सूरज सर पर चढ़ आया था।
आनंद की आँख खुली , हड़बड़ा के उठ के बैठ गया , इतनी देर तक मैं कैसे सो गया , ये क्या हो गया मुझे।
चाय बन गयी है बेटा , मालिन माँ का स्वर।
आता हूँ।
बरामदे में पड़ी आराम कुर्सी पर बैठ गया , मालिन माँ ने चाय दे दी। तबियत तो ठीक है न, बेटा ?
क्यों , ऐसा क्यों पूँछा ? आनंद ने सवाल के जवाब में सवाल किया।
नहीं , जब से तू आया है कुछ बुझा बुझा सा है , इतनी देर तक कभी तू सोया नहीं। सवेरे रामदीन आया था। पूँछ रहा था तेरे बारे में , मैंने कह दिया अभी तो आनंद सो रहा है। कहा तो नहीं उसने कुछ, लेकिन चौंक जरूर गया।
मलिन माँ का observation कुछ ठीक ही था। लेकिन बुझा सा नहीं हूँ मैं।
लेकिन वही दरो दीवार , वही रास्ते , वही पगडण्डी और वही लोग ........ कुछ अपरिचित से लग रहे थे।
नाश्ते में हरी मटर और चूड़ा बना दूँ। मालिन का सवाल
हूँ ....... आनंद का जवाब।
नाश्ता करके आनंद गाँव में घूमने निकल पड़ा।
वो चमन की सैर , वो फूलों का बिस्तर याद है ,
हुमको अपने दौर का एक एक मंजर याद है।
सर्दी की सुबह , सूरज की चमक से ओस की बूंदें ऐसी चमक रहीं थीं जैसे कुदरत ने हीरे ही बिखेर दिए हैं। इसहाक मियाँ के खेतों से आनंद निकला , तो खेंतों में हरे चने की खुशबू ने रोक लिया , वहीँ मेड़ पर बैठ गया आनंद और चने खाने लगा। कमबख्त दिल। पल में बरसों पीछे चला जाता है। यादों का दायरा भी अजीब है। कभी मन पर बोझ डाल कर उसे डुबो देना चाहती हैं और कभी वही डूबता हुए मन को सहारा भी देतीं हैं।
लो भाई , गर्म गर्म खांड पियो। . अचानक पीछे से आवाज़ आई।
मुड़ कर देखा तो इसहाक मियाँ ख़ुद खांड का गिलास ले कर खड़े थे।
तसलीम , चाचा। आनंद का अभिवादन।
उम्र दराज़ हो आनंद। चाचा की दुआ।
कैसा है ?
ठीक हूँ। आप कैसे हैं ?
करम है अल्लाहताला का।
घर में सब कैसे हैं ?
सब ठीक हैं। रज़िया का निकाह हो गया , पड़ोस वालें गाँव में , उसके शौहर का छोटा मोटा अपना काम है। ख़ुश है। मासीर मियाँ रोज़गार के चक्कर में शहर में हैं , महीने में एक-दो बार आते जाते हैं. यहाँ पर तो मैं हूँ और तुम्हरी खाला।
बड़े दिन बाद आया तू , बेटा ?
हाँ , चाचा। ज़मीन से भाग कर हमे लगता है की हम अपने आप से भाग लेंगे। लेकिन पट्टियां जिस्म पे बांधू तो कहाँ तक बांधू।
चल घर चल , खाला भी तुझे देख कर खुश हो जाएगी। और एक एक कप चाय हो जाएगी.
दोनों चल पड़े। रास्ते खामोश।
ज्योति से मिला ? चाचा का अचानक दागा हुआ प्रश्न।
आनंद ने चाचा की तरफ देखा और सोच में पड़ गया क्या जवाब दूँ।
ऐसे क्या देख रहा है। क्या मैं जानता नहीं हूँ।
नहीं नहीं चाचा ,ऐसी बात नहीं है। पहले जान पहचान तो कर लूँ ज़मीन से।
ह्म्म्म्म्म......दिल पे चोट खायी है मियाँ।
दिल के किस्से कहाँ नहीं होते ,
हाँ सभी से बयाँ नहीं होते।
आनंद इसहाक मियाँ की तरफ देख कर हंस पड़ा। बोला।
लोग कहते हैं मुहबत में असर होता है ,
कौन से शहर में होता है , किधर होता है।
दोनों हँस पड़े।
अरे........ शाहीन बेगम, देखिये कौन तशरीफ़ फ़रमा हैं आज. इसहाक मियाँ ने अपनी बेगम को आवज़ दी।
अरे आनंद बेटा। खाला ने गले से लगा लिया और आनंद की झोली दुआओं से भर दी।
आदाब खाला। आधा झुक कर आनंद ने खाला का सलाम किया।
बेगम , आनंद तो हमारे खेत में घास चर रहे थे ,मैं ले आया इनको घर पर एक कप चाय के लिए।
तीनो खिलखिला के हंस पड़े।
क्रमश:
आनंद की आँख खुली , हड़बड़ा के उठ के बैठ गया , इतनी देर तक मैं कैसे सो गया , ये क्या हो गया मुझे।
चाय बन गयी है बेटा , मालिन माँ का स्वर।
आता हूँ।
बरामदे में पड़ी आराम कुर्सी पर बैठ गया , मालिन माँ ने चाय दे दी। तबियत तो ठीक है न, बेटा ?
क्यों , ऐसा क्यों पूँछा ? आनंद ने सवाल के जवाब में सवाल किया।
नहीं , जब से तू आया है कुछ बुझा बुझा सा है , इतनी देर तक कभी तू सोया नहीं। सवेरे रामदीन आया था। पूँछ रहा था तेरे बारे में , मैंने कह दिया अभी तो आनंद सो रहा है। कहा तो नहीं उसने कुछ, लेकिन चौंक जरूर गया।
मलिन माँ का observation कुछ ठीक ही था। लेकिन बुझा सा नहीं हूँ मैं।
लेकिन वही दरो दीवार , वही रास्ते , वही पगडण्डी और वही लोग ........ कुछ अपरिचित से लग रहे थे।
नाश्ते में हरी मटर और चूड़ा बना दूँ। मालिन का सवाल
हूँ ....... आनंद का जवाब।
नाश्ता करके आनंद गाँव में घूमने निकल पड़ा।
वो चमन की सैर , वो फूलों का बिस्तर याद है ,
हुमको अपने दौर का एक एक मंजर याद है।
सर्दी की सुबह , सूरज की चमक से ओस की बूंदें ऐसी चमक रहीं थीं जैसे कुदरत ने हीरे ही बिखेर दिए हैं। इसहाक मियाँ के खेतों से आनंद निकला , तो खेंतों में हरे चने की खुशबू ने रोक लिया , वहीँ मेड़ पर बैठ गया आनंद और चने खाने लगा। कमबख्त दिल। पल में बरसों पीछे चला जाता है। यादों का दायरा भी अजीब है। कभी मन पर बोझ डाल कर उसे डुबो देना चाहती हैं और कभी वही डूबता हुए मन को सहारा भी देतीं हैं।
लो भाई , गर्म गर्म खांड पियो। . अचानक पीछे से आवाज़ आई।
मुड़ कर देखा तो इसहाक मियाँ ख़ुद खांड का गिलास ले कर खड़े थे।
तसलीम , चाचा। आनंद का अभिवादन।
उम्र दराज़ हो आनंद। चाचा की दुआ।
कैसा है ?
ठीक हूँ। आप कैसे हैं ?
करम है अल्लाहताला का।
घर में सब कैसे हैं ?
सब ठीक हैं। रज़िया का निकाह हो गया , पड़ोस वालें गाँव में , उसके शौहर का छोटा मोटा अपना काम है। ख़ुश है। मासीर मियाँ रोज़गार के चक्कर में शहर में हैं , महीने में एक-दो बार आते जाते हैं. यहाँ पर तो मैं हूँ और तुम्हरी खाला।
बड़े दिन बाद आया तू , बेटा ?
हाँ , चाचा। ज़मीन से भाग कर हमे लगता है की हम अपने आप से भाग लेंगे। लेकिन पट्टियां जिस्म पे बांधू तो कहाँ तक बांधू।
चल घर चल , खाला भी तुझे देख कर खुश हो जाएगी। और एक एक कप चाय हो जाएगी.
दोनों चल पड़े। रास्ते खामोश।
ज्योति से मिला ? चाचा का अचानक दागा हुआ प्रश्न।
आनंद ने चाचा की तरफ देखा और सोच में पड़ गया क्या जवाब दूँ।
ऐसे क्या देख रहा है। क्या मैं जानता नहीं हूँ।
नहीं नहीं चाचा ,ऐसी बात नहीं है। पहले जान पहचान तो कर लूँ ज़मीन से।
ह्म्म्म्म्म......दिल पे चोट खायी है मियाँ।
दिल के किस्से कहाँ नहीं होते ,
हाँ सभी से बयाँ नहीं होते।
आनंद इसहाक मियाँ की तरफ देख कर हंस पड़ा। बोला।
लोग कहते हैं मुहबत में असर होता है ,
कौन से शहर में होता है , किधर होता है।
दोनों हँस पड़े।
अरे........ शाहीन बेगम, देखिये कौन तशरीफ़ फ़रमा हैं आज. इसहाक मियाँ ने अपनी बेगम को आवज़ दी।
अरे आनंद बेटा। खाला ने गले से लगा लिया और आनंद की झोली दुआओं से भर दी।
आदाब खाला। आधा झुक कर आनंद ने खाला का सलाम किया।
बेगम , आनंद तो हमारे खेत में घास चर रहे थे ,मैं ले आया इनको घर पर एक कप चाय के लिए।
तीनो खिलखिला के हंस पड़े।
क्रमश:
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