सुनो......... उससे बच के रहना.
नहीं भाई नहीं ये मै नहीं कह रहा हूँ. मै तो सिर्फ वो कह रहा हूँ जो मेरे अभिन्न मित्र सुंदर लाल के बारे में लोग एक दूसरे से कह रहे हैं. आप ने कभी किसी के बारे में इस तरह अपने किसी प्रियजन को सावधान किया है? किया होगा या हो सकता है कि न भी किया हो. बेचारा सुंदर लाल. लेकिन सावधान जरूर कर दीजिएगा. क्योंकि जब मै आप को सावधान करूंगा तो निश्चित तौर पर आप मुझसे जानना चाहेगे कि क्यों भाई और फिर मुझे एक और मौका मिलेगा अपनी दिल कि किसी अधूरी ख्वाहिश को पूरी करने का, सुंदर लाल के बहाने और फिर मै नमक मिर्च लगा कर आप को सुंदर लाल के बारे में बताउंगा. सुंदर लाल ऐसा है, सुंदर लाल वैसा है, सुंदर लाल का उससे चक्कर है आदि आदि.... You know. सुनो......... उससे बच के रहना
वैसे ये आदत है बड़ी , क्या कहूँ, अच्छी .... नहीं , नहीं रुचिकर. सच मे किसी के साथ बैठकर , किसी कि बुराई करना.... इस का अपना सुख होगा. अरे भाई कोई सुख न हो..... तो... आदमी करे क्यों? बोलो तो. सास- बहू, भाभी- नन्द , ये सब जोड़िया तो मशहूर हैं इस कम के लिए. और जिनकी ये जरूरत ( जरुरत शब्द पे ध्यान दीजियेगा) पूरी नहीं होती.... वो कुछ और , कहीं और अपनी निंदा व्याखान की आदत पूरी कर लेती हैं. और इसके लिए उनको श्रोता भी मिल जाते है. कुछ मज़बूरी मे सुनते हैं कुछ को इसमे बड़ा रस आता है. लेकिन सुनो....उससे बच के रहना.
निंदा.... सिर्फ कलयुग की कला नहीं है. ये तो राम के समय से चली आ रही है. जब त्रेता युग था. मंथरा ने काम तब किया था. तो मतलब ये कला कोई आज की नहीं हैं. बस होना इतना चाहिए की निंदा जिसकी करनी हो उसी से की जाये. तो सकारात्मक निंदा नहीं तो ...... आप लोग जानते ही हैं. अच्छा लोग सामने सामने निंदा क्यों नहीं करते ? ये भी एक सवाल है. शायद डर. जिसकी निंदा मे कर रहा हूँ , उसकी सामने अगर उसने कोई प्रतिक्रया कर दी तो.... ? प्रतिक्रया किसी भी तरह की हो सकती है. लेकिन सुनो......... उससे बच के रहना
आखिर क्यों.... क्यों ........ उससे बच के रहना ?
क्योंकि.... उसकी बातों मे है अजब सी खुशबू, वो शायद लबो पे गुलाब रखते है.
इसलिए सुनो......... उससे बच के रहना
खुदा हाफ़िज़. ...... अब आप इनसे उजाला करे, या घर फूंके , चिराग़ बेचने वाले चिराग़ बेच गए.
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