ऐसा क्यों होता है की मुझे तुमसे ही बात करने का समय नहीं होता, या यूँ कहूँ की अपने आप से ही बात करने का समय नहीं होता, जबकि मै जानता हूँ की तुम मेरे साथ हमेशा रहते हो????
ये एक जायज सवाल पूंछा है तुमने..... ऐसा नहीं है की सिर्फ तुम बात करना चाहते हो. मै भी तुमसे बात करना चाहता हूँ और मै तो करता भी रहता हूँ........ अक्सर तुम मेरी आवाज़ सुनते भी हो.....लेकिन सुन के अनसुना कर देना, ये अब इंसान की फितरत बन गयी है. ...... तुम ने कभी ये सोचा की तुम सुन के अनसुना क्यों करते हो.......
क्यों भला....?
क्योंकि तुम डरते हो.........
क्या ..............................?
आश्चर्य मत करो........... ये भी एक सच्चाई है.
किस से डरता हूँ मै..........?
सच से............
क्या बात कर रहे हो............
मेरी यही आदत है की मै सिर्फ सच बयान करता हूँ.......... और लोग अपनी आवाज़ सुनना नहीं चाहते हैं... क्योंकि सच किसी से बर्दाशत नहीं होता...... और अगर मै ये कहूँ की लोग सच से डरते हैं..... तो कोई गलत बात नहीं होगी............. लेकिन तुम्हारा अहंकार तुमको ये बात मानने नहीं देता...... चलो.... ऐसे समझो..... रावण ने सीता का अपहरण किया..... तो ये उसका दिल भी जानता था की ये गलत है. और जिस-जिस ने उसको समझाने की कोशिश की... वो चाहे विभीषण हो ये कुम्भकरण....आगे तुम जानते हो...... ये सिर्फ उसका अहंकार ही था जिस ने सच्चाई को स्वीकार नहीं किया..... और परिणाम............ युद्ध. ............... दिल और दिमाग के बीच जब मै तुम सब लोगों को पिसता हुआ देखता हूँ...... तो अफ़सोस होता है....... इंसान को " अशरफुल मखलुकात" कहा जाता है अर्थात..... ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना.... और उसका ये हाल.............
दिल और दिमाग.....?
क्यों मै गलत कह रहा हूँ क्या..?
नहीं गलत तो नहीं..... तो फिर ईश्वर ने दिमाग दिया क्यों...?
दिल.... गलत और सही का फर्क बताने के लिए..... और दिमाग जो सही है उसपर चलने के लिए....... मेरा काम जो सही है वो बताना है..... उस पर चलने के लिए.....कैसे चलना है, किस राह से बचना है, ये सब दिमाग का काम है. लेकिन तुम लोग दिमाग के काबू मे हो जाते हो..... बोलो मै गलत हूँ क्या?
अभी भी देर नहीं हुई है...... सिर्फ एक सोच की देर है.
किस सोच की...?
दिल की सुनो...... अगर ये बात मानते हो की दिल मे ईश्वर का निवास है.....तो.
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