Thursday, September 2, 2010

ये कहानी फिर सही

काम हो गया इसका.... अब ये किसी काम का नहीं है.... फ़ेंक  दो. बेकार की चीजें रखकर क्या फायदा. खामखाँ जगह घेरतीं हैं.

अरे..... मैं वाकई की चीज़ों की बात नहीं कर रहा हूँ.... मैं इंसानों की बात कर रहा हूँ. .... जिस से अपना काम निकल गया..... वो तो बेकार ही हो गया ना..... तो फ़ेंक दो.

ये क्या कह रहें हैं आप  ?

इतने विसमित क्यों हो रहे हो ? 

नहीं...... आप तो ऐसे नहीं थे... इसलिए.

कैसे नहीं थे...... और कैसे हो गए हैं.....इसका हिसाब किताब करने बैठ गए तो ये ज़िन्दगी कम पड़ जायेगी.  जिन्दगी जो सिखाती जा रही है....  सीखते चलो..... इंसान, इंसानियत.... इन सब के चक्कर मे बहुत पड़ लिए.

क्या मतलब.......?

मतलब निकालना छोड़ो.......  मतलब की ज़िन्दगी जीयो. चीज़ों से प्यार करो........ इंसान को इस्तेमाल करो. ये आज का गुरु मंत्र  है. ....... 

नहीं वो सब तो ठीक है..... लेकिन अचानक इस परिवर्तन का कारण....?

हम को किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही,
किस ने तोड़ा दिल हमारा , ये कहानी फिर सही,

नफरतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में,
हम ने किस किस को पुकारा , ये कहानी फिर सही,




 

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