पंडित जी आनंद को देखते रहे और आनंद पंडित जी को , आगे बढ़कर आनंद ने पंडित जी के पैर छुए और पंडित जी ने आनंद को सीने से लगा लिया। ये वो पल थे जहाँ सिर्फ आँखों से बात हो रही थी , आँसुओं से बात हो रही थी , शब्द अनुपस्थित थे लेकिन हर कोई बोल रहा था , हर कोई सुन रहा था और हर कोई समझ रहा था. आनंद आगे बढ़ा और प्यार से अंजलि के सर पर हाँथ रख कर पूंछा कैसी है?
अंजलि आनंदसे लिपट कर रोने लगी। पंडित जी ने वहीँ बरगद के नीचे खाट बिछा दी और दोनों वहीँ बैठ गए। बिटिया जरा दो कप चाय तो बना ला और देख तो कुछ खाने को है ?
अंजलि चल गयी.
कैसा है बेटा ?
ठीक हूँ , पंडित जी।
आप कैसें हैं , काफी कमजोर हो गऐं हैं।
बेटा , अब 66 का हो गया हूँ। अब भी अगर वक़्त अपने निशाँ नहीं छोड़ेगा तोफिर कब ? भाई घोडा बूढ़ा हो चला है ,पता नहीं सवारी कब साथ छोड़ दे।
अरे छोड़िये पंडित जी , अभी तो आप जवान हैं। थोड़ा सा आनंद का एक परिचित अंदाज़ दिखा।
कैसी रही तुम्हारी यायावरी ?
एक मुस्कराहट आनंद के चेहरे पे तैर गयी। काफी अनुभवी बना दिया है मुझको , अब मैं भी थोड़े अभिमान के साथ कह सकता हूँ की ये बाल धूप में ही सफ़ेद नहीं किये हैं। लेकिन मैं मूर्ख था पंडित जी।
क्यों?
बुद्धिमान तो वो होते हैं जो दूसरों की अनुभव से सीख लेते हैं , और मूर्ख वो जो आग गर्म है , ये जानने के लिए , आग में हाँथ डाल कर उसका अनुभव करते हैं।
ये मूर्खता नहीं है आनंद , अगर स्वर्ग देखना है तो मरना तो पड़ता है।
हम्म्म।
क्या बात है, आनंद , कुछ तल्ख़ी सी क्यों है जबान में और शब्दों में ढीलापन , क्यों?
नहीं , नहीं , तल्खी नहीं। उचाटपन सा जरूर है। बहुत समय हो गया स कुछ अपने अंदर रखते रखते।
कब तक आख़िर , आख़िर कब तक।
झूठी सच्ची आस पे जीना , कब तक आख़िर , आखिर कब तक,
मय की जगह खूने दिल पीना , कब तक आख़िर , आखिर कब तक।
आनंद भैया चाय . . . . . . . अंजलि का आगमन। अंजलि 21 की हो चली है।
आनंद भैया . . . . आप राधा दीदी से मिले। एक साधारण सा सवाल। क्या सवाल साधारण था ?
आनंद को जवाब देने में कुछ देरी और पंडित जी ने आनंद की तरफ देखा। दोनों की आँखे मिलीं . . . . . . .
क्रमश:
अंजलि आनंदसे लिपट कर रोने लगी। पंडित जी ने वहीँ बरगद के नीचे खाट बिछा दी और दोनों वहीँ बैठ गए। बिटिया जरा दो कप चाय तो बना ला और देख तो कुछ खाने को है ?
अंजलि चल गयी.
कैसा है बेटा ?
ठीक हूँ , पंडित जी।
आप कैसें हैं , काफी कमजोर हो गऐं हैं।
बेटा , अब 66 का हो गया हूँ। अब भी अगर वक़्त अपने निशाँ नहीं छोड़ेगा तोफिर कब ? भाई घोडा बूढ़ा हो चला है ,पता नहीं सवारी कब साथ छोड़ दे।
अरे छोड़िये पंडित जी , अभी तो आप जवान हैं। थोड़ा सा आनंद का एक परिचित अंदाज़ दिखा।
कैसी रही तुम्हारी यायावरी ?
एक मुस्कराहट आनंद के चेहरे पे तैर गयी। काफी अनुभवी बना दिया है मुझको , अब मैं भी थोड़े अभिमान के साथ कह सकता हूँ की ये बाल धूप में ही सफ़ेद नहीं किये हैं। लेकिन मैं मूर्ख था पंडित जी।
क्यों?
बुद्धिमान तो वो होते हैं जो दूसरों की अनुभव से सीख लेते हैं , और मूर्ख वो जो आग गर्म है , ये जानने के लिए , आग में हाँथ डाल कर उसका अनुभव करते हैं।
ये मूर्खता नहीं है आनंद , अगर स्वर्ग देखना है तो मरना तो पड़ता है।
हम्म्म।
क्या बात है, आनंद , कुछ तल्ख़ी सी क्यों है जबान में और शब्दों में ढीलापन , क्यों?
नहीं , नहीं , तल्खी नहीं। उचाटपन सा जरूर है। बहुत समय हो गया स कुछ अपने अंदर रखते रखते।
कब तक आख़िर , आख़िर कब तक।
झूठी सच्ची आस पे जीना , कब तक आख़िर , आखिर कब तक,
मय की जगह खूने दिल पीना , कब तक आख़िर , आखिर कब तक।
आनंद भैया चाय . . . . . . . अंजलि का आगमन। अंजलि 21 की हो चली है।
आनंद भैया . . . . आप राधा दीदी से मिले। एक साधारण सा सवाल। क्या सवाल साधारण था ?
आनंद को जवाब देने में कुछ देरी और पंडित जी ने आनंद की तरफ देखा। दोनों की आँखे मिलीं . . . . . . .
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