ये भी तो हो सकता है की वो बदल गयी हो या बदल रही ही....
संभव है....
तुम तो डरा रहे हो मुझे.....
तुम डर क्यों रहे हो......
क्या मतलब.....
मतलब साफ़ है.....
तुमको कोई उम्मीद है....और जहाँ उम्मीद होती है..वहां पर दुःख और डर तो होते ही हैं......
तो मैं क्या करूँ...?
कुछ मत करो.....
तुम मेरी मदद कर रहे हो मेरे मन.....या मुझे confuse कर रहे हो....?
मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ......मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूँ.....उम्मीद मत करो.....तुम प्रेम करते हो.....तुम्हारा कार्य यहाँ पर खत्म होता है......प्रेम two way traffic नहीं होता. अपने आप को हटाओ....तभी तो वो............
हाँ........मैं समझ रहा हूँ......
अच्छा है.......और जितनी जल्दी समझ लो, उतना अच्छा है......
तो क्या सब कुछ सपना था.....
नहीं.......हकीकत थी.....
तो क्या हकीकत ख़त्म भी हो सकती है.....
नहीं....अगर तुम प्रेम की बात कर रहे हो...तो प्रेम कभी नहीं मरता....प्रेमी मरते हैं, बदलते हैं....लेकिन प्रेम नहीं.....
तो क्या सालों की तपस्या......
अपने से सम्बंधित प्रश्न करो..... दूसरों की आस्था और तपस्या पर नहीं....तुमको इसकी इज़ाज़त नहीं है.....
पता नहीं......
कौन क्या कर रहा है...इस पर ध्यान मत दो.....वो ये क्यों कर रहा है...ये जानना ज्यादा जरुरी है..... और उचित है.... और इससे भी ज्यादा उचित है....तुम क्या कर रहे हो....और क्यों कर रहे हो.....
लेकिन अगर हमने किसी के साथ ईमानदारी बरती है तो....?
तो ....क्या....? उसके परिणाम की इच्छा रखते हो.....ये तो मजदूर करते हैं...मेहनत करते हैं और मेहनताना लेते हैं..... क्या तुम मजदूर हो......?
क्या कोई रिश्ता नैतिक या अनेतिक होता है....?
नहीं....नैतिक या अनैतिक एक काम के दो नाम हैं......संभव है जिसको दुनिया अनैतिक मानती है...वो तुम्हारी नज़र में नैतिक हो ..या इसका उलटा....
तो क्या करना चाहिए......
वो करो जो तुम्हारा दिल कहे, तुम्हारा मन कहे ......क्योंकि दिल कभी झूठ नहीं बोलता....और गलत रास्ते पर नहीं ले जाता......
लेकिन दुनिया.....?
ये दुनिया तुम्हारी बनाई हुई है....
तो मैं न बदलूँ....?
किस के लिए...और क्यों......क्योंकि तुम प्रेम करते हो......
गिले शिकवे जरुरी हैं, अगर सच्ची मुहब्ब्त है,
जहाँ पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है.
शायद तुम ठीक कहते हो.......
अपना ख्याल रखना तपस्वनी.....
संभव है....
तुम तो डरा रहे हो मुझे.....
तुम डर क्यों रहे हो......
क्या मतलब.....
मतलब साफ़ है.....
तुमको कोई उम्मीद है....और जहाँ उम्मीद होती है..वहां पर दुःख और डर तो होते ही हैं......
तो मैं क्या करूँ...?
कुछ मत करो.....
तुम मेरी मदद कर रहे हो मेरे मन.....या मुझे confuse कर रहे हो....?
मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ......मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूँ.....उम्मीद मत करो.....तुम प्रेम करते हो.....तुम्हारा कार्य यहाँ पर खत्म होता है......प्रेम two way traffic नहीं होता. अपने आप को हटाओ....तभी तो वो............
हाँ........मैं समझ रहा हूँ......
अच्छा है.......और जितनी जल्दी समझ लो, उतना अच्छा है......
तो क्या सब कुछ सपना था.....
नहीं.......हकीकत थी.....
तो क्या हकीकत ख़त्म भी हो सकती है.....
नहीं....अगर तुम प्रेम की बात कर रहे हो...तो प्रेम कभी नहीं मरता....प्रेमी मरते हैं, बदलते हैं....लेकिन प्रेम नहीं.....
तो क्या सालों की तपस्या......
अपने से सम्बंधित प्रश्न करो..... दूसरों की आस्था और तपस्या पर नहीं....तुमको इसकी इज़ाज़त नहीं है.....
पता नहीं......
कौन क्या कर रहा है...इस पर ध्यान मत दो.....वो ये क्यों कर रहा है...ये जानना ज्यादा जरुरी है..... और उचित है.... और इससे भी ज्यादा उचित है....तुम क्या कर रहे हो....और क्यों कर रहे हो.....
लेकिन अगर हमने किसी के साथ ईमानदारी बरती है तो....?
तो ....क्या....? उसके परिणाम की इच्छा रखते हो.....ये तो मजदूर करते हैं...मेहनत करते हैं और मेहनताना लेते हैं..... क्या तुम मजदूर हो......?
क्या कोई रिश्ता नैतिक या अनेतिक होता है....?
नहीं....नैतिक या अनैतिक एक काम के दो नाम हैं......संभव है जिसको दुनिया अनैतिक मानती है...वो तुम्हारी नज़र में नैतिक हो ..या इसका उलटा....
तो क्या करना चाहिए......
वो करो जो तुम्हारा दिल कहे, तुम्हारा मन कहे ......क्योंकि दिल कभी झूठ नहीं बोलता....और गलत रास्ते पर नहीं ले जाता......
लेकिन दुनिया.....?
ये दुनिया तुम्हारी बनाई हुई है....
तो मैं न बदलूँ....?
किस के लिए...और क्यों......क्योंकि तुम प्रेम करते हो......
गिले शिकवे जरुरी हैं, अगर सच्ची मुहब्ब्त है,
जहाँ पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है.
शायद तुम ठीक कहते हो.......
अपना ख्याल रखना तपस्वनी.....
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