे साथ ये भी तो एक समस्या है , की हर किरदार से तुम्हारा तार्रुफ़ करवाऊं पहले, तो कहानी आगे चले. ख़ैर चलो यूँ भी सही।
अरे सरजू , वही मंदिर वाले पंडित जी का बेटा। स्कूल में vice principal हो गया है। चौंक पड़ा मुझको देखकर। काफी देर तक बात करता रहा , तुम्हारे बारे में पूँछ रहा था , बताओ मैं कहता उससे तो क्या कहता ? बोलो , बोलो तो!!!! उसने मुझसे कहा है की मदिर में आके रहूँ , अब बताओ , यायावरों का क्या ठिकाना। आज यहाँ तो कल पता नहीं कहाँ। मैंने उससे कुछ नहीं कहा , मुस्करा दिया। वो कह रहा था की पंडित जी का स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता , मंदिर की देखभाल करलूँ। अब मेरा भी जी ठीक नहीं रहता , ज्योति। लेकिन किसी के साथ बाँट भी नहीं सकता हूँ। मालिन माँ भी अब बूढ़ी हो चलीं हैं , और मेरी फ़िक्र उनको और ज़्यादा परेशान करती है। मैं उनसे ये भी नहीं कह सकता की वो कमला के साथ रह लें , वो उनकी सेवा करेगी और उनको आराम मिलेगा।
तुमको राधा और तपिस्वनी की याद तो होगी। कितने किरदार जी लिए तुमने मेरे साथ। अच्छा एक शेर तुम पर कहूँ, चलो थोड़ी शरारत ही कर लूँ :-
चाँद के शौक़ में तुम छत पे चले मत जाना ,
शहर में ईद की तारीख बदल जायेगी।
जाइए.......बात करवा ले कोई आप से.
वही गाँव के बाहर, जंगल के पास, ऊँचे टीले पर कृष्ण का मंदिर, टीले से नीचे जाती हुई पगडंडी और दो कोस की दूरी पर पुराना घाट। आज भी सब वही हैं। मदिर भी , पगडंडी भी और घाट भी , कोई नहीं है तो तुम। मंदिर में आज भी शाम को आरती होती है , आरती की आवाज़ दूर तक सुनाई पड़ती है , घंटे -घड़ियालों की आवाज़ भी , लेकिन थोड़ी देर बाद फिर सन्नाटा छा जाता है। और मैं सन्नाटे की आवाज़ को सुनता हूँ। जी हाँ सुनता ही नहीं महसूस भी करता हूँ। लेकिन वो ठंड के मौसम की सुनसान रातें और मंदिर के बरामदे में बैठा हुआ मैं, साधुओं के साथ चिलम , miss करता हूँ। वो बारिश की शाम और ठिठुरती हुई तुम , फिर रमेश की दूकान की गर्म गर्म चाय , याद है।
मयकशी का तो मज़ा इस भरी बरसात में है ,
और बरसात में भी दिन में नहीं रात में है।
लेकिन एक रीतापन , एक खालीपन , एक अकेलापन , हमेशा मेरे साथ रहता है। जो मुझसे ये हमेशा कहता है:-
तुम अपने बारे में कुछ देर सोचना छोड़ो तो मैं बताऊँ, कि तुम किस कदर अकेले हो।
तुम्हे याद है ज्योति हम लोग boat ride पर जाते थे, रामदीन , अरे वही नाव वाला , अभी कुछ दिन पहले गुज़र गया। भला आदमी था। उसकी नाव भी अनाथ जैसी घाट से बंधी हुई है और आती जाती लहरें उससे अठखेलियां करती रहती है। आज काफी दिनों बाद पगडंडी पर चला गया और लो कम्बख़्त मार गाना भी क्या बज रहा है हामिद मियाँ के रेडियो पर ……यकीन होगा किसे कि हम तुम एक राह संग चले हैं।
हँसी आ गयी ..........
सरजू मिला था कल ....... अब तुमको पहले तो ये बताऊँ की सरजू कौन है , तुम्हारे साथ ये भी तो एक समस्या है , की हर किरदार से तुम्हारा तार्रुफ़ करवाऊं पहले, तो कहानी आगे चले. ख़ैर चलो यूँ भी सही।
अरे सरजू , वही मंदिर वाले पंडित जी का बेटा। स्कूल में vice principal हो गया है। चौंक पड़ा मुझको देखकर। काफी देर तक बात करता रहा , तुम्हारे बारे में पूँछ रहा था , बताओ मैं कहता उससे तो क्या कहता ? बोलो , बोलो तो!!!! उसने मुझसे कहा है की मदिर में आके रहूँ , अब बताओ , यायावरों का क्या ठिकाना। आज यहाँ तो कल पता नहीं कहाँ। मैंने उससे कुछ नहीं कहा , मुस्करा दिया। वो कह रहा था की पंडित जी का स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता , मंदिर की देखभाल करलूँ। अब मेरा भी जी ठीक नहीं रहता , ज्योति। लेकिन किसी के साथ बाँट भी नहीं सकता हूँ। मालिन माँ भी अब बूढ़ी हो चलीं हैं , और मेरी फ़िक्र उनको और ज़्यादा परेशान करती है। मैं उनसे ये भी नहीं कह सकता की वो कमला के साथ रह लें , वो उनकी सेवा करेगी और उनको आराम मिलेगा।
तुमको राधा और तपिस्वनी की याद तो होगी। कितने किरदार जी लिए तुमने मेरे साथ। अच्छा एक शेर तुम पर कहूँ, चलो थोड़ी शरारत ही कर लूँ :-
चाँद के शौक़ में तुम छत पे चले मत जाना ,
शहर में ईद की तारीख बदल जायेगी।
जाइए.......बात करवा ले कोई आप से.
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