Monday, December 5, 2011

अच्छा...तुम ही बोलो...तपस्वनी

इस गाँव में कुछ अच्छे मित्र भी हैं.....अरे नहीं..पढे लिखे नहीं हैं....

नैथानी जी.........आप की किराने की दूकान है.

प्रकाश.......रानीखेत और चिलियानौला को जोड़ने वाली सड़क के नुक्कड़ पर इसकी चाय की दूकान है.

बिष्ट जी........सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं.

चन्दन.....मंदिर के पास इसकी चाय - बीड़ी की दूकान है.....

हमसब मे बिष्ट जी ही सब से ज्यादा पढ़े लिखे हैं.......

लेकिन.....इनसब को जाहिल और गंवार समझने की गलती न कर बैठिएगा...जो मैंने करी थी...जब इस गाँव में आया था.....सब इंसान हैं....क्योंकि ये अभी भी दूसरों का दर्द महसूस करते हैं...गाँव में जब भी कोई विपत्ति आई हैं....सब एक साथ दिखे....कोई अपना दमन बचाकर निकलने वाला नहीं है......

शहर में तो जनाजे को भी सब कंधा नहीं देते,
इस गाँव मे छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं.....

रोज़ शाम....को , या यूँ कहिये आठ बजे के बाद....चन्दन की दूकान पर जमावड़ा होता है....और दिन भर का हिसाब किताब............ ये है  यहाँ की जिन्दगी........

तपस्वनी......आज तुम को परिचित करवा रहा हूँ......

उसका नाम है दया पुजारी. मंदिर से कुछ ही दूर उसका घर है.....जब सवेरे धुप की पहली किरण उस का घर चूमती है तो वो तुलसी में पानी डालने बालकोनी में आती है.......ढीले से बंधे हुए बाल, कमर तक झूलती हुई चोटी, श्रधा  से झुकी हुई पलकें, कानो में बालियाँ.....अब और क्या बताऊँ....

देखने में साधारण.
डीलडोल...साधारण.
कद-काठी....साधारण.
स्वभाव......निषछल.
ह्रदय.....साफ़.
नज़र----बेदार. 

नाजुक इतनी की डर लगता है... छुने से मुरझा न जाए.

नाजकी उस के लब की क्या कहिये,
पंखुरी एक गुलाब की सी है.

लेकिन गंभीरता इतनी....की जैसे पर्वत.

अपने आप को हालत में ढाल लेने में..जैसे पानी.....

आज  तक इसको आप सभी से छुपा कर रखा था.....जान का सदका तो सभी उतारते हैं, कोई नज़र का सदका भी तो उतारे....

जुबाँ कम और आंखे बहुत बोलती हैं..... वो कह देती वो सब जो "वो" कहना भूल जाती है.....अब आप का प्रश्न होगा या होना चाहिए....तो उसमें तपस्वनी जैसा क्या है.....?

जी.....पते की बात पूछीं आपने.....उसमें तपस्वनी जैसा क्या है.....?

मैंने उसको अपने आप से लड़ते हुए देखा है. 
मैने उसको दौलत में खेलते हुए देखा है. 
मैंने उसको अपने आप को देते हुए देखा है.....
मैने उसकी आँखों में पानी और होंठो पे हंसी साथ साथ देखी है. 
मैने उसको लाभ और हानि, जय- पराजय, में संभव देखा है.

अब बोलिए उसको क्या नाम दूँ..............

अच्छा...तुम ही बोलो...तपस्वनी   



No comments: