आनंद बेटा......आज खाने में क्या खायेगा......मालिन माँ का हमेशा की तरह कठिन सवाल......
कुछ भी बना दो माँ......हमेशा की तरह आनंद का सरल सा जवाब....
तुझसे तो कुछ पूँछना ही बेकार है......मटर का पुलाव बना देती हूँ.....चाय लेगा....
मालिन माँ....ये भी कोई पूंछने की बात है...जवाब ज्योति का.....मेरे लिए भी बना दो.....ना.
अच्छा....अच्छा...कहते हुए मालिन माँ रसोई की तरफ चल दीं....
आनंद.......
हाँ ज्योति.....आनंद का कुछ चोंकेते हुए सा जवाब
क्या हुआ आनंद...इतना चोंक क्यों गए...लगता है की दिमाग कुछ चल रहा है......कुछ परेशान हो....??
नहीं परेशान तो नहीं..हाँ दिमाग जरुर चल रहा है......
क्या चल रहा है दिमाग में.....बोलोगे.
कुछ ख़ास नहीं...ज्योति.....सोच रहा हूँ...की मेरी जो छवि लोगो के दिमाग में बनी है...एक आवारा, मस्त मौला, लापरवाह...इससे मुझे कितना फायदा है....लोग मेरे बारे में seriously सोचते ही नहीं, मेरे चरित्र की गहराई का अंदाजा नहीं लगा पाते....तो मैं कितनी उलाहनो से बच जाता हूँ....जानतो हो ज्योति...."पर उपदेश कुशल बहुतेरे" ..... लेकिन जो उपदेश हम दूसरों को देते हैं..जब उनको जीने की बारी आती है..न ज्योति.....तब कितने लोग खरे उतरते हैं....
आनंद.....ऊँगली उठाना बहुत आसान है....ख़ास कर दूसरों पर...मुझे सब कुछ पता है....जो जो तुम सुन रहे हो, जो जो उंगलियाँ तुम पर उठ रहीं हैं.... लेकिन मैने अभी तक तुमको अपना धैर्य खोते हुए नहीं देखा.....और खोना भी मत.....ये सब बरसाती मेंढक हैं...जो सिर्फ टर्र टर्र करते हैं..वो भी जब तक बरसात होती है....
ले बेटा...चाय......और ये ले मटर का पोहा....मालिन माँ...का अवतरण......
ज्योति....जिन्दगी का अगर कोई लक्ष्य नहीं है.....तो जिन्दगी, जिन्दगी नहीं....जीता तो जानवर भी है...शायद इंसान और जानवर में यही फर्क है....खेल के मैदान में..बच्चे गेंद लेकर खेलते रहते हैं....कोई इधर मारता है कोई उधर मारता है.....लेकिन जब वही बच्चे दो-दो ईंटे उठा कर , दो एक तरफ और दो एक तरफ रख देते हैं.....तो वो एक match बन जाता है, लक्ष्य निश्चित हो जाता है.....और उसमें रोमांच पैदा हो जाता है.
तुम कितना सोचते हो ....आनंद.
चाय लो....और ये पोहा...खा लो...वर्ना मालिन माँ...फांसी दे देगी....
वो तो मैं खा लुंगी.....मैं एक बात पूँछु...आनंद.
क्यों नहीं.....जरुर
प्रेम के बारे में क्या सोचते हो तुम...
ज्योति....प्रेम के बारे में तो ज्ञानी सोचते हैं.....
आनंद....अब ये मत कहना की मैं तो ज्ञानी नहीं हूँ...मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता.....
अरे नहीं......ऐसा नहीं है......ज्योति.....प्रेम के बारे में जितने ग्रन्थ लिखे जाएँ, कम हैं.... लेकिन में तो ये सोचता हूँ..की प्रेम के बारे में लोग लिख कैसे लेते हैं.... ये तो मानी और अल्फाज में समझाई नहीं जाती....मैं तो ये मानता हूँ..की ढाई आखर प्रेम का , पढे सो पंडित होई.......प्रेम तो अथाह समुन्द्र है...जो इसमे उतर गया.....वो तर गया.
खुसरो बाज़ी प्रेम की वाकी उल्टी धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार......मानती हो...ना.
हाँ ... आनंद.
ज्योति जो प्रेमी होगा...वो शांत होगा.....क्योंकि जहाँ गहराई होगी...वहां शांत होगा. जहाँ छिछलापन होगा, जहाँ shallowness होगी वहां शोर होगा....तुमने समुन्द्र तो देखा है ना....किनारों पर ज्यादा हल्ला मचता है....क्योंकि वहां छिछलापन होता है, shallowness होती है....लेकिन जहाँ गहराई होती है,समुन्द्र वहां शांत रहता है...यही एक प्रेमी की पहचान भी है.....प्रेम में जुबाँ कब बोलती है...
तो क्या प्रेम व्यक्त नहीं किया जा सकता या नहीं करना चाहिए.....
व्यक्त करना भी चाहिए...और किया भी जाना चाहिए....
तो फिर इसके लिए इतना शोर-शराबा क्यों.....
क्योंकि अपने गिरेबान में झाँक कर देखने की हिम्मत किसमें है....
मुजरिम है सोच सोच , गुनाहगार सांस सांस,
कोई सफाई दे तो कहाँ तक सफाई दे.
जानतो हो ज्योति....कुछ देशों में ये शोध हो रहा है, की क्या Jesus Christ की जिन्दगी में कोई स्त्री थी....अरे..मैं तो कहता हूँ की चलो मान लिया की उनकी जिन्दगी में कोई औरत थी, तब भी वो ईसा मसीह बने, हम सब की जिन्दगी में भी औरत है, क्या हम ईसा मसीह बने....ये सवाल पूंछो....बंद करो उंगलियाँ उठाना....
प्रेम....पूजा है ज्योति.....अगर हमारे आराध्य के उपर एक भी ऊँगली उठी....तो प्यार की तोहीन है....आराधक को जलना पड़ता है...एक दीये की तरह....चुपचाप.... क्रमश:
कुछ भी बना दो माँ......हमेशा की तरह आनंद का सरल सा जवाब....
तुझसे तो कुछ पूँछना ही बेकार है......मटर का पुलाव बना देती हूँ.....चाय लेगा....
मालिन माँ....ये भी कोई पूंछने की बात है...जवाब ज्योति का.....मेरे लिए भी बना दो.....ना.
अच्छा....अच्छा...कहते हुए मालिन माँ रसोई की तरफ चल दीं....
आनंद.......
हाँ ज्योति.....आनंद का कुछ चोंकेते हुए सा जवाब
क्या हुआ आनंद...इतना चोंक क्यों गए...लगता है की दिमाग कुछ चल रहा है......कुछ परेशान हो....??
नहीं परेशान तो नहीं..हाँ दिमाग जरुर चल रहा है......
क्या चल रहा है दिमाग में.....बोलोगे.
कुछ ख़ास नहीं...ज्योति.....सोच रहा हूँ...की मेरी जो छवि लोगो के दिमाग में बनी है...एक आवारा, मस्त मौला, लापरवाह...इससे मुझे कितना फायदा है....लोग मेरे बारे में seriously सोचते ही नहीं, मेरे चरित्र की गहराई का अंदाजा नहीं लगा पाते....तो मैं कितनी उलाहनो से बच जाता हूँ....जानतो हो ज्योति...."पर उपदेश कुशल बहुतेरे" ..... लेकिन जो उपदेश हम दूसरों को देते हैं..जब उनको जीने की बारी आती है..न ज्योति.....तब कितने लोग खरे उतरते हैं....
आनंद.....ऊँगली उठाना बहुत आसान है....ख़ास कर दूसरों पर...मुझे सब कुछ पता है....जो जो तुम सुन रहे हो, जो जो उंगलियाँ तुम पर उठ रहीं हैं.... लेकिन मैने अभी तक तुमको अपना धैर्य खोते हुए नहीं देखा.....और खोना भी मत.....ये सब बरसाती मेंढक हैं...जो सिर्फ टर्र टर्र करते हैं..वो भी जब तक बरसात होती है....
ले बेटा...चाय......और ये ले मटर का पोहा....मालिन माँ...का अवतरण......
ज्योति....जिन्दगी का अगर कोई लक्ष्य नहीं है.....तो जिन्दगी, जिन्दगी नहीं....जीता तो जानवर भी है...शायद इंसान और जानवर में यही फर्क है....खेल के मैदान में..बच्चे गेंद लेकर खेलते रहते हैं....कोई इधर मारता है कोई उधर मारता है.....लेकिन जब वही बच्चे दो-दो ईंटे उठा कर , दो एक तरफ और दो एक तरफ रख देते हैं.....तो वो एक match बन जाता है, लक्ष्य निश्चित हो जाता है.....और उसमें रोमांच पैदा हो जाता है.
तुम कितना सोचते हो ....आनंद.
चाय लो....और ये पोहा...खा लो...वर्ना मालिन माँ...फांसी दे देगी....
वो तो मैं खा लुंगी.....मैं एक बात पूँछु...आनंद.
क्यों नहीं.....जरुर
प्रेम के बारे में क्या सोचते हो तुम...
ज्योति....प्रेम के बारे में तो ज्ञानी सोचते हैं.....
आनंद....अब ये मत कहना की मैं तो ज्ञानी नहीं हूँ...मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता.....
अरे नहीं......ऐसा नहीं है......ज्योति.....प्रेम के बारे में जितने ग्रन्थ लिखे जाएँ, कम हैं.... लेकिन में तो ये सोचता हूँ..की प्रेम के बारे में लोग लिख कैसे लेते हैं.... ये तो मानी और अल्फाज में समझाई नहीं जाती....मैं तो ये मानता हूँ..की ढाई आखर प्रेम का , पढे सो पंडित होई.......प्रेम तो अथाह समुन्द्र है...जो इसमे उतर गया.....वो तर गया.
खुसरो बाज़ी प्रेम की वाकी उल्टी धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार......मानती हो...ना.
हाँ ... आनंद.
ज्योति जो प्रेमी होगा...वो शांत होगा.....क्योंकि जहाँ गहराई होगी...वहां शांत होगा. जहाँ छिछलापन होगा, जहाँ shallowness होगी वहां शोर होगा....तुमने समुन्द्र तो देखा है ना....किनारों पर ज्यादा हल्ला मचता है....क्योंकि वहां छिछलापन होता है, shallowness होती है....लेकिन जहाँ गहराई होती है,समुन्द्र वहां शांत रहता है...यही एक प्रेमी की पहचान भी है.....प्रेम में जुबाँ कब बोलती है...
तो क्या प्रेम व्यक्त नहीं किया जा सकता या नहीं करना चाहिए.....
व्यक्त करना भी चाहिए...और किया भी जाना चाहिए....
तो फिर इसके लिए इतना शोर-शराबा क्यों.....
क्योंकि अपने गिरेबान में झाँक कर देखने की हिम्मत किसमें है....
मुजरिम है सोच सोच , गुनाहगार सांस सांस,
कोई सफाई दे तो कहाँ तक सफाई दे.
जानतो हो ज्योति....कुछ देशों में ये शोध हो रहा है, की क्या Jesus Christ की जिन्दगी में कोई स्त्री थी....अरे..मैं तो कहता हूँ की चलो मान लिया की उनकी जिन्दगी में कोई औरत थी, तब भी वो ईसा मसीह बने, हम सब की जिन्दगी में भी औरत है, क्या हम ईसा मसीह बने....ये सवाल पूंछो....बंद करो उंगलियाँ उठाना....
प्रेम....पूजा है ज्योति.....अगर हमारे आराध्य के उपर एक भी ऊँगली उठी....तो प्यार की तोहीन है....आराधक को जलना पड़ता है...एक दीये की तरह....चुपचाप.... क्रमश:
2 comments:
अगर हमारे आराध्य के उपर एक भी ऊँगली उठी....तो प्यार की तोहीन है....आराधक को जलना पड़ता है...एक दीये की तरह....चुपचाप.... निशब्द हूँ आज्…………
प्रेम के इतने सुन्दर सृजन ने मुझे प्रेरित कर दिया और मैने इस पर एक कविता लिख दी है लगाऊँगी ब्लोग पर तब पढियेगा……॥
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